मंदी का दौर चल रहा था. एक पत्रकार की शादी तय हो गयी. पत्रकार ने दस दिन की छुट्टी का आवेदन संपादक की टेबल पर रखा. निमंत्रण पत्र सौंपते हुए बोला- सर मंदी का दौर है, सोच रहा हूं इस मंदी में एक मंदी-सी बीवी ले आऊं. संपादक जी पत्रकारिता के पुराने चावल थे. उन्होंने पत्रकार को समझाया- बेटा मंदी के दौर में तू शादी करने जा रहा है, यहां नौकरी के वैसे ही बांदे है. पत्रकार बोला- महोदय मंदी में जब सब मंदा है तो शादी भी सस्ते में निपट जायेगी.
संपादक जी बोले- बेटा इस मंदी में शादी तो सस्ते में निपट जायेगी. लेकिन जब तू दस दिन के बाद आयेगा तो बीवी तो घर में होगी पर नौकरी चली जायेगी. पत्रकार ने कुछ सोचा और सोच कर बोला- संपादक जी मंदी तो आप लोगों ने मचा रखी है, फील्ड में एक आदमी से चार आदमियों का काम ले रहो हो, और छुट्टी देने की बजाय आप मुझे मंदी की हूल दे रहे हो. आज तक मंदी के नाम पर घर उजडे़ थे, अब हम घर बसा कर ही दम लेंगे. संपादक यह सब सुनकर अवाक रह गए. उन्हें लगा, बहुत पाप किया है, एक पुण्य भी कर लेते हैं. सो, उन्होंने शादी के लिए उतावले पत्रकार की अर्जी पर दस्तखत कर दिए.
अखबारों और चैनलों की दुनिया हुई अजीब, देने को पैसा नहीं रोज लगाए तरकीब
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कहत कमलवा सुन रे बंधु रोज हो तेरी रुसवाई, डर मत प्यारे दिन बहुरेंगे आज खबर है आई
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इस चुटकुला को भेजा है दिल्ली के कमल कश्यप ने. मीडिया की वर्तमान दशा-दिशा पर अगर आपके पास भी कोई चुटकुला हो तो हमें भेजिए, मेल [email protected] या एसएमएस 09999330099 के जरिए.
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May 25, 2010 at 6:58 am
very good esa hi hota he