: सुब्रत रॉय बड़ी सोच व अंतरराष्ट्रीय समझ वाले : हरेराम मिश्रा का पत्र एवं यशवंत जी आपका लेख (सम्पादकीय) पढ़ा। सुब्रत रॉय की भावनात्मक अपील भी अखबारों में पढ़ी। दिलचस्प बात यह लगी कि मुझे न तो सुब्रत रॉय और न आप और न ही हरेराम गलत दिखाई दिये।
हां, सबकी सोच-समझ में अंतर जरूर दिखा। जहां आपकी और हरे राम मिश्रा की सोच संकीर्ण और बचकानी लगी, जो कि अपनी जगह सही है, रॉय की सोच बड़ी और अन्तरराष्ट्रीय समझ से परिपूर्ण लगी। यशवंत जी, एक घर के एक व्यक्ति ने घर में आग लगा दी तो सारे घर वाले उसे मारने लगे और जोर-जोर से गालियां देने लगे थे। किसी ने पूछा ‘अरे भाई तुम लोग अपने घर की आग क्यों नहीं बुझाते। इस व्यक्ति को तो एक आदमी पकड़कर रख सकता है और इसका फैसला बाद में हो सकता है। ‘घर फूंक तमाशा’ करने से क्या फायदा? – यही बात अगर सुब्रत रॉय जैसा व्यक्ति कहता है तो यशवंत जी इसमें क्या बुरा है? मगर हरे राम मिश्रा जी की सोच तो उनके महंगे होते आलुओं से ऊपर जा ही नहीं सकती, जो अपनी जगह सही भी है, मगर अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की गरिमा और प्रगति को दर्शाने वाला कोई भी समारोह, जो याद रहे, इस देश में नये रोजगार और अवसर के लिए आकर्षित कर सकता है, उसको कैसे दर्शाया जाए?
रॉय ने यह अच्छी बात की है कि मीडिया ने एक अच्छा काम किया है। इस धांधली को उजागर करके, मगर जैसा कि हम आपस में जानते हैं कि मीडिया की आपस की होड़ ब्रेकिंग न्यूज़ व इक्सक्लूसिव स्टोरी का चस्का, बाईलाइन का नशा और दिल में महंगे आलुओं का गम अगर इस धांधली की खबर को इतना बड़ा बना दे कि भारत की छवि को गर्क करने की, जांच-पड़ताल में बाधा पहुंचाने और कॉमनवेल्थ गेम की तैयारियों को सुस्त करके अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर मजाक बनने जैसे दिव्य कार्य को अगर अंजाम दे रहा है, तो मेरी समझ से यह अति निन्दनीय है। आरुषि केस में सुप्रीम कोर्ट मीडिया की ऐसी ही टुच्ची हरकतों पर फटकार लगा चुका है। दो महीने बाद जब देश-विदेश के विख्यात खिलाड़ी, हजारों-लाखों में विदेशी दर्शक जब भारत में होंगे तो क्या यह जरूरी नहीं कि एक अच्छा आयोजन करने का बीड़ा जब देश ने उठाया है, उसमें सहयोग किया जाए!
