हरिवंश जी का लिखा पहला पार्ट आप सभी ने पढ़ा. दूसरा पार्ट आज हम दे रहे हैं. चंडूखाने की गपों पर कोई सफाई नहीं दी जाती. रियूमर मिल की चर्चाओं का कोई जवाब नहीं होता. काले दिल वालों के फ्रस्ट्रेशन का कोई इलाज नहीं होता. पर हरिवंश जी हैं कि सबको, सब कुछ बता देना चाहते हैं. अपने अखबार के जीवन का हर पन्ना खोल देना चाहते हैं. वो पन्ना जो हर किसी के जीवन में सृजित होता रहता है पर लोग खोलते नहीं. ज्यादातर लोग अपने कालिया जीवन के पन्नों को छिपाकर दूसरों के जीवन के पन्नों पर सवाल खड़े करते रहते हैं. पर जहां सृजन नहीं होगा, जहां सकारात्मकता नहीं होगी, जहां गहराई नहीं होगी, जहां विराटता नहीं होगी, जहां उदात्तता नहीं होगी, वहां सब कुछ क्षणभंगुर होगा. सब कुछ तात्कालिक होगा. सब कुछ छिछला होगा. यकीन न हो तो चंडूखाने की गपें गढ़ने वाले सिर्फ अपने ही जीवन को देख लें.
हरिवंश जी ने जिस मेहनत से यह रपट तैयार की है, हर एक उदाहरण का प्रमाण संलग्नक के रूप में क्रमबद्ध कर भेजा है, वह अदभुत है. कितनी मेहनत की होगी उन्होंने? कितने दिन खर्च किए होंगे उन्होंने? पर उन्होंने जो ठान लिया सो ठान लिया। निजी तौर पर मैं मानता हूं कि हरिवंश जी को यह सब लिखने की कतई जरूरत नहीं थी क्योंकि पागलों की बातों का बुरा नहीं माना जाता, चंडूखाने की गपों को दिल पर नहीं लिया जाता पर जैसे प्रभाष जी ने अपने उपर उछाले गए गंदे, बेहद गंदे कीचड़ का जवाब जनसत्ता में ‘कागद कारे’ कालम के जरिए लिखकर दिया था, उसी तरह का जवाब, तर्कों के साथ, प्रमाणों के साथ, दस्तावेजों के साथ, तथ्यों के साथ हरिवंश जी दे रहे हैं.
हरिवंश जी ने अपनी बात रखने के लिए भड़ास4मीडिया को माध्यम बनाया, इससे हमारा मान बढ़ा है. इससे देश के पहले और नंबर वन मीडिया न्यूज पोर्टल का सम्मान बढ़ा है. यह हरिवंश जी का बड़प्पन है. इसके लिए हम दिल से आभारी हैं.
एक बात और। अगर हमने अपने समकालीन पत्रकारिता और समाज के असली हीरोज को जीते जी नहीं पहचाना तो समय हमें माफ नहीं करेगा। प्रभाष जी चले गए। लोग उनकी अच्छाई और बुराई बतियाते रहे पर खुद प्रभाषजी इस सबसे अविचलित अपनी मुहिम में लगे रहे। खबरों के धंधे के खिलाफ । पैदल, सड़क और जहाज सेय़ इस कोने से उस कोने को। नापते रहे। सेमिनार से लेकर अखबार तक में। बोलते-लिखते रहे। अलख जगाते रहे। साहस के साथ। ताल ठोंककर। एक जनमत बना। जगह-जगह बहस शुरू हो गई। धंधेबाज मालिकों को रक्षात्मक होना पड़ा। सचेत लोगों को संबल मिला। पर कुछ फ्रस्टेट, कुछ कुंठित प्रभाषजी को ही घेरने लगे। चले गए वो अपना जीवन जीकर। उन्हें घेरते रहो। उन जैसा न सोच पाओगे, न बन पाओगे। आज हरिवंश जी हैं। आज पी. साईंनाथ हैं। आज कुलदीप नैय्यर हैं। आज राम बहादुर राय हैं। आज वीरेन डंगवाल हैं। आज पुण्य प्रसून वाजपेयी हैं। ढेरों नाम हैं। गिनते रहिए। किस-किस पर उछालोगे कीचड़! ये कीचड़ लौटकर उछालने वालों के मुंह पर ही पड़ेंगे। एक दिन। देखना।
