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आयोजन

मुंबई में अवधी सम्मेलन : जोबन गयो तो भल भयो…

[caption id="attachment_16894" align="alignnone"](बाएं से दाएं)- संयोजक राजेश विक्रांत, कवि-गीतकार  देवमणि पांडेय, प्रमुख अतिथि जगदीश पीयूष, अर्चना मिश्र, एडवोकेट विजय सिंह, समारोह अध्यक्ष डॉ. रामजी तिवारी, संपादक प्रेम शुक्ल, पं. किरण मिश्र, पत्रकार ओमप्रकाश तिवारी,  वरिष्ठ पत्रकार अनुराग त्रिपाठी (बाएं से दाएं)- संयोजक राजेश विक्रांत, कवि-गीतकार देवमणि पांडेय, प्रमुख अतिथि जगदीश पीयूष, अर्चना मिश्र, एडवोकेट विजय सिंह, समारोह अध्यक्ष डॉ. रामजी तिवारी, संपादक प्रेम शुक्ल, पं. किरण मिश्र, पत्रकार ओमप्रकाश तिवारी, वरिष्ठ पत्रकार अनुराग त्रिपाठी [/caption]

अवधी का सौभाग्य कि उसको राम मिले : लोक जीवन की अदभुत झाँकी प्रस्तुत करने वाली अवधी भाषा बड़ी भाग्यशाली है। इसके सौभाग्य का सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि इसे गोस्वामी तुलसीदास सरीखा महाकवि मिला और गोस्वामीजी का सौभाग्य कि उन्हें श्रीराम सरीखा महानायक मिल गया। परिणामस्वरूप श्रीरामचरितमानस जैसे महाकाव्य की रचना हुई। ये विचार मुंबई विश्वविद्यालय के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. रामजी तिवारी ने ‘रंग भारती’ और “हम लोग” द्वारा मुम्बई (विलेपार्ले) के शुभम हाल में आयोजित “अवधी सम्मेलन” में व्यक्त किए।

(बाएं से दाएं)- संयोजक राजेश विक्रांत, कवि-गीतकार देवमणि पांडेय, प्रमुख अतिथि जगदीश पीयूष, अर्चना मिश्र, एडवोकेट विजय सिंह, समारोह अध्यक्ष डॉ. रामजी तिवारी, संपादक प्रेम शुक्ल, पं. किरण मिश्र, पत्रकार ओमप्रकाश तिवारी, वरिष्ठ पत्रकार अनुराग त्रिपाठी

(बाएं से दाएं)- संयोजक राजेश विक्रांत, कवि-गीतकार  देवमणि पांडेय, प्रमुख अतिथि जगदीश पीयूष, अर्चना मिश्र, एडवोकेट विजय सिंह, समारोह अध्यक्ष डॉ. रामजी तिवारी, संपादक प्रेम शुक्ल, पं. किरण मिश्र, पत्रकार ओमप्रकाश तिवारी,  वरिष्ठ पत्रकार अनुराग त्रिपाठी

अवधी का सौभाग्य कि उसको राम मिले : लोक जीवन की अदभुत झाँकी प्रस्तुत करने वाली अवधी भाषा बड़ी भाग्यशाली है। इसके सौभाग्य का सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि इसे गोस्वामी तुलसीदास सरीखा महाकवि मिला और गोस्वामीजी का सौभाग्य कि उन्हें श्रीराम सरीखा महानायक मिल गया। परिणामस्वरूप श्रीरामचरितमानस जैसे महाकाव्य की रचना हुई। ये विचार मुंबई विश्वविद्यालय के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. रामजी तिवारी ने ‘रंग भारती’ और “हम लोग” द्वारा मुम्बई (विलेपार्ले) के शुभम हाल में आयोजित “अवधी सम्मेलन” में व्यक्त किए।

अवधी अकादमी के अध्यक्ष व बोली बानी के संपादक जगदीश पीयूष ने प्रमुख वक्ता के रूप में बोलते हुए कहा कि अवधी भाषा उ.प्र. के 24, बिहार के 2 तथा नेपाल के 8 जिलों में लगभग 12 करोड़ लोगों की भाषा है। तुलसीदास, अमीर खुसरो, मलिक मोहम्मद जायसी, मुल्ला दाउद, कबीर, कुतुबन, मंझन और रहीम सरीखे महाकवियों ने अवधी में काव्य रचना करके इस लोकभाषा को गौरव प्रदान किया।

