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इंटरव्यू

मीडिया हाउसों को चैन से न रहने दूंगा

दादाइंटरव्यू : एडवोकेट अजय मुखर्जी ‘दादा’ :  एक ही जगह पर तीन तीन तरह की वेतन व्‍यवस्‍था : अखबारों की तरफ से मुझे धमकियां मिलीं और प्रलोभन भी : मालिक करोड़ों में खेल रहे पर पत्रकारों को उनका हक नहीं देते : पूंजीपतियों के दबाव में कांट्रैक्‍ट सिस्‍टम को बढ़ावा दिया जा रहा है : जागरण ने अपने पत्रकारों का काशी पत्रकार संघ से जबरिया इस्तीफा दिलवा दिया :

दादा

दादाइंटरव्यू : एडवोकेट अजय मुखर्जी ‘दादा’ :  एक ही जगह पर तीन तीन तरह की वेतन व्‍यवस्‍था : अखबारों की तरफ से मुझे धमकियां मिलीं और प्रलोभन भी : मालिक करोड़ों में खेल रहे पर पत्रकारों को उनका हक नहीं देते : पूंजीपतियों के दबाव में कांट्रैक्‍ट सिस्‍टम को बढ़ावा दिया जा रहा है : जागरण ने अपने पत्रकारों का काशी पत्रकार संघ से जबरिया इस्तीफा दिलवा दिया :


लोग उन्‍हें ‘दादा’ कह कर बुलाते हैं, लेकिन वो ‘दादागीरी’ नहीं करते हैं, बावजूद इसके उनके नाम पर बनारस के छोटे से लेकर बड़े अखबारों में अघोषित सेंसर लगा हुआ है. इसी सेंसर के डर से समाज का अखबारजीवी वर्ग दादा से दूरी बना के रहता है, लेकिन ‘दादा’ को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. वो तो पिछले 26 सालों से उन लोगों की लड़ाई लड़ रहे हैं, जिनकी जुबान पर कलम से सरकार बदल देने की ताकत का जुमला हर समय मौजूद रहता है और वो हर गरीब मजलूम तथा सताये गये लोगों के हक की लड़ाई लड़ने का दावा करते हैं, यह दूसरी बात है जब उसे अपने हक की लड़ाई लड़नी होती है तो वो भीगी बिल्‍ली बन जाता है या फिर कागजी शेर.

अगर आप बनारस के अखबार में काम करने वाले किसी भी कर्मचारी से पूछेंगे कि अखबार मालिकों का दुश्‍मन नम्‍बर एक कौन है? तो सबकी जुबान पर एक ही नाम होगा ‘दादा’. जी हां, ‘दादा’ यानी एडवोकेट अजय मुखर्जी. ‘दादा ‘काशी पत्रकार संघ’ सहित कई पत्रकार संगठनों के लीगल एडवाइजर भी हैं. ‘दादा’ अखबार मालिकों द्वारा सताये गये सैकड़ों पत्रकार और गैर पत्रकारों को उनका हक दिलवा चुके हैं और अभी भी सैकड़ों लोगों का हक दिलाने के लिये बड़े बड़े मीडिया हाउसों से संघर्ष कर रहे हैं, कई सफलताएं मिली हैं लेकिन दादा का कहना है कि अभी असली लड़ाई बाकी है. दादा बनारस के कई बड़े मीडिया हाउसों में काम करने वाले पत्रकार और गैर पत्रकारों को तीस प्रतिशत अंतरिम राहत दिलवाने की लड़ाई लड़ रहे हैं. भड़ास4मीडिया के एडिटर यशवंत सिंह ने पिछले दिनों बनारस यात्रा के दौरान दादा से बातचीत की. पेश है इंटरव्यू के अंश-

काशी पत्रकार संघ के अध्यक्ष योगेश गुप्त, वरिष्ठ पत्रकार संडजी और दादा अजय मुखर्जी

काशी पत्रकार संघ के अध्यक्ष योगेश गुप्त, वरिष्ठ पत्रकार संडजी और दादा अजय मुखर्जी

-आप पत्रकारों की लड़ाई क्‍यों लड़ रहे हैं?

