अख़बार के दफ्तर से फ़ोन आया कि आपके भेजे गए आवेदन को स्वीकार कर लिया गया है. सुनकर प्रसन्नता हुई और मैं अगले दिन दफ्तर पहुंच गया. पहुंचते ही मुझे एक बंद कमरे में भेज दिया गया जहां तीन लोग विराजमान थे. सेकंडों की नमस्कार-बंदगी के बाद सवालों का दौर शुरू हुआ.
आपको पता है कि किस पेज के लिए यहां रखे जा रहे हैं?
जी, सम्पादकीय के लिए.
इस पेज का एक दूसरा नाम क्या है?
जी, कुछ लोग इसे गंभीर पृष्ठ भी कहते हैं.
तो फिर गंभीरता शब्द के मायने बताएं?
समाज में जो लोग कम हंसते- बोलते है, बच्चे देखकर जिन्हें दूर भागते हैं, महिलाएं जिनके सामने चुप रहना जरुरी समझती हैं और नौजवान जिनके सामने बूढों जैसे दिखने लगते हैं, ऐसे लोगों को देखकर जो अहसास होता है उसे गंभीरता कहते हैं.
पर यहाँ काम करते हुए आपका वास्ता गंभीर लेखन से होगा, इस बारे में आपकी राय?
अख़बारों के जिस लिखे को सबसे कम पढ़ा जाता है उसे गंभीर लेखन कहा जाता है. इस पेज की खासियत होती है कि पहले पाठकों को बताया जाय कि यहाँ लेखक लोग ही लिखते हैं, चोर-उचक्के नहीं. उसके बाद यह लिखना अवश्यम्भावी होता हैं कि लेखक बटमारी- राहजनी के धंधे से नहीं साहित्य, पत्रकारिता, संगीत, कला, दर्शन, नाटक, राजनीति जैसी विधाओं से वास्ता रखते हैं. जैसे लेखक सामाजिक विषयों के जानकार हैं, लेखक स्वतन्त्र पत्रकार हैं आदि. बात यहीं खत्म नहीं होती बल्कि लेखक अपने क्षेत्र में कितने वरदहस्त या पारंगत हैं, यह भी बताना कलम क्लर्क यानी हमारे जैसों की बुनियादी जिम्मेदारी है.
आप इन विशेषताओं को लिखे जाने से सहमति जताते हैं?
यह सोचकर कि लेखन में कुछ ऐसे भी लोग होंगे जो असमाजिक विषयों पर लिखते होंगे इसीलिए यहाँ सामाजिक हैं, परतंत्र पत्रकारों की भी एक जमात होगी इसलिए हमारे यहाँ स्वतन्त्र हैं. साथ ही दूसरी जगहों पर राहजनी, बटमारी, करने वालों की भरमार होगी जबकि हमारे यहाँ शुक्र है कि लेखक ही अभी लिख रहे हैं.
बहुत खूब. लेकिन आप हमारे लिए विशेष क्या करेंगे जिसकी वजह से हम, आपको ही रखें?
वैसे तो गंभीर पेज पर करने के लिए कुछ होता नहीं है इसलिए मैं क्या कोई भी कुछ नहीं कर सकता. लेकिन मैं लेखकों के परिचय के लिए एक एक्सक्लूसिव शब्द लेकर आया हूँ “ककउनादा”. इस शब्द का इस्तेमाल पहली बार हमलोग ही एक्सक्लूसिवली करेंगे, जैसे लेखक ककउनादा हैं.
मेरे इस प्रस्ताव पर सामने बैठे तीनों महानुभाव खुश हुए. और पूछलिए कि, ‘मगर इसका मतलब तो बताएं.’
मैंने कहा, “ककउनादा”- का मतलब हुआ कि लेखक कवि, कहानीकार, उपन्यासकार, नाटककार और दार्शनिक हैं. अगर किसी का परिचय इससे आहत होगा तो आगे-पीछे उत्सर्ग-प्रत्यय जोड़ लिया जायेगा.
मेरे इस सुझाव पर तीन स्तरों के संपादकों के समूह ने मुझे काम के योग्य माना. उन्हें यह शब्द इतना पसंद आया कि वे इसे कॉपीराइट कराने पहुंच गए. संयोग से यह शब्द दूरदर्शन के किसी सीरियल का जूठन निकला…… लेकिन हमारे यहां आज भी एक्सक्लूसिव वर्ड है…. और मैं खोजकर्ता.
इस व्यंग्य के लेखक अजय प्रकाश हैं. उनके ब्लाग जनज्वार से यह साभार लिया गया है.
Abdul wahid
April 20, 2010 at 10:37 am
कितना अच्छा शब्द है ककउनादा..। दिल गार्डेन -गार्डेन हो गया..।
मन आह्लादित है या प्रफुल्लित कह नहीं सकता..। उस्ताद जाकिर हुसैन कहा करते थे वाह ताज .. मैं कहता हूँ वाह ककउनाद..।
ब्लिकुल सही तस्वीर पेश की है आपने..।
भूरि भूरि.. साधुवाद..।
Rohit
April 21, 2010 at 5:48 am
वाकई ककऊनादा एक नया और अनोखा शब्द है….और पहली बार में ही ध्यान आकर्षित करता है….अजय प्रकाश जी वास्तव में तारीफ के हकदार हैं।
BIJAY SINGH
April 22, 2010 at 2:39 pm
gajabbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbb.