नेता ने आग भड़काने के लिए घासलेट उर्फ केरोसिन फेंका। इसके बाद आग का भभका उठा। भभके ने 21 साल के एक लड़के को अपनी चपेट में ले लिया। लड़का चिल्लाने लगा। उसके शरीर के कपड़े जलने लगे। नेता लोग दाएं-बाएं खिसकने शुरू हो गए। मीडिया के लोग फोटो खींच रहे थे। आंदोलन को कवर कर रहे थे। मीडिया वालों से रहा नहीं गया। लड़के के शरीर की आग बुझाने में जुट गए। उसे अस्पताल ले गए।
लड़के ने अस्पताल में बयान दिया। पर नेताओं का कुछ नहीं हुआ। मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार जो है। भाजपा के लोगों का ही ये आंदोलन था। महंगाई के खिलाफ केंद्र सरकार की अर्थी निकाल रहे थे। एक नहीं, 13 अर्थियां मध्य प्रदेश के खंडवा शहर में घुमाईं। फिर सभी अर्थियों को एक जगह लाकर फूंक दिया। आग न पकड़ते देख एक नेता ने साथ लाए घासलेट को आग पर उड़ेल दिया। आग ने भभका पकड़ लिया……।
यह युवक बच गया है। उस मन और मस्तिष्क पर आग का गहरा असर हुआ है। बताते हैं कि वह नेता और आंदोलन, दोनों शब्दों से डरने लगा है। जिस दौर में हम जी रहे हैं, उसमें आंदोलन जनहित के लिए नहीं बल्कि अपनी नेतागिरी चमकाने के लिए किया जाता है। नेता लोग जनता के लिए नहीं बल्कि सत्ता के लिए लड़ते दिखते हैं। ऐसे में अगर नेताओं की लगाई नफरत की आग में आज कोई एक युवक जल जाता है तो कल को सारा का सारा देश जलने लगे तो आश्चर्य नहीं करना चाहिए।
नेता इस देश का मोस्ट पावरफुल प्राणी है। दुर्योग यह कि वह अपने पावर का इस्तेमाल देश व समाज की तरक्की के लिए नहीं बल्कि ज्यादा से ज्यादा माल और बड़ी से बड़ी सत्ता हथियाने के लिए करता है। तभी तो नेताओं पर हाथ डालने से सभी डरते हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो इस युवक को जलाने के आरोप में आरोपी नेताओं को कम से कम गिरफ्तार कर हवालात में डाला ही जाना चाहिए था।
आखिर में यहां बस इतना कहना है कि खंडवा के मीडिया वाले साथियों ने जो संवेदनशीलता दिखाई है, खासकर कैमरामैनों और फोटोग्राफरों ने, इसके लिए उन्हें सलाम करने को जी चाहता है। सदाकत पठान और श्याम शुक्ला, जो सबसे पहले आग बुझाने के लिए दौड़े, उन्हें ढेर सारा साधुवाद।
आइए, पूरी कहानी तस्वीरों की जुबानी देखें…