: राय साहब ने इस न्यास में मुझे शामिल होने लायक नहीं समझा : लेकिन इस न्यास में कई बेइमान लोग रख दिए : अंबरीश के बाद नैनीताल में मैं भी घर बनवाने जा रहा हूं : प्रभाषजी जैसे फक्कड़ बैरागी को इन भाई लोगों ने उत्सवमूर्ति बना दिया : पता नहीं हमारे मित्र संजय तिवारी को अचानक क्या हो गया है? प्रभाष परंपरा न्यास का जिस दिन गठन हुआ था उस दिन प्रभाष जी के घर एक अच्छी खासी बैठक हुई थी और तय हुआ था कि नामवर सिंह के संरक्षण में यह न्यास काम करेगा। जिन्हें नहीं पता हो उन्हें बताना जरूरी है कि प्रभाष परंपरा न्यास यह नाम मेरा दिया हुआ है और इस न्यास में आंकड़ों की हेराफेरी करने वाले चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं, लेखकों की रायल्टी हजम करने वाले एक प्रसिद्ध प्रकाशक हैं जिन्होंने खुद प्रभाष जी से लाखों रुपए कमाएं हैं, एक पत्रिका के मालिक हैं जो राज्यसभा में जाने के लिए आतुर बताए जाते हैं।
पता नहीं क्यों न्यास के प्रबंध न्यासी और हमारे बड़े भाई के समान राम बहादुर राय ने मुझे से इस न्यास में शामिल होने लायक नहीं समझा? हो सकता है कि मैं उनके न्यास चलाने के तौर तरीकों में फिट नहीं होता हूं और वैसे भी अपने पास वक्त जरा कम रहता है। अपने गुरु प्रभाष जी के लिए वक्त निकाल लेता क्योंकि वह गुरु दक्षिणा थी, मगर राय साहब ने तो वह मौका ही नहीं दिया।
अंबरीश कुमार को गालियां देने से अगर प्रभाष जी की आत्मा को तृप्ति मिलती है तो संजय तिवारी उन्हें चाहे जितना कोसते रहे। सत्ता प्रतिष्ठान के खिलाफ अंबरीश संजय से ज्यादा खड़े रहे हैं और इनमें जनसत्ता सोसायटी का सत्ता प्रतिष्ठान भी शामिल हैं। मामला अदालत में हैं और दूध का दूध और पानी का पानी जल्दी हो जाएगा। जहां तक मेरी निजी राय की बात है तो प्रभाष परंपरा न्यास ने प्रभाष जी के जन्मदिन पर एक दावत और एक भाषण करवाने के अलावा एक प्रकाशक की कमाई का इंतजाम और किया है और यह सब वे कर्म नहीं थे जो प्रभाष जी करना चाहते थे। प्रभाष जी के नाम पर उस पेड न्यूज के धंधे पर एक सेमिनार ही करवा लेते जिसके लिए वे आखिरी पल तक लड़ रहे थे मगर प्रभाष जी जैसे फक्कड़ बैरागी को भी इन भाई लोगों ने उत्सवमूर्ति बना कर रख दिया है। आओ, खाओ पियो, गाना सुनो और जाओ।
अंबरीश कुमार के नैनीताल में किसी महल का जिक्र संजय तिवारी ने किया है। एक तो यह महल नहीं हैं। छोटे छोटे दो कमरे हैं जिन्हे अंबरीश के पिता ने खरीदा था। दूसरे उसी नैनीताल के रामगढ़ में मेरी भी जमीन हैं और मैं भी घर बनाने वाला हूं। जिसे जो बिगाड़ना है, बिगाड़ लें। रही बात प्रभाष जी की परंपरा को निभाए रखने की तो जरूरी है कि एक न्यास में जितना विश्वास होना चाहिए वैसा न्यास बने। अगर प्रभाष परंपरा न्यास यह नहीं कर सका तो हम दूसरा न्यास बनाएंगे। प्रभाष जी के परिवार को जोड़ लेने से न्यास के उद्देश्य पवित्र नहीं हो जाते। उद्देश्यों की पवित्रता ज्यादा जरूरी है। जिन लोगों को लग रहा है कि बंदे को तो कैंसर है और वह कभी भी टपक जाएगा तो उनकी जानकारी के लिए अभी मैं बड़े, बूढ़ों का श्राद्ध कर के जाने वाला हूं।
लेखक आलोक तोमर जाने-माने पत्रकार हैं.
