सामना है सच से… हो जाओ सावधान… सच से सावधान… कैसा सच, कैसा सामना…‘सत्यमेव जयते’…कैसा सच… कैसी जीत… वो सच जो समाज को तोड़ता है… वो सच जो रिश्तों में खटास लाता है… या वो सच जो दोस्ती में दरार लाता है… ये सोचने को मजबूर करता है कि, ‘दोस्त दोस्त न रहा’. इस सच की वजह से सचिन और कांबली की दोस्ती दांव पर है. क्रिकेटर विनोद कांबली ने ऐसा सच बोला कि, बचपन का दोस्त सचिन तेंदुलकर सदमे में है. हालात ये है कि, दोनों एक-दूसरे से मुंह फेरते नजर आ रहे हैं… क्या जरूरत थी कांबली को सच बोलने की? क्या पैसा कमाना था या नाम? क्या रातों-रात सेलिब्रिटी बनना और रईस बनना दोस्ती निभाने से बड़ा है? 27 साल की दोस्ती पलभर में टूट गई… शिकायत थी, नाराजगी थी, तो कभी अपने दोस्त पर ऐतबार तो किया होता… क्या जरूरत थी टीवी स्क्रीन पर राजा हरीश्चंद्र बनने की. लेकिन, ये सच चाहे आपको दोस्तों से दूर कर दे… रिश्ते-नाते तोड़ दे… लेकिन, आपको दिला सकता है… एक करोड़ रुपए. जी हां, बस 21 सवाल, उनका सच्चा जवाब और जीतिए एक करोड़ रुपए.
कौन कहता है कि आज के जमाने में ईमानदार आदमी की कद्र नहीं. उसे कोई अहमियत नहीं दी जाती. ‘स्टार प्लस’ पर दिखाया जा रहा प्रोग्राम ‘सच का सामना’ आपका आइना है. हर उस शख्स का अक्स है, जो दौलत और शोहरत की खातिर सच बोलने को तैयार है. न उसे समाज का डर है, न परिवार का, और न ही अपने बच्चों की फ़िक्र है… अमेरिकी रिएलिटी शो ‘द मूमेंट ऑफ ट्रुथ’ की तर्ज पर बनाया गया इंडियन सेगमेंट ‘सच का सामना’ सामाजिक और पारिवारिक ताने-बाने को उधेड़ सकता है. दरअसल, बेडरूम की बातें बाहर न आएं तो बेहतर है. हर राज का खुलना जरूरी नहीं. कुछ दफ़न हो जाएं तो अच्छा है. एक मशहूर टीवी एक्टर स्क्रीन पर आता है और बेबाकी से सच भरी करतूतें सुनाता है. यूसुफ़ साहब सरेआम बड़ी बेशर्मी से बयां करते हैं कि वो किसी महिला का सम्मान नहीं करते. ये कहने से पहले जनाब ये भूल जाते हैं कि उन्हें एक महिला ने ही जन्म दिया है… यूसुफ़ साहब अपनी बेटी के सामने ये कबूल करते हैं कि उन्होंने एक वेश्या से संबंध रखा. क्यों जनाब, तीन शादियों के बाद भी कुछ कसर रह गई थी. इतना ही नहीं… वो अपने बच्चों के सामने ये कहने से भी नहीं हिचकते कि वो अपनी बेटी की उम्र की लड़की से संबंध रखते हैं. वाह रे सच… इस सच को पर्दे में रहने दो. दुनियादारी का पर्दा उठने न दो…क्योंकि, पर्दा जो उठ गया तो… आप समझदार हैं. हम ये क्यों भूल जाते हैं कि वो अमेरिका है, ये हिंदुस्तान… आजाद ख़्यालों के हम भी हैं. लेकिन, वहां सब चलता है. वहां रिश्ते-नाते कोई मायने नहीं रखते. परिवार नहीं पनपते. लेकिन, यहां तो जिंदगी परिवार से ही शुरू होती है और उसी लाड़-प्यार-दुलार के साए में बीत जाती है. समाज बिना हमारा कोई वजूद नहीं.
लेकिन, ऐसे रिएलिटी शो कितने ख़तरनाक हो सकते हैं, इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि, ‘द मूमेंट ऑफ ट्रुथ’ से अमेरिका में कई रिश्ते टूट गए… वैसे, बड़े लोगों की बड़ी बातें… उनकी बात अलग है… मिडिल क्लास का क्या… उसके पास इज्जत ही तो है, जिसे आम आदमी सरे बाजार नीलाम होते नहीं देख सकता. अपनी पगड़ी उछलते नहीं देख सकता. लेकिन, ‘सच का सामना’ उसी मिडिल क्लास के ड्रॉइंगरूम में पहुंच गया है…
सबसे बड़ी मुसीबत ये कि अब हम बच्चों को कैसे सबक सिखाएंगे, ‘सदा सच बोलो’, ‘सत्यम् प्रियात’, ‘सत्यमेव जयते’. कौन-सा सच… कैसा सच… वो सच जो आपसी समझ… आपसी तालमेल… प्यार सबको बेमानी साबित कर रहा है… वो सच जो समाज तोड़ता है… या वो सच जो इंसानियत को ताक पर रखता है…
लेखक कमलेश मेघनानी युवा टीवी पत्रकार हैं और इन दिनों लाइव इंडिया न्यूज चैनल में एसोसिएट प्रोड्यूसर के रूप में कार्यरत हैं. उनसे संपर्क के लिए [email protected] या 9999146731 का सहारा ले सकते हैं.