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‘गंदी-गंदी गाली, मारने की धमकी देते हैं वो’

सर, मैं अपना नाम नहीं बताऊंगा क्योंकि मैं गरीब घर का हूं और नौकरी खतरे में पड़ जाएगी लेकिन जो नौकरी कर रहा हूं वह पहले से ही बेहद खतरनाक है। मैं नोएडा स्थित एक छुटभैये किस्म के न्यूज चैनल में काम करता हूं। हमारे चैनल में रिपोर्टरों और कैमरामैनों आदि को बुरी-बुरी गाली दी जाती है और मारने की धमकी दी जाती है। नौकरी से निकालना और निकालने की धमकी देना तो आम बात है। 15 से 20 घंटे काम लिया जाता है। कोई वीकली आफ नहीं मिलता।

<p align="justify">सर, मैं अपना नाम नहीं बताऊंगा क्योंकि मैं गरीब घर का हूं और नौकरी खतरे में पड़ जाएगी लेकिन जो नौकरी कर रहा हूं वह पहले से ही बेहद खतरनाक है। मैं नोएडा स्थित एक छुटभैये किस्म के न्यूज चैनल में काम करता हूं। हमारे चैनल में रिपोर्टरों और कैमरामैनों आदि को बुरी-बुरी गाली दी जाती है और मारने की धमकी दी जाती है। नौकरी से निकालना और निकालने की धमकी देना तो आम बात है। 15 से 20 घंटे काम लिया जाता है। कोई वीकली आफ नहीं मिलता। </p>

सर, मैं अपना नाम नहीं बताऊंगा क्योंकि मैं गरीब घर का हूं और नौकरी खतरे में पड़ जाएगी लेकिन जो नौकरी कर रहा हूं वह पहले से ही बेहद खतरनाक है। मैं नोएडा स्थित एक छुटभैये किस्म के न्यूज चैनल में काम करता हूं। हमारे चैनल में रिपोर्टरों और कैमरामैनों आदि को बुरी-बुरी गाली दी जाती है और मारने की धमकी दी जाती है। नौकरी से निकालना और निकालने की धमकी देना तो आम बात है। 15 से 20 घंटे काम लिया जाता है। कोई वीकली आफ नहीं मिलता।

यहां स्टाफ के 90 प्रतिशत लोग तो इंटर्न के रूप में रखे गए हैं। एक आदमी जो खुद को सीएमडी का खास बताता है, वही सबको डांटता-फटकारता और गाली देता रहता है। प्लीज सर, मैं बहुत परेशान हूं। आपके जवाब का इंतजार करूंगा। मैं अपना मोबाइल नंबर और नाम सिर्फ इसलिए आपको बता रहा हूं ताकि आपको इस सूचना की सत्यता का एहसास हो सके। कृपया किसी भी हालत में मेरे नाम, मोबाइल नंबर और मेल आईडी को मत प्रकाशित कीजिएगा।

आपका 

एक मीडियाकर्मी


भाई बेनामी

आप खुद कह रहे हैं कि जो नौकरी आप कर रहे हैं वह पहले से ही बेहद खतरनाक है। फिर आप ये नौकरी क्यों कर रहे हैं? आपने अगर तय किया है कि गाली सुनकर नौकरी करनी है तो करते रहिए। ये तो आप पर निर्भर करता है कि आप कितना दुख और शोषण सह सकते हैं। जिस दिन आप डरना छोड़ देंगे, लोग उस दिन से आपसे डरने लगेंगे। सताने वाला तो पापी है ही, जो यूं ही सताए जाने के लिए तैयार बैठा है, वो भी कम दोषी नहीं है। आप हिम्मत करिए, दो-चार लप्पड़-झापड़ रसीद करिए गाली देने वाले को और चंद पैसे कमाने के लिए कोई ठेला वगैरह लगा लीजिए। आजकल पत्रकारिता करने और ठेला लगाकर कमाने में ज्यादा फर्क नहीं है। एक अच्छा ठेलावाला रोजाना अपनी ईमानदारी और मेहनत से कई हजार रुपये दिल्ली-नोएडा में कमा लेता है।

ठेला लगाना एक प्रतीक है। आप देखिए, आप क्या-क्या कर सकते हैं, आप में क्या-क्या गुण हैं। बाकी, ये लड़ाई आपकी है। आप खुद लड़ें। खुद पहल करें। आपको अगर ऐसा लगता है कि भड़ास4मीडिया या कोई और आपकी लड़ाई आकर लड़ जाएगा तो यह आपकी गलतफहमी है। वैसे भी यह कहा गया है कि उपर वाला उसी की मदद करता है जो अपनी मदद खुद करता है… हिम्मते मर्दा, मददे खुदा…।

मैं पहले ही कह चुका हूं कि भड़ास4मीडिया कोई क्रांति का मंच नहीं है। यह मीडिया में होने वाली हलचलों और गतिविधियों को बताने वाला एक मंच है जिसमें गाहे-बगाहे पत्रकारों के सुख-दुख को भी प्रकाशित किया जाता है।

आभार के साथ

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यशवंत सिंह

एडिटर

भड़ास4मीडिया

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