पार्ट 6 : मैं ‘मेरठ समाचार’ में क्राइम रिपोर्टिंग करने लगा। पहला सवाल था- ‘समाचार कैसे लाया जाये?’ इस शंका का समाधान किया खुद नौनिहाल ने- ‘एसपी शहर और एसपी देहात के दफ्तर में रोज सुबह 11 बजे पिछले 24 घंटों में पूरे जिले के थानों में दर्ज हुए अपराधों की प्रेस विज्ञप्तियां बनती हैं। वे विज्ञप्ति वहां जाकर रोज लो। उनमें से समाचार बनेंगे। लेकिन विज्ञप्ति में धाराओं के अनुसार घटनाएं होती हैं। गंभीर धाराओं वाली घटनाओं को ही इनमें शामिल किया जाता है।’
‘मतलब?’
‘हत्या, हत्या का प्रयास, बलात्कार, डकैती, लूट, फसाद, मारपीट और धोखाधड़ी जैसी खबरें ही इस विज्ञप्ति में होती हैं। लेकिन कई बार आईपीसी की धारा के अनुसार मामूली दिखने वाली घटना भी बड़ी खबर बन सकती है।’
इतना समझाने के बाद नौनिहाल पहले दिन खुद मेरे साथ एसपी के दफ्तर गये। उनकी एक खास बात थी। वे रिपोर्टिंग नहीं कर सकते थे। डेस्क पर बैठकर खबरें बनाते थे। मगर उनकी जान-पहचान हर विभाग में थी। वे समय-समय पर वहां जाते रहते थे। किसी रिपोर्टर के साथ। उनसे पहली मुलाकात में ही हर कोई उनका मुरीद हो जाता था।
तो मैं पहली बार क्राइम रिपोर्टिंग करने नौनिहाल के साथ एसपी के दफ्तर गया। एसपी देहात के रीडर ने खड़े होकर उनसे हाथ मिलाया। नौनिहाल ने उनसे मेरा परिचय कराया।
‘ये हमारा नया क्राइम रिपोर्टर है। इसे रोज कम से कम दो अच्छी खबरें मिलनी चाहिए।’
‘खबरें तो जैसी आयेंगी, वैसी ही मिलेंगी गुरू।’
‘मेरा मतलब है, अपनी धाराओं वाली विज्ञप्ति देने के बाद इसे रोजनामचा भी दिखा देना।’
‘ठीक है गुरू। और कोई सेवा?’
‘यार, चाय नहीं पिलाओगे?’
चाय पीकर हम बाहर आये। नौनिहाल ने मुझसे कहा, ‘अदरक की इससे अच्छी चाय मेरठ में और कहीं नहीं मिलेगी। लेकिन तू कैंटीन में जाकर पियेगा, तो सादी चाय देकर पैसा वसूल कर लेंगे। रीडर के पास बैठकर पियेगा, तो अदरक की असली चाय मिलेगी। वह भी मुफ्त।’
‘पुलिस की चाय पीकर उसके खिलाफ कैसे लिखा जा सकेगा?’, मैंने सवाल किया।
वे मुस्कराकर बोले, ‘बच्चू, यही तो पत्रकारिता का दूसरा सबक है (पहला सबक विज्ञप्तियों में से धांसू खबरें निकालने का वे मुझे दे ही चुके थे)। चाय पीते समय ये मत सोचो कि खबर लिखनी है। खबर लिखते समय ये मत सोचो कि चाय पी है।’
बाद में यही गुर मुझे अनिल माहेश्वरी ने भी बताया था। वे ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ में थे। वहीं स्पेशल कॉरेस्पांडेंट बने। नॉर्थ ईस्ट में कई साल रहे। वहां की बेहतरीन कवरेज की। कई किताबें भी लिखीं। मेरठ के ही अनिल माहेश्वरी आजकल एक वेब मैगजीन के एडिटर हैं।
एसपी के दफ्तर से बाहर आकर हम साइकिल स्टैंड की ओर बढ़े। अपनी-अपनी साइकिल लेने। साइकिल स्टैंड वाले ने हमसे एक रुपया मांगा। नौनिहाल ने जेब से निकालकर दो अठन्नी उसे दे दीं। फिर उससे कहा, ‘ये हमारा नया रिपोर्टर है। अभी इसे तनखा नहीं मिलती। इससे पैसे मत लेना। चाहे यह कितनी बार भी साइकिल खड़ी करे।’
स्टैंड वाला बोला, ‘ठीक है। जब तनखा मिलनी शुरू हो जाये तो ईमानदारी से एक बार की अठन्नी या महीने के दस रुपये दे देना।’
मैंने हामी में सिर हिलाया। ये और बात है कि ‘मेरठ समाचार’ में करीब एक साल काम करने के बावजूद मुझे कभी तनखा नहीं मिली। ना ही मुझसे कभी एसपी के दफ्तर के बाहर साइकिल स्टैंड वाले पैसे लिये। यह भी नौनिहाल का प्रताप था। वरना मुझे जेब से पैसे खर्च करके क्राइम रिपोर्टिंग करनी पड़ती।