Haresh Kumar
July 20, 2010 at 7:40 am
आप अभी कम से कम 40-50 साल तक तो जीओगे ही। आजकल कैंसर का पता अगर प्राथमिक अवस्था में लग जाये तो बुखार से ज्यादा इसका वैल्यू नहीं रह गया है। हां अगर अंतिम अवस्था में हो तो कोई दिक्कत होती है। आपके विचारों का मैं सदा से समर्थन करता हूं और आगे भी करता रहूंगा। आप जो साफ-साफ लिखते हो उसको लिखने का माद्दा आजकल कितने लोगों में है। अंगुली पर गिने जा सकते हैं, दो-चार नाम। और यह सब संभव हुआ है परमादरणीय प्रभाष जी जैसे महान विभूति के संसर्ग में रहने से। चंदन के संसर्ग में रहने से सुंगंध तो आ ही जाती है। राजकमल प्रकाशन जैसे लोग न जाने कितने साहित्यकारों का पैसा दबाये हुए है। ऐसे आयोजन से किसी का भला हो ना हो। कुछ लोगों को प्रकाश में आने का मौका मिल जाता है और इसी के बहाने से दो-चार दिन चर्चा में बने रहते हैं। आज कल कांग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह भी खाली हैं और ऐसे आयोजनों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराकर कुछ न कुछ शिगूफा छोड़ जाते हैं। चर्चा में बने रहने के लिए जरूरी है। प्रभाष जी जैसी सम्मानित हस्तियों को अगर सचमुच में याद करना है तो उस संघर्ष को जारी रखना होगा, जिसके लिए मरते दम तक उन्होंने आवाज बुलंद की। हम सभी आपके साथ हैं। पेड न्यूज़ के दोषी लोग आजकल बड़े-बड़े आयोजन करके पेड न्यूज़ के खिलाफ बोलते हैं और अपने को पाक-साफ दिखाने की कोशिश करते हैं। प्रभाष जी ने जो ज्योति पत्रकारिता में जलाई है वह कभी बुझ नहीं पायेगी। बहुत सारे युवा लोग उनके कार्यों को आगे बढ़ाने में अपने-अपने स्तर पर योगदान कर रहे हैं। जरूरत है ऐसे लोगों को एक मंच पर लाने की न कि राजनीति करने की। आप आगे बढ़ो और उन युवाओं को नेतृत्व प्रदान करो।
जय हिन्द।
gonu jha
July 20, 2010 at 8:54 am
Oopar waley kee lathee mein awaaz nheen hotee >
kamta prasad
July 20, 2010 at 9:10 am
लिए अभी मैं बड़े, बूढ़ों का श्राद्ध कर के जाने वाला हूं।
Aameen!!!
Rajeev
July 20, 2010 at 12:11 pm
अफसोस !!
आलोक तोमर, कैंसर से पीड़ित हैं…सुनते ही राय साहब (श्री राम बहादुर राय) आलोक तोमर की मिजाज पुर्सी के लिए निकल पड़े थे। फर्जी ढंग से चेक भुनाने में फंसे तो राय साहब ही ढाल बन कर सामने आए…एक दो नहीं कई मौकों पर राय साहब ने आलोक तोमर को प्रत्यक्ष और परोक्ष समर्थन और संरक्षण दिया… आज ये जनाब ही राय सहाब पर उंगली उठा रहे हैं…प्रभाष के जन्मदिन के कार्यक्रम को कोस रहे हैं…स्वर्गवासी श्रद्धेय प्रभाष जी को उत्सवमूर्ति बना देने का आरोप लगा रहे हैं…आलोक तोमर की भाषा से अंबरीश के भाव फूट रहे हैं…राय साहब से कोई शिकवा था तो व्यक्तिगत मिल कर दर्ज या जा सकता था… एक तरफ कहते हैं “प्रभाष परंपरा” मेरा दिया हुआ नाम है, दूसरी ओर लांछन लगाते हैं कि इस न्यास में बे-इमान लालची लोगों को रख लिया गया… आलोक तोमर आप जिस न्यास और प्रभाष जन्मोत्सव को तरह-तरह से लांछित अवमानित और अपमानित कर रहे हैं उस न्यास और जन्मोत्सव को प्रभाष जी के परिवारियों का तन-मन-धन से सहयोग और समर्थन मिला हुआ है…आलोक तोमर आप की याद्दाश्त कुछ कमजोर है… प्रभाष जी उत्सव विरोधी नहीं थे। सशरीर रहते हुए प्रभाष जी ने अपना जन्मदिन गांधी प्रतिष्ठान में स-उत्सव मनाया था. इसी