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दुख-दर्द

माया राज में दो माह में चार पत्रकारों की हत्या

: नया रिकार्ड : बहुत जोखिम भरी है अब उत्तर प्रदेश में पत्रकारिता : लखनऊ : दो महीने में चार पत्रकारों की हत्या का नया रिकार्ड मायावती के राज में बना है। उन मायावती के राज में जो ‘चढ़ गुंडों की छाती पर मुहर लगाओ हाथी पर’ के नारे के साथ सत्ता में आई थी। इस नारे का सबसे ज्यादा प्रचार प्रसार करने वाले पत्रकार ही आज संकट में है।

<p style="text-align: justify;">: <strong>नया रिकार्ड : बहुत जोखिम भरी है अब उत्तर प्रदेश में पत्रकारिता</strong> : लखनऊ : दो महीने में चार पत्रकारों की हत्या का नया रिकार्ड मायावती के राज में बना है। उन मायावती के राज में जो 'चढ़ गुंडों की छाती पर मुहर लगाओ हाथी पर' के नारे के साथ सत्ता में आई थी। इस नारे का सबसे ज्यादा प्रचार प्रसार करने वाले पत्रकार ही आज संकट में है।</p> <p>

: नया रिकार्ड : बहुत जोखिम भरी है अब उत्तर प्रदेश में पत्रकारिता : लखनऊ : दो महीने में चार पत्रकारों की हत्या का नया रिकार्ड मायावती के राज में बना है। उन मायावती के राज में जो ‘चढ़ गुंडों की छाती पर मुहर लगाओ हाथी पर’ के नारे के साथ सत्ता में आई थी। इस नारे का सबसे ज्यादा प्रचार प्रसार करने वाले पत्रकार ही आज संकट में है।

आर्थिक मदद न मिलने से बीमार पत्रकार जवानी में दम तोड़ देता है तो सच लिखने पर हत्या कर दी जा रही है। कब किसका नंबर आ जाए पता नहीं। पिछले बीस दिन में दो पत्रकारों और दो महीने में चार पत्रकारों की हत्या हो चुकी है। हाल में मारे गए दोनों पत्रकार मीडिया के राष्ट्रीय समूहों से जुड़े थे। एक विजय प्रताप सिंह इंडियन एक्सप्रेस समूह से तो दूसरा कमलेश जिस राष्ट्रीय दैनिक से जुडा था उसके अख़बार में प्रमुख पेजों पर उसकी कोई खबर भी नही नज़र आ रही थी। यह नई परंपरा शुरू हुई है जिसमे पत्रकार की हत्या के बाद सबसे पहले उसका अखबार ही हाथ खीच ले रहा है।

मायावती सरकार के राज में पत्रकारों को पहले ही हाशिए पर फेका जा चुका है। अब पत्रकारों की जान खतरे में में है। पत्रकारों पर लगातार हमले बढ़ रहे है। हाल ही में कुशीनगर में एक पत्रकार तेज बहादुर गुप्ता की हत्या कर उसका शव बिहार में फिकवा दिया गया और वह भी जिस राष्ट्रीय अखबार से जुड़े थे उसने यह मानने से इंकार कर दिया कि वह इनके यहाँ काम करता है। हालाँकि यह  अखबार अपने को मार्केट लीडर भी बताता है। कुशीनगर के संवाददाता भानु प्रताप तिवारी के मुताबिक बस्ती में एक महीने पहले पूर्वांचल के प्रमुख अखबार के पत्रकार अवनीश कुमार श्रीवास्तव की हत्या कर दी गई। विजय प्रताप सिंह, कमलेश, तेज बहादुर गुप्ता  और अवनीश कुमार की हत्या की खबर भी खबर न बन सकी। अपवाद रहा सिर्फ इंडियन एक्सप्रेस के विजय प्रताप का मामला जिसके लिए प्रबंधन ने दिल्ली से हवाई जहाज में बने एम्बुलेंस को भेजा और बड़े अस्पताल में इलाज कराया। अब एक्सप्रेस के पत्रकार गैर पत्रकार अपना एक दिन का वेतन देने की पुरानी परिपाटी के चलते उनके परिवार की भी मदद करेंगे। पर देश और विदेश में सबसे ज्यादा अखबार बेचने का दावा करने वाले ज्यदातर अखबार समूह किसी तरह के हादसे के बाद सबसे पहले अपना पल्लू झाड लेते हैं।

