: यूपी पुलिस के एक दीवान की व्यथा कथा : यशवन्त जी, आपकी मां व आपके परिवार की औरतों के साथ गाजीपुर की पुलिस ने जो व्यवहार किया वह वास्तव में शर्मनाक है। इसके लिए दोषी पुलिसकर्मियों को नियमानुसार दण्डित किया जाना चाहिए। परन्तु दोस्त, इस प्रकार की शर्मनाक घटनाओं को कहां–कहां होने से रोका जाय, जो जहां है, वह वहीं अपराध कर रहा है। मेरे साथ भी दिनांक 4.10.2010 को घटना घटित हो गयी, जिसमें मेरी मां को बिना किसी कारण ‘‘अमर उजाला’’ दैनिक समाचार पत्र वालों ने खबर बनाकर छाप दिया। मैं कितने पाठकों से कहता घुमूं कि दिनांक 4.10.2010 को छपी खबर असत्य है और सम्बन्धित रिपोर्टर कुछ गलत कार्य करवाना चाहता था, न करने पर उल्टी–सीधी खबर बनाकर छाप दिया, जो असत्य है। आपके पास तो तमाम साधन है, जिसके माध्यम से आप अपनी बात सभी से कह सकते हैं, कार्यवाही करा सकते हैं, परन्तु मैं तो असहाय हूं, क्योकिं मै उत्तर प्रदेश पुलिस में एक दीवान हूं। मेरे व मेरी मां के बारे मे दिनांक 04.10.2010 को ‘‘अमर उजाला’’ दैनिक समाचार पत्र में छपी खबर को इस मेल के साथ अटैच कर रहा हूं, जिसको आप पढ़कर समझ सकते हैं कि यह खबर है या किसी का उपहास। इस खबर से ‘‘अमर उजाला’’ वाले समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं? इस सम्बन्ध में समाचार पत्र में प्रकाशित सम्पादक के नाम एक नोटिस दिनांक 04.10.2010 को ही द्वारा ई–मेल से भेजा, परन्तु आज तक कोई उत्तर नहीं आया है, उत्तर की जगह पर सम्बन्धित रिपोर्टर द्वारा ‘‘देख लेने’’ की धमकी भी दी जा रही है। भेजा गया नोटिस नीचे है और साथ ही अमर उजाला में प्रकाशित खबर की कटिंग है. -दिनेश कुमार सरोज, मुख्य आरक्षी, सर्विलांस सेल, जनपद देवरिया
सेवा में,
सम्पादक
अमर उजाला प्रेस
ए.एल–21, सेक्टर–13
गीडा, गोरखपुर।
बिषय : दिनांक 04.10.2010 को अमर उजाला, गोरखपुर संस्करण में पृष्ठ संख्या–2 पर प्रकाशित अंश ‘‘अफसरों से ज्यादा दीवान को चाहिए सुरक्षा’’ के सम्बन्ध में शिकायत
महोदय,
दिनांक 04.10.2010 को अमर उजाला गोरखपुर संस्करण के पृष्ठ संख्या 2 पर रेखाओं से घिरे उक्त आशय के प्रकाशन से प्रत्यक्ष रूप से मेरी व्यक्तिगत ख्याति को आशय पूर्वक क्षति पहुंचाने का प्रयास स्वत: में स्पष्ट है क्योंकि सर्विलांस सेल देवरिया मे मेरे अलावा कोई और दीवान नियुक्त नहीं है। यह आक्षेप सवर्था व्यक्तिगत है, जिसका जनहित से कोई प्रत्यक्ष सरोकार नहीं है।
1. मेरी मां के पास लाइसेन्स होने की बात असत्य है और मेरे दो लाइसेन्स होने की परिस्थितियों के जाने बिना खबर प्रकाशित की गयी है। दो पिस्टल एक साथ लेकर चलने सम्बन्धी कथन किसी प्रमाण के अभाव में मात्र शरारतपूर्ण आक्षेप है, जिनका एक मात्र उद्देश्य मेरी व्यक्तिगत ख्याति को क्षति पहुंचाना है। इस प्रकार के प्रकाशन के पूर्व मुझसे किसी ने सम्पर्क करके स्थिति जानने का कोई प्रयास नहीं किया। आपके द्वारा प्रयुक्त शब्द ‘‘भौकाल’’ नितान्त आपत्तिजनक है।
2. वर्तमान में अपराधियों का प्रथम निशाना जिले का सर्विलांस विभाग है। मेरे सुरक्षा के उपायों/आयुधोपकरणों को सार्वजनिक इस खबर के माध्यम से की गयी, यदि भविष्य में मेरे जान–माल का कोई नुकसान होता है तो जिम्मेदारी आप की होगी।
3. ‘‘यह सभी लाइसेन्स पुलिस के अधिकारियों की मेहरबानी से दीवान जी को मिला है’’ यह पंक्ति स्पष्ट रूप से मा. जिला मजिस्ट्रेट महोदय के द्वारा लाईसेन्स स्वीकृति में लिये गये न्यायिक निर्णय का उपहास/अवमानना को प्रकट करती है। यह मा. न्यायालय के आदेश का अवमानना (Contempt of court) की विषयबस्तु है।
अत: कृपया इस नोटिस के प्राप्ति के एक सप्ताह के अन्दर स्पष्ट करें कि :–
1. क्यों न आपके खिलाफ सक्षम न्यायालय में फौजदारी क्षतिपूर्ति के वाद संस्थित किये जाय।
2. क्यों न आपके खिलाफ मा. उच्च न्यायालय में अवमानना (Contempt of court) हेतु रिट फाईल की जाय।
3. क्यों न आपके इस आचरण की शिकायत प्रेस काउन्सिल आफ इण्डिया नई दिल्ली को भेज दी जाय।
(दिनेश कुमार सरोज)
मुख्य आरक्षी सर्विलांस सेल
जनपद देवरिया
राहुल
October 20, 2010 at 2:46 pm
दिनेश कुमार सरोज जी, दुर्भाग्य हैं ये सब सर, आप तो इतना जानते हैं कानून के बारे में, या इतना जागरूक हैं की आपने यशवंत जी के इस पोर्टल तक अपनी बात रखी. आपसे यही कहूँगा की बिना देर किये आप ये तमाम केस सूट कर दीजिए, अगर आप ऐसा नहीं करते हैं या सब मैनेज हो जाता हैं तो यह और बुरा होगा. यह सिर्फ आपका मामला नहीं हैं एक तरफ हम पुलिस पर आरोप लगाते हैं दूसरी ओर इसी पोर्टल की पिछली खबर पढने के बाद लगता हैं की मीडिया उससे भी ज्यादा कानून तोड़ रही हैं. तो क्यू न सबक सिखाया जाए? मुझे तो लगता हैं अब वह अखबार डर के हो सकता हैं आपसे सुलह ही कर ले. हंसी आती हैं इस व्यवस्था पर, खैर अपना कम कर रहा हूँ, गोली मारिये दूसरे को :-)) जब अपने साथ होगा देखा जाएगा:-))