महिला दिवस के दिन महिलाओं पर केंद्रित एक हिंदी पोर्टल लांच किया गया. नाम है ‘आधी आबादी डॉट कॉम’. इस पोर्टल का उदघाटन दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष बरखा सिंह ने किया. पोर्टल की सीईओ श्वेता देव हैं. इस पोर्टल के जरिए महिलाओं के लिए डाक्टर, वकील, काउंसलर घर में रहते हुए उपलब्ध कराए जाएंगे. साथ ही खान-पान, रहन-सहन, फैशन, करियर, दांपत्य, स्वास्थ्य जैसे विषयों पर पोर्टल पर सामग्री उपलब्ध कराई जाएगी. पोर्टल पर महिलाएं अपनी डायरी, संस्मरण, अनुभव आदि लिख सकती हैं. पोर्टल पर श्वेता देव ने आधी आबादी डॉट कॉम की जरूरत और मकसद के बारे में जो लिखा-बताया है, वह इस प्रकार है-
आधी आबादी डॉट कॉम यानी पूर्णता की शुरुआत
‘द सेकेण्ड सेक्स’ की लेखिका सीमोन द बोउवार लिखती हैं, ‘औरत मानवता का आधा हिस्सा है, लेकिन समूह के बदले औरत अकेली और पुरुषों के बीच बिखरी हुई है।’ आधी आबादी डॉट कॉम एक प्रयास है, अकेली औरत को मजबूत बनाने का, पुरुषों के बीच बिखरी हुई औरत को स्त्रित्व के हर पहलू से एक ही जगह पर रू-ब-रू कराने का। एक ऐसा जरिया जहां महिलाओं को सूचना, अभिव्यक्ति और अपने समूह का निर्माण करने की आजादी है! जहां एक ही मंच पर डॉक्टर से लेकर वकील तक, डिजाइनर से लेकर ब्यूटीशियन तक, सहेली से लेकर मार्गदर्शक तक सब मौजूद हैं। चैट रूम में जाकर किसी से गपशप करें या अलग-अलग सेगमेंट में जाकर सूचनाओं से अपने तरकश भरें, ये सब अब आप के लिए है।
आधी आबादी डॉट कॉम – ‘यह हिन्दी भाषा में दुनिया का पहला ऐसा वेब पोर्टल है जो महिलाओं पर आधारित है और सम्पूर्ण है। अंग्रेजी में महिलाओं को लेकर छिटपुट प्रयास जरूर दिखते हैं, लेकिन वे भी आधे-अधूरे ही हैं। महिला सम्बंधी पत्रिकाओं की वेबसाइट जरूर हैं, लेकिन वे भी एक पत्रिका की तरह ही हैं, पोर्टल नहीं बन पाई हैं। हिन्दी में तो ऐसे प्रयास देखने को ही नहीं मिलते हैं।’
श्वेता देव के अनुसार, ‘आधी आबादी डॉट कॉम पर महिलाओं के लिए हर वह इंफॉर्मेशन है जो उनकी जिन्दगी को प्रभावित करती है। यहां हर तरह का इंटरएक्शन है जो उन्हें समाज से कनेक्ट करता है। घरेलू हो या कामकाजी, युवती हो या विवाहित, यह पोर्टल उनकी अपनी दुनिया है। यहां फिर से सीमोन बोउवार याद आती हैं। उनके अल्फाज हैं, ‘औरत पैदा नहीं होती, बना दी जाती है।’ आइए, समाज द्वारा निर्मित होने का चोला उतारकर अपनी दुनिया का खुद ही निर्माण करें। आधी आबादी डॉट कॉम पोर्टल के रूप में आपकी सखी है। यह हर कदम पर आपके साथ है और रहेगा। इस बात को आप खुद महसूस करेंगी। मेरा यह आपसे वादा है।’
श्वेता देव
(कार्यकारी अधिकारी, आधी आबादी डॉट कॉम)
इस पोर्टल को देखने-परखने के लिए आप क्लिक करें- आधीआबादी डाट काम
shweta deo
March 11, 2010 at 12:54 pm
Mitro, bahut jald aadhiabadi.com par mahila-pusash safalta-asfalta par charcha hogi, lakin abhi women’s bill par har roj new charcha kee jaroorat hai. aadhiabadi har roj aapkoo ispar update kar raha hai….Shweta deo, CEO. aadhiabadi.com
अवधॆश यादव (शिमला)
March 10, 2010 at 10:43 pm
यशवन्त भाई,
डा. मनधाता नॆ मॆरी टिप्पणी [b]’हर कामयाब महिला अकॆली हॊती है'[/b] का इनकाउन्टर किया है, इसकॆ लियॆ अन्तर्राष्टीय महिला दिवस कॆ दिन काग्रॆस नॆत्री अम्बिका सॊनी कॆ बयान [b]’कामयाब महिला के पीछे पुरूष का भी हाथ होता है’ [/b] का इस्तॆमाल[b] ‘साप भी मर जायॆ और लाट्ठ भी न टूटॆ’ [/b] की तर्ज पर किया है, इस ईमानदार कोशिश कॆ लियॆ साधुवाद दॆतॆ हुयॆ डा. मनधाता कॊ बताना चाहूगा कि अम्बिका सॊनी कॆ बयान कॆ भाव कॊ गम्भीरता सॆ समझॆ. पुरुषॊ ‘का हाथ’ हॊनॆ और ‘का भी हाथ’ हॊनॆ कॆ फर्क कॊ समझॆ.
