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माईसेल्फ नरनारायण स्वरूप गोयल…

[caption id="attachment_17043" align="alignleft"]नौनिहाल शर्मानौनिहाल शर्मा[/caption]भाग 10 : जन समस्याओं वाले कॉलम ने मुझे जबरदस्त पहचान दी थी। अब मेरठ के हर क्षेत्र के लोगों से मेरी पहचान हो गयी थी। हर तरफ से सहयोग मिल रहा था। खबरों के लिए नये-नये स्रोत बन रहे थे। … और इस सब के लिए सबसे ज्यादा श्रेय जाता था नौनिहाल को। वे हमेशा मुझे स्रोत बनाने के लिए प्रेरित करते रहते थे। कई पत्रकारों से भी मुझे उन्होंने ही मिलवाया था। एक दिन मैं ‘मेरठ समाचार’ के दफ्तर में गया, तो वहां एक कुर्सी पर एक बहुत प्रभावशाली सज्जन बैठे थे। नौनिहाल ने उनकी तरफ इशारा करते हुए मुझसे कहा- ये बहुत नफीस किस्म के पत्रकार हैं। इनसे परिचय करके आओ। मैं उनके सामने पहुंचा। उन्होंने क्रीम कलर का सफारी सूट पहन रखा था। आंखों पर धूप का चश्मा। क्लीन शेव्ड। बड़ी तन्मयता से खबर लिख रहे थे। अभी तक मैंने इस हुलिये का एक ही पत्रकार मेरठ में देखा था- सतीश शर्मा। वे नवभारत टाइम्स और आकाशवाणी के लिए खबरें भेजते थे।

नौनिहाल शर्मा

नौनिहाल शर्माभाग 10 : जन समस्याओं वाले कॉलम ने मुझे जबरदस्त पहचान दी थी। अब मेरठ के हर क्षेत्र के लोगों से मेरी पहचान हो गयी थी। हर तरफ से सहयोग मिल रहा था। खबरों के लिए नये-नये स्रोत बन रहे थे। … और इस सब के लिए सबसे ज्यादा श्रेय जाता था नौनिहाल को। वे हमेशा मुझे स्रोत बनाने के लिए प्रेरित करते रहते थे। कई पत्रकारों से भी मुझे उन्होंने ही मिलवाया था। एक दिन मैं ‘मेरठ समाचार’ के दफ्तर में गया, तो वहां एक कुर्सी पर एक बहुत प्रभावशाली सज्जन बैठे थे। नौनिहाल ने उनकी तरफ इशारा करते हुए मुझसे कहा- ये बहुत नफीस किस्म के पत्रकार हैं। इनसे परिचय करके आओ। मैं उनके सामने पहुंचा। उन्होंने क्रीम कलर का सफारी सूट पहन रखा था। आंखों पर धूप का चश्मा। क्लीन शेव्ड। बड़ी तन्मयता से खबर लिख रहे थे। अभी तक मैंने इस हुलिये का एक ही पत्रकार मेरठ में देखा था- सतीश शर्मा। वे नवभारत टाइम्स और आकाशवाणी के लिए खबरें भेजते थे।

तो मैं संभ्रांत से दिखने वाले उन पत्रकार के पास गया। वे खबर लिखने में डूबे हुए थे। मैंने हाथ जोड़कर उनका अभिवादन किया, ‘नमस्ते भाई साहब। मैं भुवेन्द्र त्यागी।’

उन्होंने हाथ आगे बढ़ाकर कहा, ‘माईसेल्फ नरनारायण स्वरूप गोयल। बागपत से। दिल्ली के कई अखबारों में खबरें भेजता हूं। यहां भी काम करता हूं।’

मैंने पहली बार किसी पत्रकार को अंग्रेजी में अपना परिचय देते हुए सुना था। वह भी मेरठ में, 1983 में, और बागपत के पत्रकार द्वारा। मैं उनकी शख्सियत से बहुत प्रभावित हुआ।

नौनिहाल की मेज पर आया, तो वे बोले, ‘मिला नन्नू भाई से? बहुत अच्छे पत्रकार हैं। बागपत में माया त्यागी कांड कवर करने जो दिल्ली के पत्रकार आते थे, उनकी मदद करते-करते पत्रकार बन गये। हैं गजब के। पूरी ठसक से रहते हैं। उनकी ठसक के आगे दिल्ली के पत्रकारों की ठसक भी पानी भरती है।’

