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नंगई कम दिखी पर पेड न्यूज़ चालू आहे (1)

मुकेश कुमारबिहार चुनाव में सत्तारूढ़ गठबंधन की ऐतिहासिक विजय ने पेड न्यूज़ के कारोबार और चुनाव पर उसके प्रभाव से लोगों का ध्यान  हटा दिया है। लगता है कि सब कुछ ठीक-ठाक संपन्न हो गया है और अब इस बात की ज़रूरत नहीं है कि पेड न्यूज़ और मीडिया की भूमिका की पड़ताल की जाए। मगर इसकी ज़रूरत है, क्योंकि तभी पता चलेगा कि बिहार के चुनाव कितने निष्पक्ष हुए और धन के बल पर मीडिया का किसने कैसा इस्तेमाल किया गया।

मुकेश कुमार

मुकेश कुमारबिहार चुनाव में सत्तारूढ़ गठबंधन की ऐतिहासिक विजय ने पेड न्यूज़ के कारोबार और चुनाव पर उसके प्रभाव से लोगों का ध्यान  हटा दिया है। लगता है कि सब कुछ ठीक-ठाक संपन्न हो गया है और अब इस बात की ज़रूरत नहीं है कि पेड न्यूज़ और मीडिया की भूमिका की पड़ताल की जाए। मगर इसकी ज़रूरत है, क्योंकि तभी पता चलेगा कि बिहार के चुनाव कितने निष्पक्ष हुए और धन के बल पर मीडिया का किसने कैसा इस्तेमाल किया गया।

हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि चुनाव आयोग ने बिहार विधानसभा चुनाव को टेस्ट केस के तौर पर लिया था और पेड न्यूज़ को रोकने के लिए कई उपाय किए थे। लोग भी देखना चाहते थे कि राष्ट्रीय स्तर पर पेड न्यूज़ के ख़िलाफ जो आवाज़ें उठ रही हैं उनका कोई असर पेड न्यूज़ के कारोबारियों पर पड़ेगा या नहीं। बिहार के पत्रकारों ने भी एक फोरम बनाकर अपने स्तर पर पेड न्यूज़ के ख़िलाफ़ माहौल बनाने की कोशिशें की थीं और ज़ाहिर है कि वे भी अपनी कोशिशों का असर देखना चाहते थे। सवाल उठता कि आख़िर क्या हुआ? क्या पेड न्यूज़ का कारोबार रुका?

बिहार विधानसभा चुनाव के पूरे प्रचार अभियान पर ग़ौर किया जाए तो ऐसा लगता है कि पिछली बार की तरह इस दफ़ा ख़बरों की खुली मंडी नहीं लगी। ये सुनने में कम आया कि कवरेज के पैकेज ऑफर किए गए या पैकेज न खरीदने की स्थिति में उम्मीदवारों को धमकियाँ दी गईं, उन पर नाजायज़ दबाव बनाया गया। हालाँकि न्यूज़ चैनलों के प्रतिनिधि प्रत्याशियों के पास पहुँचे ज़रूर और चैनलों ने अपने संवाददाताओं तथा स्ट्रिंगरों को भी धन बटोरने में भी लगाया, लेकिन कहीं कोई आँखों की शरम या भेद खुल जाने का भय काम कर रहा था जिसकी वजह से वे पहले जैसे निर्लज्ज और आक्रामक नहीं हुए। पेड न्यूज़ का विरोध करने वाले इस उपलब्धि पर खुशी व्यक्त कर सकते हैं कि मीडिया की नंगई इस बार कम देखने को मिली। ये चुनाव आयोग और पेड न्यूज़ के ख़िलाफ़ मुहिम छेड़ने वाले पत्रकारों की मुहिम का एक सकारात्मक परिणाम कहा जा सकता है।

