: इंटरव्यू (पार्ट-एक) : मुंतज़र अल ज़ैदी (इराकी पत्रकार) : बुश पर जूता फेंकना भी “पीसफुल” था… : वे बम बरसाते हैं, तब भी कुछ नहीं होता, हम हथियार पकड़ते हैं तो अपराधी हो जाते हैं : गांधी ज़िंदा हैं, ज़िंदगी की तरह :
दुनिया में जूते से विरोध की परंपरा शुरू करने वाले इराकी पत्रकार मुंतज़र अल ज़ैदी दो दिन की यात्रा पर भारत पहुंचे। ज़ैदी ने विरोध का पहला जूता अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश पर क्या फेंका, रातों-रात इराकी जनता के चहेते और दुनिया भर की सुर्खी बन बैठे। इस घटना से भयभीत ज़ैदी को दुनिया के किसी भी देश ने वीजा जारी करने की हिम्मत नहीं की। सिर्फ भारत को छोड़कर। दिल्ली प्रवास के दौरान बापू की समाधि राजघाट पर पहुंचे मुंतज़र अल ज़ैदी के साथ न्यूज एक्सप्रेस के एडीटर (क्राइम) संजीव चौहान की बातचीत के कुछ अंश…
सवाल- जॉर्ज बुश को जूता मारने की नौबत क्यों आई?
जबाब- जिस चीज ने गांधी जी को ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ आंदोलन के लिए प्रेरित किया था, मेरा भी ऐसा ही उद्देश्य था। नाइंसाफी और ज़ुल्म के खिलाफ लड़ाई मेरा मकसद था।
सवाल- बुश पर जूता तैश में आकर फेंक दिया या भावनाओं में बहकर?
जबाब- प्रेस-कांफ्रेंस की खबर मिलते ही, मैंने जूता मारने की प्लानिंग की थी। मैं दुनिया को बताना चाहता था कि यूएस (अमेरिका) ऑक्यूपेशन फोर्सेज का स्वागत फूलों से नहीं किया गया। उन्हें जूतों से सलामी दी।
सवाल- देश में और भी लोग थे, वो इस घटना का किस तरह विरोध कर रहे थे?
जबाब- और भी काफी लोग थे, जो इराकी ऑक्यूपेशन के खिलाफ थे, और सारे लोग अपने-अपने हिसाब से इसका विरोध कर रहे थे। मैंने जो विरोध का तरीका अपनाया वो ‘पीसफुल’ था।
सवाल- जूता मारने के बाद जब पकड़े गये, उसके बाद जेल जाने तक क्या-क्या हुआ?
जबाब- जब मुझे अरेस्ट किया गया, तो उन्होंने मेरे दांत तोड़ डाले। नाक तोड़ दी। दोनों पांव तोड़ दिये। इलेक्ट्रिक-शॉक दिये गये। कड़ाके की ठंड थी। फिर भी ठंडे पानी से टार्चर किया गया। पूरे बदन से खून टपक-बह रहा था। तीन महीने तक अंधेरी कोठरी में रखा गया। उसके बाद आम बैरक में डाल दिया गया। उसके बाद जिस्मानी और ज़हनी तौर पर टार्चर किया। मेरे ऊपर प्रेशर बनाया गया, जिससे मैं जूता फेंकने के जुर्म में मांफी मांग लूं। लेकिन मैंने माफी नहीं मांगी। जूता, माफी मांगने के लिए नहीं फेंका था।
सवाल- जेल की पहली रात के बारे में कुछ बतायेंगे?
जबाब- जिंदगी की सबसे मुश्किल रात थी वो। पहली रात जेल में न ले जाकर, किसी सूनसान जगह पर ले गये थे। वहां प्राइम-मिनिस्टर के सिक्योरिटी गार्ड भी थे। लेट नाइट तक वहां टार्चर किया गया। दूसरों (अमेरिकियों) की हिदायतों पर अमल करके अपनों (इराकी गार्ड) के द्वारा। कोड़ों की मार से पूरे बदन सूज और जगह-जगह से फट गया था।
सवाल- पहली रात खाने में क्या दिया?
जबाब- मैंने उनका खाना खाने से मना कर दिया। इससे वे चिढ़ गये। पूरी रात रुक-रुककर पीटते रहे। वो थक गये और मैं बेहोश हो गया। जब-जब होश आता मुझे, तो वे पीटते। कहते जुर्म कबूल लो। बख्श दिये जाओगे। वरना ज़हन्नुम में भेज दिये जाओगे। लेकिन मैंने उनकी हर पेशकश ठुकरा दी।
सवाल- पकड़े जाने वाली रात किसकी याद सबसे ज्यादा आई?
