राडिया राज 6 : वीर सांघवी बहुत अच्छा लिखते हैं और सब विषयों पर लिखते हैं। राजनीति से ले कर मछली, मुर्गे और शराब तक टीवी पर भी वे अक्सर कार्यक्रमों में नजर आते हैं और सबसे अच्छे इंटरव्यू देने वालों में उनकी गिनती होती है। अपन उनके इतने बड़े प्रशंसक हैं कि एक बार उनसे कह चुके है कि आपके साप्ताहिक कॉलम का हिंदी अनुवाद मैं करना चाहूंगा। वक्त की कमी की वजह से यह शुरू नहीं हुआ और अब जो सामने आया है उससे मुझे नहीं लगता कि वीर सांघवी जैसे आदमी के लिखे का अनुवाद मुझे करना चाहिए। वीर सांघवी मुंबई के एक रईस परिवार के बेटे हैं। पढ़ाई लिखाई भी अमेरिका से ले कर इंग्लैंड तक हुई है। जिस थाइलैंड में वेश्यावृत्ति कानूनी तौर पर मंजूर हैं वहां के प्रधानमंत्री वीर सांघवी को थाइलैंड के मित्र का सम्मान दे चुके हैं। पता नहीं इस सम्मान का क्या मतलब निकाला जाए? सिर्फ बाइस साल की उम्र में इंडिया टुडे समूह की एक पत्रिका के संपादक बन जाने वाले वीर सांघवी ने पहली जो किताब लिखी थी उसमें दुनिया के कई सारे सेठों की जीवनियां थी।
एक किताब उन्होंने माधव राव सिंधिया पर भी लिखी है। मगर वीर सांघवी के बारे में आयकर विभाग, सीबीआई और राजस्व निदेशालय की निगरानी के जो दस्तावेज निकल कर सामने आ रहे हैं वे न सिर्फ चौकाने वाले हैं बल्कि इस बात पर यकीन करने के लिए मजबूर करते हैं कि प्रतिमाएं टूट रही हैं और उनके टूटने की आहट भी होने लगी है। अपने पास जो दस्तावेज हैं उसके अनुसार अति गोपनीय नीरा राडिया जांच रिपोर्ट में वीर सांघवी का नाम सोलह जगह आया हैं। वे कई नेताओं को मंत्री बनाने के लिए बाकायदा मोल भाव और सौदेबाजी कर रहे थे और कम से कम ए राजा के लिए तो उन्होंने कांग्रेस के चार बड़े नेताओं से बात की थी।
मुंबई के एक बड़े कॉरपोरेट घराने रिलायंस ने वीर सांघवी की विमान यात्राओं के कई बिल भरे, ये बिल किस हिसाब में गए यह पता नहीं। टाटा समूह के ताज और ओबेरॉय होटल के मैनेजरों ने वीर सांघवी की खूब सेवा की और तरह तरह से की। अभी रकम का जिक्र नहीं आया है मगर आम तौर पर ईमानदार माने जाने वाले टाटा समूह ने भारत के मंत्रिमंडल को मैनेज करने के लिए लगभग 120 करोड़ रुपए का बजट रखा था। इसमें वीर सांघवी को कितना मिला पता नहीं? भगवान करे कि ये परम गोपनीय सरकारी सूचनाएं गलत निकले क्योंकि दिल है कि मानता नहीं।
एक हैं बरखा दत्त। देश में और दुनिया में उनके प्रशंसकों की लंबी कतार हैं। कई फिल्मों में महिला पत्रकार की भूमिका निभाने वाली नायिकाएं बरखा दत्त से सीख कर उनकी नकल करती नजर आती हैं। उन्हें पद्म श्री भी मिल चुका हैं और संयोग से जिस हिंदुस्तान टाइम्स के संपादकीय निदेशक वीर सांघवी हैं उसी में बरखा का साप्ताहिक कॉलम भी छपता है। बरखा के पिता एसपी दत्त एयर इंडिया में काम करते थे और मां प्रभा दत्त हिंदुस्तान टाइम्स में। दुर्भाग्य से जब बरखा सिर्फ तेरह साल की थी तो उनकी मां प्रभा दत्त ब्रैन हैमरेज से चल बसी थी। बरखा की बहन बहा दत्त भी सीएनएन आईबीएन में काम करती हैं मगर वे ज्यादा मशहूर नहीं है। बरखा दत्त मशहूर हैं, लोकप्रिय हैं, लगभग सितारा हैं मगर नीरा राडिया के साथ दलाली के चक्कर में अब उनके सितारे भी गर्दिश में है। सरकारी रिपोर्ट में उनका नाम भी बारह जगह आया है और साफ शब्दों में कहा गया है कि नीरा राडिया के लिए जो बड़े पत्रकार दलाली कर रहे थे उनमें बरखा भी थी। ये दिल तोड़ने वाली खबर है मगर बाकायदा प्रमाणित दस्तावेज है।
