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मैं फच्चर अड़ाने वालों में से नहीं हूं

आलोक तोमर: किस्से कहानियां छोड़ो, काम करो : उम्मीद है कि मेरे गुरु के काम में झापड़ की नौबत नहीं आएगी, मगर आएगी तो देखा जाएगा : प्रभाष जोशी के नाम पर बहस इतनी लंबी और इतने आयामों में फैल जाएगी इसकी उम्मीद किसी को नहीं रही होगी। ऐसे ऐसे लोग बोले जिन्हें न प्रभाष जोशी से कोई मतलब था और न प्रभाष परंपरा का अर्थ ठीक से उन्हें समझ में आता है।

आलोक तोमर

आलोक तोमर: किस्से कहानियां छोड़ो, काम करो : उम्मीद है कि मेरे गुरु के काम में झापड़ की नौबत नहीं आएगी, मगर आएगी तो देखा जाएगा : प्रभाष जोशी के नाम पर बहस इतनी लंबी और इतने आयामों में फैल जाएगी इसकी उम्मीद किसी को नहीं रही होगी। ऐसे ऐसे लोग बोले जिन्हें न प्रभाष जोशी से कोई मतलब था और न प्रभाष परंपरा का अर्थ ठीक से उन्हें समझ में आता है।

मगर मैं अपनी बात करूंगा। एक अदृश्य किंतु अंतरंग मित्र ने याद दिलाया है कि जब मुझे कैंसर होने की खबर मिली तो सबसे पहले प्रभाष परंपरा न्यास के प्रबंधक न्यासी रामबहादुर राय मुझे देखने पहुंचे थे। यह राय साहब का बड़प्पन भी था और बड़े भाई के नाते कर्तव्य भी। मगर उनका जो भी चेला एहसान की मुद्रा में इस खबर को फैला रहा है वह न राय साहब का भला कर रहा है और न मेरा।

अब प्रभाष परंपरा न्यास के प्रति मेरे निजी विराग के बारे में कुछ बाते। जहां प्रभाष जी का नाम होगा, उनके नाम पर कुछ काम होगा, वहां मैं फच्चर अड़ाने वालों में से नहीं हूं। मगर यह पूछने का मुझे पूरा अधिकार है कि मेरे गुरु के नाम पर जो न्यास बना है और जिसका अध्यक्ष मेरी सीधी सादी गुरुमाता को बना दिया गया है उसमें बहुत सारे अपात्र क्यों हैं? अब बताया जा रहा है कि राजनाथ सिंह गाजियाबाद से सांसद के नाते न्यास में हैं।

इसका मतलब यह है कि पत्रकारिता का विश्व बदल देने वाले प्रभाष जी की स्मृति में गाजियाबाद का एक लोकल न्यास बनाया गया है। फिर मुरली मनोहर जोशी इसमें क्या कर रहे हैं? क्या वे भी गाजियाबाद से अगला चुनाव लड़ने वाले हैं? अशोक माहेश्वरी जैसा लेखकों की रॉयल्टी हजम कर जाने वाला प्रकाशक इस न्यास में क्यों मौजूद हैं? अगर अशोक माहेश्वरी ने प्रभाष जी की किताबें छापी हैं तो एहसान नहीं किया है। उनसे मोटा पैसा भी कमाया है और हिसाब मेरे पास मौजूद है।

ए एन ओझा प्रथम प्रवक्ता के मालिक हैं और उन्हें मैं अब भी अपना मित्र मानता हूं। प्रथम प्रवक्ता पत्रिका लंबे समय से चल रही है और कुछ वर्ष तो ऐसे रहे हैं जब लगभग हर कवर स्टोरी मैं लिखता था। मगर मैं प्रभाष जोशी नहीं था और जब प्रभाष जी ने राय साहब के जरिए इस पत्रिका को एक सार्थक मंच बनाने की पहल की तो पत्रिका चमकी और इसे प्रतिष्ठा मिली। मगर इससे न राय साहब के राजनैतिक सरोकार बदल जाते हैं और न ओझा जी के। ओझा जी कुंजिया और गाइडें छाप कर जो अकादमिक कारोबार कर रहे हैं वह ऐसा है जिसकी शुद्वि के लिए प्रथम प्रवक्ता जैसे पुण्य भी करने पड़ते हैं।