भड़ास पर फोटो भी प्रकाशित हैं…उस आयोजन को भी राय साहब ने करवाया था, और उस आयोजन में आपके साथ कथित आंकड़ों की हेराफेरी करने वाले चार्टर्ड एकाउंटेंट, लेखकों की रायल्टी हजम करने वाले एक प्रसिद्ध प्रकाशक और उसी एक पत्रिका के मालिक भी शामिल थे जो आपके मुताबिक जो राज्यसभा में जाने के लिए आतुर हैं…साल भर पहले ही की तो बात है श्री आलोक तोमर…उस समय सब ठीक था तो आज अचानक क्या हो गया… क्या न्यास में आपका नाम शामिल नहीं किया गया, इसलिए भड़ास निकाल रहे हैं… आप तो कथित शिष्य हैं, गुरू दक्षिणा भी देना चाहते हैं….गरिया कर ही शिष्य धर्म निभाएंगे…।
आलोक तोमर, प्रभाष जी को समर्पित किसी भी व्यक्ति पर अब सोच समझ कर उंगली उठाना। प्रभाष जी ने जो स्नेह आपको दिया था, उसी स्नेह से वो भी बंधे हैं जिन्हें आप गरिया रहे हैं।
ईश्वर आपको शारीरिक स्वास्थ्य-मानसिक स्वास्थ्य और सदबुद्धि दे।
ravishankar vedoriya 9685229651
July 20, 2010 at 1:02 pm
sir aap mujhe achhe lagne lage ho
ravishankar vedoriya 9685229651
July 20, 2010 at 1:03 pm
aapki har likhi baat mai ek takat hoti hai jo mujhe andar se majboot banati hai likhte rahiye hame apki jarurat hai
ravi
July 20, 2010 at 2:04 pm
Alok ji ko cacer wali khabar jab media me faili to kuch logo ne pata karna chaha ki cacer kis stage me hai..jab unhe pata chala ki yah to first stage me hi hai to wo nirash hue..aise logo ko ham bata dena chahte hain ki alok ji surakshit hain or wo asurakshit jo chahte the ki alok bas gine chune din hi rahen is dharti par..jo koi or badi khabar sunna chah rahe the unme S1 or AZAD NEWS ke kathi bade patrakar shamil hain.in or in jaise do kaodi ke chainal, jo patrakarita ke naam par dhabba hain, ko batana jaruri hai ki alok ji akele nahi..nai nasla ki utsahi or jujharu pidhi unke sath hai.aise chainalo k cancer se patrakarita ko bachane ke liye jaruri hai ki alok ji cancer mukt hon…or pura vishwas hai ki aisa hi hoga..
JASBIR CHAWLA
July 20, 2010 at 3:06 pm
Iss Nayas me Indore ke ek kathit Bhoo Mafia ka bhee naam hai.Bhagwan Prbhashji ki aatma ko shanti de.
Siddharth Kalhans
July 21, 2010 at 2:56 pm
Siddharth Kalhans said:
भाई ये राजीव नाम का आदमी काम की चीज है। पत्रकार भाईयों जान लोष पुंसत्व चेक करने की मशीन रखता है ये। वैसे इसके आका लोगों के बारे में जब पता चला तो सही लगा। उन लोगों के साथ रहने पर ऐसी मशीन ही नही और भी बहुत कुछ रखना पड़ता है। वामपंथ और दक्षणिपंथ को एक करने वाले है राय साहब इनकी नजर में। भाई बड़े भारी आदमी हैं। बेटा तुम संघी भाई लोगों के साथ रहते हो तुम्हें उपर देखने का शायद ही मौका मिला हो। तुम्हारा काम तो नीचे वाला ही है न। कहां इन बड़ों के चक्कर में पड़े हो। शायद सोच रहे कि आलोक तोमर को गरिया कर जरा बड़ों में नाम शुमार करा लूं। तो मेरे भाई कहां चांद और कहां चूतड़।
sripati
July 21, 2010 at 4:29 pm