जबाब- घर वालों की।
सवाल- गांधी कब और कैसे याद आये? जेल गये तब गांधी याद आये थे! या जेल जाने से पहले भी गांधी को जानते थे?
जबाब- मैंने गांधी को उस वक्त पढ़ा था, जब मेरी उम्र सिर्फ सोलह-सत्रह साल रही होगी। मैं उनके (गांधी) आज़ादी के लिए किये गये संघर्ष के तरीके से प्रभावित था, हूं और आइंदा भी रहूंगा।
सवाल- गांधी में क्या खास नज़र आया?
जबाब- भारतीयों के लिए उन्होंने जो कुर्बानी दी, उस कुर्बानी की मैं तारीफ करता हूं। गांधी जी आजादी के नुमाइंदे और आइकॉन थे। उनकी लड़ाई सिर्फ भारत की खातिर नहीं, दुनिया के लिए थी।
सवाल- मुंतज़र ने गांधी को पढ़ा है, सुना है। तो गांधी के बारे में कुछ याद है?
जबाब- हां-हां। क्यों नहीं। गांधी जी ने एक बार कहा था – “मैंने हज़रत हुसैन की ज़िंदगी से सीखा है कि मैं मज़लूम (जिस पर ज़ुल्म और ज्यादती हुई हो) बनूं। ताकि मुझे जीत हासिल हो। मैंने भी गांधी से यही सीखा है कि मैं मज़लूम बनूं। और जीत हासिल कर सकूं।”
सवाल- आज गांधी जी अगर आपके सामने आकर खड़े हो जायें, तो उनसे क्या कहेंगे?
जबाब- कौन कहता है गांधी मर गये ? गांधी जी उसी तरह आज भी ज़िंदा हैं, जिस तरह “ज़िंदगी”। इसी राजघाट पर अभी आपके सामने ही उनसे मेरी गुफ्तगू हुई है।
सवाल- जूता फेंकने से पहले उसके परिणाम के बारे में सोचा था!
जबाब- हां । मुझे पता था कि बुश पर पहला जूता फेंकते ही मुझे घेरकर मार दिया जायेगा।
सवाल- गांधी जूता-लाठी के खिलाफ थे। मुंतज़र ने तो इसके एकदम उल्टा ही कर डाला। बुश के मुंह पर जूता फेंक कर….
(सवाल के बीच में ही टोकते हुए…..)
जबाब- महात्मा (गांधी) ने पीसफुल (शांतिपूर्ण) तरीके से रिव्योलूशन की बात की थी। बुश पर जूता फेंकना भी “पीसफुल” ही था। उसमें कहां बम, गोली, तलवार, छुरे का इस्तेमाल किया मैंने?
सवाल- मुंतज़र, बराक ओबामा और जॉर्ज बुश को एक ही जेल में बंद कर दिया जाये, तो आपका रवैया क्या होगा?
जबाब- ऐसा कभी नहीं हो सकता। इराक में महज़ हथियार उठाने भर तक पर सज़ा मुकर्रर कर दी जाती है, वे (अमेरिका) बम बरसाते हैं, तब भी कुछ नहीं होता।
सवाल- बुश पर जूता फेंकने से भी ज्यादा ज़िंदगी का कोई खास लम्हा?
जबाब- महात्मा गांधी की समाधी का दीदार। गांधी की समाधी पर आना।
सवाल- क्या दुनिया में विरोध के लिए जूता परंपरा लाने और जेल जाने पर अफसोस है।
जबाब- कोई और जूता न फेंके। आप किसी वाकये को दोनो आंखों से देखें। जेल जाने का अफसोस बिलकुल नहीं है।
…जारी…
Comments on “वे पीटते रहे, थक गये, मैं बेहोश हो गया”
jaidi ne jo virodh ka rasta apnaya tha yadi wah galat tha to kya brush samrajya dwara muslim desho par julositam galtiyo ya saja ke dayre me nahi aata. jaidi ka kadam prasansniy hai log use ek nek kam ke lie janege.
chaliye achcha hai kam se kam sanjeeb jee ko ek kam to mila barna express ke office me makhi mar rahe hote..
संजीव साहब, क्या बात है हिंदुस्तान छोड़कर इराक जाने का इरादा कर लिया है। मुंतज़र भाई पर लिखा पढ़ा तो कुछ और हिंदी-अंग्रेजी अखबारों में भी था, लेकिन खबर की तरह। भड़ास पर अभी मुंतज़र अल ज़ैदी साहब का आपके द्वारा लिया गया एक्सक्लूसिव इंटरव्यू पढ़ा, तो रौ में दो तीन बार पढ़ गया। मान गये गुरु 20 साल के पत्रकार और नई जमात में फर्क। खूब भुनाया है मुंतज़र साहब को आपकी कलम से आप खुद ने और भड़ास ने । इसे कहते हैं मिल-बांटकर खाना-पकाना। गजब का पकड़ते हो। जिसके पीछे पड़ गये, निचोड़ लिया उसे। अच्छा ही रहा मुंतज़र इराक वापस चले गये, वरना भारत में ही बसा लेते। मजा आ गया। बहुत दिन बाद आप भड़ास पर पढ़ने को मिल रहे हैं। इसके लिए भड़ास भी धन्यवाद का पात्र है।
jaidi jee ek sawal aur kar liya hota hai kya aap ab bhi channel ke reporter hai..?
