ईई की संख्या 5 हुई : शशि शेखर के जाने के बाद अमर उजाला में किसी को ग्रुप एडिटर के पद पर लाने की जगह एक्जीक्यूटिव एडिटर के रूप में काम देख रहे देवप्रिय अवस्थी उर्फ डीपी अवस्थी को ही संपादकीय विभाग का नेता अघोषित रूप से मान लिया गया है. हालांकि डीपी के अलावा चार अन्य एक्जीक्यूटिव एडिटर भी इस अखबार में हैं लेकिन अमर उजाला के निदेशक अतुल माहेश्वरी डीपी अवस्थी से ही सारे कामधाम की रिपोर्ट लेते हैं इसलिए अघोषित रूप से उन्हें ही ग्रुप एडिटर जैसा माना जाने लगा है. इसके पीछे भी वजह है. सुधांशु श्रीवास्तव के इस्तीफा देकर हिंदुस्तान जाने के बाद इनपुट का काम भी डीपी अवस्थी को दे दिया गया. डीपी आउटपुट का काम पहले से ही देख रहे थे. इस तरह इनपुट-आउटपुट, दोनों का काम देखने के कारण सारी यूनिटों व संपादकों से कोआर्डिनेशन का डायरेक्ट का काम डीपी अवस्थी के जिम्मे आ गया. नरेंद्रपाल सिंह उर्फ एनपी के एक्जीक्यूटिव एडिटर के पद पर आने से ईई की संख्या कुल पांच हो गई है. शंभूनाथ शुक्ला, गोविंद सिंह, डीपी अवस्थी और उदय सिन्हा, ये चार एक्जीक्यूटिव एडिटर पहले से कार्यरत हैं.
सूत्रों के मुताबिक एनपी को कंटेंट व इनपुट का काम दिए जाने से डीपी का काम व कद कुछ हलका होगा, ऐसा माना जाने लगा है. देखना यह है कि प्रबंधन एनपी को कितनी छूट प्रदान करता है. प्रबंधन द्वारा मिली हुई आजादी से ही तय होगा कि एनपी डीपी से ज्यादा मजबूत साबित होते हैं या डीपी ही सबसे मजबूत ईई के रूप में संपादकीय विभाग के नेता बने रहते हैं.
वैसे, कुछ लोगों का यह भी कहना है कि प्रबंधन किसी भी ईई को कम महत्वपूर्ण नहीं मानता, न ही इस रूप में देखता है. उदय सिन्हा चंडीगढ़ में हैं और पूरे पंजाब, हरियाणा, हिमाचल को देख रहे हैं. इसी तरह गोविंद सिंह संपादकीय पेज तो देखते ही हैं, उनका नाम नोएडा सहित कई यूनिटों में प्रिंट लाइन में भी जाता है. शंभूनाथ शुक्ला सर्वाधिक वरिष्ठ होने के कारण और लंबे समय से एनसीआर समेत कई यूनिटों को हैंडल करने के कारण प्रबंधन के प्रिय हैं.
नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर अमर उजाला से जुड़े एक वरिष्ठ कहते हैं कि अमर उजाला प्रबंधन किसी एक को ग्रुप एडिटर जैसा मानने की जगह सभी की अलग-अलग जिम्मेदारी व जवाबदेही तय कर विकेंद्रित तरीके से काम काज करा रहा है. इससे ज्यादा व बेहतर रिजल्ट देने की होड़ सभी ईई में लगी रहती है. सूत्र कहते हैं कि ग्रुप एडिटर के लिए कुछ लोगों से लगातार बात चल रही है लेकिन अभी किसी के ज्वाइन करने की उम्मीद नहीं है.
kishorekamal
February 2, 2010 at 4:47 am
डीपी के पास अनुभव है और एनपी के पास नई सोच और ऊर्जा।
डीपी ने जनसत्ता जैसे महान अखबार की शुरुआत करवाई और एनपी
ने पहले आजतक जैसे चैनल की और फिर NDTV India। शशि शेखर के जाने के बाद अमर उजाला राह से भटका नज़र आता है। वरिष्ठ कार्यकारी संपादकों का पोलित ब्यूरो
अखबार को विविधता देने के चक्कर में अलग-अलग राह पर ले जा रहा है। श्री अतुल माहेश्वरी जी ने एनपी को ताकत दी और NDTV India की तरह NP की चली तो वो बेशक अपनी-अपनी ढपली नहीं बजने देंगे। एनपी योग्य हैं, चीज़ों को समझते हैं, नई सोच वाले हैं, ऊर्जा से भरपूर हैं और व्यवहार कुशल हैं, NDTV India के लोग अब तक उनके अच्छे बरताव को याद करते हैं। सबसे बड़ी बात उनमें है ईमानदारी और वफादारी। NDTV India से जब दिबांग हटे तो एनपी भी छोड़कर चले गये और जब सहारा से पुण्य प्रसून वाजपेयी को हटना पड़ा तो एनपी ने भी उनके साथ चैनल छोड दिया। एनपी के साथ अगर राजनीति ना हुई तो वो बेशक अमर उजाला को 8-10 पहले वाले सुनहरे दौर में ले जा सकते हैं।
satosh
February 2, 2010 at 4:59 am
अमर उजाला बेहद प्रतिष्ठित अखबार है और हमेशा से यहां प्रतिष्ठित लोग ही काम करते रहे हैं। ऐरा गैरा संपादक अमर उजाला में कभी देखने सुनने को नहीं मिला। राजेश रपड़िया जी के समय मैं भी अमर उजाला में था। गोविंद सिंह कद्दावर पत्रकार हैं। उन्होंने अखबार और टीवी दोनों में लंबे वक्त तक सफल पारियां खेली हैं। ऐसी ही शख्सियत एनपी सिंह भी हैं। वे नए जुड़े हैं अमर उजाला से। सो उनसे उम्मीद की ही जाएगी और निसंदेह वे हर उम्मीद पर खरे उतरेंगे ही। शंभुनाथ जी, अवस्थी जी भी पुराने खांटी के पत्रकार हैं। इसलिए अमर उजाला प्रबंधन जो कर रहा है ठीक है। जरूरत भी क्या है किसी एडिटोरियल नेता की वहां।