और तो और कुछ मित्र अंबरीश कुमार को निपटाने के लिए इसमें जनसत्ता हाउसिंग सोसायटी का झगड़ा भी ले आए। सोसायटी में राय साहब की अध्यक्षता में मकान आवंटित हुए थे और दिल का बाइपास करवा चुके प्रभाष जी को भूमि तल पर कोई मकान नहीं दे पाया था। कहा गया कि अंबरीश कुमार ने नैनीताल के रामगढ़ में एक आलीशान महल बना रखा है। इसी रामगढ़ मंे जाने माने कई पत्रकारों, अधिकारियों और नेताओं के महल हैं और अंबरीश के झोपड़ीनुमा दो कमरे हैं। और फिर सोसायटी के झगड़े की बात न्यास के मामले में कहां से आई? फिर तो गढ़िया नामक उस मनुष्य को भी घेरे में खड़ा किया जाना चाहिए जिसकी ऑडिट रिपोर्ट पर अदालत ने सवाल खड़े किए हैं।

जितना बड़ा हो सकता था, प्रभाष जी मुझे कर के चले गए हैं। मुझे न किसी के प्रमाण पत्र से कोई फर्क पड़ता है और न किसी के गालियां देने से। प्रभाष जी मेरे लिए कभी परंपरा नहीं होंगे, क्योंकि वे मेरे लिए हमेशा जीवित हैं, लेकिन उनकी शैली और सरोकारों को अगली पीढ़ियों के लिए परंपरा बनाने की मैं पूरी कोशिश करूंगा। इसमें मुझे नहीं मालूम कि कोई क्यों बाधा डालेगा और अगर डालेगा तो अपनी कीमत पर डालेगा। प्रभाष जी के शिष्य के अलावा मेरी एक पहचान और भी रही है और वह यह कि मैं आदर में चरण बहुत जल्दी छूता हूं और बदतमीजी करने वाले को झापड़ भी तत्काल रसीद करता हूं। उम्मीद है कि मेरे गुरु के काम में झापड़ की नौबत नहीं आएगी। मगर आएगी तो देखा जाएगा।

लेखक आलोक तोमर जाने-माने पत्रकार हैं.

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0 Comments

  1. RAJEEV SHARMA

    July 23, 2010 at 12:55 pm

    आना ही बहुत है, उस दर पे तेरा, शीश झुकाना ही बहुत है ।
    कुछ है तेरे दिल में उसको ये ख़बर है,
    बंदे तेरे हर हाल पर मालिक की नज़र है,
    आना है तो आ, राह में कुछ फेर नहीं है,
    भगवान के घर देर है अँधेर नहीं है !

  2. dev shrimali

    July 24, 2010 at 6:30 am

    chanda ,chatukarita aur chakri ke tamas bhare daur mein bhi chambak ka ek alok prabhash ji ki virasht ko bachane ka prakash failane ke liye kafi hai
    Dev Shrimali NDTV Gwalior

  3. समरेश वाजपेयी

    July 24, 2010 at 6:44 am

    आलोक जी को देखते ही इस राजीव की कुंडलिनी जाग जाती है..

  4. arvind singh

    July 24, 2010 at 8:20 am

    शर्मा जी तुम उसी तरह के आदमी लगते हो जो किसी नामी आदमी पर कीचड़ उछाल कर खुद को भी नामी समझता है…है न …सही कहा न मैंने..विचारो की इस दुनिया मैं यू चोरो की तरह किसी पर भी कीचड़ उछालना नामर्दी जैसा है…वेसे तुम हो भी ……आलोक तोमर, आलोक तोमर क्यों है ये बात तुम्हे जीवन भर सताती रहेगी…और तुम बस अपनी उछाली कीचड़ मे खुद सनते रहोगे…..क्या करे तुम्हारा जन्म ही महाभारत के एक पात्र कीचक की तरह हुआ है…जिसे हर हाल मे मरना ही था….क्योकि कुछ पात्रो की इतहास का हिस्सा जो बनना था… तुम अपना रोल अदा कर दिए अब निकलो….क्योकि इतिहास तुम्हे याद नहीं करेगा …..आलोक तोमर को करेगा…नादानी मे कुछ ऐसा दोबारा मत लिख बेठना जिससे बाद मे आपको पछतावा हो….ये एक बड़े भाई की सलाह है मान लो…..सोदा फायदे का है….

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