इतने कम समय में भड़ास4मीडिया वो मुकाम हासिस कर लेगा, जिसे हासिल करने के लिए बड़ी-बड़ी कंपनियां करोड़ों-अरबों रुपये खर्च करती हैं और दर्जनों प्रोफेशनल्स को नियुक्त करती हैं, बिलकुल विश्वास नहीं होता। ‘एक लैपटाप, एक डाटा कार्ड और एक व्यक्ति’ के साथ पिछले साल इन्हीं दिनों में शुरू हुआ बी4एम आज दुनिया भर की सबसे ज्यादा हिट्स बटोरने वाली एक लाख वेबसाइटों के क्लब में शामिल हो गया है। यकीन न हो तो वेबसाइटों की टीआरपी (हिट्स, रैंकिंग, लोकप्रियता) मापने वाली प्रतिष्ठित साइट अलेक्सा डॉट कॉम पर जाकर देखिए। बी4एम की ट्रैफिक रैंकिंग अब 99,607 हो चुकी है जो एक लाख के अंदर है।
अभी तक यह साइट एक लाख सुपरहिट साइटों के क्लब से बाहर थी क्योंकि इसकी रैंकिंग एक लाख से ज्यादा हुआ करती थी। रोजाना ढाई से पांच लाख के बीच हिट्स पाने वाली और रोजाना तीन हजार यूनिक विजिटरों को जोड़ने वाली इस वेबसाइट की सफलता के पीछे देश भर के मीडिया संस्थानों में बैठे वे हजारों पत्रकार साथी हैं जो हर पल बी4एम के साथ रहते हैं। इन्हीं साथियों के दम पर बी4एम मीडिया जगत में होने वाले स्याह-सफेद को दुनिया के सामने ला पाने में सफल हो पाता है।
बिना किसी आर्थिक सहायता और बिना किसी संसाधन के संचालित भड़ास4मीडिया इस वक्त देश का असली ‘मीडिया वाच डाग’ उर्फ ‘मीडिया का बाप’ बन गया है। बड़े होने के कारण हम लोगों पर जिम्मेदारी भी बड़ी आ गई है। हर खबर के तथ्यों की पड़ताल करना, किसी निर्दोष का नुकसान न होने देना, मीडिया इंडस्ट्री में कंटेंट की सर्वोच्चता को बकरार रखने के लिए प्रयास करना, अति नकारात्मकता और अति निराशा का माहौल न बनने देना…ये सब कई ऐसी जिम्मेदारियां हैं जिसके बारे में सोचते-समझते हुए ही हम लोगों को आगे बढ़ना होगा। जब तक हम नए और छोटे थे, तब तक हम कुछ भी कर गुजरते थे, बिना सोचे और बिना परिणाम की परवाह किए, लेकिन अब जब हम बड़े और विवेकशील हो चुके हैं, तो हमें जोश के साथ होश भी बरकरार रखने की जरूरत है।
भड़ास4मीडिया पर प्रकाशित खबरें पत्रकारीय कसौटी व परंपरा के अनुरूप होती हैं। कई बार समयाभाव और तथ्यों की पड़ताल न हो पाने की मजबूरी के चलते आंशिक रूप से गलत खबरें भी प्रकाशित हो जाती हैं लेकिन जैसे ही उस खबर के तथ्यों की पड़ताल करा दी जाती है, उसे हम ठीक कर देते हैं। बी4एम के बड़े होने के इस दौर में हम कहना चाहते हैं कि मीडिया में कंटेंट फील्ड में सक्रिय लोगों की दिक्कतें बहुत बढ़ी हैं। कंटेंट की पवित्रता रोज कम होते जाने से कार्यस्थल की दिक्कतों में इजाफा हुआ है। इस कारण पत्रकारों में तनाव, कुंठा, निराशा, हताशा, अवसाद की मात्रा बढ़ी है। यह तथ्य डराने वाला है। इसके पीछे वजह तो कई हैं जिसके बारे में हम लोग समय-समय पर इसी पोर्टल पर बातें करते रहते हैं लेकिन साथ में एक चीज और है, जिसका उल्लेख यहां करना चाहता हूं। वर्तमान माहौल और मार्केट की तस्वीर नकारात्मक तो है लेकिन इसे अति-नकारात्मकता के साथ प्रदर्शित करना भी हमारे साथियों के तनावों को बढ़ाता है। हमारे अंदर के अपराधबोध को बढ़ाता है। अनावश्यक आदर्शवाद और अनावश्यक पतन, दोनों से बचना जरूरी है। हम अगर किसी चीज की उम्मीद करते हैं और वह नहीं पूरी हो पाती है तो हमारा क्षुब्ध होना स्वाभाविक है। हमें हालात को बेहद रीयलिस्टिक तरीके से समझकर ही आगे बढ़ना चाहिए।
बी4एम आपका प्लेटफार्म है। इसे आप लोगों ने इतना बड़ा बना दिया है। जो खुशी मुझे हो रही है, उम्मीद करता हूं, वही प्रसन्नता आप भी महसूस कर रहे होंगे। आप सभी को दिल से आभार। शुक्रिया भी कहना चाहूंगा कि आपने हम लोगों को मुश्किल वक्त में हिम्मत दिया, हौसला दिया और आगे बढ़ने के लिए उत्साहित किया। वरना हम लोगों को नष्ट करने की खातिर भाई लोगों ने इसी दिल्ली में न जाने कितने जाल-जंजाल बुन रखे थे। पर हम लोगों की चरम सकारात्मक दृष्टि, परम आशावादिता और जमकर मेहनत करने की क्षमता के चलते हमारे विरोधी भी हम लोगों की सफलता का लोहा मानने लगे।
