वरिष्ठ पत्रकार अनंत मित्तल की अगुवाई में लगभग 50 मीडिया छात्र और पत्रकार 6 अप्रैल को जंतर मंतर पर पूरे दिन अन्ना के समर्थन में उपवास पर बैठे थे… उसी दिन शाम को एनडीटीवी का रिपोर्टर आया और हम सबसे कहने लगा कि अन्ना के आन्दोलन पर बरखा दत्त लाइव कर रही हैं, आप लोग आ जायें… लेकिन इस पर अनंत जी ने बरखा का नाम सुनते ही मना कर दिया उन्होंने कहा कि पत्रकारों की फजीहत कराने वाली बरखा दत्त को कोई अधिकार नहीं है भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रोग्राम करने का…
और केवल उन्होंने ही नहीं, वहां मौजूद सभी लोगों ने बरखा को दलाल बताते हुए एनडीटीवी के शो में जाने से मना कर दिया… बरखा का नाम सुनते ही इतना आक्रोश हुआ कि उस समय मंच से बोल रहे स्वामी अग्निवेश को भी कुछ देर के लिए चुप हो जाना पड़ा था… उसी दिन जनता द्वारा उमा भारती और चौटाला को भी जंतर मंतर से भगा दिया गया था… उनके खिलाफ नारें भी जबरदस्त थे- “चौटाला नहीं ये चोट्टा है, बिन पेंदी का लोटा है” और “उमा भारती आयी है भ्रष्टाचार की गंदगी लायी है”। लोगों ने ऐसे लहक लहक के नारे लगाये कि चौटाला और उमा भारती को उलटे पांव लौटना पड़ा।
बरखा उस दिन अगर खुद आतीं तो लोग उसे उसकी जगह दिखा देते…
लेकिन बरखा को भ्रष्टाचार के खिलाफ जनता के इस आक्रोश का अंदाज़ा नहीं था… वो 9 अप्रैल को इंडिया गेट पर कैंडिल मार्च के वक्त लाइव करने पहुंच गयी… फिर क्या था, बरखा को देखते ही लोगों का गुस्सा उफन गया और वहां लोगों ने उसे दलाल बताते हुए इतनी जबरदस्त नारेबाजी की कि बरखा के पांव उखड़ गये और उसे वहां से भागना पड़ा… बरखा तो वहां से भाग गयी लेकिन वहां मौजूद पत्रकार बिरादरी को बेवजह जिल्लत झेलनी पड़ी…. कुछ प्रदर्शनकारी औरतों ने उन्हें उलाहना दिया लेकिन पत्रकार चुप्पी साधे रहे क्यूंकि उनका बरखा नाम का अपना सिक्का ही खोटा था… लेकिन करे कोई और भरे कोई वाली कहावत यहाँ सच होती नज़र आयी… बरखा दत्त और राडिया प्रकरण से जुड़े सभी पत्रकारों के लिए पत्रकारिता जगत और जनता में भारी आक्रोश है… इसीलिए शायद मौका मिलते ही लोग बरस पड़े… क्या अब बरखा को शर्म आएगी कि लोग उन्हें चौटाला के समान मानने लगे हैं और वो देश से माफ़ी मांगेंगी या अब भी अपने अहंकार में डूबी रहेंगी…
हिमांशु डबराल
पंकज झा.
April 11, 2011 at 10:50 am
काहे की शर्म हिमांशु…साब खाए-आघाये और खुद को खुदा समझने वाले लोगों की ज़मात हैं ये लोग..लेकिन युवा पत्रकारों को अब अपनी बीच की ऐसी गंदगियों को साफ़ करने के लिए संगठित हो कर आगे आना होगा…अची रिपोर्ट.
Manoj Kureel
April 11, 2011 at 10:52 am
i too hate this lady…i always change the channel if i see her on screen..!