–यह मुझे विरासत में मिला है. पिता जी स्‍वतंत्रता संग्राम सेनानी थे. उन्‍होंने प्रेस में काम करने वाले कर्मियों व मजदूरों को संगठित करने के लिये 1950 में ‘प्रेस मजदूर सभा’ और ‘बनारस ट्रेड कर्मचारी यूनियन’ का गठन किया था. वो अखबार में काम करने वाले गैर पत्रकारों तथा मजदूरों के हितों के लिये जीवन भर संघर्ष करते रहे. उनसे प्रभावित होकर मैंने बीएचयू से वकालत की डिग्री हासिल करने के बाद 1980 में ‘समाचार पत्र पत्रकार गैर-पत्रकार कर्मचारी यूनियन’ का गठन किया और इन लोगों के हक के लिये 1984 से मीडिया मालिकों से लड़ाई लड़ रहा हूं. अभी हम कुरुप बेजबोर्ड की अनुशंसा और सरकारी गजट के अनुरूप मूल वेतन का 30 प्रतिशत अंतरिम राहत के लिये लड़ाई लड़ रहे हैं. हाई कोर्ट ने अखबार मालिकों को अंतरिम राहत देने का फरमान सुनाया है. लेकिन मालिक अभी भी पत्रकारों को उनका हक नहीं देना चाहते हैं. दैनिक जागरण ने तो तानाशाही रवैया अपनाते हुए लोकतंत्र की हत्‍या करने जैसा घिनौना कृत्‍य किया है. ‘काशी पत्रकार संघ’ से जुड़े  अपने लगभग पांच दर्जन कर्मचारियों से दैनिक जागरण ने जबरिया एक साथ इस्‍तीफा दिलवा दिया. साथ ही यह बात भी पता चली है कि मैनेजमेंट सभी कर्मचारियों से सादे स्‍टॉम्‍प पेपर पर दस्‍तखत करवा लिया है. अब उस पर मैनेजमेंट जो चाहे सो लिख कर हलफनामा दे सकता है. दैनिक जागरण मैनेजमेंट के इस फैसले से संस्‍थान के कर्मचारी गुस्‍से में तो हैं लेकिन कोई अपनी जुबान खोलने को तैयार नहीं है.

-लोगों की लड़ाई लड़ने वाले पत्रकारों को खुद की लड़ाई लड़ने के लिए आपकी जरूरत क्‍यो पड़ गई.

–मीडिया में जागरुकता की बहुत जरूरत है. पत्रकार अपने हक के प्रति जागरुक नहीं हैं. बेरोजगारी, नौकरी जाने का मानसिक डर और मीडिया संस्‍थानों में पारदर्शिता के अभाव के चलते पत्रकार विरोध करने की हिम्‍मत नहीं जुटा पाते हैं. इसी का पूरा फायदा उठाता है अखबार मैनेजमेंट.

-मीडिया हाउसों में इस तरह की स्थिति क्‍यों?

–इन संस्‍थानों पर इंडस्ट्रियल डिस्‍प्‍यूट ला लागू नहीं है. ज्‍यादातर कर्मचारी कांट्रैक्‍ट बेस पर रखे जाते हैं. ऐसे कर्मचारियों को मालिक जब चाहता है लात मारकर बाहर निकाल देता है. हम ऐसे लोगों की ही लड़ाई लड़ रहे हैं. एक ही जगह पर तीन तीन तरह की वेतन व्‍यवस्‍था है. कुछ कर्मचारी परमानेंट हैं तो कुछ कांट्रैक्‍ट पर. कुछ दिहाड़ी मजदूर. हम इसी व्‍यवस्‍था को बदलने की लड़ाई लड़ रहे हैं. सिस्‍टम बदलने की बात करने वाले अखबारों के भीतर खुद ही सिस्‍टम नहीं है. भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता नहीं है. कर्मचारियों को अप्‍वाइंटमेंट लेटर तक नहीं दिया जाता है. ज्‍यादातर पत्रकार, गैर-पत्रकार मालिक के रहमों करम पर नौकरी करता है. इस स्थिति में वो प्रताड़ित होने के बाद भी अपने मालिक के खिलाफ आवाज उठाने में डरता है. सबसे पुराने अखबार ‘आज’ के संपादकीय विभाग में सिर्फ दो लोग परमानेंट कर्मचारी है, जबकि यहां लगभग 65 लोग काम करते हैं. इनमें से ज्‍यादातर का कांट्रैक्‍ट भी नहीं है. दो-दो हजार रुपये में काम कर रहे हैं पत्रकार.