आज हम लोग किसी को अपना विरोधी नहीं मानते। सभी को अपना मानते हैं। बड़े होने के साथ क्षमाशील होते जाना ही संतई है, वरना गुस्सा करने, क्षु्ब्ध होने, दूसरों को नष्ट करने के हर रोज सैकड़ों बहाने मिल सकते हैं। अपने सभी विरोधियों को यह कहते हुए दिल से प्रणाम कि आपका काम विरोध करना है और हमारा काम आपके विरोध के बावजूद अपनी सकारात्मक समझ के साथ आगे बढ़ते जाना है। किसी मोड़ पर हम सब गले मिलेंगे, ये मेरा विश्वास है और फिर एक नई शुरुआत करेंगे।
सच कहा जाए तो अभी यह शुरुआत ही है। भड़ास4मीडिया जिस प्रयोग के तहत शुरू किया गया, उस प्रयोग के अभी कई पड़ाव बाकी हैं। भड़ास आश्रम इसी प्रयोग का एक पार्ट है। एक ऐसा आश्रम जहां पत्रकारों के लिए दो जून का खाना -पीना बिलकुल मुफ्त (लंगर की तर्ज पर), रहना, पढ़ना और सीखना मुफ्त। तकनीकी सहयोग मुफ्त। तनाव, करियर और व्यक्तित्व के लिहाज से काउंसलिंग मुफ्त। गीत-संगीत, खान-पान, योग-ध्यान की सुविधाओं से युक्त एक भड़ास आश्रम। जिसकी जो कुंठा हो, वह उस कुंठा से मुक्त होने के लिए इस आश्रम में पधारे। पर यह आश्रम कब अस्तित्व में आएगा, कहा नहीं जा सकता। इतना जरूर कह सकता हूं कि इस आश्रम के लिए काम शुरू कर दिया गया है। आश्रम की शुरुआत भी बेहद छोटे रूप से होगी।
संघर्ष अभी जारी है। मुश्किलें बहुत हैं। हमारे पास अगर कुछ है तो वो सिर्फ हौसला है। रिस्क लेने की क्षमता है। आगे बढ़ने का धुंधला सा विजन है। कभी न हार मानने वाली मनःस्थिति है। मरते दम तक लड़ते रहने की जिजीविषा है। हम लोग आर्थिक रूप से ताकतवर अभी नहीं हुए हैं। पोर्टल पर दिखने वाले विज्ञापनों का सच हम लोग जानते हैं, या फिर वे लोग जानते हैं जो कोई ठीकठाक हिट्स वाला पोर्टल चलाते हैं। आनलाइन एड एजेन्सीज के विज्ञापनों से कोई पोर्टल संचालक अपना घर नहीं चला सकता, बस इतना समझ लीजिए। हम लोग सिर्फ इतना कर पा रहे हैं कि इस पोर्टल के संचालन के लिए कहीं से कर्ज नहीं ले रहे, किसी के यहां पोर्टल को गिरवी नहीं रख रहे, किसी के आगे गिड़गिड़ा नहीं रहे, किसी के घटिया प्रस्तावों को स्वीकार नहीं कर रहे, यही हम लोगों की जीत है। इसी छोटी जीत से ही एक दिन बड़ी जीत भी हासिल होगी, यह विश्वास है।
आपका साथ ही हम लोगों के लिए सबसे बड़ा धन है। आप लोगों के सहयोग और समर्थन की हमेशा दरकार थी, है और रहेगी। ये मंच आपका है तो जाहिर है कि इसके संचालन में कोई न कोई भूमिका निभाने के लिए आपको खुद तैयार करना है और अपनी तरफ से पहल करना है। अगर आपको ये कहीं से भी लगता है कि यह पोर्टल और इससे जुड़े लोग आपके दिल के किसी हिस्से में सम्मानजनक जगह बनाने में कामयाब हो पाये हैं तो आपको इस पोर्टल के लिए कुछ करना चाहिए। क्या करना चाहिए, कैसे करना चाहिए, ये आपको तय करना है।
चलिए, बातें बहुत हो गईं। आप सभी का फिर से आभार। अपने विचार और अपनी राय से जरूर अवगत कराइएगा। साथ ही, मीडिया जगत से जुड़ी खबरें मुझे मोबाइल, मेल, एसएमएस के जरिए भेजते रहिएगा। आखिर में, मेरा प्रिय गीत, जीवन का मार्च सांग, जो मेरे आरकुट प्रोफाइल पर भी कई वर्षों से पड़ा है…
तू जिंदा है तो जिंदगी की जीत पर यकीन कर…..
(मुर्दा होने के डर से जीते जी मुर्दा शांति से भर जाना कहां का न्याय है भाई, जितने दिन जीवन के हैं, उतने दिन तो जीत की यकीन के साथ जियो)
आभार के साथ
यशवंत सिंह
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