Manoj Kureel
April 11, 2011 at 10:52 am
i too hate this lady…i always change the channel if i see her on screen..!
nadeem ahmed
April 11, 2011 at 12:00 pm
क्यूंकि आप के माध्यम से बीबीसी की तमाम असल खबरें मीडिया जगत तक पहुँचती है इसलिए आपको कुछ बताना चाहती हूँ. बीबीसी हिंदी की पूर्व सम्पादक सलमा ज़ैदी जो इन दिनों नोटिस पर चल रही है, वे आजकल अपने खर्चे पर लंदन गयी हैं जहाँ उन्होंने बीबीसी वर्ल्ड सर्विस के प्रमुख पीटर होरक्स से अपने साथ हुए अन्याय की बात कही है और इस मामले पर अगले इसी शुक्रवार लंदन के बीबीसी दफ्तर में सुनवाई होनी है. साथ ही पीटर ने लंदन से एक दिन पहले निकी क्लार्क को दिल्ली भेजा है जिससे यहाँ के दफ्तर एक पूरे हाल और ब्यौरा मिल सके. वैस भी श्री अमित बरुआ के खिलाफ शिकायतें दिन पर दिन बढती जा रहीं हैं और पीटर ऐसा कुछ भी चाहते की बीबीसी के कर्मचारी कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाए. मुकेश शर्मा जिनकी नौकरी पिछले महीने गयी थी, उन्हें भी पीटर होरक्स से आश्वासन मिल चुका है और मुकेश अभी भी बेनागा दफ्तर आ रहे हैं. इस कदम को लोग श्री बरुआ के लिए एक बड़ा झटका बता रहेहैं. हालांकि अमित बरुआ ने रेहान फज़ल की नौकरी बचाने के बाद उन्हें गुप्त रूप से बीस दिनों की छुट्टी पर भेज दिया था लेकिन रेहान के खिलाफ़ भी अब आवाजें तेज़ हो गयीं है और उन्हें दफ्तर वापस लौटना पड़ा है. पर सूत्र बता रहे हैं की अमित बरुआ के मुकेश, सलमा और रेनू अगाल को निकालने का फैसला अब पलटा भी जा सकता है क्यूंकि ये तीनों ही लगातार दफ्तर आ रहें हैं और अगले महीने तक के रोटा में इनका नाम भी है.
इधर दूसरी तरफ बीबीसी में किसी भी नई नौकरी पर किसी को न रखे जाने के कानून के बाद भी पिछले हफ्ते ऐश्वर्या कपूर को एफएम का रिपोर्टर बनाकर उन्हें दो साल का कान्ट्रेक्ट दे दिया गया है जिसपर सभी को आपत्ति है. माना जा रहा है की श्री कपूर की ये नियुक्ति अमित बरुआ ने रेहान फज़ल के दबाव में की है और आनन् फानन में राकेश सिन्हा ने इनका कान्ट्रेक्ट जारी कर श्री ऐश्वर्या कपूर को सौंप दिया है. खबर की पुष्ठी की जा सकती है.
devas dixit
April 11, 2011 at 6:31 pm
really well written…
barkha dutt jaise logo ki aukat saamne aani chahiye…
m sorry to write such language, but issey behtar shbd nhi they mere paas…
congrats to all of us!
ARUN SINHA
April 11, 2011 at 7:18 pm
हिमांशु देखा जाए तो इन पत्रकारों ने अपनी जमात का नाम ख़राब किया है और इनका कोई हक नहीं बनाता कि अब भी ये खुद को पत्रकरा कहलवाएं। एक जर्नलिस्ट की छवी साफ़ सुथरी होने के साथ-साथ ये भी ज़रुरी है कि वो भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ खड़ा हो पर बरखा तो वो निकलीं जो गई तो थीं गंदगी साफ़ करने पर ख़ुद हीं उसका हिस्सा बन गई। लेकिन अब वक्त आ गया है कि हम युवा पत्रकारों को इन दागदार पत्रकरों का बहिष्कार करना चाहिए और इनहें ठीक वैसे हीं इस प्रोफेशन से खदेड़ना चाहिए जैसा इंडिया गेट पर किया था। सच बताउं तो यहां हम सिर्फ एक बरखा दत्त की बात कर रहे हैं पर यशवंत जी से पूछों की आज इस प्रोफेशन में कितनी बरखा और कितने सिंधवी पैदा हो चुके हैं। जरुरत सिर्फ इन कुछ एक को खदेड़ने की नहीं हैं बल्कि मीडिया के ग्लैमर और इससे होने वाले कमाई को देखकर ललचाई बढ़ रही इनकी जमात को सही रास्ते पर लाने की है और उस पर अंकुश लगाने की है।
Dinipc
April 11, 2011 at 7:47 pm
I stopped watching NDTV due to Barkha Dutt since last 7 months. Don’t miss it anymore.
