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महाबली रिलायंस को लेमन ने पछाड़ा

[caption id="attachment_15248" align="alignleft"]आरकेबी और उनका शोआरकेबी और उनका शो[/caption] ऐतिहासिक सफलता : अंजाम तक पहुंची लड़ाई : मुंबई का एक ऐसा महाअभियान, जिसे अंजाम तक पहुंचा दिया ‘लेमन टीवी’ के ‘आरकेबी शो’ ने। रिलायंस की लूट पर लगाम लगाने की कार्रवाई शुरू हो चुकी है। रिलायंस ने तीन साल में बिजली दरों में जो 90 फीसदी वृद्धि की है, उस पर एमईआरसी (महाराष्ट्रा इलेक्ट्रिसिटी रेग्युलेटरी कमीशन) ने फिलहाल रोक लगाने के आदेश आज जारी कर दिए हैं। साथ ही, पिछले दिनों बिजली दर में ताजे 15 फीसदी वृद्धि पर भी रोक लगा दी है। धारा 108 के तहत हस्तक्षेप के बाद पहली बार ऐसा संभव हुआ है। इस सफलता का श्रेय लेमन टीवी और आरकेबी शो को जाता है जिसने सबसे पहले इस मुद्दे को उठाया। सैकड़ों एनजीओ को जोड़ा। लाखों मुंबईवासियों को रिलायंस की लूट के खिलाफ  जागरूक किया। उन्हें सिखाया, समझाया और संघर्ष के लिए सड़क पर उतार दिया। लाठियां चलीं, आंख भी फूटी। पर संघर्ष रुका नहीं। 

आरकेबी और उनका शो

आरकेबी और उनका शो ऐतिहासिक सफलता : अंजाम तक पहुंची लड़ाई : मुंबई का एक ऐसा महाअभियान, जिसे अंजाम तक पहुंचा दिया ‘लेमन टीवी’ के ‘आरकेबी शो’ ने। रिलायंस की लूट पर लगाम लगाने की कार्रवाई शुरू हो चुकी है। रिलायंस ने तीन साल में बिजली दरों में जो 90 फीसदी वृद्धि की है, उस पर एमईआरसी (महाराष्ट्रा इलेक्ट्रिसिटी रेग्युलेटरी कमीशन) ने फिलहाल रोक लगाने के आदेश आज जारी कर दिए हैं। साथ ही, पिछले दिनों बिजली दर में ताजे 15 फीसदी वृद्धि पर भी रोक लगा दी है। धारा 108 के तहत हस्तक्षेप के बाद पहली बार ऐसा संभव हुआ है। इस सफलता का श्रेय लेमन टीवी और आरकेबी शो को जाता है जिसने सबसे पहले इस मुद्दे को उठाया। सैकड़ों एनजीओ को जोड़ा। लाखों मुंबईवासियों को रिलायंस की लूट के खिलाफ  जागरूक किया। उन्हें सिखाया, समझाया और संघर्ष के लिए सड़क पर उतार दिया। लाठियां चलीं, आंख भी फूटी। पर संघर्ष रुका नहीं। 

आखिरकार मीडिया और जनता की मिलीजुली ताकत ने सरकार को झुकने पर मजबूर कर दिया। रिलायंस की लूट को बंद करने की कार्रवाई करने पर मजबूर कर दिया। लेमन टीवी के इस महाअभियान और इसकी सफलता ने एक बार फिर साबित किया है कि मीडिया हाउस जन सरोकार के मुद्दों को उठाए बिना, जनता के सुख-दुख में हिस्सेदार बने बिना लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की भूमिका नहीं निभा सकते। यह महाभियान किसी मामूली उपक्रम से नहीं, बल्कि देश के सबसे ताकतवर अंपायर रिलायंस के खिलाफ था। बता दें कि मुंबई के 28 लाख बिजली उपभोक्ताओं को रिलायंस इनर्जी इनफ्रास्ट्रक्चर दोनों हाथों से लूट रहा है। दो कंपनियां और हैं टाटा पावर और बेस्ट,  जिन्हें रिलायंस ने हाशिये पर पटक रखा है। देसी कंपनी राज में ‘आरकेबी शो’ ने जो कुछ कर दिखाया है, वह देश के मीडिया जगत के लिए भी बड़ा सबक व मिसाल हो सकता है कि..

