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‘हू न्यूज़’ की टीआरपी कथा

अगड़म-बगड़म : ‘हू न्यूज़’ की टीआरपी इन दिनों उछाल ले रही है। वजह, यहां के संपादक को ये बात समझ में आ गयी है कि यहां उनके सहयोगी इनपुट एडीटर अपने काम के अलावा सारे काम करते हैं। सो, रिपोर्टरों की सीधे मीटिंग लेना, उन पर स्टोरी के लिए दबाव बनाना, नए आइडिया देना और उनके आउटपुट पर नज़र रखना… ये यहां के संपादक खुद करते हैं। सुबह 10 बजे दफ्तर आना और रात के 12 बजे घर जाना, शायद यही हू न्यूज़ की टीआरपी बढ़ने की सही वजह है। एक बार कुछ दिन पहले संपादक जी के दांत में दर्द काफी बढ़ गया था, सो वो कुछ दिनों के लिए दफ्तर नहीं आ पाए। उस हफ्ते टीआरपी पहुंची सीधे धड़ाम। यानी यहां के संपादक के पास अपने काम के अलावा इनपुट एडीटर का काम भी है। तो फिर इन्पुट एडीटर क्या करते हैं? ये महाशय अपने काम के अलावा सारे काम करते हैं। मसलन, शाम को प्रिंटर के पास फैले कागजों को डस्टबिन में डालना, आउटपुट एडीटर के काम करना और स्टोरी का रन आर्डर तय करना, एसाइनमेंट के बचे काम निबटाना, बुलेटिन के लिए शाट-बाइट कटवाना।

<p align="justify"><span style="color: #993300;">अगड़म-बगड़म :</span> 'हू न्यूज़' की टीआरपी इन दिनों उछाल ले रही है। वजह, यहां के संपादक को ये बात समझ में आ गयी है कि यहां उनके सहयोगी इनपुट एडीटर अपने काम के अलावा सारे काम करते हैं। सो, रिपोर्टरों की सीधे मीटिंग लेना, उन पर स्टोरी के लिए दबाव बनाना, नए आइडिया देना और उनके आउटपुट पर नज़र रखना... ये यहां के संपादक खुद करते हैं। सुबह 10 बजे दफ्तर आना और रात के 12 बजे घर जाना, शायद यही हू न्यूज़ की टीआरपी बढ़ने की सही वजह है। एक बार कुछ दिन पहले संपादक जी के दांत में दर्द काफी बढ़ गया था, सो वो कुछ दिनों के लिए दफ्तर नहीं आ पाए। उस हफ्ते टीआरपी पहुंची सीधे धड़ाम। यानी यहां के संपादक के पास अपने काम के अलावा इनपुट एडीटर का काम भी है। तो फिर इन्पुट एडीटर क्या करते हैं? ये महाशय अपने काम के अलावा सारे काम करते हैं। मसलन, शाम को प्रिंटर के पास फैले कागजों को डस्टबिन में डालना, आउटपुट एडीटर के काम करना और स्टोरी का रन आर्डर तय करना, एसाइनमेंट के बचे काम निबटाना, बुलेटिन के लिए शाट-बाइट कटवाना।</p>

अगड़म-बगड़म : ‘हू न्यूज़’ की टीआरपी इन दिनों उछाल ले रही है। वजह, यहां के संपादक को ये बात समझ में आ गयी है कि यहां उनके सहयोगी इनपुट एडीटर अपने काम के अलावा सारे काम करते हैं। सो, रिपोर्टरों की सीधे मीटिंग लेना, उन पर स्टोरी के लिए दबाव बनाना, नए आइडिया देना और उनके आउटपुट पर नज़र रखना… ये यहां के संपादक खुद करते हैं। सुबह 10 बजे दफ्तर आना और रात के 12 बजे घर जाना, शायद यही हू न्यूज़ की टीआरपी बढ़ने की सही वजह है। एक बार कुछ दिन पहले संपादक जी के दांत में दर्द काफी बढ़ गया था, सो वो कुछ दिनों के लिए दफ्तर नहीं आ पाए। उस हफ्ते टीआरपी पहुंची सीधे धड़ाम। यानी यहां के संपादक के पास अपने काम के अलावा इनपुट एडीटर का काम भी है। तो फिर इन्पुट एडीटर क्या करते हैं? ये महाशय अपने काम के अलावा सारे काम करते हैं। मसलन, शाम को प्रिंटर के पास फैले कागजों को डस्टबिन में डालना, आउटपुट एडीटर के काम करना और स्टोरी का रन आर्डर तय करना, एसाइनमेंट के बचे काम निबटाना, बुलेटिन के लिए शाट-बाइट कटवाना।

