: करोड़ों रुपये फूकेंगे पर लाभ चवन्नी का ना मिलेगा : यकीन न हो तो मीडिया के इस इतिहास को पढ़िए : टीवी चैनलों की दुनिया में इतनी भीड़ हो गई है कि उसका हिसाब नहीं। जिसके पास जिस धंधे से दस बारह करोड़ रुपए बचते हैं, टीवी चैनल खोल देता है। एक साहब ने तो बाकायदा उड़ीसा में चिट फंड घोटाला कर के मुंबई का एक चलता हुआ टीवी चैनल हथियाने की कोशिश की मगर सफल नहीं हुए।
आम तौर पर छोटे से बड़े व्यापारियों का मानना होता है कि उनके पास एक टीवी चैनल होगा तो बाकी धंधों में काफी मदद मिलेगी मगर चार पांच चैनल न कोई फायदे में हैं और न अपने मालिकों की उनके धंधों में मदद कर पा रहा है। कई ऐसे भी है जिन्होने मीडिया में प्रयोग करने की कोशिश की है और उन्हें इस बात से मतलब नहीं कि उनका धंधा इससे पनपेगा या नहीं। मगर ज्यादातर टीवी चैनल या अखबार तो अपने व्यापार का मंच बनाना चाहते हैं।
मगर यह एक भ्रम है। कई रईस और सुपर दलालों ने मीडिया में आ कर सिर्फ अपना और अपनी पंजी का कबाड़ा कर रहे हैं। जेके समूह के विजयपत सिंहानिया ने 1980 के दशक में मुंबई से इंडियन पोस्ट निकाला था मगर इसका कोई फायदा तो जेके समूह को नहीं हुआ बल्कि उस समय बहुत ताकतवर रहे सतीश शर्मा के खिलाफ एक लेख छप गया तो उन्होंने सिंहानियां को मजबूर किया वे संपादक को नौकरी से निकाल दे। आखिरकार आठ साल चल कर यह अखबार बंद हो गया।
स्वर्गीय एलएम थापर ने पाइनियर खरीदा और उसमें जम कर निवेश किया। इसका दिल्ली संस्करण चेहरे मोहरे के अलावा खबरों के नएपन के लिए भी जाना जाता था। थापर समूह को पाइनियर से ढेले का फायदा नहीं हुआ और अखबार में लगातार घाटा होता रहा। थापर ने अखबार के संपादक चंदन मित्रा को अखबार बेच दिया और तब तक घोर वामपंथी से विकट स्वयं सेवक हो गए चंदन मित्रा को लाल कृष्ण आडवाणी की कृपा से एनडीए सरकार के दौरान आईसीआईसीआई बैंक की चंदा कोचर ने खुले हाथ जितना पैसा मांगा, उतना दिया गया। चंदन मित्रा ने बैंक को गिरवी दी हुई प्रिटिंग प्रेस भी बेच खाई और अब उत्तराखंड में एक बहुत बड़ा रिसॉर्ट बनाया है। अखबार जरूर पहले से बेहतर चल रहा है और चंदन मित्रा राज्यसभा के दूसरे सदस्य बन गए हैं।
स्वर्गीय धीरूभाई अंबानी ने दिल्ली के जयको प्रकाशन समूह के अशीन शाह से बिजनेस एंड पालिटिकल ऑब्जर्वर खरीदा और दैनिक अखबार चला दिया। जयको सिर्फ संडे ऑब्जर्वर निकालता था और काफी सफल था। मगर अंबानी दैनिक अखबार नहीं चला पाए और आखिर साप्ताहिक पर लौट गए। अब सुना है कि उनके बेटे अनिल और मुकेश टीवी चैनलों की श्रृखला शुरू करने जा रहे हैं। उन्हें मेरी शुभकामनाएं।
कई सफल उद्योगपति सोचते हैं कि टीवी चैनल के मालिक बन जाएंगे तो मंत्रियों और सरकारी अफसरों तक पहुंचना आसान हो जाएगा। बीच के दलालो को पैसा नहीं देना पड़ेगा। मगर लगभग सभी की यह कामना धरी रह गई और पैसा बर्बाद हो गया और हो रहा है। सहारा समूह के पास अपार पैसा है और सुब्रत राय ने सहारा टीवी शुरू करने के साथ ही इसकी प्रोग्रामिंग पर खर्च होने वाले पैसे का कभी हिसाब नहीं मांगा। कायदे से सहारा को आज सबसे बड़ा टीवी चैनल होना चाहिए मगर सच यह है कि सहारा अनेकों में से एक टीवी चैनल बन कर रह गया है और इसके संपादकों को लाखों रुपए महीने का वेतन देने के बावजूद इसका असर बहुत ज्यादा नहीं है। इसीलिए सहारा ने क्षेत्रीय चैनल शुरू की।