हम अपने हीरोज का पत्रकारिता और समाज के भले के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। उपयोग कर सकते हैं। कर सकें तो करें। वरना ये लोग तो खुद अपना एक-एक क्षण दूसरों के लिए लगाने में जुटे हैं। चुपचाप। समाज और पत्रकारिता को शक्तिशाली बनाने में जुटे हैं। हमें इन लोगों पर भरोसा है। भरोसा करना भी चाहिए। नए लोग भी आ रहे हैं। जरनैल सिंह का मैं बहुत इज्जत करता हूं। अदम्य साहस के साथ उन्होंने देश में हुए एक बड़े अन्याय के खिलाफ न्याय के लिए जंग छेड़ी। अकेला योद्धा। कल कई और आएंगे। आ रहे हैं। जुड़ेंगे। जुड़ रहे हैं। वक्त है। अच्छे लोग वक्त से एक नहीं हुए तो कल एक होने का वक्त नहीं रहेगा। बुरे लोगों का एका भयानक गति से हो रहा है। ऐसे में बड़ी रेखाओं को मिटाने की बजाय अपनी खुद की रेखा को बड़ी करने पर काम करना चाहिए।
सिर्फ सवाल उठाने से कुछ नहीं होता साथी। कुछ करिए। सकारात्मक करिए। स्थितियां वही सबके सामने हैं जो आपके सामने हैं। इसी में जीना, कुछ नया करना, रचना होगा।
चलिए, हरिवंश जी के लिखे सेकेंड पार्ट को पढ़ते हैं। थर्ड और फोर्थ पार्ट भी आज ही देने की कोशिश रहेगी। हरिवंश जी ने एक हफ्ते पहले सारी सामग्री भेज दी थी। पर अपनी व्यस्तताओं और फुरसत से पढ़ने व पब्लिश करने की चाहत के चलते पार्ट वाइज छापने का निर्णय लिया। पर अब लग रहा है कि यह उचित नहीं है। इसे एक साथ दे देना चाहिए। अच्छे काम तुरंत होने चाहिए। प्रभात खबर के जीवन के कई वर्षों के पन्नों और प्रभात खबर पर लगे कई आरोपों का हरिवंश जी ने विस्तार से और तथ्यों के साथ जवाब दिया है।
यहां एक माफी पहले ही मांग लेना चाहूंगा, हरिवंश जी और पाठकों, दोनों से, कि इस वाले पार्ट व इसके आगे के पार्ट में संलग्नक का प्रकाशन करना संभव नहीं हो पा रहा है। दो वजह हैं। हरिवंश जी ने इतने ज्यादा, लगभग हर दो लाइन के बाद एक संलग्नक भेजा है कि उस सभी को प्रकाशित कर पाना बहुत मुश्किल है। इन सभी संलग्नकों को छोटे साइज में रिसाइज कर अपलोड करना लंबा-थकाऊ काम है। इससे बचने के लिए माफी का सहारा ले रहा हूं। हां, अगर किसी सज्जन को कोई दस्तावेज चाहिए तो संपर्क कर सकता है। सब कुछ सुरक्षित मेल इनबाक्स में पड़ा है।
यशवंत सिंह
एडिटर
भड़ास4मीडिया
खबरों-खुलासों का सच : भाग-2 : विनोद सिन्हा पर पहले कब रिपोर्ट छपी? : आउटलुक के आरोप में आपने पढ़ा कि कोड़ाजी ने प्रभात खबर से जुड़ी कंपनी का कोई प्रपोजल रिजेक्ट कर दिया. इसके बाद. हालांकि आरोप लगाने वाले यह भी कह रहे हैं कि रियूमर मिल (चंडूखाने की गप) की चर्चा के अनुसार ऐसा है. पर तथ्य यह है कि विनोद सिन्हा से जुडी पहली (लीड खबर) बड़ी खबर 12 नवंबर 2006 को प्रभात खबर में छपी थी. इस रिपोर्ट का विषय क्या था? तब कोड़ाजी न मुख्यमंत्री थे, न दूर-दूर तक उनके मुख्यमंत्री होने के आसार थे. विनोद सिन्हा ने सोनालिका ट्रैक्टर की एजेंसी ली थी. चाईबासा में. सरकारी प्रावधान के तहत गरीबों को ट्रैक्टर मिलने थे. बैंक आफ बड़ौदा ने ऋण दिया था. और राज्य सरकार ने प्रति ट्रैक्टर सब्सिडी. इसमें घोटाला हो गया. बैंक आफ बड़ौदा ने कार्रवाई की. शिकायत दर्ज हुई. चाईबासा के प्रमंडलीय आयुक्त ने इस पूरे मामले की जांच की.
