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साहित्य

पत्रकारिता बनी वेश्या, पत्रकार बने दलाल

[caption id="attachment_15625" align="alignleft"]अखिलेश अखिल अपनी नई किताब के साथअखिलेश अखिल अपनी नई किताब के साथ[/caption]वेश्याएं खूब बिकती हैं। आम औरतों को कोई पूछता नहीं। भूख, गरीबी, तंगी से आम महिलाएं रोती रहती हैं, लेकिन वेश्याओं का बाजार गर्म रहता है। पत्रकार भूखे मरते हैं, लेकिन पत्रकारिता के दलाल कभी भूखे नहीं मरते। उनकी खूब चलती है। यह बात अलग है कि जब विद्रूप होती पत्रकारिता की स्थिति पर बहस होती है तब ये दलाल पत्रकार भी हाय तौबा मचाते हैं, रोते हैं। भाषण देते हैं और पत्रकारिता के नाम पर बिजनेस करने वाले लोगों को गरियाते हैं। शायद आपको यकीन न हो, लेकिन सच्चाई यही है कि पत्रकारिता वेश्या बन गई है और पत्रकार बन गए हैं दलाल। वेश्या बनी पत्रकारिता खूब बिक रही है।

अखिलेश अखिल अपनी नई किताब के साथ

अखिलेश अखिल अपनी नई किताब के साथवेश्याएं खूब बिकती हैं। आम औरतों को कोई पूछता नहीं। भूख, गरीबी, तंगी से आम महिलाएं रोती रहती हैं, लेकिन वेश्याओं का बाजार गर्म रहता है। पत्रकार भूखे मरते हैं, लेकिन पत्रकारिता के दलाल कभी भूखे नहीं मरते। उनकी खूब चलती है। यह बात अलग है कि जब विद्रूप होती पत्रकारिता की स्थिति पर बहस होती है तब ये दलाल पत्रकार भी हाय तौबा मचाते हैं, रोते हैं। भाषण देते हैं और पत्रकारिता के नाम पर बिजनेस करने वाले लोगों को गरियाते हैं। शायद आपको यकीन न हो, लेकिन सच्चाई यही है कि पत्रकारिता वेश्या बन गई है और पत्रकार बन गए हैं दलाल। वेश्या बनी पत्रकारिता खूब बिक रही है।

लोगों के बीच इसकी काफी मांग है। ऐसी पत्रकारिता के दलालों की भी खूब चल रही है। पाठकों के बीच इन दलालों की इज्जत है। समाज में इनकी प्रतिष्ठा है, रौब है। इनके पास पैसे, दौलत हैं, गाड़ियां हैं और कई अन्य ऐसी चीजें हैं जो दूसरों के पास नहीं हैं। पिछले दस वर्षों से पत्रकारिता के नाम पर दलाली अधिक बढ़ गई है। पत्रकारिता वेश्या बनी नहीं, बनाई गई। दलालों को पत्रकारिता से कमाई जब कम हो गई तब उन्होंने पत्रकारिता को वेश्या बना दिया। यकीन न हो तो दिल्ली के कुछ इलाके में घूम आइए। सर्वे कर लीजिए। लक्ष्मीनगर, शकरपुर, पांडव नगर, विकास मार्ग तथा नोएडा में बेचारी पत्रकारिता सिसक रही है। रो रही है। लक्ष्मीनगर में लगभग 27 पत्र-पत्रिकाएं निकल रही है। इनमें से आधी पत्र-पत्रिकाएं तो साप्ताहिक से लेकर पाक्षिक हैं जबकि आधी पत्रिकाएं प्रकाशित होने की बाट जोह रही हैं। पिछले तीन वर्षों से इन पत्रिकाओं के दफ्तर तो खुल गए हैं, लेकिन पत्र-पत्रिका दफ्तर खोलकर बैठने वाले लोग अपनी गाड़ी में प्रेस लिखवा चुके हैं। परिचय पत्र बनवा चुके हैं तथा विजटिंग कार्ड एक-दूसरे को देते फिर रहे हैं। यह क्रम पिछले तीन वर्षों से चल रहा है। ऐसा क्यों हो रहा है? जवाब आता है वे पत्रकारिता को बेच रहे हैं। ऐसे लोगों को पत्र निकालना नहीं है, प्रेस के नाम पर फायदा उठाना है। लक्ष्मीनगर में चार ऐसे प्रेस के दफ्तर हैं जहां बाहर तो मोटे अक्षरों में किसी साप्ताहिक तथा पाक्षिक का बोर्ड लगा है, लेकिन भीतर प्रोपर्टी डीलिंग का काम चलता है। तीन ऐसे साप्ताहिक पत्रों के दफ्तर हैं जिनके भीतर मोटर गैराज चल रहा है। गैराज चलाने वाले पत्रकार अपनी गाड़ी पर प्रेस लिखवाकर पिछले तीन वर्षों से घूम रहे हैं। पांडव नगर में छह ऐसे प्रेस के दफ्तर हैं जहां से साप्ताहिक पत्रिका निकालने से संबंधित बोर्ड टंगे हैं। तीन दफ्तरों के बाहर बोर्ड पर प्रेस लिखे गए हैं और भीतर एस्टुओ चल रहे हैं। राशन की दुकान चल रही हैं।