  • किस तरह नफे-नुकसान की परवाह न करते हुए यह टीवी चैनल एक मुद्दे के जरिए लाखो-लाख मुंबई वासियों की जुबान बन गया

  • रिलायंस जैसे महाबलशाली अंपायर ही नहीं, महाराष्ट्र सरकार तक को जनता के कदमों में झुकने के लिए मजबूर कर दिया

  • सत्तासीन कांग्रेस ही नहीं, शिवसेना, भाजपा समेत सभी बड़े दलों को इस मुद्दे पर मतभेद भुलाकर एक साथ खड़े होने के लिए प्रेरित किया

  • देश के साठ से ज्यादा एनजीओ को रिलायंस एनर्जी के खिलाफ लामबंद करने का काम किया

  • मुंबई के बाकी सभी मीडिया हाउसों, जो फिल्मी खबरों में गोते खा रहे हैं, को न्यूज समझने और दिखाने का पाठ पढ़ाया

  • मुंबई के एक लाख विद्युत उपभोक्ताओं को बाकायदे फार्म भर कर कम दर वाली गैर-रिलायंस कंपनी / उपक्रम की बिजली लेने का रास्ता दिखाया

यह भी ‘आरकेबी शो’ की ही हैरतअंगेज कामयाबी रही कि मुंबई, दिल्ली या देश के इतिहास में आजादी के बाद पहली बार जनता ने इस तरह अंगड़ाई ली है। महाराष्ट्र सरकार ने धारा 108 का इस्तेमाल करते हुए एमईआरसी (महाराष्ट्रा इलेक्ट्रिसिटी रेग्युलेटरी कमीशन) को निर्देश दिया है कि वह अगले पंद्रह दिन तक उपभोक्ताओं के इस मामले पर कोई सीधा हस्तक्षेप न करे। उसके बाद भी 10 दिन का समय और मांगा गया है। लेमन टीवी के महाभियान और जन दबाव के मद्देनजर एमईआरसी को रिलायंस के बेकाबू इरादों पर लगाम लगाना पड़ा है। बढ़ी हुई दरों पर रोक लगाने के आदेश हो चुके हैं। लेमन टीवी के मैनेजिंग डायरेक्टर और चर्चित आरकेबी शो के एंकर राजीव कुंवर बजाज उर्फ आरकेबी कहते हैं कि यह कंपेन अभी थमा नहीं है। आगे भी हर रोज जारी रहेगा। हमारा अगला कदम होगा, सिर्फ विद्युत दर वृद्धि पर रोक लगाना काफी नहीं बल्कि अगस्त 2006 की विद्युत दरें लागू करें। आरकेबी जनता की ओर से सीधी मांग कर रहे हैं- रोल बैक एंड रिफंड, 12 प्रतिशत ब्याज के साथ।

ज्ञात हो कि, ‘आरकेबी शो’ के कारण ही यह पहली बार हुआ है कि राजनीतिक पार्टियां, एनजीओ आदि बिजली दरों के इस गंभीर मामले पर एक प्लेटफार्म से मांग करने लगे हैं कि उच्चतम न्यायालय के सन् 2003 के एक आदेश के अनुसार मुंबई की तीनों विद्युत कंपनियों (रिलायंस एनर्जी, टाटा पावर और बेस्ट) का हर तरह का जनहित-विरोधी एकाधिकार समाप्त करने के लिए सरकार तत्काल पहल करे। ‘आरकेबी शो’ के कारण ही पहली बार कंपनी एकाधिकार के खिलाफ नेता, जनता, मीडिया, एनजीओ सभी मुंबई में एक मंच से ललकार रहे हैं और लेमन टीवी को इस पर रोजाना हजारों एसएमएस मिल रहे हैं।  