-पत्रकारों की लड़ाई लड़ने पर आपको किसी प्रकार की धमकी भी मिली?

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–परोक्ष रुप से तो धमकी नहीं मिली लेकिन अप्रत्‍यक्ष रूप से कई बार डराने धमकाने का प्रयास किया जा चुका है. साथ ही अपने को बड़ा अखबार बताने वाले मीडिया हाउसों की तरफ से प्रलोभन भी दिया गया कि पत्रकारों की लड़ाई लड़ना छोड़ दो और हमारे यहां चालीस हजार की नौकरी करो. लेकिन मैं इन सबसे डिगने वाला और लक्ष्‍य से भटकने वाला नहीं हूं.

-आपका लक्ष्‍य क्‍या है?

–हम इन अखबारों में कर्मचारियों के साथ हो रहे शोषण को रोकना चाहते हैं. अभी मेरे पास लगभग चार दर्जन मीडियाकर्मियों के मुकदमे हैं, जिसे मैं लड़ रहा हूं. इस बार तो इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया में हमारा टीवी के खिलाफ भी मुकदमा दाखिल किया गया है. हमार टीवी से एक दर्जन से ज्‍यादा कर्मचारियों को निकाल दिया गया, इन सबकी लड़ाई मैं लड़ रहा हूं. पूंजीपतियों के दबाव में कांट्रैक्‍ट सिस्‍टम को बढ़ावा दिया जा रहा है ताकि यहां काम करने वाले कर्मचारियों का शोषण किया जा सके और वे इन संस्‍थानों के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई ना कर सकें. हम इसी को बदलवाने की कोशिश में लगे हुए हैं. मीडिया संस्‍थानों को इंडस्ट्रियल डिस्‍प्‍यूट ला के दायरे में लाने की कोशिश की जा रही है. ताकि मीडिया संस्‍थान अपने कर्मचारियों के प्रति जवाबदेह बनें.  इसी कोशिश का नतीजा है कि आज और दैनिक जागरण के खिलाफ रिकवरी का आदेश हुआ है.

-पत्रकारों से जुड़े मुकदमों में आपको कितनी सफलता मिली है?

–हमने शत-प्रतिशत मुकदमों में जीत हासिल की है और पत्रकारों को उनका हक दिलाया है. पर लड़ाई जारी है. मीडिया हाउस पत्रकारों का जमकर शोषण कर रहे हैं. वह खुद तो करोड़ों में खेल रहे हैं लेकिन मीडियाकर्मियों को उनका वाजिब हक देने से कतराते हैं. ऐसे मीडिया हाउसों को चैन की सांस नहीं लेने दिया जायेगा.

-आपको इस लड़ाई के लिए ढेर सारी शुभकामनाएं.

–धन्यवाद यशवंत जी. आपको बताना चाहूंगा कि भड़ास4मीडिया पर मीडियाकर्मियों के संघर्ष, मुकदमों की खबरें छपने से पूरे देश में इसके प्रति जागरूकता बढ़ी है. दूर-दूर से मेरे पास फोन आते हैं. इससे पता चलता है कि भड़ास4मीडिया इस वक्त देश के मीडियाकर्मियों का आवाज बन चुका है और हम उम्मीद करते हैं कि समय-समय पर मीडियाकर्मियों के मुकदमों से संबंधित खबरों का प्रमुखता से प्रकाशन करते रहेंगे.

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0 Comments

  1. Siddharth Kalhans

    July 21, 2010 at 7:41 am

    यशवंत भाई योगश जी का पहले ही बहुत काम लग चुका है अब फोटो छाप कर और लगवाने का इरादा है क्या

  2. bhawar

    July 21, 2010 at 10:07 am

    sir best wishes for your target..

  3. som sharma

    July 25, 2010 at 1:05 pm

    very good

  4. abhishek

    July 26, 2010 at 4:11 pm

    dada,ETV ki bhi sudh le lo….mobile number bhi prakaashit kijiye.

  5. hemant patel

    July 27, 2010 at 2:49 pm

    sahi bat hai ham kud nahi laddte apne hak ke liye. mobile number bhi prakaashit kijiye.