अम्बिका जी उन महिलाऒ कि बात करती है, जिनकी प्रॊफाइल अच्छी है, अच्छॆ परिवॆश मॆ पली है, जुबान पर आतॆ ही उनकी ख्वाइश पूरी हुई है, जबकि मै उन महिलाऒ की बात कर रहा हू जिनकी तादात इनसॆ बहुत ज्यादा है. इनका रिमॊट कन्ट्रॊल मायकॆ मॆ बाप भाई तथा ससुराल मॆ सास ससुर व पति कॆ हाथॊ मॆ हॊता है, ऎसॆ परिवॆश की महिलाऒ मॆ भी आसमान छुनॆ कॆ
ललक और सामर्थ हॊता है, जिसकॆ लियॆ कॊशिश करती है तॊ सबसॆ पहलॆ घर परिवार सॆ बगावत करनी पडती, यदि यह् बात घर की चार दीवारी सॆ बाहर निकल गई तॊ पास पडॊस और समाज कॆ लॊगॊ कॆ लॊग मदद करनॆ की जगह सवाल भरी नजरॊ सॆ दॆखनॆ लगतॆ है. इस तरह सॆ कामयाबी की मन्जिल तक पहुचनॆ कॆ लियॆ उसॆ अकॆलॆ इस्ट्रगल करना पडता है, अथार्त[i][b] ‘हर कामयाब महिला अकॆली हॊती है’…[/b][/i]
[u][b]खास बात [/b][/u]: श्वॆता जी अपनॆ पोर्टल मॆ इस विषय पर बौधिक बहस की शुरुआत करॆ तॊ खुशी हॊगी, मनधाता जी की अभिव्यक्ति का भविष्य मॆ भी स्वागत है.
sandhya roychoudhary
March 10, 2010 at 7:44 pm
shweta ji
aapne portel ki shurat karke ek aur mel ka pather mahilaon ke hit main jad diya
SANDHYA ROYCHOUDHARY
indra raj
March 10, 2010 at 2:53 am
mahilaaon ko unka adhikar milna jaruri hai….lekin yahan yah bhi dekhna jyaada
jaruri hai ki kya mhilaaon me ektaa rah paaegi..q ki desh me aaj jyaada gharo ko mahilaaon ne hi apne swarth ke liye vikher kar rakh diyaa hai…aaise me yah bhi dekhne ko mil raha hai ki jis dawang netaao par vain lag gaya ,wo ab apni wife ko election me utarne ki tayaari shuru kar di hai….aage kya hoga ???????