नोएडा, गाजियाबाद से प्रतिदिन दर्जनों अखबार निकलते हैं। पत्रिकाएं निकलती हैं। इन अखबारों व पत्रिकाओं में पत्रकार काम नहीं करते। मालिक स्वयं संपादक से लेकर चपरासी तक का काम देख लेते हैं। दक्षिण दिल्ली से करीब 70 से अधिक पत्रिकाएं निकल रही हैं। पश्चिम दिल्ली से 113 ऐसी पत्रिकाएं हैं जो साप्ताहिक से लेकर मासिक के रूप में निकलती हैं। इन पत्र-पत्रिकाओं के दफ्तर में बाहर से प्रेस का बोर्ड लगा है जबकि भीतर से गोरखधंधा होता है। पत्रकारिता बिक रही है। धन कमा रही है। कथित पत्रकार मालामाल हो रहे हैं। दलाली करके वे समाज में रौब गांठ रहे हैं। दिल्ली से बाहर निकलें तो देश के अन्य हिस्सों में भी पत्रकारिता वेश्या बन गई है। पत्रकारिता के जरिये कहीं पैसे की कमाई है तो कहीं प्रतिष्ठा की कहीं दोनों की कमाई साथ-साथ हो जाती है। कलकत्ता चले जाइए। आप आश्चर्य में पड़ जाएंगे कि सिर्फ कलकत्ता से प्रतिदिन तीन हजार से अधिक पत्रिकाएं निकलती हैं। सैकड़ों की तादात में साप्ताहिक पत्रिकाएं निकलती हैं। कलकत्ता में 20 ऐसी पत्रिकाएं वहां से निकलती हैं, जहां वेश्यावृत्ति होती है। भीतर वेश्यावृत्ति और बाहर पत्रिका का बोर्ड। मुंबई, मद्रास, केरल, हैदराबाद, बैंगलौर, लखनऊ, कानपुर, पटना तथा रांची से सबसे अधिक पत्र-पत्रिकाएं निकल रही हैं। पत्रिकाएं निकलें या न निकलें, बिकें या न बिकें कथित पत्रकार मालामाल हो रहे हैं या फिर समाज में दलाली, रौब व भ्रष्टाचार के जरिये लाभ कमा रहे हैं। बिहार में एक शहर है मुजफ्फरपुर। वहां से 83 दैनिक पत्र निकलते हैं। 64 साप्ताहिक पत्र व 76 पाक्षिक पत्रिकाएं निकलती हैं। 300 से अधिक मासिक व त्रैमासिक पत्रिकाएं वहां से निकलती हैं। मुजफ्फरपुर से निकलने वाली इन पत्र-पत्रिकाओं का दफ्तर कहीं घर में है तो कहीं खटाल में। किताब की दुकान में तीन साप्ताहिक पत्रिकाएं चल रही हैं। चतुर्भुज स्थान (वेश्यावृत्ति का केंद्र) से 16 पत्रिकाएं निकलती हैं। तीन पत्रिकाएं वहां से निकलती हैं जहां वेश्याएं नृत्य सीखती हैं। चार दैनिक अखबारों का दफ्तर राशन की दुकान में है।

