भड़ास4मीडिया पर बहुत जल्द एक लंबी कहानी का प्रकाशन शुरू होगा. लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार अनिल यादव लिखित इस कहानी का नाम है ‘क्योंकि नगर वधुएं अखबार नहीं पढ़तीं’. कहानी कुछ यूं है- उदास, निष्प्रभ तारे जैसा एक फोटो जनर्लिस्ट है. और है उसकी रहस्यमय नक्षत्र सी प्रेमिका. एक आत्महत्या के रहस्यों का पीछा करते हुए, वह दुनिया के सबसे पुराने यानि देह के धंधे के रहस्य जान जाता है. उन्हीं बदनाम गलियों में उसकी आंखें किसी वेश्या से नहीं अपने पेशे (पत्रकारिता) की आँखों से चार हो जाती है. यह आंखों का लड़ना मीडिया के क्रूर यथार्थ से मुठभेड़ है जिसमें शर्मसार होकर दोनों के आंखें फेर लेने के सिवा शायद कोई और रास्ता नहीं है…
अनिल ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा और राजनीति की वामपंथी पाठशाला से विचार दीक्षा लेकर बनारस के कुछ अखबारों में काम किया. फिर लखनऊ चले आए. लखनऊ में दैनिक जागरण और अमर उजाला में कई वर्ष गुजारने के बाद हिंदुस्तान, वाराणसी के साथ हो लिए. इन दिनों दी पायनियर, लखनऊ में कार्यरत हैं.
अनिल की कलम बेबाक बयानी के लिए विख्यात है. शानदार भाषा, जानदार प्रस्तुति और जमीनी बिंब के जरिए अनिल समकालीन यर्थार्थ को गहन संवेदना के साथ पकड़ते हैं और उसे कई-कई अर्थों के साथ सामने रखते हैं. पत्रकारिता को मिशनरी अंदाज में जीने वाले अनिल कई बार नौकरियां छोड़ कर लंबी यात्राओं पर निकले. जीवन व लेखन में कामय फौरी ठहराव को वे लेखन के जरिए तोड़ने में जुट गए हैं. पूर्वी उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के निवासी अनिल से संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है.
अनिल यादव
March 7, 2010 at 10:56 am
प्रातः स्मरणीय @ written by VIJAY VEENEET
कृपा करके आप वह मत बनिए जो आपके अनुसार मैं पब्लिक को बनाने का काम कर रहा हूं। ऐसा करना बहुत आसान है, कहानी मत पढ़िए।
जिस ग्रेड की साहित्यिक समझ वाले जीव आप हैं, वह पैदा होते वक्त यकीनन नहीं रहे होंगे। जीवों की तरह ही हर चीज की रचना और प्रोसेसिंग में समय लगता है। सो मुझे भी लगा। इसके लिए मुझे दोष क्यों दे रहे हैं।
अनिल यादव
March 7, 2010 at 11:01 am
आप @Nilofar Khan
सच कहती हैं। मुझे अफसोस है कि ये दोनों ट्रैवेलाग पूरे नहीं कर पाया।
लेकिन भविष्य में करने का इरादा है। एक यात्री के सफर से लौटने का इंतजार है।
VIJAY VEENEET
March 7, 2010 at 4:40 am
anil tumhari kahani mean c grade filmo ka masala hea. jis samay tum hindustan varanasi mea the. us wakt kanyo story nahi lekehe.abb kahani sunkara public ko chutiya bana rahe ho
Nilofar Khan
March 5, 2010 at 11:55 pm
इत्तफाकन याद आया कि एक और ट्रैवेलाग हारमोनियम पर जो शायद किसी बुजुर्ग की याद में लिखा जा रहा था, उसे भी अधूरा छोड़ कर दफा हो चुके हैं।
Nilofar Khan
March 5, 2010 at 11:53 pm
ये जनाब लेखक भगोड़े हैं। कबाड़खाना पर एक अधूरा ट्रैवेलाग (नार्थ ईस्ट का) छोड़ कर भाग आए हैं। अब जब पढ़ने वाले कहानी से कनेक्ट हो चुके हैं और उसका आनंद ले रहे हैं। यही डर है कि फिर कहानी अधूरी छोड़ कर न भाग निकलें।
ganesh joshi
March 4, 2010 at 12:24 pm
lucknow se yathrth pedane ka souk hua. phir patrikaui mai lekh wa stories padi. ab nai khani padane ka mauka mil raha hai. iske liye bahut bahu badhai bhaisab…..
kirti
February 26, 2010 at 4:57 am
Anil ji ko shubhkamnaye…
I m fan of his yatharth column in jagran… perfect piece of writting..