नवभारत टाइम्स के वरिष्ठ पत्रकार अनुराग त्रिपाठी ने कहा कि हिंदी को जन्म देनेवाली अवधी का दीप मुंबई में पहली बार प्रज्जवलित हुआ है, हमें इसे हमेशा जलाए रखना है। दोपहर का सामना के कार्यकारी संपादक प्रेम शुक्ल ने अवधी हिंदी की आत्मा है। श्रीरामचरितमानस व पदमावत के बिना हिंदी की कल्पना ही नहीं की जा सकती। उन्होंने अवधी प्रेमियों को भरोसा दिलाया कि “रंगभारती” की ओर से शीघ्र ही “अवध महोत्सव” का आयोजन किया जाएगा ताकि अवधी का प्रवाह रुकने नहीं पाए।

कवि-गीतकार देवमणि पांडेय ने बताया कि सुलतानपुर के लोककवि पं.रामनरेश त्रिपाठी ने 1925 और 1930 के बीच अवध क्षेत्र का दौरा करके 15 हज़ार  से भी अधिक लोकगीतों का संग्रह किया था। इसी के आधार पर उन्होंने ‘कविता कौमुदी’ किताब लिखी। उनके इस प्रयास की सराहना महात्मा गाँधी और पं. जवाहरलाल नेहरु ने भी की थी। लोककाव्य के लालित्य पर चर्चा करते हुए पांडेयजी ने कहा कि एक तरफ इसमें उमंग और उल्लास की मधुर छवियाँ हैं तो दूसरी तरफ़ दुख और अभाव के त्रासद चित्र भी हैं –

मन तोरा अदहन, तन तोरा चाउर, नैना मूँग कै दालि ।

अपने बलम का जेंवना जेंवतिउ, बिनु लकड़ी बिनु आगि ।।

 

मँहगी के मारे बिरहा बिसरिगा, भूलि गइ कजरी कबीर ।

देखि क गोरी क मोहिनी सुरति अब, उठै न करेजवा मँ पीर ।।

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देवमणि पांडेय ने लोककाव्य के विविध रूपों – सोहर, कजरी, बिरहा, होरी, मेला गीत, विदाई गीत आदि पर भी रोचक चर्चा की। उन्होंने कहा कि अवध में बड़े किसान अहीर के लड़कों को चरवाहे का काम देते थे। ये नौजवान चरवाहे  अँगोछे में बासी रोटी बाँधकर सुबह गाय-भैसों के साथ जंगल में चले जाते थे और शाम ढलने पर वापस लौटते थे। अपना समय काटने के लिए मौज-मस्ती में या प्रिय जनों के विरह (याद) में ये लोग जो गीत गाते थे उसे बिरहा कहा गया। शादी-व्याह के अवसर पर अहीरों के नाच में बड़े मज़ेदार बिरहे सुनने को मिलते थे –

बड़ निक लागै गाइ चरवहिया भुइयाँ जो परती होय ।

बड़ निक लागै मेहरी क कोरवा जबले लरिकवा न होय ।।

दोहे में भी लोकजीवन की अदभुत छटा दिखाई देती है। सुंदर स्त्री से हर कोई बात करना चाहता है। मगर उसकी व्यथा देखिए –

जोबन गयो तो भल भयो, तन से गई बलाय ।

जने जने का रूठना, मोसे सहा न जाय ।।

इस अवसर पर आयोजित लोककाव्य संध्या में गीतकार हरिश्चंद्र, बृजनाथ, आनंद त्रिपाठी, पं. किरण मिश्र, देवमणि पांडेय, डॉ.बोधिसत्व, ह्रदयेश मयंक, रामप्यारे रघुवंशी, सुरेश मिश्र, ओमप्रकाश तिवारी, अभय मिश्र, रासबिहारी पांडेय, मनोज मुंतशिर, आदि ने लोकभाषा की बहुरंगी रचनाएं सुनाकर श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। समारोह में मुम्बई की धरती पर सर्वप्रथम रामलीला का आयोजन करने वाले स्व.शोभनाथ मिश्र के सुपुत्र तथा “श्री महाराष्ट्र रामलीला मंडल” के महामंत्री द्वारिकानाथ मिश्रा का सम्मान किया गया। लोकगायक दिवाकर द्विवेदी व बाल कलाकार आदित्यांश ने भी सम्मेलन में भागीदारी की। अतिथियों का स्वागत “हम लोग” संस्था के अध्यक्ष एडवोकेट विजय सिंह ने किया। आभार प्रदर्शन अवधी सम्मेलन मुंबई के संयोजक राजेश विक्रांत ने माना।

