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हलचल

जूते-अंडे की दुकान और उस्ताद हुसैन बख्श

: आप इन्हें भड़ासी भाइयों को सुनाइए : भाई यशवंत जी, छोटे कस्बे की दुकानों में आप कोई तरतीब नहीं ढूंढ सकते। यहां चूहे मारने की दवा और जीवन रक्षक दवायें एक साथ मिल सकती हैं। एक ऐसी ही दुकान में जहां जूते व अंडे बिकते थे, एक कोने में कुछ कैसेट भी रखे थे। यह कोई २०-२१ साल पहले की बात है। यहीं पर मुझे उस्ताद हुसैन बख्श का एक कैसेट मिला था। दुकानदार कैसेट देते हुए बहुत खुश था।

<p style="text-align: justify;">: <strong>आप इन्हें भड़ासी भाइयों को सुनाइए</strong> : भाई यशवंत जी, छोटे कस्बे की दुकानों में आप कोई तरतीब नहीं ढूंढ सकते। यहां चूहे मारने की दवा और जीवन रक्षक दवायें एक साथ मिल सकती हैं। एक ऐसी ही दुकान में जहां जूते व अंडे बिकते थे, एक कोने में कुछ कैसेट भी रखे थे। यह कोई २०-२१ साल पहले की बात है। यहीं पर मुझे उस्ताद हुसैन बख्श का एक कैसेट मिला था। दुकानदार कैसेट देते हुए बहुत खुश था।</p>

: आप इन्हें भड़ासी भाइयों को सुनाइए : भाई यशवंत जी, छोटे कस्बे की दुकानों में आप कोई तरतीब नहीं ढूंढ सकते। यहां चूहे मारने की दवा और जीवन रक्षक दवायें एक साथ मिल सकती हैं। एक ऐसी ही दुकान में जहां जूते व अंडे बिकते थे, एक कोने में कुछ कैसेट भी रखे थे। यह कोई २०-२१ साल पहले की बात है। यहीं पर मुझे उस्ताद हुसैन बख्श का एक कैसेट मिला था। दुकानदार कैसेट देते हुए बहुत खुश था।

दुकानदार ने अपनी ओर से कुछ सहानुभूति-सी जताते हुए इस ‘फालतू’ माल पर उसने मुझे दो-तीन रुपयों की छूट भी दी थी। तब पहली बार उस्ताद हुसैन बख्श साहब की असरदार आवाज व बेमिसाल गायकी से मेरा परिचय हुआ था। कुछ दिनों बाद एक कृपालु मित्र इस कैसेट को ले गये और जैसा कि आमतौर पर होता है, वापस नहीं किया। पर हुसैन बख्श साहब की आवाज कानों में गूंजती रही।

अब भला हो यू ट्‌यूब का जिसमें कुछ मेहरबान लोगों ने उस्ताद जी की उन्हीं पुरानी बंदिशों को अपलोड किया है और वे अच्छी खासी मात्रा में उपलब्ध हैं। कहते हैं कि एक बार किसी ने मेहदी हसन साहब से पूछा कि ” दुनिया आपको सुनती है, आप किसे सुनते हैं?” उनका जवाब था -”हुसैन बख्श।” मेहदी हसन व गुलाम अली भारत में अच्छे खासे लोकप्रिय हैं, पर हुसैन बख्श अपने यहां जाना -पहचाना नाम नहीं हैं। अगर आपने भी उन्हें न सुना हो तो आपकी खिदमत में उनकी कुछ नायाब गायकी की कड़िया भेज रहा हूं। चाहता हूं कि आप इन्हें भड़ासी भाइयों को भी सुनायें, वैसे ही जैसे कैलाश खेर को सुनाते हैं. –दिनेश चौधरी

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0 Comments

  1. शेष नारायण सिंह

    August 6, 2010 at 1:59 am

    शुक्रिया जनाब,
    क्या बात है . पता नहीं कितने साल बाद सुना है हुसैन बख्श साहब को . गालिब और हुसैन बख्श . भाई वाह .

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