गोरखपुर के पत्रकार कृष्ण कुमार उपाध्याय की पहली बरसी आने वाली है पर शायद ही उन्हें कोई याद करे। मुफलिसी में इस पत्रकार ने पिछले साल दम तोड़ दिया था और अंतिम संस्कार के लिए भी चंदा इकठ्ठा करना पड़ा। गोरखपुर से कोस भर पर एक गाँव है पिपरी जहाँ इनकी पत्नी गायत्री देवी खपरैल के घर अपने एक भांजे के साथ बदहाली में अपना जीवन गुजार रही हैं। किडनी खराब होने के बाद केके उपाध्याय हर तरफ मदद की गुहार लगा रहे थे। गोरखपुर के पत्रकार हर्षवर्धन साही, शलभ मणि त्रिपाठी, दीप्त भानु और टीपी साही ने जब बताया तो जनसत्ता में इनकी खबर छपने से करीब ढाई लाख रुपए की सरकारी मदद मिल गई। गोरखपुर प्रेस क्लब ने करीब दो लाख इकठ्ठा किया। किडनी ट्रांसप्लांट हो गई पर करीब दस हजार महीने इलाज का खर्च मिलना मुश्किल हुआ। बीच में लखनऊ इलाज के लिए आए तो पैसे ख़त्म हो गए। पत्नी ने कहा गोरखपुर जाकर खेत बेचकर कुछ और इंतजाम किया जाए। इससे पहले खेती की जमीन का बड़ा टुकड़ा बिक चुका था और पूर्वांचल के जिस अखबार में काम करते थे उसके प्रबंधक ने कहा कि बीमारी  की वजह से काम तो कर नहीं सकते इसलिए अब दफ्तर न आएं। जो पांच छह हजार मिलते थे वह भी बंद हो गए।

इन हालत में वे खेत बेच कर पैसे का जुगाड़ करने लखनऊ से गोरखपुर लौट रहे थे पर रास्ते में ही अंतिम साँस ले ली। इकलौती बेटी का ब्याह कर चुके थे इसलिए पत्नी के सामने अपना ही जीवन था। और वे कैसे जीवन गुजार रही है यह पिपरी गाँव जाने से पता चल जाएगा। जिस अखबार से जुड़े थे वह भी अभिव्यक्ति की आजादी का पुरोधा होने का दावा करता है और वही से निकले एक संपादक बिड़ला घराने से जुड़े संपादक है। यह घटना बताती है कि पत्रकारिता में कितनी असुरक्षा बढ़ गई है। जिलों के पत्रकारों को ज्यादातर अखबार सम्मानजनक वेतन भी नहीं देते है जिससे वे किसी तरह की बचत कर पाए। केके उपाध्याय से इस संवाददाता की उस दौर में बात हुई जब वे लखनऊ में इलाज करा रहे थे। यह पूछने पर कि वेतन से खर्च चल जाता है उनका जवाब था- इतना वेतन मिलता कहां है कि खर्च पूरा हो जाए। खेत बेचते जा रहे हैं, कुछ हो गया तो पत्नी का क्या होगा, समझ नहीं आता।

लखनऊ के एक अंग्रेजी अखबार जिसके मालिक पत्रकार – सांसद है उनके अखबार के एक पत्रकार के पैर में चोट आ गई दो महीना बिस्तर पर रहे है। अखबार ने मदद करनी तो दूर दो महीने का वेतन भी काट लिया। पत्रकार अजय सिंह ने कहा- जिन पत्रकारों की हत्या या असमय मौत हो जाए उनके परिवार के जीवन यापन को लेकर न तो केंद्र सरकार गंभीर है और न ही राज्य सरकार। मायावती सरकार को तो इसे गंभीरता से लेना चाहिए जिनके शासन में मीडिया पर हमला बढ़ रहा है।

लेखक अंबरीश कुमार जनसत्ता अखबार के यूपी ब्यूरो चीफ हैं.