daulat singh chauhan
March 10, 2010 at 2:07 am
मुकाबला नहीं
महिलाओं को परुषों से मुकाबला कराने के पीछे पता नहीं लोगों की क्या मानसिकता है, जबकि इस असलियत से शायद ही कोई नावाकिफ हो कि ये दोनों एक दूसरे के पूरक हैं और दोनों एक दूसरे के बगैर अधूरे हैं। एक का अस्तित्व दूसरे पर निर्भर है। दोनों के मेल से ही सृष्टि की संरचना है उसकी सुंदरता है। यह सही है कि अगर किसी दौर में महिलाओं को कुचला गया तो निश्चय ही उसका खामियाजा आने वाली पीढियों ने भुगता। लेकिन यह भी उतना ही सच है कि मौजूदा दौर में अगर महिला की तुलना पुरुष से मुकाबले की भावना से की गई तो आने वाली पीढ़ी को इसका भी खामियाजा भुगतना पड़ेगा।
-दौलतसिंह चौहान
sapan yagyawalkya
March 9, 2010 at 10:25 pm
mahila divas par mahilaon ke liye yah kafi sarthak pahal hai,jiske durgami parinam niklenge. bakaul dushyan ji- mere sine main na ho,teresine main sahi. ho kahin bhi aag lekin aag jalna chahiye. Sapan Yagyawalkya Bareli(MP)
Dr. MANDHATA SINGH
March 9, 2010 at 8:58 am
श्वेता जी महिलाओं पर केंद्रित हिंदी में पोर्टल लाने के लिई बधाई। पोर्टल में लिंक में जाकर देखने की जगह अगर कुछ विशेष को हाईलाइट करके रखा जाता तो और पढ़ने में आसानी होती।
एक और बात यह कि मैं अवधेश यादव की टिप्पणी से सहमत नहीं हूं। वे जो यह कहते हैं कि- ‘हर कामयाब महिला अकॆली हॊती है’। यह बिल्कुल ही गलत धारणा है। अभी कल ही कांग्रेस नेता अबिता सोनी ने कहा कि कामयाब महिला के पीछे पुरूष का भी हाथ होता है। यह सच भी है। पता नहीं लोगों ने यादवजी को सही जवाब क्यों नहीं दिया।
अवधॆश यादव (शिमला)
March 9, 2010 at 5:13 am
श्वेता जी,
लॊग कह्तॆ है [b]’हर पुरुष की कामयाबी कॆ पीछॆ किसी न किसी महिला का हाथ हॊता है'[/b] सबूत कॆ तौर पर सैकडॊ उदाहरण भी पॆश कियॆ जातॆ है. लॆकिन कॊई यह नही बतलाता कि महिलाऒ की कामयाबी कॆ पीछॆ किसका हाथ हॊता है?
इस सवाल कॊ मै सैकडॊ लॊगॊ सॆ पूछा, पर किसी नॆ साऱ्थक जवाब नही दिया. इनकॆ इतिहास कॊ झाडपॊछ कर दॆखनॆ कॆ बाद् इस निष्कष तक पहुचा कि [b]’हर कामयाब महिला अकॆली हॊती है’.[/b]
खैर महिलाऒ कॊ नया मन्च दॆनॆ कॆ लियॆ शुभकामनायॆ…
http://www.chauthisatta.blogspot.com
anis
March 19, 2010 at 7:31 am
bhai mahilao ke nam par dukandari band karo pahle apne ghar ki mahila ko azadi do uske bad parinam dekho phir kuch karo
आशुतोष कुमार सिंह
March 24, 2010 at 10:31 am
आधी आबादी को हमेशा से धोखा में रखा गया है. आधी आबादी परेशान है. परेशानी का कारण शायद पुरूष हैं. लेकिन क्या महिलाएं खुद भी अपने को रसातल में ले जाने के लिए जिम्मेदार नहीं हैं? आज आरक्षण देने की बात कही जा रही है. कई स्तरों पर दिया भी गया है. पर अहम सवाल यह उठता हैं कि ये महिलाए किससे आरक्षण मांग रही हैं? वैसे भी मांगी हुई चीज ज्यादा दीर्घजीवि नहीं होती हैं. संसद में इनको आरक्षण मिल भी जाए तो क्या कुछ बन-बिगड़ जाने वाला है. आज जितनी भी महिलाएं संसद में हैं वे कितना आधी आबादी के बारे में सोंचती हैं? पुरूषों से मिली हुई भीख को पाकर क्या महिलाएं खुश रह पायेगीं? हमें लगता हैं कि कभी नहीं. महिलाओं को आरक्षण मांगना नहीं चाहिए, बल्कि इसका विरोध करना चाहिए. क्या इन पुरूषों को जन्म देने वाली माओं के लिए यह शोभा देता हैं कि वे याचक की मुद्रा में नजर आए. और वैसे भी पुरूषों को इतनी औकात कहां हैं कि वे महिलाओं को कुछ दे पाएं. जो खुद महिलाओं के कोख से जन्मा हो, जिसको खुद महिलाओं ने अपने स्तन का खुन पिलाकर बड़ा किया हो. उसको इस योग्य बनाया हो कि वह समाज में कुछ कर सके, उस महिला को भला ये पुरूष क्या शक्ति प्रदान करेंगे? जिनको खुद किसी न किसी महिला से शक्ति प्राप्त हो रही हो भला वो महिलाओं क्या खाक समृद्ध करेंगे.
इस लिए हे देवियों हमारी बात को सुनो, समझो, विचार करों और इन पुरूषवादियों के फांस से निकल कर खुद की शक्ति को पहचानों.