उस दिन से नन्नू भाई भी मेरे मार्गदर्शक बन गये। मुझे पहले ‘मेरठ समाचार’ और फिर ‘दैनिक जागरण’ में नौनिहाल और नन्नू भाई, दोनों के साथ काम करने का मौका मिला। बाद में दोनों ‘अमर उजाला’ में चले गये। नन्नू भाई तो मुरादाबाद एडिशन के आरई भी बने। कई बार उन दोनों में मतभेद भी होते थे। लेकिन दोनों एक-दूसरे की प्रतिभा का बहुत सम्मान करते थे।

नौनिहाल ने ही नीरजकांत राही, पुष्पेन्द्र शर्मा और अनिल त्यागी से मुझे मिलवाया था। तब नीरज व पुष्पेन्द्र ‘दैनिक प्रभात’ में और अनिल ‘हमारा युग’ में काम करते थे। इनके बारे में नौनिहाल का विश्लेषण इस प्रकार था- ”नीरज और अनिल बेहतरीन क्राइम रिपोर्टर बन सकते हैं। पुष्पेन्द्र निहायत गंभीर और ज्ञानवान पत्रकार है, हालांकि लोग इसे दिलफेंक समझते हैं। ये तीनों पत्रकारिता में बहुत आगे जायेंगे। अनिल अपने अक्खड़पन के कारण ज्यादा तरक्की भले ही न करे, पर उसका काफी नाम होगा।”

उनकी कही सारी बातें सही निकलीं। नीरज और अनिल ‘जागरण’ के बाद ‘अमर उजाला’ में गये। पुष्पेन्द्र कुछ दिन के लिए गल्फ में रहा। आज ‘अमर उजाला’ में पुष्पेन्द्र गाजियाबाद और नीरज मुरादाबाद का आरई है। अनिल भी ‘अमर उजाला’ में ही है। ‘हमारा युग’ के ही सूर्यकांत द्विवेदी को भी नौनिहाल प्रतिभाशली युवा पत्रकार मानते थे। वे सूर्यकांत के कवि और व्यंग्य लेखक के रूप से भी प्रभावित थे। सूर्यकांत ‘अमर उजाला’ के मेरठ में आरई हैं।

1980 के दशक में हम सभी मेरठ की पत्रकारिता में धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे थे। सभी बेहतर भविष्य के लिए कितनी भी मेहनत करने को तैयार थे। करते भुवेंद्र त्यागीभी थे। हम सबकी पहचान बन रही थी। हमारे काम करने के तरीके और क्षेत्र अलग थे। अखबार अलग थे। कुछ हद तक परिवेश भी अलग थे। पुष्पेन्द्र एकदम शहरी। नीरज एक कस्बे से मेरठ आकर शहर के रंग में रंग चुका शहरी। सूर्यकांत कस्बाई। अनिल गांव का देहाती। और मैं जन्म से शहर में रहने के बावजूद संस्कार से देहाती। लेकिन हम सब में जमती बहुत थी। सब एक-दूसरे की मदद करने को हमेशा तैयार रहते थे। आखिर हम सब में एक बात कॉमन जो थी- नौनिहाल हम लोगों के हीरो थे। …जारी…

लेखक भुवेन्द्र त्यागी को नौनिहाल का शिष्य होने का गर्व है। वे नवभारत टाइम्स, मुम्बई में चीफ सब एडिटर पद पर कार्यरत हैं। उनसे संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है।

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0 Comments

  1. mayank jain

    March 9, 2010 at 12:05 pm

    aap ki baton se us samay ki aadrsh patrkarita ka pata chalta hai. lakin aaj aise editor our journalist dekhne ko nahi milte jo junior ko kuch sikhane ki lalak rakte ho. agar aise hi hota raha to fir koi naya bhuvendra tyagi kaise bnega.
    pls. give me answer.

  2. saleem akhter siddiqui

    March 7, 2010 at 7:25 am

    b tyagi purani batein yaad dilane ke liya bahut shukriya. tumne to 80 ke dashak kee yaadein taaza kar deen. THANX.

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