सूचना यह थी कि बैंक आफ बड़ौदा के स्थानीय मैनेजर, ट्रैक्टर डीलर और सरकारी अफसरों ने मिल कर जमीन के फर्ज कागजातों पर ऋण निकासी की. इन लोगों ने आदिवासी किसानों को गुमराह कर ऋण का पैसा आपस में बांट लिया. बाद में बैंक आफ बड़ौदा इस मामले की सीबीआई जांच कराने के प्रस्ताव के साथ हाइकोर्ट गया. तब तक मधु कोड़ा मंत्री थे. विनोद सिन्हा उनके प्रियपात्र. पर प्रमंडलीय आयुक्त की जांच रिपोर्ट के बाद भी मामले पर कार्रवाई आगे नहीं बढी. क्योंकि आरोप था कि कोई ताकतवर आदमी विनोद सिन्हा को कानून के फंदे से बचा रहा है. वह ताकतवर कोई और नहीं, विनोद सिन्हा जी के संरक्षक कोड़ाजी थे. रविवार 12 नवंबर 2006 को यह लीड खबर प्रभात खबर में छपी. किसी और जगह यह खबर नहीं आयी.
आयकर के हाल के छापों से एक कंपनी का पता चला है, जिससे ब्लैकमनी को ह्वाइट बना कर बैंक आफ बड़ौदा का लोन हाल में चुकाया गया. कोर्ट से बाहर सेटलमेंट कर. वर्षों बाद इस मामले में हाईकोर्ट का सख्त रुख देख कर विनोद सिन्हा ने कोर्ट से बाहर बैंक को पैसा चुका कर सेटलमेंट की कोशिश की. अपनी एक विवादास्पद कंपनी से ब्लैकमनी देकर. इस कंपनी के पास कहां से पैसे आते थे, यह राज हाल के आयकर छापों से पता चला है. सूचना है कि यह मामला अब नये सिरे से बढेगा. क्योंकि पैसा चुका देने के बाद भी जिन फर्जी लोगों को ट्रैक्टर देने की बात सामने आयी है, उसमें स्टेट की सब्सिडी इनवाल्व है. सवाल यह उठ रहा है कि पैसा चुका देने के बाद भी धोखाधडी या अपराध का जो मामला हुआ है, सरकार की सब्सिडी हड़प कर, फर्जी किसानों को ऋण दे कर, ये मामले अलग हैं. अपराध की भाषा में कहें, तो लोन तो चुकता हो गया, पर धोखाधड़ी वगैरह का “क्राइम’ तो हुआ ही. यह अलग इश्यू है. इसलिए कानूनविद कह रहें हैं कि इनके खिलाफ तो ऋण चुकाने के बाद भी कार्रवाई होगी ही. क्योंकि ये धोखाधड़ी और फर्जी काम से जुड़े प्रसंग हैं. सूचना है कि आयकर छापों के बाद, बैंक आफ बड़ौदा से भी पूछताछ हुई है कि उन्हें चुकता किये गये पैसे कहां से, कैसे आये, यह पता है? अब दोबारा यह मामला भी नये सिरे से शुरू हो रहा है.