  6. hemant patel

    July 27, 2010 at 2:49 pm

    mobile number bhi prakaashit kijiye.

  7. satish sharma

    July 29, 2010 at 3:09 pm

    sachai to yeh hai ke jo apney yahan pardarseta nahi rakhtey wo desh mein pardarshita kya layengey. median ko bas ek bussiness bana diya hia shamful.

  8. ajoy mukherjee

    August 1, 2010 at 5:16 pm

    adhik jankari k liya mera mobile no.9838438210…..

  9. virendra kumar pandey

    August 2, 2010 at 6:18 am

    Dada Apne Stya ki jang Chhedi Hai , Apki safalta me ham jaishe patrkaro ki sflta Akhbar ke adhikans malik Mafia aur enke sampadak aur Mnager Srabi , Add ke liye kuchh bhi karne ko tyar hai, uper se Paisa dene me enki nani marti. patrkaro ko andolan ki path pdhate hai .

  10. lalit

    August 8, 2010 at 9:13 am

    sir apki is jang ko meri subhkamnaye……….

  11. anil Yadav

    August 9, 2010 at 4:35 pm

    Raja saheb aur meri taraf se subhkamnayen aur har-har Mahadev

  12. sonu

    August 10, 2010 at 7:34 am

    Ajay DADA

    AAPKI LAMBI UMAR HO>>AAP MEDIA KE SOSAKO KI U HI GHANTI BJATE RHO

  13. arvind singh

    August 11, 2010 at 2:09 pm

    yashwant sir this is your very impective job. this will creat awarness and also a spirit in journalist to fight for their right. actually sir in this age no one wants to quite his job thats why all media persons are suffering but no is opening mouth. thats why news papper owners are exploiting them.sir very nice thing you are doing for journalist. and i salute mr. dada fro his job. may god give him power and strenth to fight for our rights. sir i am also a exploited media person. who is running any how his lilelihood in very little payment.

  14. sumit sharma

    August 14, 2010 at 5:23 pm

    Jai ho dada aapki. Aap bahut acha kam kar rahe hai. Me aapse milna chahta hu

  15. sharvan saini muzaffar nagar

    August 17, 2010 at 4:32 am

    dada aap mhan ho aap jesa koi or kya nhi aakhir channel chote kasbo mai kam karne wale patrkaro ko unki story bhezene ke pese knyo nhi dete

  16. om

    August 17, 2010 at 7:56 am

    fraternity that raises the voice of masses but sees itself unable to exercise the very right of freedom of speech and expression. this is what our media world workers feel every now and then. fortunately we have you, filling that vacuum who has made himself a platform to address the genuin grievances. i must say this mission will transform the media houses psychy as well as its role for society at large.if we journalists want expoitation free society we need to clean miliu which is very next and around us…

    om

  17. om

    August 17, 2010 at 8:07 am

    fraternity that raises the voice of masses often sees itself unable to enjoy the freedom of speech and expression for themself. especially in terms of its own matter. your mission is exactly doing something to fill that vacuum that has become a platform where media worker can stand and address their genuin grievances. the day will come when media houses will be bound to transform their work culture by protecting rights of their spine. this will help us to transform our society as well.

  18. vijay thakur

    August 17, 2010 at 1:20 pm

    sir …apke is prayaas aur jang ki badaulat nishit taur par patrkaron me jagarukata ayegi aue ye midwa hause apke aur patrkar bhaiyon ke kadam ke niche ayenge … dher sari shubhkamnaye ……

  19. ram narayan

    August 19, 2010 at 4:27 pm

    manyaver app ki janj media ki un burai say hai jo ajger ki taraha muha bai huay hai, meri dili icha hai ki app apni jang jeet hasil kary. jissay hamaray patrakar banduvo ko apnay hak ki jang ladnay ki prayrana milay aur vo apna sosan na honay dey. bagwan app ko jeet delay. may app kay sath hu.

  20. B.K.TIWARI

    August 31, 2010 at 5:25 am

    दादा जी आपको कोटि-कोटि नमन…कोई तो है जो कि मीडिया कर्मियों के दर्द को समझने वाला है और जिसने आवाज उठाने का काम किया है बहुत ही सराहनीय कदम है इस जज्बे को मैं सलाम करता हूँ। मैं भी आपके साथ हूँ जब जरुरत हो आवाज दे दिजीऐगा ये आपका शिष्य आपके साथ है।

  21. yashveer singh

    September 15, 2010 at 5:34 am

    dada ke is jajbe ko salaam, aaj ke daur me aap jaise log bhi hai ye aam patrkaaron ke liye raahat kee baat hogee.

