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अखबार मालिक सबसे बड़े दलाल

सच लिखा तो मुझे नौकरी से बाहर किया गया : जान से मारने की धमकियां मिल रही हैं : मैं विगत एक दशक से मीडिया से जुड़ा हुआ हूं। प्रिंट में काफी समय तक काम किया। अब दो वर्षों से दूरदर्शन न्यूज का स्ट्रिंगर हूं। पुराने कटु अनुभव आज तक जस के तस दिल में दफन हैं। भड़ास4मीडिया पर कई साथियों के पत्र पढ़कर पुराने जख्म हरे हो गए। अन्दर की हूक रोक न सका। कस्बाई क्षेत्र से पत्रकारिता शुरू करने के कारण मैंने जमीनी सच को बहुत नजदीक से देखा और महसूस किया है। निश्चित ही महानगरों की अपेक्षा छोटी जगहों पर पत्रकारिता करना तलवार पर नंगे पैर चलने से कम नहीं होता। इन जगहों पर लड़ने के लिये एक साथ कई फ्रंट खुले होते हैं। ज्यादातर अखवार इन कस्बाई संवाददाताओं को कोई पारश्रमिक नहीं देते, जबकि हर खबर पर नज़र रखने के लिये कहते हैं। इसमें काफी समय-श्रम-शक्ति खर्च होती है। परिवार के भरण-पोषण की समस्या तो हमेशा मुंह बाये खड़ी रहती है। विज्ञापन के कमीशन से कमाई की बात तब करें तो यह तभी संभव है जब विज्ञापन देने वाली कोई ठीकठाक पार्टी मिले। संपादक अपने आका को खुश करने के लिये नीचे की हर कड़ी पर चाबुक बरसाता नज़र आता है।

<p align="justify"><strong>सच लिखा तो मुझे नौकरी से बाहर किया गया : जान से मारने की धमकियां मिल रही हैं : </strong>मैं विगत एक दशक से मीडिया से जुड़ा हुआ हूं। प्रिंट में काफी समय तक काम किया। अब दो वर्षों से दूरदर्शन न्यूज का स्ट्रिंगर हूं। पुराने कटु अनुभव आज तक जस के तस दिल में दफन हैं। भड़ास4मीडिया पर कई साथियों के पत्र पढ़कर पुराने जख्म हरे हो गए। अन्दर की हूक रोक न सका। कस्बाई क्षेत्र से पत्रकारिता शुरू करने के कारण मैंने जमीनी सच को बहुत नजदीक से देखा और महसूस किया है। निश्चित ही महानगरों की अपेक्षा छोटी जगहों पर पत्रकारिता करना तलवार पर नंगे पैर चलने से कम नहीं होता। इन जगहों पर लड़ने के लिये एक साथ कई फ्रंट खुले होते हैं। ज्यादातर अखवार इन कस्बाई संवाददाताओं को कोई पारश्रमिक नहीं देते, जबकि हर खबर पर नज़र रखने के लिये कहते हैं। इसमें काफी समय-श्रम-शक्ति खर्च होती है। परिवार के भरण-पोषण की समस्या तो हमेशा मुंह बाये खड़ी रहती है। विज्ञापन के कमीशन से कमाई की बात तब करें तो यह तभी संभव है जब विज्ञापन देने वाली कोई ठीकठाक पार्टी मिले। संपादक अपने आका को खुश करने के लिये नीचे की हर कड़ी पर चाबुक बरसाता नज़र आता है। </p>

सच लिखा तो मुझे नौकरी से बाहर किया गया : जान से मारने की धमकियां मिल रही हैं : मैं विगत एक दशक से मीडिया से जुड़ा हुआ हूं। प्रिंट में काफी समय तक काम किया। अब दो वर्षों से दूरदर्शन न्यूज का स्ट्रिंगर हूं। पुराने कटु अनुभव आज तक जस के तस दिल में दफन हैं। भड़ास4मीडिया पर कई साथियों के पत्र पढ़कर पुराने जख्म हरे हो गए। अन्दर की हूक रोक न सका। कस्बाई क्षेत्र से पत्रकारिता शुरू करने के कारण मैंने जमीनी सच को बहुत नजदीक से देखा और महसूस किया है। निश्चित ही महानगरों की अपेक्षा छोटी जगहों पर पत्रकारिता करना तलवार पर नंगे पैर चलने से कम नहीं होता। इन जगहों पर लड़ने के लिये एक साथ कई फ्रंट खुले होते हैं। ज्यादातर अखवार इन कस्बाई संवाददाताओं को कोई पारश्रमिक नहीं देते, जबकि हर खबर पर नज़र रखने के लिये कहते हैं। इसमें काफी समय-श्रम-शक्ति खर्च होती है। परिवार के भरण-पोषण की समस्या तो हमेशा मुंह बाये खड़ी रहती है। विज्ञापन के कमीशन से कमाई की बात तब करें तो यह तभी संभव है जब विज्ञापन देने वाली कोई ठीकठाक पार्टी मिले। संपादक अपने आका को खुश करने के लिये नीचे की हर कड़ी पर चाबुक बरसाता नज़र आता है।