Salute u man.
न्यूज एक्सप्रेस के एडीटर (क्राइम) संजीव चौहान जी को ढेर सारी मुबारक बाद काफी अच्छा है
शआहिद अंसारी
न्युज एक्सप्रेस मुंबई
man gaye guru akhir mera sawal punch hi liya……
ये साक्षातकार मज़ेदार लगा…लोगों की चाहे जो प्रतिक्रिया हो लेकिन काफी कच्छे सवाल थे…एक आम आदमी क्या जानना चाहता है इसमें उन सवालों का पूरा ख़याल रखा गया है…..
छा गये संजीव भाई….आपकी वो क्राइम रिपोर्टिंग भी देखी है जब आप काल गर्ल्स हो या फिर रात मे दिल्ली की सुरक्षा मे लगी दिल्ली पुलिस ….. आप हमेशा ही सच को सामने लाते रहें हैं और उम्मीद है आगे भी आपका कद इसी तरह बढ़ता रहेगा…..
गिरीश निशाना
डी डी न्यूज़
मुंतज़र साहब का इंटर्व्यू पढ़ा। आपके लिखने का अंदाज़ जुदा है। जो तमाम दूसरे पत्रकारों से अलग दिखाई देता है। आपके लिखे को मैं बहुत शौक से पढ़ता हूं। मैं बाशिंदा हिंदुस्तान का ही हूं। यहां तो पेट और परिवार के लिए आ गया हूं। जब कभी मौका मिला तो हमवतन पहुंचने पर आपके मुखातिब होने की तमन्ना है।
अमेरिकी ताकत और प्रोपेगेंडा के सामने कोई नहीं टिका चाहे वो सद्दाम हो या ओसामा ……उस अमेरिका के राष्ट्रपति और दुनिया के सबसे ताकतवर इंसान को जूता मारना मुंतज़र जैसे लोगो की ही बात है …….
मुंतज़र ने अंजाम की परवाह ना करते हुए शांतिपूर्ण विरोध के एक
नए तरीके का आगाज कर दिया !
किसी पत्रकार के दिल के जज्बात जानना हमेशा से ही एक मुश्किल कम रहा है लेकिन मुंतज़र ने इस गुप्तगू में अपने जज्बात का खुल कर इजहार किया है ! इन जज्बातों को संजीदगी से शब्दों में पिरोकर पेश करना वाकई काबिलेतारीफ है !
चलो संजीव भाई कहीं तो दिखाई दिए , वर्ना आप तो बिलकुल ईद का चांद हो गए थे , आज तक के बाद ।
संजीव जी भारत मे इंनक्लाब लाने करे लिए ..एसे ही लोगों की जरूरत है…..अब तक लोगों टने जो भी जैदी के बारे में लिखा वह ज्यातार एजेंसियों की खबरें थी….मगर आप के रुबरू होने के बाद खबर का जो अंदाज है वह जुदा है….आम तौर से लोगो के बीच जैदी का ख्याल आते ही ..सिर्फ जूते मारने तक सीमित है..आपने उसके बाद की सारी प्रक्रिया को जिस अंदाज में लिखा..वह काफी सराहनीहै..मतलब आपके इंटरविव को पढने के बाद डबोरियत नही होती ..बल्कि कुछ नया पढने और सीखने मिलता है…बिल्कुल ऐसे ही मुकेश सर का वह लेख था..जब ओसामा के मारे जाने के बाद अमेरिका की राजनीतिक दाव पेच में जो तब्दीलियों देखने को मिली. कौन होगा अमेरिका का अग्ला दुशमन ..या निशाना…..जैदी के जरिए आपका अंदाज-ए-खबर बहुत ही सराहनी है..मेरी ओर से आपको ढेर सारी मुबारक बाद …..
