बी4एम पर उदय शंकर खवारे ने शेष नारायण सिंह के आलेख के जवाब में कहा है कि ‘सिंह साहब, शर्म तो आपको आनी चाहिए।‘ उदय शंकर जी, सिंह साहब को तो इस बात पर शर्म आती है कि एक धर्मनिरपेक्ष देश में नरेन्द्र मोदी नामक एक मुख्यमंत्री अपने मातृ संगठन आरएसएस के एजेंडे को परवान चढ़ाने के लिए गुजरात के हजारों मुसलमानों को ‘एक्शन का रिएक्शन’ बताकर मरवा देता है। बेकसूर नौजवानों को फर्जी एनकाउन्टर में मरवा डालता है और वह फिर भी मुख्यमंत्री बना रहता है। लेकिन दुनिया के धिक्कारने के बाद भी नरेन्द्र मोदी को शर्म नहीं आती। सही बात तो यह है कि नरेन्द्र मोदी को ‘मानवता के कत्ल’ के इल्जाम में जेल में डालना चाहिए। इशरत और उसके साथियों को फर्जी मुठभेड़ में मारा गया, इसकी पुष्टि तमांग जांच रिपोर्ट करती है। लेकिन जैसा होता आया है, मुसलमानों के कत्लेआम की किसी रिपोर्ट को संघ परिवार हमेशा से नकारता आया है। मुंबई दंगों की जस्टिस श्रीकृष्णा आयोग की रिपोर्ट को भी महाराष्ट्र सरकार ने डस्टबिन के हवाले कर दिया था।
हैरत की बात यह है कि उदय शंकर साहब एक अखबार के समाचार सम्पादक हैं। जिस अखबार के समाचार सम्पादक ऐसे होंगे, उस अखबार की नीति को अच्छी तरह से समझा जा सकता है। उनका अखबार क्या जहर उगलता होगा, इसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल नहीं है। उदय शंकर की भाषा से एक संघी की बू आती है क्योंकि संघ परिवार की सुई हमेशा ही गोधरा, अफजल और कसाब के आसपास ही घूमती रहती है। इसमें शक नहीं कि गोधरा कांड जैसे भी हुआ, जिसने भी किया वह एक वीभत्स कृत्य था। लेकिन इससे भी ज्यादा वीभत्स वह था, जो नरेन्द्र मोदी की सरपरस्ती में हुआ। यहां यह बताना भी प्रासांगिक होगा कि अभी यह तय नहीं हो पाया है कि साबरमती एक्सप्रेस में आग कैसे लगी थी? हालांकि बनर्जी कमीशन की रिपोर्ट कहती है कि ट्रेन में आग बाहर से नहीं, अन्दर से लगी थी। गोधरा कांड के आरोपी जेल में हैं। क्या किसी ने यह मांग की है कि गोधरा के आरोपियों को रिहा किया जाए? यहां यह नहीं भूलना चाहिए कि संघ परिवार भी हादसों को स्वयं जन्म देकर साम्प्रदायिक आग भड़काता रहा है। याद कीजिए। जब तक मालेगांव में धमाके करने वाले हिन्दू संगठनों के लोग पकड़े नहीं गए थे, तब तक सारा दोष इंडियन मुजाहीदीन और लश्करे तैयबा पर ही लगाता रहा। साध्वी प्रज्ञा सिंह और कर्नल पुरोहित के पकड़े जाने के बाद ही यह साफ हुआ कि इन लोगों ने मालेगांव में ही नहीं, कई अन्य शहरों में भी बम धमाके किए थे।
संसद हमले के आरोपी अफजल को फांसी न देने का विरोध कभी मुसलमानों की तरफ से नहीं हुआ है। अफजल को फांसी की सजा तो राजग सरकार के समय में ही सुना दी गयी थी। क्या वजह रही कि राजग सरकार अफजल को फांसी नहीं दे सकी थी ? कसाब से किसी को भी हमदर्दी नहीं है। यह भी याद किजिए कि कसाब के मारे गए साथियों को मुसलमानों ने भारत में दफनाने की इजाजत इसलिए नहीं दी थी कि क्योंकि वे लोग इंसानियत के कातिल थे। उदय शंकर जी, संघ की विचारधारा से एक बार बाहर निकलकर सोचें कि शर्म किसे आनी चाहिए, सिंह साहब को या नरेन्द्र मोदी को?
सामयिक मुद्दों पर कलम के जरिए सक्रिय हस्तक्षेप करने वाले सलीम अख्तर सिद्दीक़ी मेरठ के निवासी हैं। वे ब्लागर भी हैं और ‘हक बात‘ नाम के अपने हिंदी ब्लाग में लगातार लिखते रहते हैं। उनसे संपर्क 09837279840 या [email protected] के जरिए किया जा सकता है।
Ravindra Nath
October 14, 2010 at 7:54 am
जरा ८४ के दिल्ली और प. बंगाल क्र सिंगूर पर भी शर्म कर लो।