अगले हफ्ते मैं एसपी देहात के रीडर के दफ्तर में रोजनामचे से खबरें नोट कर रहा था। एक खबर पर मेरी नजर पड़ी। उसका प्रेस विज्ञप्ति में जिक्र तक नहीं था। दौराला के एक किसान ने अपने बेटे से जान के खतरे की रिपोर्ट लिखवायी थी। मैंने रीडर से पूछा, तो उसने ये कहकर टाल दिया कि मामूली घरेलू झगड़ा है। इसकी तो तफ्तीश तक नहीं की जायेगी। मामला यों ही बंद हो जायेगा।
मैंने दफ्तर पहुंचकर नौनिहाल को वो खबर बतायी। वे उछल गये।
‘तू एक काम कर। दौराला चला जा। वहां थाने से उस किसान का पता लेकर उसके घर जा। उससे बात कर। बढिय़ा खबर बनेगी।’
मैंने बेगम पुल पर एक दोस्त की दुकान पर साइकल खड़ी की। बस से दौराला गया। थाने से बड़ी मुश्किल से उस किसान का पता मिला। उसके घर गया। ठीक-ठाक घर था। पहले वो झिझका। मैंने उसे भरोसा दिलाया। फिर वो जरा खुला। उसने अपनी दास्तान सुनायी।
अपनी चारों लड़कियों की वो शादी कर चुका था। एक ही बेटा था। शादीशुदा। लेकिन उसे शराब और जुए की लत थी। अब वो खेत बेचने की रट लगाये था। बाप इसके लिए तैयार नहीं था। अपने जीते-जी तो बिल्कुल नहीं। बस, बेटे ने उसे धमकी दे दी।
‘ठीक है। तेरे मरने के बाद तो खेत मेरे ही होंगे। तो वही सही।’
इस पर बाप ने पहले पंचायत बुलायी। बेटे के स्वभाव को देखते हुए पंचों ने हाथ खड़े कर दिये। तब उसने पुलिस में रिपोर्ट कर दी। उसने रोते-रोते मुझे ये सब बताया। इस बीच बूढ़ी माई भी पल्लू से आंसू पोंछती रही। गनीमत है कि उनका बेटा वहां नहीं था।
मैंने लौटकर नौनिहाल को खबर बतायी। वे इतने खुश हुए कि मुझे ‘हीरो’ फिल्म दिखाने का इनाम देने की घोषणा कर दी।
खबर पहले पेज पर पांच कॉलम में छपी।
‘अपने ही खून से जान का खतरा’
अगले दिन मेरठ के सारे क्राइम रिपोर्टर मुझसे पूछते रहे कि ये खबर कहां से मिली। मैंने भी छाती फुलाकर कहा, ‘इसके लिए बहुत खोजबीन करनी पड़ी।’
मेरठ में नवभारत टाइम्स और आकाशवाणी की स्ट्रिंगर थे सतीश शर्मा। उन्होंने दोनों जगह ये खबर दी। एसपी देहात खुद दौराला गये। उस किसान को सुरक्षा का पूरा भरोसा दिया। उसका बेटा तो कान पकड़कर कस्में खाता रहा कि बापू सिर पै लाख जूत्ते मार लै, तौ बी मैं कुछ नीं कैने का।
वो खबर भी नौनिहाल ने पहले पेज पर छापी।
‘अपने खून से अब जान का डर नहीं’
हैडिंग के नीचे की लाइन थी- ‘मेरठ समाचार की खबर का असर’
आजकल तो ऐसी खबरों को अखबार या चैनल ‘इंपैक्ट’ के नाम से चलाते हैं। मगर नौनिहाल ने 1983 में मुझसे ऐसी खबर लिखवायी थी। आज से 27 साल पहले…
ऐसी और भी कई चीजें उन्होंने चलन में आने से बहुत पहले कर दिखायी थीं..
…जारी…
amit rai
February 9, 2010 at 1:41 pm
aap nay sahi likha hai, crime may choti kabhar badi our bdi choti hoti hai, bas ferk hota hai najeriya ka
V C
February 9, 2010 at 2:06 pm
Good. Please continue ………….
vijay singh kaushik
February 9, 2010 at 3:35 pm
sir agli kadi ka intzar rahega……..acha laga……..vijay singh kaushik (navbharat,mumbai )
shankar
February 10, 2010 at 7:50 am
hi all
kaise hai aap
sssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssss
ssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssss chup
opsaxena
February 10, 2010 at 8:19 am
good. Keep it up