इस तरह प्रभात खबर में विनोद सिन्हा पर 2007, 2008 या 2009 में पहली रिपोर्ट नहीं छपी. 2006 में ही पहली रिपोर्ट छपी थी. तब कोड़ा जी या किसी ने कोई आरोप नहीं लगाया. वे दिन थे, जब विनोद सिन्हा चाईबासा से उभर कर रांची में अपनी कला दिखाने लगे थे. फिर 18 सितंबर 2006 को कोड़ाजी मुख्यमंत्री बने. कोड़ाजी के मुख्यमंत्री बनने के समय ही प्रभात खबर ने लगभग छह लेख छपे.
झारखंड का राजनीतिक भविष्य (दिनांक 11 सितंबर 06)
निराशा के फर्ज (दिनांक 12 सितंबर 06)
ये चेहरे और इनके काम याद रखें (दिनांक 13 सितंबर 06)
झारखंडी विधायकों से अनुरोध (दिनांक 14 सितंबर 06)
प्रत्याशा के विपरीत, पर स्वागत योग्य (दिनांक 15 सितंबर 06)
होने वाले मुख्यमंत्री जी! बिन मांगी एक सलाह (दिनांक 17 सितंबर 06)
इसमें बार-बार कहा गया कि यह निर्दलियों की सरकार सबसे अधिक गैर-जिम्मेदार, भ्रष्ट और गलत होगी. क्योंकि प्रभात खबर की दृष्टि पहले दिन से ही साफ थी. झारखंड के राजनीतिज्ञों और मंत्रियों की करतूतों को देख कर. ये सभी अर्जुन मुंडा सरकार में भी मंत्री थे. अर्जुन मुंडा सरकार के इन मंत्रियों के कारनामों पर लगातार प्रभात खबर में खबरें छपतीं रहीं थीं. एक से बढकर एक हैरतअंगेज कारनामे. सोने की ईंट खरीदने से लेकर दो करोड़ की हार पहनने तक. लाखों की अंगूठी पहन कर सार्वजनिक प्रदर्शन तक. इससे स्पष्ट था कि बिना लगाम यह सरकार क्या करेगी? क्योंकि इन निर्दलियों पर किसी का अंकुश नहीं था. न दल का, न दल के किसी वरिष्ठ नेताओं का. किसी व्यक्ति के खिलाफ नहीं, पर सरकार बनने के समय ही प्रभात खबर ने बार-बार यह सैद्धांतिक-व्यवहारिक सवाल खड़ा किया कि इस सरकार पर किसका अंकुश होगा? कांग्रेस या राजद क्यों नहीं सरकार में शामिल होते?
पर अभी चर्चा विनोद सिन्हा की ही. जो इच्छुक लोग देखना चाहते हैं कि गैर जिम्मेदार मंत्रियों और अन्य लोगों पर प्रभात खबर में झारखंड बनने के बाद से कोड़ाजी के मुख्यमंत्री बनने तक क्या चीजें छपी. उनका स्वागत है. पर यह लंबा प्रकरण है. मुख्यमंत्री पद पर कोड़ाजी के पदारूढ होते ही विनोद सिन्हा, चाईबासा और रांची के “कलाकार’ से बढ कर रातोंरात देश स्तर के हुनरमंद हो गये. फिर प्रभात खबर ने उनके इस “सक्सेस स्टोरी’ को उजागर किया 2007 में.
“कौन है विनोद सिन्हा’ (20 अगस्त 2007). यह पहली रिपोर्ट थी.
“लौह अयस्क खदान और कोयला खदान – आवंटन प्रक्रिया में छुपे हैं, कई राज’. (21 अगस्त 07)
“सिर्फ और सिर्फ एक जांच से तथ्य सामने होंगे और वे तथ्य छिपे हैं, इन मोबाइलों में’. (22 अगस्त 07)
“विवादों – आरोपों से घिरे हैं विनोद के आर्थिक उत्थान के शुरुआती दिन’. (23 अगस्त 07)
“भूखंड, फ्लैट, मंहगी गाडियां व फैक्टरी’. (24 अगस्त 07)
“दोषी व्यवस्था है!’ (25 अगस्त 07).
कांग्रेस सांसद बागुन सुंब्रुई का पत्र इसमें छपा है, जो उन्होंने छह जुलाई 2007 को विनोद सिन्हा की करतूतों के बारे में वहां के उपायुक्त को लिखा.
