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‘मीडिया को सांप्रदायिक कहने वाला खुद सांप्रदायिक’

मीडिया हाउसेज में यह कैसी सांप्रदायिकता‘ पढ़कर सबसे ज्यादा गुस्सा यशवंतजी पर ही आया कि पता नहीं आखिर बिना नाम के पत्र को वो क्यों प्रकाशित करते है. पता नहीं इसमें किसका हक़ मारा जाता है, कम से कम यशवंत जी को तो समझना चाहिए की जो व्यक्ति अपना नाम सामने रखने से डरता हो उसके विचार क्या क्रांति लायेंगे. चलिए जो भी हो, परन्तु ये सवाल जो उस व्यक्ति ने उठाया है, वो पूरी तरह से गलत है. मैं दावे के साथ कह सकता हूं की जिस व्यक्ति ने देश की मीडिया को साम्प्रदायिक कहा है, वो खुद ही सबसे बड़ा साम्प्रदायिक है. मैं एक घटना बताता हूं. मेरे एक मित्र हैं, नाम है ….आलम, मीडिया से ही जुड़े हैं और दिल्ली में हैं.

मीडिया हाउसेज में यह कैसी सांप्रदायिकता‘ पढ़कर सबसे ज्यादा गुस्सा यशवंतजी पर ही आया कि पता नहीं आखिर बिना नाम के पत्र को वो क्यों प्रकाशित करते है. पता नहीं इसमें किसका हक़ मारा जाता है, कम से कम यशवंत जी को तो समझना चाहिए की जो व्यक्ति अपना नाम सामने रखने से डरता हो उसके विचार क्या क्रांति लायेंगे. चलिए जो भी हो, परन्तु ये सवाल जो उस व्यक्ति ने उठाया है, वो पूरी तरह से गलत है. मैं दावे के साथ कह सकता हूं की जिस व्यक्ति ने देश की मीडिया को साम्प्रदायिक कहा है, वो खुद ही सबसे बड़ा साम्प्रदायिक है. मैं एक घटना बताता हूं. मेरे एक मित्र हैं, नाम है ….आलम, मीडिया से ही जुड़े हैं और दिल्ली में हैं.

उन्होंने एक दिन कहा… यार, ये टीवी वाले समाचार शुरू करने से पहले नमस्कार क्यों बोलते हैं, आदाब क्यू नहीं कहते…. उनकी बात सुनकर मैं समझ नहीं पाया कि इन मुस्लिम पत्रकारों को हो क्या गया है. अरे यार, पाकिस्तान में टीवी वाले नमस्कार कहेंगे क्या..? बांग्लादेश में नमस्कार कहेंगे क्या..? इन दोनों देशो का इसलिए नाम लिया क्योंकि ये घोषित मुस्लिम राष्ट्र नहीं हैं, हां जो घोषित हैं वहा की तो बात ही मत पूछिए. कैसे वहां गैर-मुस्लिमों को प्रताड़ित किया जाता है. अब आप ही कहिए, समाचार पढने वाले हिंदी, संस्कृत, उर्दू, तमिल, तेलगु सहित सभी भाषाओ में अभिवादन करेंगे तभी वो साम्प्रदायिक नहीं होंगे? और जहां तक छुट्टी की बात है, मुझे नहीं लगता देश का कोई मीडिया हाउस मुस्लिमों को ईद या दूसरे त्योहारों पर छुट्टी नहीं देता होगा या फिर पैसे काटता होगा. अगर कोई है तो उनका नाम सामने रखा जाना चाहिए.

पहले कुछ पत्रकारों को सांप्रदायिक कहा, अब हिम्मत देखिये कि अखबार के मालिकों को भी सांप्रदायिक कहने लगे. यशवंत जी, जिसने भी आपको ये मेल भेजा है उसको तुरंत पाकिस्तान या बांग्लादेश के लिए रवाना कीजिये, नहीं तो इनकी सोच वाले लोग आपको पूरे भारत में बहुत मिल जायेंगे और फिर अगर आप किसी से मिलकर उनको नमस्कार कहियेगा तो ये कहेंगे की “देखो ये, यशवंत जी भी सांप्रदायिक व्यक्ति हैं” क्योंकि इन्होंने सिर्फ नमस्कार कहा, आदाब नहीं कहा….. अब इससे बड़ा दुःख क्या होगा कि पांच सौ साल पुराने धर्मों के लोगों ने संतों की भूमि पर आकर ये कहना शुरू कर दिया है कि मीडिया में ये सांप्रदायिक परंपरा अनजाने में चली आ रही है. वाह यशवंत जी और वाह रे बेनामी लिखने वाले, दोनों प्रणाम के काबिल हैं. आप दोनों को आदाब सहित सभी धर्मों का संबोधन करता हूं नहीं तो कल फिर कहियेगा कि “अरे उदय जी तो सबसे बड़े सांप्रदायिक व्यक्ति हैं”

-उदय शंकर खवारे

हिंदी दैनिक अभी-अभी

गुड़गांव


सभी धर्मों के त्योहारों पर अवकाश देने की मांग करें

मीडिया हाउसों में ये कैसी सांप्रदायिकता‘ के बारे में मुझे यह कहना है कि कई प्रचलित और प्रतिष्ठित अखबारों में 15 अगस्त, 26 जनवरी, होली और दिवाली के अलावा कोई अवकाश नहीं होता। इन न्यूजपेपरों में हम लोग भैया दूज, रक्षा बंधन व अन्य त्योहारों में फुल टाइम काम करते हैं। इससे हम लोगों को भी पीड़ा होती है। बेहतर होता की हर धर्म की बात करते। सभी धर्मों के त्योहारों पर अवकाश देने की बात होनी चाहिए क्योंकि सभी त्योहारों पर अवकाश मिलने से इसका लाभ सभी काम करने वालों को मिलता है, किसी एक को नहीं।

-नवनीत द्विवेदी

पूर्व संवाददाता, दैनिक जागरण

हरदोई

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