एनडीए सरकार आई तो सहारा समूह पर जैसे गाज गिर पड़ी और टीवी चैनल या सहारा के अखबार कोई मदद नहीं कर पाए। रुपर्ड मर्डोक का स्टार न्यूज चैनल और मनोरंजन चैनल बहुत धूम धड़ाके से चला। स्टार से जुड़े रहे वीर सांघवी बताते हैं कि मंत्रियों और अधिकारियों पर स्टार की सफलता का कोई असर नहीं पड़ा। इसके एक चीफ एग्जीक्यूटिव को तो कानूनी झमेला झेलना पड़ा और जेल जाने की नौबत आ गई। अपलिंकिंग के लाइसेंस तब तक नहीं मिले जब तक कि स्टार ने आनंद बाजार पत्रिका के अवीक सरकार से समझौता कर के नई कंपनी नहीं बना ली। स्टार न्यूज बहुत समय तक तो एनडीटीवी ही चलाता रहा।
अभी जो टीवी चैनल बाजार में हैं उनमें से कई या ज्यादातर बिल्डरों और रातों रात रईस हो जाने वाले लोगो के हैं। इनमें से कोई भी दावा नहीं कर सकता कि वह सरकार तक सीधे अपनी पहुंच रखता है। इंडियन एक्सप्रेस की राजनीति और सरकार में अच्छी खासी धाक है मगर डीडीए ने एक छोटे से बहाने पर एक्सप्रेस की बिल्डिंग सील कर दी थी। देश के सबसे बड़े मीडिया समूहों में से एक बेनेट कोलमैन जो टाइम्स ऑफ इंडिया और कई अखबारों के साथ अब टाइम्स नाउ टीवी चैनल का भी मालिक है, अपने चेयरमैन अशोक जैन को अदालतों में हाजिरी लगाने और जेल जाने से नहीं बचा पाया।
अशोक जैन पर मुकदमा चलाने वालों में से एक अधिकारी तो बाद में खुद ही भ्रष्टाचार के आरोप में पकड़ा गया। लेकिन अशोक जैन जब तक जिंदा रहे तब तक प्रवर्तन निदेशालय उनकी जान लेने पर तुला रहा और टाइम्स ऑफ इंडिया जैसा विराट समूह भी कुछ नहीं कर सका।
यहां हम उन चैनलों की बात नहीं कर रहे है जो आजाद भी हैं और एस वन भी हैं। वाइस ऑफ इंडिया की भी हम बात नहीं कर रहे जहां बहुत संदिग्ध रूप से एक व्यक्ति आ कर मालिक बन बैठा है और वहां के ज्यादातर कर्मचारी वेतन को ले कर हमेशा विलाप की मुद्रा में रहते हैं। मालिक के पास कोई जवाब नहीं होता। ऐसे और बहुत सारे चैनल है और बहुत सारे अखबार है और इंटरनेट के आ जाने के बाद बहुत सारी वेबसाइटस हैं जो कर्मचारियों को और पत्रकारों को वसूली के धंधे पर मजबूर करती हैं। बाकी सब तो छोड़िए, भारत में सबसे पहले स्थापित होने वाला उपग्रह टीवी चैनल जैन टीवी चोरी की जमीन पर चल रहा है और उसने अपने संवाददाताओं को बाकायदा वसूली करने पर लगा दिया है।
लेखक आलोक तोमर जाने-माने पत्रकार हैं.
ajay
June 25, 2010 at 6:53 am
ekdam thik..apke vichar bahut mulyavan hai, per kis kam ke …? jisko jo karna hai wo karta rahega…
kamta prasad
June 25, 2010 at 7:47 am
सूचनाओं के चलते-फिरते एनसाइक्लोपीडिया आलोक तोमर जी ने जो इतनी सारी जानकारियां दी हैं उनका निहिताशय क्या निकलता है, यहीं न कि समग्रता में पूंजीपतियों के हितों की रखवाली करने वाला राज्य एक एक पूंजीपति के प्रति जवाबदेह नहीं है। राज्य नामक संस्था न हो तो ये बनिये एक दूसरे को खा जाएं।
मुझे तो लगता है कि हमारे देश में रूलिंग एलीट नौकरशाही ही है। न्यायपालिका की ताकत और उसके असर और गरीब जनता के प्रति उसकी असंवेदनशीलता का तो कहना ही क्या।
rabindra kumar
June 25, 2010 at 8:45 am
तोमर जी लगता है आपने मीडिया के खिलाफ मुहिम छेड़ रखी है। चलिए इस बार कम से कम आपने प्रिंट मीडिया की सच्चाई सामने लाई है। लेकिन यहां भी एक बात समझ नहीं आती है कि आखिर आप क्या चाहते हैं। तोमर इस हमाम में सब नंगे हैं। चाहे हम हो या आप
अनूप
June 25, 2010 at 12:40 pm
वाह आलोक जी वाह, आप सच्चाई लिखने कोई कोताही न रखे ..चाहे कोई कुछ भी हताशा वादी टिप्पणी करे आप इसी तरह पत्रकार का दायित्व निभाते रहिये .
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।
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a n shibli
June 25, 2010 at 3:36 pm
aalok jee is behtareen article ke liye aapko bahut bahut badhai
sanjay bhati EDTOR SUPREME NEWS
June 26, 2010 at 9:17 am
thank u sir ab lagta hai ki kuch ho kar rahega.
