कभी कोई संपादक प्रबंधन की आंतरिक राजनीति से नाराज होकर लंबी छुट्टी पर चला जाता है. कभी कोई संपादक चैनल की खराब आर्थिक हालत से दुखी होकर दाएं-बाएं के संस्थानों में हाथ मारने लगता है. कोई संपादक अपनी निजी मेल और निजी तस्वीर के सार्वजनिक हो जाने से विवादों में आ जाता है. कोई संपादक अपने खिलाफ चलाए जा रहे अभियानों से परेशान होकर सिर पटकने लगता है.
ताजा मामला विनोद कापड़ी का है जो इंडिया टीवी में मैनेजिंग एडिटर हैं.
न्यूज चैनलों की दुनिया में जिस तेजी से विनोद कापड़ी ने अपना स्थान बनाया, टीआरपी के गेम को जिस अच्छे तरीके से उन्होंने समझा और जिस करीने से उन्होंने इसे भुना लिया, उसके कारण वे असमय न सिर्फ सफल हो गए बल्कि असमय ही ढेर सारे दुश्मन बना बैठे. किसी को उनकी वाणी से एतराज है तो किसी को उनकी स्टाइल से. किसी को उनकी निजी जिंदगी से दिक्कत है तो किसी को उनकी अच्छी-बुरी करतूत से. फिलहाल तो फुटबाल कापड़ी विरोधियों के पाले में है. पिछले दिनों इंडिया टीवी में विनोद कापड़ी के आंतरिक मेल के लीक हो जाने से मच-मच का जो दौर चला, उसकी अगली कड़ी आजकल देखने को मिल रही है. इंटरनेट के महासमुद्र में विनोद कापड़ी की कुछ ऐसी तस्वीरें तैर रही हैं जिसमें वे एक लड़की के साथ हैं. चैनल में ही काम करने वाली इस लड़की से विनोद कापड़ी के पत्राचार के चिट्ठे भी मीडिया के लोग एक-दूसरे के यहां चटखारे लेकर फारवर्ड कर-करा रहे हैं. कुछ विघ्नसंतोषी पत्रकार इसे ब्लागों पर भी छपवाने में जुटे हुए हैं.
वैसे, दिल्ली की मीडिया में जर्नलिस्टों के चरित्र पर कीचड़ उछालने वाली तस्वीरें, एमएमएस, वीडियो व मेल आदि का सरकुलेशन कोई नई बात नहीं है. महिला एंकरों को तो खासकर निशाना बना लिया जाता है. महिला एंकरों का नाम पुरुष जर्नलिस्टों-संपादकों से जोड़ दिया जाता है. पुरुष संपादकों का नाम आफिस की ही किसी महिला सहकर्मी से जोड़ दिया जाता है. यह सब खेल खासकर वे लोग खेलते हैं जो अपने बॉसेज के निशाने पर होते हैं और बासेज से बदला लेने के लिए किसी हद तक जा सकते हैं.
यह सब काम अफवाह फैक्ट्री के लोग भी करते हैं जो अपने आका के इशारे पर दूसरे संस्थानों में वरिष्ठ पदों पर बैठे लोगों को सुनियोजित तरीके से अफवाह फैलाकर डैमेज करने की कोशिश करते हैं. कभी-कभी यह सब काम कुछ ऐसे वरिष्ठ ‘खोजी’ जर्नलिस्ट भी करते-कराते हैं जो बेकारी के दौर से गुजर रहे होते हैं पर उनका ‘शैतानी’ स्टिंगधारी दिमाग शांत नहीं रहता. उन्हें लगता है कि अगर कुर्सी पर पदासीन कुछ लोग लुढ़का दिए जाएं तो शायद उनकी बारी आ जाए.
पर, निजता का सभी को ध्यान रखना चाहिए. मामला किन्हीं दो के बीच का हो और उन दोनों में से किसी को तीसरे की दखलंदाजी की जरूरत न हो तो दुनिया वाले क्यों दखल दें? किसी भी पत्रकार-संपादक के निजी मेलों-तस्वीरों को सार्वजनिक करने से बचा जाना चाहिए. अगर मेल व तस्वीर में शामिल पात्र खुद इसे सार्वजनिक करें तब तो दूसरी बात है वरना किसी तीसरे का दखल निजता के अधिकार का उल्लंघन है और इसीलिए अपराध भी है.
कथित प्रेम-प्रसंग की तस्वीरें व मेल को सार्वजनिक कर विनोद कापड़ी के चरित्र पर कीचड़ उछालने का काम कौन लोग कर रहे हैं, इसका पता लगाना और इसके बारे में बताना तो साइबर पुलिस और विनोद कापड़ी का काम है, पर हम यहां इतना जरूर बता सकते हैं कि इस तरह के प्रकरण से दूसरे पत्रकारों-संपादकों को क्या सबक मिलता है—
सबक नंबर एक- आफिस के आंतरिक मेल सिस्टम को सुरक्षित न मानें.
सबक नंबर दो- आफिस के मेल पर निजी बातें करने-लिखने से बचें.
सबक नंबर तीन- आफिस और इमोशन का घालमेल न करें तो अच्छा.
सबक नंबर चार- महिला सहकर्मी को दोस्त बनाने से यथासंभव बचें.
सबक नंबर पांच– दोस्त बनाना ही पड़े तो दोनों में से कोई एक संस्थान छोड़े.
सबक नंबर छह- कोई मेजर डेवलपमेंट हो तो बॉस के संज्ञान में जरूर लाएं.
सबक नंबर सात- एक्सट्रीम पर जाने से बचें. नियंत्रण कभी न खोएं.
सबक नंबर आठ- स्व-रोजगार का इरादा न हो तो आफिस में दिल लेकर न आएं.
सबक नंबर नौ- विरोधी ज्यादा सक्रिय हों तो चुप्पी मार लेने में ही दूरदर्शिता.
सबक नंबर दस- मुख्य विरोधी की शिनाख्त कर लें ताकि उससे समय पर निपट सकें.
सबक नंबर ग्यारह- गलती हो तो माफी मांग लेने से इज्जत बढ़ती है, बिगड़ती नहीं.
सबक नंबर बारह- केवल हिप्पोक्रेट लोग गलती नहीं करते, बाकी सब करते हैं.
- सबक नंबर तेरह- जो पकड़ गया वो ‘चोर’, बाकी सब ‘मेच्योर’… का जमाना है यह
सबक नंबर चौदह- घबड़ाएं नहीं, गालियां पड़ रही हैं तो खुद को सचमुच सफल मानें.
- सबक नंबर पंद्रह- अच्छे दिन के बाद बुरे दिन आते हैं, फिर अच्छे दिन के लिए जुटें.
इस प्रकरण से संबंधित पुरानी खबर पढ़ने के लिए क्लिक करें– मेल से इंडिया टीवी में मच-मच
dinesh pal singh
March 28, 2010 at 1:27 pm
patchrah ke baad aate hai moosam bahar ke..
gina kya givan se har ke…………………
Rajendra Singh
December 13, 2010 at 12:18 pm
Good 15 sabak bahut zaroori aisa hona chahiye ki inki zaroorat na hi pade.