आज का महाबली बाजार और हिंदुस्तान में बाजार का महाबली रिलायंस। किसी भी मोरचे पर इस अंपायर से पंजा लड़ाने का मतलब है, अपने अस्तित्व का जोखिम मोल लेना। उससे पंजा लड़ाना, जिसकी हैसियत आर्थिक मोरचे पर स्वयं में एक सरकार की हो चली हो। लेकिन किसी भी जोखिम की चिंता न करते हुए लेमन टीवी ने जनहित के मुद्दे पर स्टैंड लेकर और सफलता हासिल कर आधुनिक टीवी जर्नलिज्म में मील का पत्थर ठोंक दिया है। इस शो के जरिए मुंबई वालों को बताया गया कि किस तरह रिलायंस इनर्जी इनफ्रास्ट्रक्चर उन्हें दोनों हाथों से लूट रहा है। यह कंपनी दिल्ली में तो पिछले सात वर्षों से विद्युत दरों में एक पैसे का भी इजाफा नहीं कर रही, जबकि मुंबई में हर साल किराया बढ़ा दिया जाता है। रिलायंस की इस लूट को समझाने के लिए आरकेबी शो के जरिये एक बड़ा कंपेन चलाया गया। आरकेबी शो ने बताया कि तीन वर्षों में रिलायंस एनर्जी ने बिजली बिल दर में 90 फीसदी इजाफा कर डाला। आरकेबी शो ने जो कंपेन चलाया और जो हैरतअंगेज खुलासे किए, उसका असर ये हुआ कि मुंबई वाले सड़कों पर उतर आए। बढ़ी विद्युत दर वापस लेने की मांग जोर पकड़ने लगी। दबाव कुछ इस कदर बढ़ा कि प्रदेश के विद्युत मंत्री ने रिलायंस की ताजा विद्युत दर-वृद्धि पर तत्काल रोक लगाते हुए जांच के आदेश दे दिए।

इस पूरे मुद्दे पर भड़ास4मीडिया ने आरकेबी उर्फ राजीव कुंवर बजाज से बात की। उन्होंने साफ-साफ कहा- ”धीरूभाई अंबानी के नक्शेकदम पर उनके दोनों बेटे नहीं चल रहे हैं। धीरूभाई का सपना रहा कि हर घर में लखपति हो और हर दूसरे घर में करोड़पति। और ऐसा तभी संभव था, जब हर कोई कमाए। रिलायंस के शेयर होल्डर्स कई लखपति भी बने, करोड़पति भी बने और अरबपति भी बने, लेकिन जितने रिलायंस एनर्जी के कस्टमर हैं, उनमें जो करोड़पति थे, लखपति रह गए और जो लखपति थे, बेकार हो गए। आज ये आलम है कि जो बेकार थे, वे बेचारे भिखारी बन गए। पैसा कमाने के लिए आपको सबको जोड़ना पड़ेगा और जितने लोग आपके साथ जुड़े हैं, सबको कमाना पड़ेगा। आज कल हालात ये हैं कि छोटे उद्यमों में जितने लोग हैं, उन पर विद्युत दरों की इतनी तगड़ी मार है कि यहां बहुत-सी इंडस्ट्रीज बंद हो गई हैं, क्योंकि पावर इतना ज्यादा आप नहीं दे सकते। पावरलूम की आप कितना जांच करेंगे। जहां तक इंडस्ट्रीज का सवाल है, छोटी औद्योगिक इकाइयों को वैसे भी सब्सिडी मिलती है, लेकिन पावर को लेकर कोई सब्सिडी नहीं। इंडस्ट्री तो पावर से ही चलती है। उनके लिए बिजली सबसे बड़ी जरूरत है।