रॉय ने अपनी अपील में सब ही नहीं प्रत्येक नागरिक से सहयोग की बात कही थी, जो अनसुनी रह गयी क्योंकि भारत का एक काक्रोच दूसरे काक्रोच की टांग खीचने में मगन है – चाहें वह बोफोर्स काण्ड या भोपाल त्रासदी हो या हजारों अन्य घोटाले हों। ‘श्वेताम्बरी’ मीडिया ने क्या उखाड़ लिया। खबर पुरानी होते ही सारे श्वेताम्बर त्याग दिये जाते हैं और टीआरपी का नंगा नाच फिर शुरू हो जाता है। इस केस में मीडिया को यही डर है कि कहीं यह खबर पुरानी न हो जाए और बाद में इसे कवर करने में मस्त करने वाली टीआरपी और कवर-स्टोरी से वंचित रह जाएं।
मैं कोई सहारा का भक्त नहीं हूं, न ही कभी सुब्रत रॉय से मिला हूं या न तो मिलने की कोई इच्छा है, मगर यदि कोई भी व्यक्ति एक बड़ी सोच व भविष्य की समझ के अंतर्गत एक बात सामने रखता है तो सकारात्मक कार्रवाई और विचार-विमर्श की आवश्यकता होनी चाहिए।
यशंवत जी, हमें, मिश्रा जी को और हम सबको न सिर्फ अपनी बल्कि हमारी आगामी पीढ़ी को ध्यान में रख के एक सार्थक चिन्तन करना चाहिए। राजा दशरथ के राज दरबार में नृत्य कोई बुरी बात नहीं, केवल राज्य की सम्पदा का शक्तिशाली प्रदर्शन और एक आवश्यकता है – यह एक राजा ही समझ सकता है। हम सिर्फ नृत्य देखते हैं और वह इसके पीछे छिपी नीति समझता है।
मृत्युंजय कुमार
यह पत्र भड़ास4मीडिया पर प्रकाशित ”सहाराश्री की राष्ट्रभक्ति पर संदेह करें या ना करें?” के जवाब में आया है. लेखक ने अपने परिचय में सिर्फ अपना नाम व मेल आईडी भेजा है, जिसे प्रकाशित करा दिया गया है. -एडिटर
Mritunjay Kumar
August 13, 2010 at 9:06 am
Dear Yashwantji,
Thanks for publishing my viewpoint…I am a Retd. Army Officer and the writer of this article…I only tried to riase my concern over the issue.
Thanks
Mritunjay Kumar
Haresh Kumar
August 13, 2010 at 10:28 am
और सुब्रत राय की सोच अच्छी है। बिहार से गोरखपुर की यात्रा जब स्कूटर पर सुबह से लेकर शाम तक घूमा करते थे। वो दिन भूल गये। इस मंजिल को पाने के लिए कितने लोगों के घर का चूल्हा इन्होंने बंद किया। कितना घोटाला किया और राजनेताओं का वरदहस्त पाकर …रियलिटी सेक्टर से लेकर फाइनेंस में अपना दबदबा कायम किया कोई कैसे भूल सकता है। संजीव श्रीवास्तव किस तरह से सहारा चैनल से गए। ये सब वो बतायेंगे। भावनात्मक शोषण करना कोई इनसे (सहारा) से सीखे। कैसे किसी आदमी के हाथ कारू का खजाना लग जाता है और वो देखते-देखते मशहूर उद्योगपति बन जाता है। राजनेताष भ्रष्ट नौकरशाह और अवैध संपत्ति (काली कमाई) का बड़ा योगदान रहा है। सहारा के बढ़ने में। हाथी के दांत दिखाने के और और खाने के और होते हैं। इन चुतियों से राष्ट्रभक्ति की आप उम्मीद करते हैं। ये देश की क्रिकेट टीम को प्रायोजित करते हैं और टीम कितने रनों से हारेगी सट्टेबाज सुबह से ही ऐलान कर देते हैं। सबको मालूम है लेकिन बोलता कोई नहीं है। हमाम में सभी नंगे हैं। सिर्फ अपना फायदा देखते हैं। देश जाए भाड़ में। इसके पीछे भी सहारा की कोई चाल है। यह एक तीर से दो शिकार कर रहा है। एक तो अपने विरूद्ध लगे आरोपों को कोई कवर नहीं करे तो उसे विज्ञापन दे दो और दूसरा भारत की अशिक्षित जनता में अपनी पैठ बना लो। भावनात्मक शोषण का अतुल्य उदाहरण है यह।
Chandrabhan Singh
August 13, 2010 at 1:11 pm
Haresh Kumar lot of thanks.
jaatak
August 14, 2010 at 3:09 pm
“…दिलचस्प बात यह लगी कि मुझे न तो सुब्रत रॉय और न आप और न ही हरेराम गलत दिखाई दिये।” thses lines of Mr. Kumar are very important and tell a lot..
As he wrote he is a retd. Armyman…oups sorryyy…..a retd. army officer. yeaa army has many categories of humans Retarded
amitsharma21
August 29, 2010 at 6:30 am
राष्ट्रभक्ति की क्या बात करें यहां तो खुद उनके मीडिया हाउस में पक्षपात का दौर शुरु हो गया है। जरा देखें कि कितनी काबिलियत वाले लोगों को कहां कहां और कितनी सैलरी पर बिठा दिया है। शायद उन्हें अपने घर के भीतर का हाल पता ही नहीं होगा