गौर करिए. इन रिपोर्टों में कहीं भी विनोद सिन्हा के विदेशी कारोबार, धंधे का उल्लेख नहीं था. कैसे वह चाईबासा से दूध बेचते-बेचते, देश के एक बड़े व्यवसायी हो गये, इसका उल्लेख था. पहले दिन की रिपोर्टिंग (20 अगस्त 2007) पढें. झारखंड के एक अधिकारी ने ई-मेल भेज कर प्रभात खबर से विनोद सिन्हा की पड़ताल का अनुरोध किया. उस ई-मेल के अंश भी उसी दिन के प्रभात खबर की पहली रपट में हैं.
दो तथ्यात्मक चीजें. सुना है, कोई सज्जन कह रहे हैं कि विनोद सिन्हा पर सिर्फ दो ही रिपोर्ट प्रभात खबर में छपीं, फिर बंद हो गयीं. 20 अगस्त, 21 अगस्त, 22 अगस्त, 23 अगस्त, 24 अगस्त और 25 अगस्त 2007 को लगातार छपी छह बड़ी रपटों को कोई दो ही रिपोर्ट कहे, तो इसका क्या उत्तर है! ये सभी खबरें पहले पेज पर छपी हैं. सिर्फ 25 अगस्त 2007 की रिपोर्ट अंदर है और बड़ी है. अब ऐसे सवाल उठाने वालों को क्या जवाब दिया जाये? यह स्वत: स्पष्ट है.
दूसरा यह भी प्रचार किया जा रहा है कि यह रपट लिखने वाले एक संवाददाता इस रिपार्ट श्रृंखला लिखने के बाद प्रभात खबर से जुड़े नहीं रहे. तथ्य यह है कि वह संवाददाता अगस्त 2007 से नवंबर 2008 तक लगातार प्रभात खबर से जुड़े हुए थे. अपने पारिवारिक काम के कारण, कुछ समय के लिए इस पेशे से ही वह अलग हैं. पर अब भी जुडे हैं. हालांकि किसी विषय पर एक ही संवाददाता काम नहीं करता, अनेक करते हैं. इस तरह प्रभात खबर में अगस्त’07 में छह रिपोर्ट छपीं. उसमें कई संवाददाताओं का भी सहयोग था. फिर 25 अगस्त 2007 से 17 सितंबर 2008 के बीच लगातार इन लोगों के कारनामों पर कुछेक चीजें प्रभात खबर में छपीं. ये सभी चीजें उन्हीं संवाददाता ने लिखी, जिनके बारे में कहा जा रहा है कि दो रिपोर्ट लिखने के बाद वह प्रभात खबर में नहीं रहे.
शुरू की छह बड़ी रपटों को छोड़ दें, तो उसके बाद एक और बड़ी रपट छपी कि विनोद सिन्हा व संजय चौधरी ने कुल कितनी कंपनियां बना ली हैं? इन दो वर्षों में. लीड स्टोरी थी. साथ में इनके कार्यों पर छोटी-छोटी रपटें, लगातार छपीं. ये सभी खबरें सत्ता के गलियारे में विनोद सिन्हा-संजय चौधरी के बढते हस्तक्षेप से जुड़ी थीं. यानी 2007 से 2009 तक लगातार सामग्री छपती रही है. हां, दो वर्षों में रोज-रोज यही विषय तो नहीं हो सकता. न विषय से जुडी इतनी खबरें रोज निकलती हैं कि वे रोज छापी जायें. पर जब भी कोई पुख्ता सूचना मिली, प्रभात खबर में छपीं. यह कोई आ कर चेक करना चाहे, तो उसका स्वागत है.