शाहिद अंसारी
न्युज एक्सप्रेस (कोरोस्पांडेंट)
मुंबई
संजीव जी,
सबसे पहले आपको बधाई। भड़ास पर अब तक हर इंटरव्यू मैंने पढ़ा है। इससे पहले भी कई रोचक व जानकारी से भरपूर इंटरव्यू पढ़ने को मिला है। मगर एक बात है, इराक के पत्रकार जैदी जी का इंटरव्यू में कई खास बातें रहीं। सबसे बड़ी बात कि जैदी जी के वैचारिक सोच खुलकर सामने आई है, जिससे उन्हें हर पत्रकार को नजदीक से जानने का मौका मिला है।
इस इंटरव्यू में निश्चित ही वो गहराई है, जिसे जानना हर पाठक वर्ग चाहता है। इस इंटरव्यू के लिए आपको एक बार और बधाई और भड़ास परिवार समेत यशवंत भाई को शुभकामनाएं। आशा है, आगे भी भड़ास का इंटरव्यू रोचक होगा।
वाकिये में जैदी जी का पढ़ा हुआ इंटरव्यू हमेशा जेहन में समाया रहेगा, क्योंकि मार्मिकता का पुट हर कहीं भरा हुआ है।
ओर एक हमारे यहा के मीडीया समूह है की अपने रिपोर्टर पर कुछ परेशानी आई नही की सबसे पहले हाथ ये ही खींचते है
राजकुमार साहू जी एवं शाहिद भाई । मेरे द्वारा लिया और लिखा गया मुंतज़र भाई का इंटरव्यू आपने पढ़ा…भड़ास और संजीव चौहान के लिए यही काफी है। इसी तरह पढ़ते रहिये। और खुले दिल-ओ-दिमाग से वो कमेंट लिखिए जो आपकी आत्मा बोले….शुक्रिया…
बहुत बढिया। मुंतजर के साथ न्यूज चैनल का होना बडी बात है। यहां देखिए। साले चैनल व अखबार वाले बीमार पडने पर भी पैसे काट लेते हैं। मदद क्या करेंगे। कमीने साले।
aap diler hone ke saath saath smart bhi ho saari khubiya aapke andar hai..
abhi filhal aap (zaidi ) kya kar rahe hai
भाई संजीव जी लगता है कि आप मे कुछ तो स्पेशल है क्योकि जो बाते जहन मे थी आपने वो 50% तो कम कर दी लेकिन आपने वाकई मजा आ गया लगता है कि भडास के पास स्पेश कम था बाते तो बहुत हुई होगी अब भी मन मे बहुत सारे बडे सवाल है उन्हे भी शांत करा तो न्यूज एक्प्रेस को आप की शक्ल में हीरा मिल गया न्यूज एक्प्रेस वालो का बधाई
बहुत बढ़िया…
sir,
zaidi k saath aapka andaze byaan achcha lga,
gandhi ji k bare me zaidi ne jo kaha wo ham hinustanyo k lye
faqr ki baat hai, mirza nusrat editor global express
न्यूज एक्सप्रेस के एडीटर (क्राइम) संजीव चौहान जी को ढेर सारी मुबारक बाद काफी अच्छा है
rajeev pal
journalist
budaun(u.p.)
mo.9412488657
zaidi bhai jis din duniya aap jaisy ho jaegy, us din k bad koi bhi kisi ka gulam nhi rahega. “HATS OFF TO YOU”
मुतंजर जे जो किया वो भावावेश में नही किया ये जानकर ज्यादा सुख का अनुभव हो रहा है, क्योकि क्योकि भावावेश और क्षणिक समय में लिया गया निर्णय गलत होता है लेकिन मुतंजर ने जिस ठीठता के साथ अमेरिकीयों के वर्चस्व को चुनौती दी वो काबिलेतारीफ है।
Sanjeeva ji you did good job.
jedi ji you visited “Raj Ghat”.
Yoy had to go to Sardar Bhagat Singh’s “Grave”
Shailendra saxena”Sir”
Director- “Ascent English Speaking Coaching”
Ganj Basoda Distt.- Vidisha. M.P.
09827249964.
jaimaikishailendra06@gmail.com
Aaj mai pahli bar bhadas4media ka interview padha jisme sabse pahle Sanjiv Sir aur Muntjir Al Jiadi Ji ka bat Chit padha. bahut din se man me ye sawal tha k kaisa saluk kiya hoga America wale Jaidi k sath, Sanjiv Sir Ko Thanks Aap k Wjah se ye Janne ka mauka mila.
Thanks Sanjiv sir Aap k wajah se Jaidi k sath America ke saluk ka pata chala. JAide ne jo kiya wo koyi aam Insan nahi kar sakta Unhe Mubarak bad deta hu.
ye interview accha laga….sanjeev bhai aap ka sukriya kyoki itni badi sakshiyat se aap ne talk kiya jisko humne acche se pada news express ke team & bhadas team ko dher sari badhai
haneef
hindustan
thnx sanjeevji…..pura pda…ab kabhi ye vakya milenge tb aapse sunana bhi chahungi.