महत्वपूर्ण बात ये है कि सरकार में जो भी ब्यूरोक्रेट विद्युत मंत्रालय से अटैच होता है, वह बाद में रिलायंस एनर्जी ज्वाइन करता है। ऐसा होना किसी और देश में फ्रॉड हो सकता है लेकिन हमारे हिंदुस्तान में कुछ भी संभव है। महाराष्ट्रा इलेक्ट्रिसिटी रेग्युलेटरी कमीशन (एमईआरसी) के बड़े पदों से रिटायर्ड लोगों के रिलायंसएनर्जी ज्वाइन करने का मतलब है, उनके बीच आपस में पहले से गहरी सांठ-गांठ होना। पहले से कोई बड़ी डील होते रहना। शुरू से अगर रिलायंस की हिस्ट्री देखें तो सरकार के प्रमुख मंत्रालयों सेरिटायर्ड होने वाले अधिकारी उसके यहां ठिकाना पाते रहे हैं। चाहे वह कपड़ा मंत्रालय हो या वित्त मंत्रालय, वहां के सबसे महत्वपूर्ण पदों से जो भी रिटायर हुआ, रिलायंस ज्वाइन कर गया। विदेशों में ऐसा नहीं है। वहां आप सरकार या मंत्रालय में किसी ऐसे महत्वपूर्ण पद पर रह चुके हैं, जिससे किन्हीं उद्यमों के फायदे-नुकसान की बात हो सकती है तो आप उस तरह के, उस नेचर के प्राइवेट सेक्टर को ज्वाइन नहीं कर सकते। वहां चार-छह साल की बंदिश होती है, लेकिन हिंदुस्तान में तो हर ब्यूरोक्रेट को पता है कि आज आप मंत्रालय के स्तर से रिलायंस की कोई मदद कर दीजिए, आने वाले समय के लिए उसके कोर ग्रुप (निदेशक मंडल) में आपकी जगह सुरक्षित कर दी जाएगी। और केवल रिलायंस क्यों, हिंदुस्तान के पूरे प्राइवेट सेक्टर के किसी भी घराने में भी इस तरह की दस्तक देने भर की देर है, ऐसे ब्यूरोक्रेट्स के लिए पहले से पलक पांवड़े बिछे होते हैं।

आरकेबी इस बात से इत्तफाक रखते हैं और कहते हैं कि हमारे जनप्रतिनिधि, विधायक, सांसद सदन में बड़े अच्छे-अच्छे सवाल आए दिन उठाते रहते हैं, लेकिन आज तक किसी ने ये सवाल क्यों नहीं उठाया है कि हमारे नौकरशाह क्या कर रहे हैं? ब्यूरोक्रेसी के ऊपर जब तक सरकार अंकुश नहीं लगाएगी, तब तक ईमानदार व्यवस्था कैसे कायम होगी?  जहां तक मुंबई का सवाल है, यहां तीन तरह की विद्युत दरें वसूल की जाती हैं। टाटा का अलग, बेस्ट का अलग, रिलायंस का अलग। सबसे ज्यादा रेट रिलायंस का। रिलायंस के मुंबई में थोड़े-मोड़ेनहीं, 28 लाख उपभोक्ता हैं और बेस्ट के साढ़े नौ लाख, जबकि टाटा के एक लाख भी नहीं। रिलायंस की बिजली इतनी ज्यादा महंगी होने के बावजूद लोग इतनी बड़ी संख्या में उसके कस्टमर इसलिए हैं, क्योंकि उनके पास और कोई विकल्प नहीं। बीएसईएस का बना-बनाया इंफ्रास्ट्रक्चर रिलायंस एनर्जी को मिल गया। जहां-जहां वो सप्लाई करते थे, वे सभी इलाके रिलायंस एनर्जी के हवाले कर दिए गए।