  22. thakur satish

    September 18, 2010 at 6:07 am

    sirji aap jo kar rahe hai wah vilkul thik kar rahe hai…sabhi ke liye ladane wala patrkar khud ke liye he nahi lad pata hai………satish thakur Reporter ahmedabd.

  23. शिशुराज यादव

    September 19, 2010 at 1:46 pm

    पत्रकारिता की अंदरूनी दुनियां ऐसी होती है, कम से कम ये बात पत्रकारों के माता-पिता को मालूम नहीं है. नहीं तो नई पौध को इस क्षेत्र में आने ही नही देता. वैसे मीडिया घरानों के इस दंश से शायद ही कोई भी पत्रकार बचा होगा. इस अंतरद्वंद को अपनी झूठी शान के लिए पत्रकार लड़ते रहते हैं. लड़ना अच्छी बात है लेकिन सवाल ये उठता है कि पत्रकारों के लिए लड़ना ही एक मात्र रास्ता है ज़िंदगी जीने के लिए, ऑफिस में मैनेजमैंट से और ऑफिस के बाहर समाज के लिए.

    बहरहाल हम सलाम करते हैं ‘दादा’ को. जरूरत हो तो दिल्ली में हमें भी मौका दिया जाए इस लाड़ाई को आगे बढ़ाने के लिए.

    शिशुराज यादव, दिल्ली

  24. kishore sharma

    September 20, 2010 at 9:20 am

    sahid bhagat singh jaisa jajba liye sangharsh ki ladai ladne wali mahan insaniyat ko mere prnaam iss ladai mein agar mein aapke kisi kaam aa saku to mera bhi jivan safal ho jayega. kishore sharma patarkar Punjab Kesri, Pehowa Distt. Kurukshetra. Haryana

  25. manoj dubey

    September 28, 2010 at 4:51 am

    apko milkar tarif karne ka maan hai aap jo ladai lad rahe ho god apko safalta de hamari shubh kamna aapke sath hai

  26. Anuj Shukla

    October 17, 2010 at 4:07 am

    I have only 3 words 4 u-ALL D BEST.

  27. ajay mukherjee......dada

    November 10, 2010 at 2:56 pm

    aap log ka sarhaniya comment k liye aap sabko dhanyabad aap sangharsh kariye aap sab k sath mei hamesha hu aur rahunga aur aap ke ladai ko aant tak radhkar hak dilane ki pure kosis karunga . aap hi humare yoddha hai aap sath de har ladai wa anaye k khilaf shoshan mukt samaj dilane ki asha dilata hu.mujhe samay ka abhao k karan samay me jawab dene k liye asamath hu is liye mujhe sama kare.

  28. पूर्ण सत्य

    November 11, 2010 at 4:00 pm

    पत्रकारिता के बारे में एक कवि का कहना है-
    ये लुच्चे, लफंगे, नमक हरामों की दुनियां
    ये मक्कारों, फरेबी, जालसाजों की दुनियां
    ये करियर के दुश्मन, दलालों की दुनियां
    ये दुनियां अगर मिल भी जाए तो क्या है
    यहां इक खिलौना है पत्रकारों की हस्ती
    ये बस्ती है, दलालों- ब्लैकमेलरों की बस्ती
    यहां नौकरी है बेरोजगारी से सस्ती
    ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है
    दलाल ही यहां पर बनते हैं सीईओ
    ठीकेदार पत्रकारों पर होते हैं हीरो
    हरामियों की दुनियां में कहां फंस गए तुम
    ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है.
    आने से पहले सब दिखती चकाचक
    आकर यहां पर सब दिखती हकीकत
    सच के नाम पर करते हैं फरेब सब
    ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है.
    ये कुत्ते कमीनों हरामियों की दुनियां
    बनाकर के रखी है बदनामियों की दुनियां
    जी चाहता है जला दूं ये दुनियां

  29. GOPAL PRASAD

    December 8, 2011 at 9:31 pm

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