दिल्ली के लक्ष्मीनगर, शकरपुर, पांडव नगर, विवेक विहार, पटपड़गंज, शाहदरा, दरियागंज, पहाड़गंज, हौजखास, साकेत, जनकपुरी, पटेलनगर, करोलबाग, उत्तम नगर से सैकड़ों पत्रिकारिता के दलाल पत्रकारिता के नाम पर सेक्स बेच रहे हैं। लड़कियों की गंदी तस्वीर, गंदे शब्द व गंदे हेडिंग बेच रहे हैं। लक्ष्मीनगर में एक ही जगह चार ऐसी पत्रिकाओं के दफ्तर हैं जहां सेक्स बिकता है। गरमागरम खबरें, तस्वीरें बिक रहीं हैं दफ्तर के अंदर दो-चार आदमी दनादन सेक्स की खबरें, तस्वीरें उतारने में व्यस्त रहते हैं और बाहर प्रेस का आवरण लगा हुआ है। प्रेस के नाम पर सेक्स का धंधा जोरों पर है। पिछले दिनों लक्ष्मीनगर, स्कूल, ब्लाक, करोल बाग, हौजखास से सीबीआई ने कुछ ऐसे ही दलाल पत्रकारों, पब्लिशरों तथा संपादकों की गिरफ्तारी की। लेकिन सबके सब छूट गए।

दलाली की पत्रकारिता वहां भी सीबीआई पर हावी हो गई। सेक्स के जादू ने सीबीआई को पछाड़ दिया। हौजखास के एक गरमा-गरम पत्रिका निकालने वाले सज्जन ने पिछले दिनों दो पत्रकारों को दफ्तर से निकाल दिया। कारण? कारण था कि ये दोनों पत्रकार सेक्स खबरें लिखने में पिछड़ गए। संपादक का जवाब था कि हमें पत्रकारित नहीं करनी है। हमें केवल उसका सहारा चाहिए। हमें पैसा कमाना है और आज पैसा सेक्स बेच कर कमाया जा सकता है। दोनों दरिद्र पत्रकार निकाल दिए गए। लक्ष्मीनगर से सेक्स पत्रिका निकालने वाले एक घराना पिछले दिनों दो पत्रकारों से सेक्स की खबरें लिखवाता रहा। पत्रकारों ने जब पैसे की मांग की तो उन्हें पीट दिया गया। मालूम हो कि सेक्स पत्रिका निकालने वाले ये दलाल प्रोपर्टी डीलर भी हैं। वर्ष 1990 में कलकत्ता से प्रकाशित एक पत्रिका के संपादक ने दो पत्रकारों की पीटाई कर दी थी। उसकी वजह थी कि दोनों पत्रकारों ने पत्रकारिता की आड़ में सेक्स बेचने का विरोध किया था। पिटाई खाए दोनों पत्रकारों में से एक इन दिनों दिल्ली में संघर्ष कर रहे हैं। मुंबई में भी प्रेस के नाम पर दलाली खूब फल-फूल रही है। प्रेस के नाम पर सेक्स बिक रहा है। प्रेस चलाने वाले समाज व सरकार पर दबाव बनाकर लाभ कमा रहे हैं। जलगांव से प्रकाशित एक पत्रिका ने पिछले दिनों यह दावा किया था कि पैसा कमाने का सबसे सस्ता और सुंदर तरीका सेक्स है। संपादकीय में यह लिखा गया था।