एक महत्वपूर्ण तथ्य यहां स्मरण कराना चाहेंगे. प्रभात खबर में 2008 सितंबर तक विनोद सिन्हा प्रकरण से जुडी चीजें छपती रहीं. पर तब तक विनोद सिन्हा का साम्राज्य बड़ा नहीं हुआ था. हिंदुस्तान टाइम्स के आंकडे को मानें, तो अगस्त 07 तब (जब तक प्रभात खबर में विनोद सिन्हा से जुडी रपटें छपीं) यह घोटाला 5-7 सौ करोड़ का भी नहीं हुआ होगा. प्रभात खबर का यकीन है कि अगर हमारी व्यवस्था कारगर होती, सभी मीडिया मिलकर सामूहिक व सही चौकीदारी करते, तो अगस्त 07 में प्रभात खबर में छपी छह बड़ी रपटों पर कार्रवाई हो गयी होती. और आज झारखंड के 4000 करोड नहीं लुटे होते! यह सिस्टम नहीं ढहा होता? कोड़ाजी के दुर्दिन नहीं आये होते?
किसी भी संवेदनशील और जागरूक समाज में सवाल तो यह होना चाहिए कि इन छह बडी रपटों के छपने के बाद क्या कार्रवाई हुई? प्रभात खबर में इन रपटों के छपने के बाद ही महाघोटाले हुए. विदेशों में माइंस को खरीदने से लेकर और न जाने क्या-क्या? यहां यह सवाल उठेगा ही कि व्यवस्था कारगर नहीं हुई, कानून ने अपना काम नहीं किया. फलस्वरूप मामूली “डीलर’ भी बेधडक, बेडर “महाखिलाडी’ हो गये? कैसे यह कमजोर व्यवस्था या कानून के क्रियान्वयन के लिए बनी सुस्त, पस्त संस्थाएं छोटे अपराधियों को बड़ा अपराधी बना देती हैं? कोड़ाजी, विनोद सिन्हा एंड मित्र मंडली इसलिए इस स्तर तक पहुंचे, क्योंकि उन्हें कानून का भय नहीं रहा. इसलिए दूसरा कोड़ा या विनोद सिन्हा या नया संजय चौधरी न हों, इसके लिए व्यवस्था को ठीक करना होगा, चौकस, ईमानदार, काबिल और इफीशियंट बन कर. इसमें क्या-क्या खेल हुए हैं, यह पूरा प्रकरण तो जांच से ही स्पष्ट होगा?
2007 अगस्त में ये रपटें छपीं. फिर छोटी-बडी खबरें इनसे जुडी छपती रहीं. इन खबरों पर कोई कार्रवाई न होते देख, उनका मनोबल बडा. धडल्ले से इनका कारोबार फैलने लगा. पर 2007 से 2008 सितंबर के बीच इन लोगों के अंतर्राष्ट्रीय फलक पर छा जाने की गंध किसी को नहीं मिली. इन्होंने खुद दी. अपने अंतर्राष्ट्रीय कारोबार को सार्वजनिक बनाया. कैसे?
विनोद सिन्हा, संजय चौधरी और कोड़ा राष्ट्रीय सुर्खियों में कैसे और कब आये? विदेशों में इनकी जडें कहां तक फैली हैं, यह पहली बार कैसे सार्वजनिक हुआ? जिसका श्रेय प्रभात खबर को दिया जा रहा है या तोहमत कि प्रभात खबर ने सबसे पहले इनके विदेशी निवेशों को श्रृंखलाबद्ध कर छापा और मामले को उजागर किया. इसका सच क्या है? फिर दोहरा दें. हम सिर्फ तथ्य बता रहे हैं. गासिप के आधार पर कुछ भी नहीं या पूर्वाग्रह से कोई बात नहीं.
17 सितंबर 2008 का दिन था. अखबारों में विश्वकर्मा पूजा की छुट्टी थी. उसी दिन संजय चौधरी को भारी मात्रा में अवैध विदेशी करेंसी दुबई ले जाने के क्रम में मुंबई कस्टम ने इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर डिटेन किया. यह खबर आग की तरह सभी राष्ट्रीय व क्षेत्रीय चैनलों पर चली. उस दिन के सभी बडे चैनलों की सुर्खियां और हेडिंग देखें. संजय चौधरी, विनोद सिन्हा और कोड़ाजी के बारे में क्या-क्या चीजें दिखाई गयीं? क्या कहा गया? हां, वे खबरें अनुमान या सूत्रों के आधार पर दिखायी या बतायी गयीं. अगले दिन अखबार बंद थे. अखबार 19 सितंबर 2008 को निकले. कोड़ा एंड कंपनी के विदेशी निवेश की सबसे पहली खबर और भंडाफोड किसी ने किया, तो वह ई-टीवी था. 19, 20, 21, 22, 23, 24 सितंबर 2008 के ई-टीवी के पुराने कार्यक्रमों को गौर करें. इस प्रसंग से जुडी खबरों को स्मरण करें. कहीं मिलें, तो फिर देखें. विनोद सिन्हा, संजय चौधरी के विदेशी कारोबार से जुडे अनेक दस्तावेज सबसे पहले ई-टीवी पर दिखाये गये. सबसे पहले किसी अखबार में इंडोनेशिया में माइंस लेने की खबर छपी, तो वह रांची का दैनिक जागरण था.