मगर क्या इस पर संतुष्ट हुआ जा सकता है और क्या माना जा सकता है कि बिहार में पेड न्यूज़ को रोकने की जो भी कोशिशें  हुईं उनके सार्थक परिणाम निकलने शुरू हो गए हैं। नहीं। ऐसा  मानना खुद को धोखे में  रखना होगा। ऐसा इसलिए  कि मीडिया का कवरेज कुछ  और कहता है। सचाई इससे कई गुना कड़वी है। परदे के पीछे से और नरम अंदाज़ में ही सही, पेड न्यूज़ का कारोबार जमकर चला। और तो और उन अख़बारों के भी इसमें शामिल होने की सूचनाएं आ रही हैं जिन्होंने बाकायदा आचार संहिता जारी करके पेड न्यूज़ न करने का ऐलान किया था। आचार संहिता ने मुखौटे का काम किया। दूसरी बात ये रही कि संस्थानों ने सावधानियाँ बरतीं और पेड न्यूज़ के नए तरीके भी ईजाद किए। यही वजह थी कि पेड न्यूज़ का खेल अख़बारों के पटना संस्करण में नहीं खेला गया क्योंकि इससे तुरंत भेद खुलने और बदनामी मिलने की आशंका थी, मगर दूसरे शहरों से निकलने वाले संस्करणों में लगभग उसी अंदाज़ में काम हुआ।

बिहार के कई पत्रकारों ने (इन पत्रकारों ने पेड न्यूज़ के खिलाफ़ मुहिम में हिस्सा लेने की मंशा जताते हुए जानकारियाँ भेजी हैं। हम उनके नामों का उल्लेख इसीलिए नहीं कर रहे ताकि उन्हें मीडिया संस्थानों का कोपभाजन न बनना पड़े।) इस बात की पुष्टि की है कि तमाम प्रमुख अख़बारों ने चुनाव वसूली की है। ख़ास तौर पर अख़बारों के इलाकाई संस्करणों में तो ये खेल खुलकर खेला गया। अख़बारों में काम कर रहे पत्रकारों के मुताबिक चुनाव आचार संहिता जारी होते ही तमाम संस्करणों में निर्देश आ गए कि किसी भी प्रत्याशी की ख़बर बिना पैसा लिए नहीं छापना है। हर संस्करण के लिए एक टारगेट भी निर्धारित किया गया, जो कि पाँच लाख से लेकर बीस लाख तक था। पैकेज भी बना दिए गए। एक बड़े अख़बार में पेड न्यूज़ के पैकेज क्रमश एक लाख बीस हज़ार, साठ हज़ार और चालीस हज़ार के थे तो दूसरे में अस्सी हज़ार और अड़तालीस हज़ार के। दो

अख़बारों ने पैकेज की कीमत सर्कुलेशन के आधार पर तय की थी। पेड न्यूज़ को छिपाने की तरकीब ये थी कि इसके एवज़ में बहुत कम दरों पर विज्ञापन प्रकाशित किए गए। यहाँ तक कि डीएवीपी की दरों से भी कम। चुनाव आयोग या प्रेस परिषद चाहे तो इस आधार पर अख़बारों को पकड़ सकती है। पैकेज और पेड न्यूज़ की पड़ताल प्रत्याशियों के विज्ञापनों और उन्हें मिले कवरेज के तुलनात्मक अध्ययन से भी की जा सकती है। चुनाव आयोग ने इसके लिए मानीटरिंग कमेटियाँ बनाई थीं, मगर पता नहीं उन्होंने ऐसा क्यों नहीं किया, जबकि इन्हें पकड़ पाना कोई मुश्किल काम नहीं था, क्योंकि कवरेज की भाषा और प्रस्तुति का अँदाज़ ही चुगली करने वाला था। इसके अलावा पाँच पांइट में एडीवीटी लिखने की रस्म अदायगी करके पेड न्यूज़ छापने का काम भी अख़बारों ने जमकर किया।