मुंबई से राजेश विक्रांत की रिपोर्ट

 

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0 Comments

  1. शेष नारायण सिंह

    February 9, 2010 at 10:10 am

    मुंबई में अवधी जानने वाले लाखों लोग रहते हैं लेकिन वहां अवधी भाषा को वह पहचान नहीं मिलती जो मिलनी चाहिए. जगदीश पीयूष की यह कोशिश निश्चित रूप से सराहनीय है . मंच पर जो विद्वान् और अवधी भाषा के जानकार नज़र आ रहे हैं , उन पर कोई भी समाज गर्व कर सकता है .. आशा है मुबई की फ़िल्मी दुनिया में भी अवधी भाषा का मजाक उडाना बंद कराने में इन लोगों को सफलता मिलेगी.

  2. विवेक तिवारी

    February 9, 2010 at 10:18 am

    बिल्कुल्लै सही बात हौ,,अवधी का ऊ सम्मान नाहीं मिला जउन ई भाषा के मिलल चाहीं. हैरानी यहू है कि हिंदी सिनेमा में अवधी भाषा का भोजपुरी बताय बताय कै गुमराहौ किया गवा. मुंबई के अवधी भाइयन के परणाम..बहूतै नीक परयास किहैं वै सब

  3. k

    February 10, 2010 at 5:42 am

    अव्वल है अवधि

  4. devmanipandey

    February 10, 2010 at 9:38 am

    इतने सुंदर कमेंट के लिए शुक्रिया । अवधी के सपूत पं.रामनरेश त्रिपाठी का इतना सम्मान था कि एक बार उद्योगपति घनश्यामदास बिरला ने उनसे निवेदन किया कि त्रिपाठी जी आप कोई ऐसी वंदना लिख दीजिए जिसे मैं और मेरे बच्चे रोज़ सुबह गाएं । तब उन्होंने लिखकर दिया था –

    हे प्रभो आनंददाता ज्ञान हमको दीजिए
    शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिए

    यह वंदना उस समय इतनी लोकप्रिय हुई कि सारा हिंदुस्तान गाने लगा .

  5. Pankaj Shukla

    February 10, 2010 at 4:17 pm

    मुंबई में उत्तर भारतीयों के तौर पर बस पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों का ही नाम लिया जाता है, जबकि मुंबई में अवधी जानने और बोलने वालों की बड़ी आबादी है। अवधी भाषियों को जोड़ने और अवधी को उसकी खोई पहचान दिलाने के लिए इस तरह के प्रयास बहुत ज़रूरी हैं। बैठकों, गोष्ठियों और ब्लॉग के जरिए जो भी जितना कर सके, करना चाहिए। ऐसे सम्मेलनों में अवधी के ब्लॉगरों को भी बुलाया जाना चाहिए।

    पंकज शुक्ल
    http://manjheriakalan.blogspot.com/

  6. Dr.Hari Ram Tripathi

    February 26, 2010 at 12:50 pm

    g lekpkj lEiknd th( A mRrj izns”k ds 20 ftyksa ds 5 djksM yksx vo/kh Hkk’kh gSaAeqEcbZ esa Hkh yk[kksa yksx vo/kh cksyrs gSaA jkts”k foØkUr c/kkbZ ds ik= gSaaA txnh”k ih;w’k th+ dh vo/kh lsok tx tkfgj gSAysfdu x+| lkfgR; ds vHkko esa ;g Hkk’kk ihNs jg xbZA
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  7. shambhu nath

    May 7, 2010 at 7:36 am

    bahut hi badhiyaa prashan hai .. ab to log bhojpuri hi japate hai lekin bhojpuri me hamari awadhi ke shavd samahit hai.. jise log bhojpuri pukarte ..
    kyaa rang barse bheege chunarwali..jo geet isame kitane bhojuri ke shavd hai..lekin log kahate hai ki bihar ke den hai bo0jpuri lekin awadhi ki alag pahchaan bane tabhi hamare awadh ke logo ka utthan hogaa..

  8. shubham singh

    August 18, 2010 at 5:10 pm

    very nice

  9. DINESHTANHA

    March 4, 2011 at 5:51 pm

    filmo me zyada samwad awadhi me hi bole gaye hai,geeto me bhi awadhi ke sabd zyada hai, kalakar kanhaiya lal ke dailog ‘MOTHER INDIA’
    GANGA JAMUNA me sune to,kya bat hai.

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