एक सवाल! सेक्स पत्रिकाएं पढ़ता कौन है? आश्चर्यजनक उत्तर यह है कि सबसे ज्यादा सेक्स पत्रिकाएं स्कूल-कॉलेज के छात्र-छात्राएं पढ़ रहे हैं। अनपढ़, कम पढ़े-लिखे व अर्द्ध-शहरी, अर्द्ध-ग्रामीण पद्धति के लोग पढ़ रहे हैं। शाहदरा, उत्तम नगर, पटपड़गंज, पहाड़गंज, साउथ एक्सटेंशन, मोतीनगर के बुक स्टालों पर जाकर देख लीजिए। आप दंग रह जाएंगे। शाहदरा में सिनेमा हाल के सामने आठ बुक स्टाल हैं। सड़क पर स्टाल लगती हैं। स्कूल, कॉलेज से निकलने वाले तमाम छात्र-छात्राएं उन स्टालों से सेक्स से संबंधित किताबें, पत्रिकाएं खरीदती हैं अपने कपड़ों में छुपाती हैं या थैले में डालती हैं। साउथ एक्सटेंशन में तीन ऐसी दुकानें हैं जहां सिर्फ सेक्स से संबंधित पत्रिकाएं ही बिकती हैं। वहां की भीड़ देखकर आप आश्चर्य में फंस जाएंगे। पत्रकारिता के नाम पर दलाली करने वाले लोगों को दंडित किया जाना चाहिए। पत्रकारिता जैसे पवित्र सामाजिक पेशे की आड़ मे असामाजिक कार्य को कभी भी सराहा नहीं जाना चाहिए। सरकार के साथ ही प्रबुद्ध लोगों, सक्रिय पत्रकारों को भी इसके विरुद्ध आवाज उठानी चाहिए। पत्रकारिता के नाम पर दलाली करने वाले लोगों को चिन्हित कर उन्हें दंडित किया जाना चाहिए। चंद लाभ के चक्कर में फंसने वाले पत्रकारों को भी ऐसे दलालों से सचेत रहना चाहिए। पत्रकारिता भले ही बदलते युग के साथ एक प्रोफेशन हो गई है, लेकिन यह एक मिशन भी है। प्रोफेशन मिशन के साथ। पत्रकारिता, पत्रकार और प्रेस की आजादी अक्षुण्ण रहे उसके साथ ही यह जरूरी है कि पत्रकारिता व पत्रकार अपने कर्तव्य के प्रति भी सचेत रहें। पत्रकारिता को वेश्या बनाने वाले लोगों का समाज से बहिष्कार किया जाना चाहिए।


यह आलेख वरिष्ठ पत्रकार अखिलेश अखिल की नई प्रकाशित किताब ‘मीडिया : वेश्या या दलाल’ से लिया गया है। 472 पेजों की यह किताब 850 रुपये की है। इसका प्रकाशन श्रीनटराज प्रकाशन दिल्ली की तरफ से किया गया है। बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के निवासी अखिलेश अखिल कई अखबारों-पत्रिकाओं व चैनलों में काम कर चुके हैं। अखिलेश अखिल अपने बारे में कहते हैं- ‘मैं बासी खबरों का विरोधी और मिशनरी पत्रकारिता का पक्षधर हूं। पत्रकारिता जैसे पवित्र पेशे को रंडी बनाकर दलाल की भूमिका में आए पत्रकारों से सख्त परहेज है। संघर्ष ही जीवन है, एक यही आधार है।’ अखिलेश अखिल से संपर्क 09350811336 के जरिए किया जा सकता है।

4 Comments

4 Comments

  1. vikash kumar

    February 2, 2010 at 6:32 am

    sir , sabse pahle aapko namaskar. aapke dvara likhe gaye lekh ko padha tho laga ki ab bhi koi aap jaise hai jo media ke sach ko kahane ki himath rakhte hai. main nahi janta hun ki aisa koi ho raha hai par jo ho raha hai usse logo ki pahachan in dalalon ki ho gai hai…..main bahut khush hun ki aap sir jo kuch in kithabon ke davara kahana chahte hai…….main aapka samarthan karta hun.aapse milne ki ikchcha hai………

  2. Anshul

    December 1, 2010 at 12:08 pm

    aapko kya problem hai aaj ki date wahi sidha hai jisko mauka ni mila apko kya pareshani ho rhi hai bhai saheb

  3. jay

    February 26, 2011 at 5:57 am

    agar patrake kar ase karage to fir janta kis ka vishwa karage
    Akshali ke shabode se ma samahate Ho.

  4. Shahnawaz Hasssn

    July 26, 2019 at 3:44 pm

    अखिलेश जी आप सेक्स पत्रिका प्रकाशित करने वालों को और इसमें कार्य करने वालों को पत्रकार कैसे कह सकते हैं ? कई मासिक पत्रिका विभिन्न विषयों पर प्रकाशित होती हैं उन्हें हम पत्रकारिता से जोड़ कर नहीं देख सकते।आप ने जो मुद्दा उठाया है वह बहुत ही गंभीर है क्योंकि इस तरह की सेक्स पत्रिका प्रकाशित करने वाले व्यापारी प्रेस अपने दफ़्तर और वाहन में लिख रहे हैं, इनके विरुद्ध कार्यवाई होनी चाहिये।इनके विरुद्ध कार्यवाई के लिये मैं सूचना प्रसारण एंव गृह मंत्रालय को पत्र लिखूंगा। शाहनवाज़ हसन, राष्ट्रीय संयोजक, जर्नलिस्ट फॉर यूनिटी, नई दिल्ली

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