KAMAL KAPUR , ALMORA
February 26, 2010 at 5:54 am
YASHWANT JI , APNE – APNE YUDDH KE BAAD EK OR DHMAKA ??
RAKESH
February 26, 2010 at 7:35 am
wait for your story
kumar sauvir, mahuaa news, lucknow
February 27, 2010 at 1:00 am
Anil, uska lahajaa, vyaktitv, andaaz, soch, sunaane ka tareeka aur behad saadgee lekin teekhepan ke saath kiya jane waala kataaksh——–sara kuchh bemisaal hi to hae.
mae tumhaaree prateekshaa me hu Anil Yadaw ….
kumar sauvir
[email protected]
kamta prasad
February 27, 2010 at 5:38 am
der kahe,..
awadhesh yadav *shimla*
February 28, 2010 at 8:15 am
अनिल भाई
सबसॆ पहलॆ यथायॊग्य अभिवादन.फिर ‘लवली त्रिपाठी की आत्महत्या’ सॆ सम्बन्धी जानकारी कॆ लियॆ बधाई. आपनॆ जिस वक्त की घटना का जिक्र आपनॆ किया है. उस वक्त मै कशी विद्यापीठ मॆ अध्ययनरत था. डीआईजी कॆ बीवी कॆ आत्महत्या की वजहॆ की फिजा मॆ सुननॆ कॊ मिला था. लॆकिन तब किसी अखबार नॆ इतनी बॆबाकी सॆ नही लिखा. आपकी बॆबाकी कॊ ‘सलाम’…..
मुझॆ लगता है. डीआईजी त्रिपाठी नही ‘शुक्ला’ था, यूपी पुलिस मॆ उसका ऒहदा और ऊचा हॊ गया है.
अनिल यादव
March 3, 2010 at 10:37 am
धन्यवाद दोस्तों,
आपका हृदय पक्षपाती है और मुझे लगता है कि आप सबने मुझे हमेशा कुछ ज्यादा ही प्यार किया है। लेकिन इस बार मैं चाहता हूं कि आप इस कहानी को वैसे ही देखें जैसे एक सर्जन किसी ट्यूमर को देखता है। …यह हमारे समाज में ज्वालामुखी के आकार के एक विशाल फोड़े के भीतर बहती पीड़ा की अंतर्धाराओं की कथा है।
Faizan Musanna
March 16, 2010 at 1:32 am
apok vistarit roop main pahli baar UNKA PARITWAD main patha tha maza agya tha. apke niwas par Anoop ke sath akar mila tha . ab mere samne apka lekah punha Bhadas4 media main aya hai maza agya.
likhthe raheye
dhanywad
Faizan Musanna
Krishna Kumar
March 16, 2010 at 1:36 am
AP KA NAM HINDI PATRKARITA ME SAMNE ATE HI us tairak ka chitra aakhon me tair jata hai jo chari hui nadi me dhara k virudh hath pav marte hue bari teji se kinare ki taraf chala aa raha ho:…………
bahut din bad varanasi me aap ka colemrah chalte k lambe antral k bad parhne ko mil raha hai;
जगदीश्वर चतुर्वेदी
March 16, 2010 at 6:44 pm
इंतजार रहेगा कहानी का,लक्षण अपी कर रहेहैं।
Abhishek Rahul (A2Z news Patna)
March 23, 2010 at 5:14 am
हम इंतज़ार करेंगे…………..क्युकी अगर प्रोमो ऐसा है तो कहानी जरुर बेमिशाल होगी.
Abhishek Rahul (A2Z news Patna)
March 23, 2010 at 5:15 am
हम इंतज़ार करेंगे…………..क्युकी अगर प्रोमो ऐसा है तो कहानी जरुर बेमिशाल होगी.
अनुराग सिंह
March 23, 2010 at 9:57 am
अनिल भाई
अरसे से आपके मुलाकात नहीं हुई। लेकिन आपके लिखे शब्द बीच बीच में पढ़ता सोचता रहा। भाषा में धार और विचारों की उत्तेजना काफी प्रेरणा देती है। उम्मीद है आपकी नई कहानी में भी पक्का पोस्टमार्टम होगा। इंतजार है।
सादर
अनुराग सिंह
dhanish sharma
November 19, 2010 at 3:56 am
good.