Shaishwa Kumar
June 26, 2010 at 1:24 pm
Sudarshan TV ka bhi aisa hi kuch haal hai. Alok bhai ispar kuch nigah daliye.
अमित गर्ग. राजस्थान पत्रिका. बेंगलूरु
June 26, 2010 at 4:06 pm
आलोक जी, नमस्कार।
इस आलेख के जरिए कड़वे तथा खरे लेखन के लिए कोटि-कोटि शुभकामनाएं। बहुत सारे समाचार-पत्रों तथा चैनलों के फर्श से अर्श तक जाने की सच्चाई को चंद लाइनों में कमाल की खूबसूरती से उकेरा है आपने। जो लोग मीडिया में काम करते हुए अपने आपको भगवान अथवा उसके समकक्ष मान बैठे हैं, यह आलेख पढ़कर उनकी आंखें तो चौंधियाए बिना नहीं रह सकेंगी। भाई-भतीजावाद तथा जबर्दस्ती आंधी के साथ तिनकों की तरह बहकर मीडिया में आए तथाकथित पत्रकार, पत्रकारिता करेंगे तो ये सब तो होना ही है। बहरहाल, लिखते रहिए, अभी मीडिया की सच्चाई पर बहुत कुछ लिखना बाकी है।
amar anand
June 26, 2010 at 6:58 pm
khari-khari aur solah aane sach
amar anand
misha_9898
June 27, 2010 at 3:47 pm
cneb bhi to dalalo ka shikar ho gaya hai us par bhi kuch prakash daliye…malik ko khule aam loota ja raha hai…
हम बोलेगा तो....
June 28, 2010 at 5:51 am
आलोक जी,
बेबाक लेखन के लिए इस बार शुभकामनाएं नहीं दूंगा क्योंकि आप भी पुण्य प्रसून वाले रास्ते पर चल रहे हैं शायद….परनिंदा में लगे हैं…बेबाक कलम लिखने वाले साथियों से माफी चाहूंगा क्योंकि कई लोगों ने आलोक जी के लिए चारण गीत गा दिए हैं….मैं भी आलोक जी का बड़ा फैन हूं…उन जैसी भाषा शक्ति मैंने कम लोगों के पास देखी है….लेकिन आलोक जी सच हमेशा पूरा होना चाहिए….खुद आप उसी बुराई के साथ खड़े हैं जिसे दूर करने की आप बात कर रहे हैं….
ज़रा बताए जिस संस्थान में आप खुद हैं क्या वो भी एक छोटे मोटे उद्योगपति ने केवल खुद को मीडिया मालिक बनाए रखे रहने के लिए नहीं चला रखा है…ज़बर्दस्त घाटे में चल रहा आपका चैनल भी तो कुछ क्षेत्रीय राजनैतिक दलों की लाबीइंग करता है….सेठ जी का ही चैनल है न….नहीं है क्या….काला धन सफेद किया जा रहा है और आप लोगों की तन्ख्वाह भी उसी से आ रही है….वहां भी आज़ाद की ही तरह आधे कर्मचारियों को वेतन नकद मिलता है….एचआर की कर्मचारियों के कल्याण के लिए कोई नीति नहीं है….अरे रे…एक बार बीच में एक बड़ा छापा भी तो पड़ा था….सुना है आप लोगों ने ही उस मामले को एक केंद्रीय मंत्री की मदद से निपटवाया था….
सो सूप तो सूप…बोले छलनी….
खैर जाने दें आप बड़े पत्रकार हैं…आदर्श लिख सकते हैं…क्योंकि आदर्शों से वास्ता रखने वाले तो हमेशा छोटे पत्रकार ही रह जाते हैं…बड़े बन कहां पाते हैं….
वैसे बढ़िया है आपका चैनल जिस जिस राज्य के मुख्यमंत्री का साक्षात्कार करता है…वहां एक एनजीओ को काम मिलने का रास्ता भी बनता जाता है….
और बोलूं क्या….सुनना चाहें तो बताइएगा ज़रूर…पर सभ्य भाषा में….हमेशा की तरह अभद्र..असंसदीय…और अमर्यादित भाषा में भड़क के उत्तर मत दीजिएगा….हालांकि इसकी उम्मीद आपसे कम ही है….कई बार सच संयम को चुका देता है….
एक बार फिर…. आलोक तोमर का मैं पुराना प्रशंसक हूं…पर पुराने आलोक तोमर का….और हां ये भी सच है कि आपके वर्तमान संस्थान ने हिंदी चैनलों की भेड़चाल से अलग कई सार्थक प्रयोग भी किए हैं….मानक हिंदी को इस्तेमाल में लाया है….पर लग रहा धन तो सेठ जी का काला वाला ही है न….
ajnabi
June 30, 2010 at 1:55 pm
sirji voice of india k malikon par bhi thoda parkash daliye…. en malikon se badi sankhya main patrakar pidit hue hain….
dhrub, patna, 3 july10
July 3, 2010 at 6:43 am
alok tomar ji isi trah logo ka gyan vardhan karte rahiya aur desh ki janta ko batate rahiya ki aakhir media kaya bala hai