हर समाचार पत्र निष्पक्ष, निर्भीक और सच को उजागर करने का भोपू बजाते हैं। लेकिन यह सब झूठ और ढकोसला के सिवाय कुछ नहीं है। पूरा जोर विज्ञापन लाने के लिये होता है। संवाददाता पर जबरन एक बड़ा टारगेट थोपा जाता है। छोटे से छोटे पर्वों पर बधाई सन्देश प्रकाशित करने का चलन है। बेचारा पत्रकार, अपना बिल्ला बचाने के लिये दर-दर जाकर ऐसे मिमियाता है जैसे बीते समय में कमजोर तबका त्योहारी मांगने किसी की ड्योढी पर बैठा हो। भला मध्यम आय वर्ग वाला बार-बार विज्ञापन क्यों देगा?

जाहिर-सी बात है कि ऐसे में संवाददाता भू-माफिया, सट्टा किंग, मादक पदार्थों के अवैध कारोबारी, टैक्स चोरों आदि अराजक तत्वों से त्योहार के मौके पर हर्ष व्यक्त करवाने में संकोच न करेगा। अगर वह ऐसा करेगा तो फिर उन गलत लोगों के गलत कामों का खुलासा तो सपने में भी नहीं करेगा। ऐसे में वह कैसे निष्पक्ष पत्रकारिता का धर्म निभा सकेगा? तो उस कस्बाई संवाददाता से निष्पक्ष पत्रकारिता करने की अपेक्षा करना सरासर ज्यादती है। कई बार तो ऐसा होता है कि विज्ञापन देने वाले गलत लोगों की मदद करनी पड़ जाती है संवाददाताओं को। फिर पत्रकारिता कहां रही? यह तो भड़ुआगिरी जैसी है। खेद से कहना पड़ रहा है कि मजबूरन अधिकांश को अपनी पत्रकारिता बचाने की खातिर ऐसा ही करना पड़ रहा है। अन्यथा मेरी तरह भुगतने को तैयार रहना होगा।

मैं आगरा से प्रकाशित एक अखबार का स्थानीय संवाददाता था। एक जुर्रत करते हुए नगर के चेयरमैन और धन-बल के धनी का कच्चा चिट्ठा खोलते लेख लिख बैठा। इसमें खुलासा किया था कि उन्होंने बंदूक के कारतूसों की तस्करी ऐसे क्षेत्र में की थी जहां से सम्भवत: नक्सलियों के हाथ पहुंचने की आशंका थी। एक बड़ी खेप नालन्दा बिहार रेलवे स्टेशन पर पकड़ी भी गई थी जिसकी जांच होने पर चेयरमैन महोदय को चुनाव से पूर्व कई महीनों तक जेल की हवा भी खानी पड़ी थी। लेकिन इतना संगीन आरोप होने के बावजूद उन्होंने नामांकन फार्म में इसका जिर्क नहीं किया। यह गैर कानूनी था। इसके चलते उनकी पात्रता समाप्त हो सकती है।

जब मैंने यह गंभीर मामला अपने अखवार को भेजा तो शायद बड़ा विज्ञापनदाता होने के चलते इसे प्रकाशित नहीं किया गया। मैंने इस खबर को तैयार करने में काफी पापड़ बेले थे। चाहता तो पार्टी से मिल कर लाभ कमा सकता था। लेकिन अन्दर का पत्रकार कुलबुला रहा था। मैंने एक पत्रिका में खबर लगा दी। बस फिर क्या था, मुझे बुरे दिन देखने पड़े। मुझे रातोंरात अखबार से विदा कर दिया गया। मुझे आज तक जान से मारने की धमकी मिलती है। तभी मुझे लगने लगा कि ज्यादातर अखबार मालिक दलाल हैं। पत्रकार तो छोटी-मोटी दलाली कर सकता है। बड़ा दलाल तो मालिक लोग ही हैं।

मैं दूरदर्शन का स्ट्रिंगर बन गया हूं। इन चेयरमैन महोदय ने वहां भी मेरे खिलाफ आरोप पत्र दे दिया है। हालांकि संस्थान मेरे द्वारा पेश साक्ष्य के आधार पर संतुष्ट हो गया है लेकिन जान को लगातार खतरा तो है ही। प्रशासन उन्हीं की तरफदारी करते हुए मुझे प्रताड़ित करने की मुद्रा में है। फिर भी मुझे अपने आप पर गर्व है। आज सभी अखबार एक जैसे नहीं है। अनगिनत ऐसे भी हैं जो विज्ञापन की अपेक्षा खबर को प्राथमिकता देते हैं। इन्हीं के दम पर पत्रकारिता को लोकतन्त्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है।