एमईआरसी के बारे में आरकेबी का कहना है कि महाराष्ट्रा इलेक्ट्रिसिटी रेग्युलेटरी कमीशन का गठन इसलिए हुआ था कि इस क्षेत्र में वह एकाधिकार खत्म करे और प्रतिस्पर्द्धा बढ़ाए। जब पावर सेक्टर का निजीकरण हुआ, तब ये कहा गया कि उनको कंपटीशन लाना पड़ेगा, अलग-अलग लोगों को लाइसेंस देना पड़ेगा ताकि विद्युत दरें नीचे आ सकें। जैसा मोबाइल फोन के क्षेत्र में हुआ। याद होगा कि सबसे पहले हच आया तोउसकी दरें प्रति कॉल 16 रुपये थीं। आज की तारीख में एक रुपये प्रति कॉल। ऐसा सिर्फ कंपटीशन की वजह से संभव हुआ। उसी प्रकार मुंबई में जब लोग बेस्ट या टाटा की बिजली मांग रहे हैं तोसरकार को उन्हें इन कंपनियों की बिजली मुहैया कराने की व्यवस्था करनी चाहिए। उपभोक्ता के सामने विकल्प खुले रखने चाहिए, लेकिन नहीं। बिजली तो रिलायंस की ही लेनी पड़ेगी। एमईआरसी (महाराष्ट्रा इलेक्ट्रिसिटी रेग्युलेटरी कमीशन) ने उपभोक्ता के सामने अन्य विकल्प के रास्ते बंद कर रखे हैं। सरकार सेक्शन-108 के तहत ऐसा हस्तक्षेप कर सकती है, जैसाकि हमलोगों के दबाव में आने के बाद उसने कुछ कदम उठाया है कि दरों में इतनी भिन्नता की वजहों की इंक्वायरी हो। सवाल है कि ये इंक्वायरी कौन कर रहा है? तो पता चलता है कि खुद एमईआरसी हीजांच कर रहा है। एमईआरसी, जिसने हर साल का एक नियम सा बना दिया है कि दशहरा, दीवाली, नववर्ष, क्रिसमस। तो रिलायंस की हर साल दीवाली मार्च-अप्रैल-मई-जून में मनती है। इनमहीनों में बिजली उपभोक्ता पर बढ़ी दरों की गाज गिरा दी जाती है। हर साल का ये एक दस्तूर-सा बन गया है।

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सिर्फ तीन सालों में रिलायंस की विद्युत दरों में नब्बे फीसदी बढ़ोत्तरी के बारे में आरकेबी खुद सवाल करते हैं कि इस तरह मनमाना दरें बढ़ाने का उनको अधिकार किसने दे रखा है?  दर बढ़ाने का अधिकार तभी है, जब उसने कोई इन्वेस्टमेंट किया हो। बताए तो कि इसमें रिलायंस ने क्या निवेश किया है? उसे विरासत में एक पावर स्टेशन मिला दहानू (मुंबई) में, जो सात साल पहलेपांच सौ मेगावाट बिजली की आपूर्ति करता था। उस स्टेशन की क्षमता आज भी उतनी-की-उतनी ही है। और उसने कई नए पावर स्टेशन भी नहीं बनाए। अपने मुनाफे पर हर कंपनी को इनकम टैक्स देना पड़ता है। उसकी रिकवरी रिलायंस अपने विद्युत उपभोक्ताओं से करता है। यह बहुत भारी पड़ने वाला है। इसके सारे रिकार्ड मौजूद हैं।एमईआरसी, वित्त मंत्रालय और लीगल डिपार्टमेंट को इसका जवाब देना पड़ेगा। यह बहुत अहम मुद्दा है। लगता है कि भारत से एक ईस्ट इंडिया कंपनी गई, दूसरी रॉयल कंपनी आ गई। क्या आजादी की लड़ाई इसीलिए लड़ी गई थी? उस समय नील के खेतिहरों पर जैसे अंग्रेज लाठी-गोली चलाते थे, आज मुंबई में बिजली बिल दिखाने वाले उपभोक्ताओं के साथ वही सुलूक किया जा रहा है, लाठियों से लहूलुहान कर दिया जा रहा है, महिला की एक आंख फोड़ दी जा रही है। क्या कोई रिलायंस एनर्जी के पास बिजली का बिल दिखाने जाएगा तो उस पर लाठियां बरसाई जाएंगी?

आरकेबी ने स्पष्ट किया कि अभी जो जीत मिली है, वह एक शुरुआत भर है। हम लोग, लेमन टीवी और आरकेबी शो, अब बिजली दरों में कंप्लीट रोलबैक व ब्याज के साथ रिफंड के लिए संघर्ष करेंगे।

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