Atul kumar
April 12, 2011 at 9:42 am
उन्होंने जो काम किया है वह माफ़ी लायक नहीं है इस अपराध के लिए उन्हें सजा मिलनी चाहिए पर मुझे नहीं लगता की ऐसा भी हो पायेगा क्यूंकि आज तक इस देश में किसी भ्रष्टाचारी को कभी उसके द्वारा किये गए भ्रष्टाचार के लिहाज से सजा नहीं दी गई, ये इसी तरह से दलाली करते रहेंगे और इस देश की जनता मूकदर्शक बनी देखती रहेगी, यदि सही मायने में भ्रष्टाचार मिटाना है तो इस पूरे देश को अन्ना के नक़्शे कदम पर चलना होगा….
Gireesh Pandey
April 12, 2011 at 3:40 pm
मित्रों अनंत मित्तल सर को मैं पिछले 10 साल से जानता हूं। उन जैसा जुझारु और आंदोलनकारी पत्रकार मैने बहुत ही कम देखे हैं। शायद ना के बराबर। 10 मिनट उनसे बात करके देखिए..एक स्वतंत्रता सेनानी के बेटे होने के सारे गुण उनमें दिखाई दे जाते हैं। वो बड़े बड़े पर्दों पर नहीं बल्कि जमीन पर जमीन के लोगों के लिए लड़ाई लड़ते हैं।
शायद ही बहुत कम लोगों को 31 दिसम्बर,2010 की घटना के बारे में पता हो। जब उनके घर के पास ही रहने वाले एक मोटर साइकिल मैकेनिक सोनू की नोएडा बिजली विभाग की लापरवाही की वजह से मौत हो गयी। तब मैं तीन दिन उनके साथ था। 23 साल के सोनू को उन्होंने बचपन में हाथ से रोटी बनाकर खिलायी थी। सर्दी के उन भंयकर 3 दिन में … वो लगातार उसके परिवार को हक दिलाने के लिए थाने और अस्पताल में खड़े रहे। 1 जनवरी की कड़ाके ठंड में सुबह 6 बजे से शाम 9 बजे तक केवल और केवल खड़े ही रहे। इन 15 घंटों में लगभग 53-54 साल के उस शख्स ने केवल एक बिस्कुट का खाया। वो सिस्टम के साथ जूझते रहे…लड़ते रहे। और आखिर पुलिस और बिजली विभाग को झुकना ही पड़ा। आखिर कार थाना इंचार्ज को भी बोलना पड़ा कि मित्तल साहब अगर आप नहीं होते तो सोनू के घर वालो को तो कब का मार कर भगा दिया गया होता। इस पूरे समय में मैं उनके साथ था… समाज के आखिरी वर्ग के लिए भी उनका इतना समर्पण देखकर मैं तो उनका भक्त ही बन गया।
पत्रकारिता की नाक कटाने वाले बरखा जैसे व्यवसायिक पत्रकार तो मित्तल सर की धूली भी नहीं है। ना तो पत्रकारिता में और ना ही उनके जैसे व्यक्तित्व में। अनंत मित्तल जैसे पत्रकार भले ही मंत्री ना बनवाते हों, बड़ी बड़ी हवाई कारों में ना चलते हों लेकिन..आम बसों और मैट्रों में चल कर आम समाज को समझने और उनके लिए लड़ने को ही अपनी जिम्मेदारी समझते हैं। आज भी तमाम मैट्रों स्टेशन पर सिस्टम के खिलाफ उनकी शिकायतों का पुलिंदा देखा जा सकता है।
मुझे गर्व है कि मुझे ऐसे महान क्रांतिकारी, देशप्रेमी व समाजसेवी पत्रकार का सानिध्य व आशीष प्राप्त हुआ।