अरूण ठाकुर

स्ट्रिंगर

दूरदर्शन न्यूज

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फिरोजाबाद

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0 Comments

  1. rajendra

    January 24, 2010 at 1:41 pm

    अरुण जी
    नमस्कार

    आप का लेख पढ़ा और मुझे बहुत अच्छा लगा और मैं आप की बात से पूरी तरह सहमत भी हूँ ! जैसे कि मैं समझता हूँ पत्रकारिता और बिज़नस दोनों अलग अलग होने चाहिए, लेकिन आज के समय में ऐसा नहीं हो रहा है! अख़बार आज कल एक धंधा हो गया है, ख़बरें पैसे देकर या तो छापी जाती हैं या फिर कुछ ख़बरें पैसे देकर रोकी जाती हैं !

    पहले तो अख़बार आम जनता के लिए होता था, लेकिन अब इस ज़माने में आम जनता को परेशान करने के लिए होता है ! आजके
    समय में बिल्डरों ने लाखों लोगो के पैसे हड़प लिए हैं लेकिन अख़बार वाले किसी की खबर नहीं लगते क्योंकि उनसे धंधा लेना है, कई ऐसे बिल्डर हैं जिन्होंने अख़बार वालों को तो मालामाल कर दिया और आम जनता का पैसा लेकर अपनी मौज मस्ती कर रहे हैं आज तक कोई घर नहीं बनाया है ! और भी कई बड़े बड़े लोगों की ख़बरें रोक दी जाती हैं, जो कि हकीकत में छपनी चाहिए, उनकी असली छवि आम जनता के सामने आनी चाहिए ! लेकिन ये कब संभव होगा कुछ भी नहीं कहा जा सकता है!

    सरकार भी इन्हीं गुंडों के साथ मिली हुई है, आम आदमी कुछ नहीं कर सकता, सिवाए चुप रहने के !
    दोस्त लिखने के लिए तो बहुत कुछ है लेकिन कहाँ तक लिखूंगा !

    धन्यवाद

    राजेंद्र शर्मा

  2. ek patrkar

    January 24, 2010 at 1:22 pm

    arun ji namaskar …aap ne ek dam theek khaha ….akhbar me yeah sab hota hai ..sath kamobesh tv channels me kuch ishi tarah ka haal …..aap ko bata du ki kai tv channels toh cabel opreator ke khilaf khabar nahi chalate hai …sath he kai ek baar toh khabar bhale he aachi ho toh ,waha baithe seniors kehte hai ki yeah khabar nahi chelegi keyo ki iss khabar ka profile kharab hai …. sath me yeah bhi hota hai ki agar koi khabar aap karke aate ho …aur uss khabar ke against aap koi case ho jaye toh usse aap ko hi bughatana padega ….aab aise me kaun khabar karega ….bhai jab tak channel me naukari hai tab tak toh mana channel aap ka ko mile notic eko dekhta hai …lekin agar waha se aap naukari chorte hai ya phir aap ko waha se nikal diya jaata hai to uss notice ko aap ko jhelna padega ….

  3. ARUN KUMAR

    January 24, 2010 at 2:32 pm

    arun jee apka darad padha apki himmat ka sath dete hue ye kahna chahta hu ke apne us sammnit akhbar ka ne nehi lekha akhir ap ab bhi akhabae se dar rahe hai

  4. Hemant Tyagi, journalist, ghaziabad

    January 24, 2010 at 3:37 pm

    Except few,most of the news paper owners are bastered(haraami)and blackmailers. ARUN KUMAR is the symbol of such journalists who are some how exploited by such blackmailer owners.Now the editors have become the liasoning officers and news selling agentsand they too are doing this job for their livelihood.