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0 Comments

  1. PRAYAG PANDE ,NAINITAL

    August 2, 2010 at 9:37 am

    patrakaron ke hatya ho rahi hai.akhabar gharanon ki chuppi to ek had tak samajh main aati hai.lekin patrakaron ki hiton ki hifajat ka dambh bharane wali patrakar union kahan hai ?.kya patrakar union ka ek matr kam chanda batara or eash kara rah gaya hai . yah bahut sharmanak bat hai.patrakaron ki hatyaon ke bad bhi union munh kholane ki himmat nahi juta payen. PRAYAG PANDE Nainital

  2. ravishankar vedoriya

    August 2, 2010 at 10:55 am

    is baat per mayabati sarkar ko aage badkar kadam badana chahiye
    nahi to sarkar ke khilaph asantosh phelne samay nahi lagega

  3. Abhishek sharma

    August 2, 2010 at 10:58 am

    malikano ki chuppi aisi hai jaisee kabhi mill maliko aur majdooro ki hoti thi..jholi bhar rahe hai apni sarkaar ki chatukarita me.. patrakaar marta hai to marne do kal naye paaida ho jayenge….
    [email protected]

  4. Imran Zaheer, Moradabad

    August 2, 2010 at 12:01 pm

    अम्बरीश जी , सही कहा है आपने, आज पत्रकार जिन परिस्थितियों में जी रहा है उसका तो भगवान ही मालिक है|

  5. prashant

    August 2, 2010 at 3:28 pm

    desh me akhbaaron k ye wahi wahi team leadre hain jinke maalik khud apne ghadh me adne se police officer se pit chuke hain. we khud ko to bacha nahi sake apne emplooyees ko kya bachaenge. khud pitne k baad police officer ka to kuch kara nahi sake apne emplloyees k hatyaaron ko kya saza dilaenge????

  6. rizwan mustafa

    August 3, 2010 at 1:22 am

    maya sarkar me patrkaro par ho raha zulm angrezo ki yaad dila raha hai , ambrish sir ka lekh aaj k patrkaro ki hakikat hai,halat se ladta patrkar,shasan parshasan ka beja dabav,sarkar ka utpidan me ghut-ghut k jee raha hai repoter,aapka patrkaro k liye ladna ek nayi taqat de raha hai.

  7. Sanjay Gupta Orai ( Jalaun)

    August 3, 2010 at 10:27 am

    बिल्कुल सही लिखा आपने अम्बरीश जी…
    माया सरकार में पत्रकारों पर जितना अत्याचार हो रहा है इतना शायद ही किसी सरकार में हुआ हो… इसकी हम सभी को खुलेआम निंदा करनी चाहिए…

  8. sanjay s jadhao

    August 3, 2010 at 11:56 am

    Amrishji,
    ye jo maj aaye pepermalik hote hai na unke khilap kendra sarkar ne kada kanun banana chaeeye…
    Aaj enke jo peper chalte hai na o hamare-tumare bharose se chalte hai.. pure bharat me har akhabar me kam karnewale patrakar ka sanghatan karna chaeeye r jab bhi koi musubat patrakaro par aaye to en akhabar maliko ko bandhankarak hi hona chaeeye ki un patrkaro ki koi bhi musibat ho o dur karni hogi…
    ektaraf ye nikammi sarkar, dusri taraf ye maje huwe akhabar malik,r en sabke aage aaj ki mahangaeee……… kya kare patrakarita ko kucha bhi fayada hi nahi…
    sanjay jadhao, Buldana, (maharashtra )

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