नीरा राडिया देश की सुपर फिक्सर हैं और उनके जाल में सिर्फ बरखा और वीर सांघवी नहीं फंसे। नीरा के दलालों में पांच और पत्रकार हैं जिनके नाम रिपोर्ट में हैं मगर अभी तक उजागर नहीं हुए। एक हिंदी के भूतपूर्व पत्रकार हैं जो इन दिनों कांग्रेस पार्टी के लिए लिखने पढ़ने का काम करते हैं। एक टोनी जेसुदासन हैं जो बहुत पहले पत्रकार और उसके बाद भारत में अमेरिकी दूतावास के जनसंपर्क का काम देखा करते थे। अनुरंजन झा ने तो नाम लेकर बरखा और वीर के बारे में लिखा हैं लेकिन जी टीवी पर बहुत बागी मुद्रा में नजर आने वाले पुण्य प्रसून वाजपेयी नाम हजम कर गए।
मेरे पास एक संदेश आया है कि पुण्य प्रसून वाजपेयी के पास सारे दस्तावेज हैं और वे एक प्रथम प्रवक्ता नाम की लगभग अल्पज्ञात पत्रिका में इस गोरखधंधे के बारे में एक लंबा लेख लिख चुके हैं और संदेश में यह भी कहा गया है कि उनका अगला लेख भी इसी पत्रिका में छपने वाला हैं जिसमें वे सबको नंगा कर देंगे। हमे पुण्य प्रसून वाजपेयी के इस साहसी लेख का इंतजार रहेगा मगर तब तक उन्हें कायर ही माना जाएगा। एक और सवाल यह भी है कि जी जैसे बड़े टीवी चैनल में लगभग मुखिया के तौर पर काम कर रहे पुण्य प्रसून वाजपेयी को लिखने के लिए एक लगभग अनजान पत्रिका ही मिली। क्या जी समूह इस मामले को जी का जंजाल नहीं बनाना चाहता था?
पत्रकारिता में कमाने की कहानियां कोई आज से नहीं कही जा रही हैं। प्रभाष जोशी जैसे फक्कड़ संपादक के यहां हरि शंकर ब्यास हुआ करते थे जिन्होंने राजनैतिक संपर्कों से राजस्थान में संगमरमर की कई खदाने प्राप्त कर ली। पैसा किन्ही गोपाल जोशी ने लगाया था मगर बाद में अपने ब्यास जी खुद खदान के मालिक होने का दावा करने लगे और फिर लंबी मुकदमेबाजी हुई। हरि शंकर ब्यास ने एक वेबसाइट भी चलाई, कंप्यूटर पर हिंदी में एक पत्रिका भी निकाली और फिलहाल ईटीवी उत्तर प्रदेश और राजस्थान में एक समाचार बुलेटिन भी पेश करते हैं जो समाचारों की बजाय ब्यास जी के खोटे हिंदी उच्चारण के लिए जाना जाता हैं।
बहुत साल पहले देश में वेश्याओं के उस समय के एक सबसे बड़े दलाल के साथ संबंध रखने के कारण हिंदी के दो रिपोर्टरों की भी छुट्टी कर दी गई थी। इनमें से एक अब इस दुनिया में नहीं हैं। एक और पत्रकार तत्कालीन नागरिक विमानन मंत्री से जान पहचान का लाभ उठा कर जहाजों में कागज के रुमाल सप्लाई करने लगे थे और अब दक्षिण दिल्ली की एक बड़ी कॉलोनी में उनकी एक बड़ी कोठी हैं। बहुत साल पहले एक दीवान द्वारका खोसला हुआ करते थे जो नव भारत टाइम्स में रहते हुए भी ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के सदस्य थे और पार्टी ने पत्रकारिता में उनके अभूतपूर्व राजनैतिक योगदान को देखते हुए उन्हें एक मैटाडोर गाड़ी भेंट की गई थी। पत्रकारिता नीरा राडिया के दलालों का खेल बड़ा हैं और इसमें बड़े नाम फंसे हैं। मगर कहानी यहीं खत्म नहीं हो रही। (जारी)
लेखक आलोक तोमर देश के जाने-माने पत्रकार हैं.