”इंडोनेशिया में माइंस ले रखी है संजय चौधरी ने’ (20 सितंबर 08, दैनिक जागरण).
इस विदेशी संपत्ति का भंडाफोड़ फिर 23 सितंबर 2008 के अंक में हुआ. ”दुबई के बैंकों से करोडो की राशि ट्रांसफर’
इसी अखबार में छपा कि सीएम के पीएस ने कैसे एक संदिग्ध को पत्र लिखा. सीएम हाउस ने सौंपा मुर्गे तलाशने का ठेका (24 सितंबर 08, दैनिक जागरण).
बैंकॉक में कैसे कंपनी खोली, इसका भी उसी समाचार पत्र में छपा. “बैंकॉक में भी खोली कंपनी’ (25 सितंबर 08, दैनिक जागरण).
इस तरह कोड़ा एंड कंपनी के विदेशी निवेश के भ्रष्टाचार का भंडाफोड सबसे पहले ई-टीवी चैनल और 20 सितंबर से 25 सितंबर 2008 तक दैनिक जागरण की रपटों से हुआ. इस दौरान 19 सितंबर से 23 सितंबर 2008 के बीच प्रभात खबर में क्या चीजें छपीं?
19 सितंबर 2008 की रिपोर्ट देखें. यह महज सूचनात्मक रिपोर्ट थी. “भारी मात्रा में अवैध करंसी ढोकर दुबई ले जा रहा था- मुंबई कस्टम ने संजय चौधरी को रोका’
20 सितंबर 2008 को “कोड़ाजी! आपके रेफरेंस से संजय चौधरी का पासपोर्ट बना’.
21 सितंबर को एक पुरानी रपट ही पुन: प्रभात खबर में छपी “कोड़ा ने संजय चौधरी के साथ थाइलैंड की यात्रा की थी’.
22 सितंबर 2008 को भी प्रभात खबर में एक पुरानी रिपोर्ट छपी, “कोड़ा के कार्यकाल में किसके आदेश पर विनोद सिन्हा व संजय चौधरी को सरकारी सुरक्षा मिली’. (इन गुजरे तीन-चार दिनों में कोड़ाजी की मित्रमंडली के विदेशी कारोबार के बारे में चार-पांच रपटें दैनिक जागरण छाप चुका था. ई-टीवी दिखा चुका था. इनके विदेशी कारोबार के बारे में. तब प्रभात खबर ने एक चैनल से संपर्क कर, उन्हें मिले दस्तावेजों की प्रति मांगी.)
23 सितंबर 2008 के अखबार में फिर प्रभात खबर ने छापा “स्तब्ध करने वाले लूट के नये दस्तावेज’. यह दस्तावेज भी ई-टीवी में दिखाया जा चुका था. यह भी बासी और पुरानी सामग्री थी.
24 सितंबर 2008 को प्रभात खबर ने बाजी मारी. जब उसने चाईबासा में विनोद सिन्हा के भाई सुनील सिन्हा द्वारा खरीदी जमीन घोटाले की खबर छापी. कई किस्तों में. यह भूमि मूलतः आदिवासियों की थी, जो अहस्तांतरणीय है. कई प्लाटों पर यह सब हुआ. पर यह सब असंभव काम चाईबासा के तत्कालीन उपायुक्त की मदद से संभव हो रहा था.