साथ ही न्यूज़ रूम में जोर-जोर से चिल्लाने का भी काम करते हैं, ताकि सबको लगे कि काम हो रहा है। हर चैनल का इन्पुट एडीटर रोज़ अपने रिपोर्टरों की मीटिंग लेता है। इस मीटिंग में दिन भर के काम के बारे में पूछता है और अगले दिन के लिए रणनीति बनाता है लेकिन इन महाशय के पास इतना वक्त ही नहीं है। करीब 6 महीने पहले इन्होंने रिपोर्टरों को एक बार ज्ञान का पाठ पढ़ाया। उसके बाद रिपोर्टरों को इन महाशय के ज्ञान का प्याला नसीब नहीं हुआ। इसके पीछे एक वजह और है। ये महाशय दफ्तर दोपहर तीन बजे के आसपास आते हैं। रिपोर्टर तो कैमरा लेकर सुबह दस बजे निकल जाता है। शाम 10 बजे तक ये महाशय संपादक के कमरे में बुलेटिन कंटेंट के बारे में अपना ज्ञान बांटते हैं। तब तक तो रिपोर्टर घर चला जाता है। शायद इस बात की दिक्कत यहां के आउटपुट एडीटर को भी होगी कि आखिर ये महाशय इनके काम को क्यों निबटाते हैं। लेकिन वो इसलिए कुछ नहीं बोलते क्योंकि अभी वो यहां नए–नए आउटपुट एडीटर बने हैं। लिहाज़ा किसी विवाद का दामन थामना इनके लिए ठीक नहीं है। इस बीच एक और दिक्कत पैदा हो गई है जिसकी वजह से ‘हू न्यूज़’ की पूरी रिपोर्टिंग टीम परेशान है।

इस परेशानी की एक वजह हैं ‘हू न्यूज़’ में तीन साल पहले आने वाले एक रिपोर्टर के. कुलकुल सिंघा। इनपुट एडीटर हेंहेंहैहै त्रिपाठी की नज़दीकियों की वजह से ये रिपोर्टर आजकल सुर्खियों में है। मामला चाहे आतंकवाद का हो या फिर राजनीति का या कहीं आग लग गयी हो या फिर किसी बाबा के उपर आरोप लगे हों, ‘हू न्यूज़’ की स्क्रीन पर आपको यही शख्स नज़र आएगा। तो बाकी रिपोर्टरों की दुकान तो समझिए बन्द। और जब दुकान बन्द होती है तो परेशानी तो होगी ही, लेकिन महाशय इन्पुट एडीटर के हिंसक व्यवहार के आगे किसी की हिम्मत नहीं है कि वो अपनी बात रखे। सो सारे रिपोर्टर अपना दुखड़ा दफ्तर के बाहर चाय की दुकान पर रोते हैं। कोई कहता है कि हर बास का कोई ना कोई खास रहता है लेकिन बास कभी अपना पक्षपात सामने नहीं लाने देता लेकिन ये साहब तो खुलेआम सब कुछ कर रहे हैं। तो कोई कहता है कि यार नौकरी करो और घर चलो, जो जैसा करेगा वो भरेगा, इतना सुनते ही सामने वाला रिपोर्टर कहता है कि यार तुम किस काम के रिपोर्टर हो जब अपने खिलाफ हो रहे अन्याय को नहीं रोक सकते तो क्या कर सकते हो।

रिपोर्टरों की चर्चा चाय के साथ आगे बढ़ती है, तभी एक रिपोर्टर कहता है कि यार, बाकी चैनल में तो कोई बड़ी घटना होने पर रिपोर्टरों को दफ्तर पहुंचने का आदेश मिलता है। हमारे यहां केवल इसी रिपोर्टर को दफ्तर क्यों बुलाया जाता है, हम लोग क्या बेकार हैं। आखिर हमसे काम क्यों नहीं लिया जाता। उपर से संपादक जी कहते हैं कि तुम लोग क्या कर रहे हो, स्टोरी क्यों नहीं करते। अरे यार संपादक जी इन्पुट एडीटर से क्यों नहीं कहते कि इसी काबिल रिपोर्टर से स्टोरी करवा लीजिए, हमारी ज़रूरत तो इन्पुट एडीटर साहब को है ही नहीं। लेकिन समाज और देश की आवाज़ उठाने वाले रिपोर्टरों की इस बिरादरी में किसी की हिम्मत नहीं जो इन महाशय के खिलाफ आवाज़ उठाए। क्योंकि इनके सिर कइयों की नौकरी खाने का सेहरा बंधा है, भूत-पिशाच  न्यूज चैनल के विद्वान श्रीकुमार ने केवल इसलिए नौकरी छोड़ दी क्योंकि ‘हू न्यूज़’ के इन्पुट एडीटर साहब को उसका चेहरा पसन्द नहीं था, चांद-सितारे न्यूज़ के सूर्य धीमक ने भी ‘हू न्यूज़’ केवल इसलिए छोड़ दिया क्योंकि इनपुट एडीटर की लाइनलेन्थ में ये फिट नहीं बैठते थे और काम इनको दिया नहीं जाता था, शाम को गालियां अलग से खाने को मिलती थीं। दो स्टेट ब्यूरो के रिपोर्टर भी इनके निशाने पर हैं इनमें से एक की तो थैंक्यू हो चुकी है और दूसरे की थैंक्यू के लिये ये रोज़ कोशिश करते हैं।

