टीवी एडिटर्स टीआरपी के कारण टीवी पत्रकारिता में आई गंदगी के खिलाफ मुखर हो रहे हैं। आज आशुतोष ने टीआरपी के खिलाफ जो कुछ कहा है, उसका हर तरफ स्वागत किया जा रहा है। कुछ इसी अंदाज में अजीत अंजुम भी टीआरपी के खिलाफ कंपेन चला रहे हैं। पिछले कुछ महीनों से वे टीआरपी के खिलाफ जगह-जगह बोल रहे हैं। फेसबुक पर अजीत अंजुम टीआरपी के विरोध में अपनी राय व्यक्त करने के साथ-साथ लोगों से भी कमेंट आमंत्रित करते रहते हैं। पिछले दिनों आईबीएन7 पर संदीप चौधरी के मुद्दा नामक कार्यक्रम में, जिसका विषय था- खबर या तमाशा, अजीत अंजुम ने टीआरपी को टीवी न्यूज चैनलों के लिए और हिंदी पत्रकारिता के लिए अभिशाप करार दिया था। न्यूज 24 के मैनेजिंग एडिटर अजीत अंजुम से भड़ास4मीडिया ने इस बारे में बात की।
उनका कहना था कि दस हजार घर सवा अरब आबादी वाले इस देश की तकदीर नहीं तय कर सकते। अजीत अंजुम का कहना है कि जो टीआरपी जारी होती है वह दस हजार घरों में लगाए गए टीआरपी मीटरों से निकलती है। कायदे से जिस तरह अखबार का प्रसार साल में दो बार आता है, उसी तरह न्यूज चैनलों की भी टीआरपी साल में एक या दो बार आनी चाहिए। हर हफ्ते जो टीआरपी का दबाव होता है, उससे प्रोड्यूसर और एडिटर बेहतर टीआरपी के लिहाज से कार्यक्रम प्लान करने लगते हैं। यह गलत तो है लेकिन वीकली टीआरपी के कारण इस गलती से उबर पाना मुश्किल हो रहा है। इस प्रवृत्ति से निकलना पड़ेगा। इससे निकलने का एक ही रास्ता है कि टीआरपी के वीकली चलन को समाप्त किया और कराया जाए। टीआरपी के मैकेनिज्म को बदलने के लिए सरकार और बाजार के प्रतिनिधियों को आगे आना चाहिए।
shankar
January 21, 2010 at 8:26 am
महोदय क्या कहना इस देश का जहा पत्रकारों से काम तो कराया जाता है मगर पैसे के नाम पर उन्हें शिर्फ़ सांत्वना ही दिया जाता है नाकि और कुछ जी हा आप को अस्चर्या लग रहा होगा मगर यह कड़वा सच है मै कोलकाता से एकन्यूज़ चैनल के लीये काम करता हु और लगभग हर खबर जो टेलीकास्ट हुआ करता है उसे मैंने जी जान लगा कर करता हु पर पैसा हमें नहीं बल्कि उस सकस को मिलता है जो शिर्फ़ हात पर हात धरे बैठा रहता है वह रे पत्रकारिता इस पत्रकारिता ने तो हमें वो दिन भी दिखा दिया जिसका मैंने अनुभव भी नहीं किया था….