25 सितंबर को प्रभात खबर ने पुनः पहले अन्यत्र छप चुकी और टीवी पर दिखाई जा चुकी एक तस्वीर को छापा, जो थाइलैंड के एक लाइमस्टोन फैक्ट्री की है. उस दिन प्रभात खबर ने मुख्यमंत्री कोड़ा जी के पीए, श्रीवास्तव का वह पत्र भी छापा, जो एक अखबार में पहले ही छप चुका था.
लगभग सप्ताह भर ईटीवी और अन्य जगहों पर कोड़ा जी एवं उनकी मित्र मंडली के विदेशी कारोबार की छपी खबरें व दस्तावेज देखकर प्रभात खबर को लगा कि यह मामला अत्यंत गंभीर है. एक टीवी चैनल व एक अखबार से इस मुद्दे पर पिछड़ जाने के बाद प्रभात खबर ने डॉक्यूमेंट पाने का स्रोत तलाशना शुरू किया. अंततः एक चैनल के सहयोग व माध्यम से प्रभात खबर को भी दस्तावेज मिलने लगे. इन तथ्यों से यह धारणा स्पष्ट होनी चाहिए कि कोड़ा जी एवं उनके मित्रों के विदेशी कारोबार से जुडे दस्तावेज सबसे पहले कहां छपे और कहां दिखाये गये. उन दिनों के अखबार भी संलग्न हैं, जो स्वतः इन तथ्यों के प्रमाण हैं.
पर इससे भी पहले यह जान लें कि चाईबासा में जो जमीन घोटाला हुआ, उसके कागजात प्रभात खबर तक कैसे पहुंचे? देश के अंदर विनोद सिन्हा एंड कंपनी के कामकाज से जुडी रपटें-दस्तावेज पहले प्रभात खबर में छपे. पर विदेशी कारोबार की खबरें पहले अन्य जगहों पर आयीं. चाईबासा जमीन घोटाले के मामले में सबसे पहले प्रभात खबर ने ही रिपोर्ट की थी. सिंहभूमि के ही एक हो लडाकू नौजवान ने प्रभात खबर का नंबर लेकर संपर्क किया. कहा कि हम आदिवासियों की जमीन कैसे और कौन लोग छीन रहे हैं, इसके दस्तावेज हम आपको दें, तो क्या आप छापेंगे? वह युवा अपने खर्चे से बस में बैठकर शायद पहली या दूसरी बार रांची आया था. उसने सारे दस्तावेज सौंपे. इससे अधिक उस युवक के बारे में जानने के बदले हम यह पता करें कि वे दस्तावेज सही थे या गलत? ये सारे दस्तावेज सही थे और छपते ही वहां हड़कंप मच गया. चूकि 2007 में प्रभात खबर ने विनोद सिन्हा के उभरते कामकाज, फैलते भारतीय कारोबार पर रिपोर्ट छापी थी. इसलिए उस हो युवा को लगा कि यहां रिपोर्ट छप सकती है. इस जमीन गड़बड़ी की रिपोर्ट छपी.
इस संबध में ऊपर तीन खबरों का उल्लेख है.
1. हिंदुस्तान टाइम्स (18 नवंबर, 2009),
2. राष्ट्रीय सहारा (11 नवंबर, 2009),
3. आउटलुक पत्रिका (23 नवंबर, 2009).
शुरू में ही जान लें कि राष्ट्रीय सहारा में छपी रपट तथ्यों के सबसे करीब है. शुरू के लगभग सप्ताह भर तक कोड़ा जी एवं मित्रों के विदेशी कारोबार की खबरें देने में प्रभात खबर पिछडा. प्रभात खबर को जब लगा कि ये अत्यंत महत्व के दस्तावेज हैं, फिर प्रभात खबर दस्तावेजों तक पहुंचा. लगातार इनके महत्व और गंभीरता को समझते हुए, इसे उठाता रहा. हालांकि बीच-बीच में एक अन्य, दैनिक में भी इस विदेशी कारोबार से जुड़ी चीजें छपीं. पर प्रभात खबर ने एक सप्ताह पिछड़ने के बाद फिर लगातार इन्हें छापा.
….जारी…