ये राजीव शर्मा कौन है… मुझे नहीं पता… लेकिन आलोक तोमर को मैं जानता हूं… वो लिखते हैं और बेधड़क-बेखौफ लिखते हैं… लेकिन मैंने अक्सर पाया है कि आलोक तोमर के लिखे पर मुंह खोलने की शायद उन्हें खुजली है… सुनने में आया है कि दफन होते जा रहे देश के एक नामी चैनल को कंधा दे रहे हैं… जैसा लिखते हैं… उससे उनका व्यकतित्व खास झलकता है… लगता है पुराना नश्तर चुभ रहा है… इसीलिए शायद खाना खाना भूल जाए मगर आलोक तोमर पर प्रतिक्रिया देना नहीं भूलते हैं… उनकी बीमारी पर भी अपनी कलम से उन्होंने जो लिखा काबिलेतारीफ कलमतोड़ संवंदना दी है… और फिर दे रहे हैं… हालांकि उन्हें जानने की मेरी कोई इच्छा भी नहीं लेकिन इक्का दुक्का बार आलोक तोमर के लिए उनके पेट का दर्द पढ़ लेता हूं… प्रतिक्रिया वो इस पर भी देंगे ज़रूर ऐसा पूरा भरोसा है… कलमतोड़ पत्रकार जो ठहरे… लेकिन उनको एक मश्विरा भी देना चाहता… अपने काम से काम करो… दुनिया में बहुत कुछ पड़ा है करने को…
VIJAYVINIT
July 22, 2010 at 9:51 am
एक कहावत हमारे गावों में लोग कहते हैं की अगर मा का दूध पिया है तो सामने आ ,किसी को बिल में और ऐसी बिल में घुस कर गरियाने से क्या फायदा जहाँ से गाली देने वाला दिखाई ही न दे ,हम बात कर रहें हैं उस शख्स की जो आलोक तोमर को छदम नाम से अनाप शनाप बक रहा है ,मनो चिकित्सको का कहना है की जो आदमी शारीरिक रूप से(नपुंशक ) कमजोर होता है वह सार्वजानिक रूप से अपने उन अंगों का प्रदर्शन करता हैं जो गोपनीय होने चाहिए ,आलोक जी को गाली देने वाला शख्श भी कही उसी मनो विकार से ग्रसित तो नहीं ,आखिर उसे कैसे पता तोमर जी नपुंसक हैं ,राम बहादुर राय अम्बरीश और तोमर के मध्य वैचारिक मतभेद हो सकते है लेकिन इसका मतलब यह नहीं की हम विरोध में मर्यादा भूल जाएँ ,प्रभाष जी के नाम पर तो कम से कमइस तरह की भाषा ठीक नहीं ,यह नहीं भुलाना चाहिए की जो ऊपर मुहं उठाकर थूकेगा वह उसी के मुहं पर गिरेगा , आलोक अम्बरीश आखिर सच बोल के कौन सा अपराध कर दिए ,लेकिन शायद जनसत्ता के लोगों का सच बोलना ही अपराध होता है तभी तो रामनाथ गोयनका से लेकर आज तक उस समूह के लोग सबकी आखों की किरकिरी बने हुए हैं , एक बात भाई यशवंत जी से कहना चाहुगा की जो भी कमेन्ट छापें उसमे कमेन्ट भजने वाले का सही पता तो कर लिया करें
,भड़ास बहुत लोग देखते हैं
विजय विनीत
सोनभद्र यु पी
९४१५६७७५१३ ,९५९८३२१०४१
Roma
July 22, 2010 at 11:09 am
सूरज पे लगे धब्बा फितरत के करीशमें हैं,
बुत हम को कहे काफिर ये अल्लाह की मर्जी है
अम्बरीश जी और आलोक जी इन लोगों से सिर्फ ये कहिये कि:
वो पूछ बैठे है मेरी हद क्या है,
बेखुदी तू ही बता क्या किजे
पूछते हैं कि गालिब कौन है?
कोई बताये हम बताये क्या!!!!
Roma
July 22, 2010 at 11:09 am
सूरज पे लगे धब्बा फितरत के करीशमें हैं,
बुत हम को कहे काफिर ये अल्लाह की मर्जी है
अम्बरीश जी और आलोक जी इन लोगों से सिर्फ ये कहिये कि:
वो पूछ बैठे है मेरी हद क्या है,
बेखुदी तू ही बता क्या किजे
पूछते हैं कि गालिब कौन है?
कोई बताये हम बताये क्या!!!!
Atul Chaurasia
July 23, 2010 at 7:59 am
ऐसा लगता है आलोकजी अंबरीशजी के प्रवक्ता के रूप में बचाव के लिए सामने आ गए हैं. और इस बचाव की प्रक्रिया में वे संजय तिवारी के कुछ सही सवालों को भी हलका करने और दबाने की कोशिश कर रहे हैं. पर सच्चाई ज्यादा दिन छिरती नहीं है. अंबरीशजी के सोनभद्र से नैनीताल तक फैले जनादेश के जाल के बारे में बहुतों को पता है और जिन्हें नहीं पता है वे भी जल्द ही जान जाएंगे…