Tejender Singh Sethi
May 30, 2010 at 5:29 am
Vir Singhvi advocates Beef eating amongst hindus. This fact alone is enough to generate disgust.
kamal.kashyap
May 8, 2010 at 6:55 am
AAP KO LAGTA HAI KI.. PATERKARITA SIRF SACH KE LIYE HOTI HAI.. TOMAR SHAB AAJ KE MASS COMMUNICATION KE STUDENTS KE PUCHIYE WO PISA KAMANE KE LIYE HI IS FILD MAIN AATE HAI. AUR RAHI BAAT DATT AUR SANGAVI JI KI TO KYA FARK PADTA HAI… UNKA NAM HAI TO UNKI PISA KANE KI KABHARO KO CATKARE LEKAR BATAYA JA RAHA HAI.. LAKIN UN KABHARO KO KOI NAHI LIKTA JISME REPORTER SE LEKAR SAMPADAK TAK SAB PISA KAHTE HAI… TOMAR SHAB JIS CHAL RAHA HAI CHALNE DIZIYE AAP KYO LAKH LIK KAR WAH WAHI LUTNA CHATE HO..
andalib
May 8, 2010 at 8:19 am
Good report Mr Tomar. keep it up
ANDALIB NEW DELHI
Mait from Patna
May 8, 2010 at 8:50 am
Tomar Jee, Hamam me sabhi nange hain. Shayad Main Aur AAAP bhee! Patrakarita, samajik sarokar, desh prem, immandaree jaisee chonchlebajee choriye aur desh ko rasatal mein jane ke liye chhor dijiye. Prabhash jee bhi agar bahut mahan the to INDIAN EXPRESS walon se journaliston ko Paisa ya vetan achcha kyon nahi dilwaya? Khud to aksar Plane ar dekhe jate the. Kya journaliston ke bal-bachche nahi hote.Isliye PAR UPDESH KUSL BAHUTERE. Jai Ho bhrashtar Maharaj Kee.;D
Devanand Singh
May 8, 2010 at 10:09 am
Dear Yashwant Jee,
I congratulates you a lot. Having seen your reports on “Varkhan Vir katha”.
Devanand Singh
Editor
“RASHTRA SAMVAD”
Monthly Mazine
(Jamshedpur,Jharkhand)
09431179542
tau
May 8, 2010 at 11:56 am
Sir,
Once more a great comment on the issue that cast a slur on whole journalistic community. At least, role models and ‘heroes’ must remember it.
tau
May 8, 2010 at 12:04 pm
Thanks Sir,
It is great to find your comment on the issue that cast a slur on the community of journalists. Certainly, they are role model. But their deeds have turned them ‘mole-dole’ models.
tau
May 8, 2010 at 12:05 pm
Thanks Sir,
It is great to find your comment on the issue that cast a slur on the community of journalists. Certainly, they are role model. But their deeds have turned them ‘mole-dole’ models.
Ganesh Prasad Jha
May 8, 2010 at 12:45 pm
अपने पुराने जनसत्ताई साथी आलोक भाई को इस आलेख के लिए बधाई. उन्होंने जो बात यहां लिखी है उसकी एक हल्की सी झलक एक बार आदरणीय प्रभाषजी ने एक बातचीत में दी थी. पूरी कथा खोलने के लिए आलोक भाई को बधाई. भाई हम तो झोला टांगनेवाले पत्रकार हैं और तारकोल की सड़क पर अपनी टूटी चप्पलें घिसते हुए संघर्ष करते कलमजीवी का जीवन जीते चले आ रहे हैं. अब जो समय सामने है उसमें तो हमारे लिए दो जून की रोटी का भी संकट है, हम उन बड़े नामी-गिरामी पत्रकारों की बराबरी कैसे कर सकते है जो दिन-रात पांच सितारा कल्चर में जीते हैं.
कई बार सोचता रहा हूं कि मैं पत्रकारिता की इस जिंदगी में कुछ कर नहीं पाया जबकि साथ के कई लोग काफी आगे निकल गए. अपने ही साथ के उन साथियों की संपन्नता देखकर खुद पर लानत आती है. अपने पास न घर है, न गाड़ी और न बैंक में जमा रकम. हां, पत्रकारिता और मुफलिसी के एक के बाद एक आते रहे दौर से कर्जदार जरूर होता गया. पर जब एसे बड़े और नामचीन पांच सितारा पत्रकारों की कारगुजारियों की खबरें सुनता-पढ़ता हूं तो आत्मा को थोड़ी तसल्ली जरूर होती है कि चलो मुफलिसी में जीनेवाला खबरनबीश जरूर हूं पर सत्ता के गलियारों में घूमनेवाले घोटालेबाजों की सूची में तो अपना नाम नहीं है न. देश की किसी सरकार ने आजतक एसे मुफलिस पत्रकारों की मदद के लिए कभी कोई सिस्टम तो नही बनाया, पर टोपी फिरानेवाले दलाल पत्रकारों पर देश के सत्ताधारी नेताओं-मंत्रियों ने सरकारी तिजोरी से करोड़ों-अरबों बहा दिए.