  5. Sanjay Gupta (Journalist) Orai (Jalaun)

    January 24, 2010 at 5:08 pm

    अरुण भाई…
    क्या खूब लिखा है आपने . अखबार मालिक ही सबसे बड़े दलाल|
    वास्तव में देखा जाए तो ऐसे ही अखबार मालिको का संरक्षण भी नेताओं, गुंडों , भूमाफियाओं को मिला हुआ, जो पत्रकार को महज एक कठपुतली समझता है| जिसे वो मालिको की दम पर जब चाहे नचाने की क्षमता रखता है|
    क्योंकि ऐसे लोगो को पता है कि आजकल पैसो से सब कुछ खरीदा जा सकता है वो चाहे खबर ही क्यों न हो| आपके साथ जो कुछ भी घटित हुआ वो तो सिर्फ एक बानगी भर है ऐसे वाक्ये रोज ही किसी न किसी ईमानदार और जुझारू पत्रकार के साथ घटित होते है|
    लेकिन दोस्त कर भी क्या सकते है कहावत है… एक मछली सारे तालाब को गंदा कर देती है वही हाल इन अखबार मालिको का है जो केवल अपना सुख और वैभव देखते है, उन्हें अपने पत्रकार की कोई चिंता ही नहीं रहती| वास्तव में देखा जाए वर्तमान परिदृश्य में एक पत्रकार की आर्थिक स्थिति मनरेगा योजना में काम करने वाले दिहाड़ी मजदूर से भी बदतर होती है|
    खैर दोस्त लिखने को इन दलाल मालिको के लिए बहुत कुछ है लेकिन आपने जो कडुवा सच लिखा है उसे पढ़कर कई दलाल तरह के अखबार मालिक अपनी अपनी गिरेबान में जरुर झांक रहे होगे…
    संजय गुप्ता (संवाददाता)
    उरई (जालौन)

  6. Anam

    January 25, 2010 at 4:11 am

    Koi yeh kyo nahi Samajhata ki Editor, Reporter, Operator ko Itani Sari Saleray kaha se mil rahi hai… 1000-2000 rs ke liye hum Newspaper Chhod dusare ko pakad lete hai…. Akhir management paisa dega kaha se? jise lagata hai ki yehsocial service hai… to ve khud social Service ke liye maidan main aa jaye…

  7. ajay kumar mishra

    January 25, 2010 at 5:14 am

    humsub apke sath hae. himmat se ese hi bevak l;ikhe rahie. apkasathi AJAY MISHRA

  8. winit

    January 25, 2010 at 5:59 am

    Lekin Nirbhikta se kaam karne walw madhayamo ko dhundne se bhi honarary patrakar nahi milte…
    sab ko bade banner ka aisa chasak laga hai ki wahan jhuk k exploit ho jane me jara bhi nahi hichakte

  9. pradeep sharma

    January 25, 2010 at 2:20 pm

    deaer aroonji, aapko is chorbaazar ki jankari bhale der se lagi ho lekin ab aapko saavdhan rahna hoga…agar aapko lagta he ki desh ki rajdhani new dehli ya other state se publish ho rahe news papers are news channel journalism karne k liye aaye he to kripya is galat fehmi ko nikal kar koode me fenk de,pahle apne parivar ko dekhe,desh me satya k liye kurban hua logo k naam par harami kya-2 karte he aap dekh rahe he,mera aapka manobal kamzor karne ka eerada nahi he,kutilta sikhe…kisko kese marna he..mahabharat k krishna se sikhe.ok. pradeep sharma,journalist.mandsaur,mp.

  10. Sam Kumar

    January 25, 2010 at 6:43 pm

    Dear Arun G,
    Aapne bilkul sahi likha hain. Vigyapan ke pher main patrkaro ki yahi durgati kar di hain. Vigyapan se aakbar ka kharcha chalta hain lekin iske liye marketing wale responsible hone chaayine. Parntu main kai aise patrkaro ko bhi jaanta hoon jo commission ke chakkar main advt. staff aur advt. agency ko support na karte hue jabardasti un logo ke khilaaf news laagte hain jo advt. unhe na de kar seedhe advt. staff ya advt. agency ko dete hain. Pheechle dino aapne bhi yahi par kanpur amar ujala ke sub office ki news padi hogi. Akbhar maliko ko edt. staff ki salary badani chayine aur unka advt. comm. khatam karna chayine.

  11. anil chourasiya

    January 26, 2010 at 12:12 pm

    aaj ke patrakar malik ek dhanda banakar hi news chhapane ka kam kar rahe hai aisi kitne khabara hai jise patrakar apne jaan par khelkar lekar aate hai lekin ye dalal dalali kar kar baith jate hai

  12. akash rai

    September 28, 2010 at 4:53 am

    aurn ji, patkarita roj ek naya kua khodne ke samaan hai.
    ajadi ke samay patkarita ek missoin hua karti thi aaj shudh roop me vyabsaye
    ban gai hai . sirf missoin patkaro ke liye chord diya hai . aaj patkarita me apradhio ke ghuspaith hone se yeh pesha bankr rah gaya . loktant ka choutha satmbh dalalo ke beech siskiya le raha hai. sach kahne bale ki aabaj dava di jati hai uski kalam ko toodne patkaar ko farji kesh me fasane ka kuchkra racha jata hai yeh sub hamary aapke beech ke patkaar hi karte hai . patra ka malik rato raat agency badal dete hai .

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