शायद इतने उदाहरणों के बाद बाकी लोग चुप रहने में ही अपनी भलाई समझते हैं क्योंकि साहब, खुद सही सलामत रहेंगे तभी तो समाज की बात कर पाएंगे वर्ना बेटे की फीस और बीवी की दवा कहां से आएगी। लेकिन इस बीच सबसे अहम सवाल ये खड़ा होता है कि आखिर जिस प्लेटफार्म पर देश के करोड़ों लोगों का भरोसा टिका हो, वहां अंदरूनी राजनीति के इस तरह के उदाहरण कितने सही हैं। ये सब खत्म होना चाहिए। किसी चैनल की टीआरपी में केवल संपादक की मेहनत नहीं, वहां के रिपोर्टरों और बाकी लोगों की मेहनत भी शामिल होनी चाहिए। दर्शक को किसी खास घटना पर उस क्षेत्र के विशेषज्ञ रिपोर्टर की रिपोर्ट देखने का हक होना चाहिए, ना कि एक खास बास के खास रिपोर्टर की रिपोर्ट। चैनल के मालिक अपने चैनल के लोगों को निकाल रहे हों, बास बचे लोगों को काम ना दे रहा हो, रिपोर्टर बेबस हों और संपादक दिन में 18 घंटे काम कर रहा हो, काबिल लोग नौकरी छोड़ रहे हों तो ये किस काम की मीडिया भाई। ये मीडिया किसी के साथ क्या न्याय करेगी जब खुद यहां ये हाल है।

(एक टीवी जर्नलिस्ट द्वारा भेजी गई चिट्ठी पर आधारित. चिट्ठी में उल्लखित सभी पात्रों के असली नामों को बदल दिया गया है क्योंकि इस चिट्ठी के कंटेंट की तहकीकात भड़ास4मीडिया की तरफ से नहीं की गई है. अगर किसी को इस लिखे पर आपत्ति है या कुछ कहना चाहता है तो वह अपनी राय कमेंट के रूप में नीचे लिख सकता है या फिर भड़ास4मीडिया के पास [email protected] के जरिए भेज सकता है.)

लेखक झक्की दारूवाला मीडिया की आफ द रिकार्ड खबरों के ज्ञाता और भड़ास4मीडिया के व्याख्याता हैं। ये अक्सर दारू में टुन्न रहते हैं और खुद से भी सुन्न रहते हैं, लेकिन वे सब बूझते हैं। आप उन तक अपने संस्थान की अकथ कहानी अगड़म-बगड़म कालम में प्रकाशित होने के लिए भेजना चाहते हैं तो [email protected] पर मेल करें और सब्जेक्ट लाइन में ”अगड़म-बगड़म” या ”agdam-bagdam” जरूर लिखें ताकि झक्की भाई साहब को अपनी खबर खोजने में दिक्कत न हो।

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0 Comments

  1. pragyan

    March 11, 2010 at 10:59 am

    एकदम सही लिखा भाई,जब नाम या चैनल का नाम नहीं दिया गया है उसके बावजूद इतनें लोगों के कमेंट आ गए इसका मतलब ये इनपुट एडीटर एकदम वैसा ही है जैसा लिखा है,हमको तो लगता है कि इसनें ही अपनें चमचों से अपनें फेवर में कमेंट लिखवाए हैं।ऐसे लोगों को तुरन्त निकाल देना चाहिए।

  2. pankaj

    March 9, 2010 at 2:38 am

    bhai khabar ekdum sahi hai,kyoki jab channel ka nam ya charecters ke nam nahi diye gae uske bad bhi in mahashay ki harkat se sabh log jan gaye,aur unke chamcho ne unka fever bhi likh diya,iska matlad ye kafi famous hai,aur khabar sahi hai.

  3. Ramesh Chandra

    March 8, 2010 at 10:43 am

    vah vah kya baat hai. akdum andar ki khabar. jisne likha sach likha. lekin ak andar ki kahani aur hai. kahani ye ki भूत-पिशाच न्यूज चैनल के विद्वान श्रीकुमार ne is input editor ko kaise sabak sikhaya tha. 3 saal pahle jab is input editor ne apne ak aur chamche ke sath mil kar विद्वान श्रीकुमार ki team ke ak reporter ka sign off jaan bukhkar kha liya to विद्वान श्रीकुमार ne inhe bhare news room main itni gaali baki ki हेंहेंहैहै त्रिपाठी sari boss giri bhul gaye. विद्वान श्रीकुमार to us din हेंहेंहैहै त्रिपाठी ko chanta bhi maar dete vo to bas संपादक ne bacha liya. विद्वान श्रीकुमार ne हेंहेंहैहै त्रिपाठी ko gali baki aur sirf 7 din baad ak bade channal main may pramotion chale gaye aur aajkal भूत-पिशाच न्यूज चैनल main bade pad par hai. विद्वान श्रीकुमार ki kami aaj tak ‘हू न्यूज़’ ko khal rahi hai. to bhaiyye bhadas.com ki jai ho. kyoki sach to bola. jai bhadas. jai yashwant ji.

  4. ravikant

    March 8, 2010 at 6:57 am

    this is not fair……shd chk the facts and then write..you are a very seasoned journo..there is no problem in the organisation which you mentioned…the person works till 4am pls mention this also

  5. rajeev ranjan

    March 8, 2010 at 2:40 am

    kya baat hai– shandar– main samajh gaya kaha ki kahani hai– jis input editor ki baat ho rahi hai vo sahi main aisa hee hai

  6. newsbaba

    March 7, 2010 at 12:50 pm

    dear, it seems that u(writer) r much frustated. but your life will go only in the same way, as you are using your energy in wrong direction. stop abusing others and start thinking and finding your own weaknesses, b’s if you dont you are going to getF**d the same way.

  7. NEWS KA BAAP

    March 7, 2010 at 4:55 am

    दो रुपए का ये लेख पढ़कर मजा आया क्योंकि सिर्फ चूतियों की बात सुनकर चूतियापा लिखा हैं….

  8. Ajoy Basu

    March 7, 2010 at 12:37 am

    Main jaanna chahata hu Daruwalaji…yeh jis sanstha ki kahani hain unke malik ko kya yeh sab kahani pata nahi…Input editor ko bahar kyun nahi karte…channel o main kajre-gandh bhar gaye hain inhe saaf kiye bina samachar madhyamo ki shuddikaran sambhav nahi…after all its a democracy we cannot play with the sentiments of the mass having editor like this everything will be dilluted…

  9. k

    March 7, 2010 at 12:16 am

    यह पीस पढ़कर लगाया था? या ऐसे ही टुन्न दशा में पोस्ट कर दिया गया।

  10. ranbirsisodia

    March 6, 2010 at 1:42 pm

    Jo bhi man mei aa jae vo likh dete hain aap to ab yashwant ji, aap ko bade chav se isliye padta tha par ab to aap b baakiyon ki tarah kuch b likhte ho…but this really show how important the person would be jinke baare mei aap ne likha hai.

  11. rakesh

    March 6, 2010 at 10:49 am

    yashwant ji,
    ye kahani to har channel ki hai,ek do aise to har channel me mil jayege,apki akhiri line bahut achi lagi jab aisa hal media ka ho to hum is se kya ummeed kare ?

  12. Media khabri

    March 6, 2010 at 6:12 am

    Yashwant ji, ye kya chutiyape ka article hai. lagata hai ab aapke paas bhi koi material nahi raha gaya hai.

  13. न्यूज के बाप का बाप

    March 7, 2010 at 6:07 am

    मिसssटर न्यूज का बाप, नाम काम के साथ सामने आकर टिप्पणी लिखते तो अच्छा रहता. भड़ुवे भी अनाम रहकर जाने किस किस को गरियाते रहते हैं. अगर अनाम होकर लिखना ही था तो कायदे की बात लिखते… अपना ही पक्ष रख देते. जब इस स्टोरी में किसी के पहचान का खुलासा ही नहीं किया गया है तो तुम्हें दिक्कत क्यों हो रही है… जाहिर है, कुछ गड़बड़ है.
    यह पब्लिश होने से तुम्हें जलन हुई है तो जलन क्यों हुई है, यह बताते..
    सिर्फ गरियाने से क्या होने वाला है…???????

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