पंडित दुखहरण दास
May 8, 2010 at 1:48 pm
आलोक सर,
नाम तो आप भी गटक गए। कांग्रेसी पत्रकार का नाम उजागर कर देते तो अच्छा रहता। वैसे कांग्रेस के दलाल पत्रकारों की कमी नहीं है। एक चैनल के मालिक और एक अखबार के संपादक को इस दुखहरण की छोटी आंखों ने कांग्रेस के लिए तीन- पांच करते हुए कई बार देखा है। इन दोनों को पद्मश्री मिल गया है। ये बात और है कि ये आपके वाजपेयी जी के भी करीब रहते रहे हैं। कहने का मतलब ये कि ये सब शुद्ध रूप से सत्ता के दलाल हैं। हां ये बात और है कि मौका मिलते ही पत्रकारिता की नैतिकता पर लंबे-लंबे भाषण पेलने से ये लोग बाज नहीं आते। क्या करेंगे…विनोबा ने कहा था कि पूरे राष्ट्र में सुराख ही सुराख है। विनोबा के शब्दों को उधार लें तो आज पत्रकारिता में सुराख ही सुराख हैं। ये बात है कि ये सुराख उजागर अब हो रहे हैं।
deoki nandan mishra
May 8, 2010 at 1:58 pm
badhi aalok ji. patrkaro ka yeh chehra bhi samne ana chaheeye.
usha srivastava
May 8, 2010 at 2:11 pm
Tomar, patrakarita ke glamours chehron ka pani utarne ke liye badhai. likhte rahiye, padh kar achcha laga. apki biradari se-usha
Satya Prakash
May 8, 2010 at 6:19 pm
ALL ARE CORRUPT
Ashish Kuma Srivastava, SHVF
May 9, 2010 at 7:42 am
Ab kis pe bharosa kare saheb… poori duniya hi beimano ka kotha ban gaya hai.. aise mahaul me jina bhi bada dushwar lagta hai. waise sanghars inake khilaf bhi karna hoga.
ddd
May 9, 2010 at 7:45 am
maro salon ko
Neville
May 9, 2010 at 8:26 am
Amazing the truth comes 2 d for…..Tomar ji put this on English……
kushagra surana
May 9, 2010 at 9:13 am
stones r only thrown on those trees… who hv fruits….
bt …i appreciate ur efforts….. they people hardy bother about dis…!!!!!!
प्रेमचंद गांधी
May 9, 2010 at 9:13 am
अच्छी रिपोर्ट के लिए आलोक जी को बधाई। वैसे हरिशंकर व्यास के बारे में एक जानकारी और भी है। अरावली की पहाडियों में अलवर – जयपुर के रास्ते में उनका एक व्यास कृषि फार्म भी है। जगह का नाम भी जोरदार है ‘नटनी का बारा’।
kushagra surana
May 9, 2010 at 9:24 am
stones r thrown on dos trees … who hv fruits…!!!!
bt i appreciated ur efforts…
Dr Jagdish N Singh
May 9, 2010 at 1:30 pm
Progressive forces in history have been rare. Intellectuals, including journalists, often say what suits their own personal interests. They are part of the political circus they are apparently critical about. Idealists are branded cynical and are marginalised in the whole process.
BIJAY SINGH
May 9, 2010 at 4:55 pm
ALOK BHAI AND YASHWANT BHAI ko koti koti dhanyawad.
Ptrakarita me dalali ka dhandha naya nahi hai.abb to aise log bhi patrakarita me aa gaye hai jo “P” ka definition bhi nahi jante.durbhagya hai ki barkha dutta aur vir shanghwi jaise well established logo ke naam dalalli me aye hai.sharm aati hai.
Jharkhand me bhi kuch katith BADE PATRAKAR(SAMPADAK level )ke naam MADHU KODA(EX CM -JHARKHAND) ke ghaple me aaya tha .ye tradition ban gaya hai,dalali ka.
KUCH TO SHARMA LIHAZ RAKHO PESHE KA.
PRASOON JI NAAM DISCLOSE KARE.
BIJAY SINGH
sr Journalist
JAMSHEDPUR-JHARKHAND
Anwarul Hoda
June 7, 2010 at 4:01 pm
Good report Mr Tomar. keep it up and continue it
mohna bhatt
July 15, 2010 at 5:35 am
sir ji
lage raho………………………
sanjay saksena
December 13, 2010 at 8:42 am
Alok ji pol khol jari rahe