लेखक मुकेश कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं. कई अखबारों व न्यूज चैनलों में वरिष्ठ पदों पर काम कर चुके हैं. हाल-फिलहाल मौर्य टीवी को लांच कराकर नंबर वन बनाने का श्रेय इन्हीं को जाता है. पटना में मौर्य टीवी के अपने कार्यकाल के दौरान मुकेश कुमार ने पेड न्यूज के खिलाफ साहसिक पहल की. पत्रकारों को एक मंच पर ले आए और नेताओं को भी ये कहने को मजबूर किया कि वे पेड न्यूज के धंधे में शामिल न होंगे. मुकेश फिलहाल एक नए राष्ट्रीय न्यूज चैनल की लांचिंग में जुटे हुए हैं. इस व्यस्तता से वक्त निकालकर उन्होंने पेड न्यूज पर तीन पार्ट में लिखा है, जिसका पहला पार्ट पेश है. शेष दो पार्ट जल्द ही. मुकेश से संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है. बिहार चुनाव में पेड न्यूज के खेल के बारे में अगर आपके पास कोई अनुभव या संस्मरण हो तो हम तक [email protected] के जरिए पहुंचाएं. आप अपना नाम गोपनीय रखने का अनुरोध कर सकते हैं. चाहें तो अपनी बात नीचे कमेंट बाक्स के जरिए कह सकते हैं.

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0 Comments

  1. Aashish Jain,kareli,Narsinghpur MP

    November 30, 2010 at 6:36 am

    सर जी ,
    आपको एक बार फिर से बधाईयाँ ……….!
    व्यस्तता के बीच भी मीडिया की गंदगी से लड़ते रहने की आपकी ये सोच जल्द ही सफल हो यही प्रभु से कामना करते हैं !
    आपका आशीष जैन ,नरसिंहपुर

  2. vivek chandra

    November 30, 2010 at 7:20 am

    pad news k khatama k l;eya sabko ek manch par ana kee jarurat ha

  3. rudra awasthi

    November 30, 2010 at 9:25 am

    बहुत अच्छा, जो गंदगी मीडिया में फैलती जा रही है उसे रोकने की जिम्मेदारी भी मीडिया के लोगों को ही उठानी पड़ेगी। मुकेशजी की पहल इस दिशा मे सराहनीय है । उम्मीद की जानी चाहिए कि इससे पेड न्यूज के खिलाफ माहौल बनेगा।
    रुद्र अवस्थी, बिलासपुर

  4. Harikesh kumar

    December 1, 2010 at 5:13 am

    media ka swaroop itna bigad chuka hai ki jis vajah se patrakarita ki shuruat hui thi uska astitav hi khatm ho gaya hai jagrukta, janandolan,janta ka hit aise kisi bhi uddeshya ka koi matlab rah hi nahi gaya hai, shuruati daur me jab bhi kushasan ke khilaf awaz uthti thi tab shasak varg use kuchal deta tha lekin ab to sansthano ke bhitar hi awaz daba di jati hai bahar se dekhane wale samajhate hain ki patraka behad mukhar hote hain lekin vastvikta ye hai ki patrkarita me bhi bandhua mazduri jasi ghatak bimari ghus chuki hai kyonki sochne ki shakti keval ek me nihit hai aur us vicharshil manav par bhi sirf dhan ugahi ka lakchya rahata hai, aise me muh se aag ugalne vale patrakar apne maliko ke aage dhunaa bhi nahi nikal paate, is liye patrakarita ke sansthano ko keval audyogik gharano ke roop me hi dekhana chahiye baki sabhi samasyaoon ka nivaran swatah hi ho jayega
    sir apne likha bahut shandar hai

  5. vidyakar kumar

    December 2, 2010 at 6:10 pm

    Mukesh ji
    ya to aap vastu sthiti se anjan hain ya fir anjan banane ki koshish kar rahe hain. kaaran saaf hai ki aap bhi media channel ke bade pad par kaam kar rahe hain. kahin na kahin nitish chaleesa me aap bhi shamil honge. Are saahab yahan to tamam media channel aur print media ne sarakar se paise lekar jis tarah pure chunav ke dauran sarkar ka P.R. Kiya ye media me kaam karanewala achchhi tarah janata hai.l aur rahi baat paid news ki to puri media hi biki hui hai aur paid news ka dhandha jaari hai . rahi baat in baton ke jaankari ki to main bhi ek adna sa mediakarmi hun so ye baaten aamlogon ko pata ho na ho media walon ko bakhubi pata hai

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