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बिहार की छवि से जुड़े कुछ सवाल

अगर आप बिहार के लोगों से बात करें तो कुछ ही मिनटों में ये तो साफ हो जाता है कि बिहार की जो छवि मीडिया प्रस्तुत कर रहा है उससे ज़्यादातर लोग असंतुष्ट हैं, उसे सही नहीं मानते..। लेकिन बिहार ही क्यों क्या किसी भी प्रदेश के लोग अपने राज्य की छवि को सही मानते हैं? और तो और भारत की ही जो छवि मीडिया से निकलती है उसे कोई सही और मुकम्मल मानता है…..? इसका भी जवाब नहीं में ही होगा।

<p align="justify">अगर आप बिहार के लोगों से बात करें तो कुछ ही मिनटों में ये तो साफ हो जाता है कि बिहार की जो छवि मीडिया प्रस्तुत कर रहा है उससे ज़्यादातर लोग असंतुष्ट हैं, उसे सही नहीं मानते..। लेकिन बिहार ही क्यों क्या किसी भी प्रदेश के लोग अपने राज्य की छवि को सही मानते हैं? और तो और भारत की ही जो छवि मीडिया से निकलती है उसे कोई सही और मुकम्मल मानता है.....? इसका भी जवाब नहीं में ही होगा। </p>

अगर आप बिहार के लोगों से बात करें तो कुछ ही मिनटों में ये तो साफ हो जाता है कि बिहार की जो छवि मीडिया प्रस्तुत कर रहा है उससे ज़्यादातर लोग असंतुष्ट हैं, उसे सही नहीं मानते..। लेकिन बिहार ही क्यों क्या किसी भी प्रदेश के लोग अपने राज्य की छवि को सही मानते हैं? और तो और भारत की ही जो छवि मीडिया से निकलती है उसे कोई सही और मुकम्मल मानता है…..? इसका भी जवाब नहीं में ही होगा।

आए दिन हम सुनते रहते हैं कि अमुक फिल्म विश्व में भारत की छवि को सही ढंग से प्रस्तुत नहीं करती। पश्चिमी मीडिया हिंदुस्तान या एशियाई और अफ्रीकी मुल्कों की जो छवि बनाता है वह किसी को भी सही नहीं लगती। इसी तरह अगर  हम व्यक्तियों या विभिन्न पेशों में लगे लोगों की छवि को ही ले लें तो वे भी अपनी मीडिया छवि से खासे नाराज़ और दुखी दिखेंगे—नेता, पुलिस से लेकर फिल्म स्टार तक सब मीडिया की भूमिका को नकारात्मक ही देखते हैं। तो एक बात तो ये कि मीडिया निर्मित छवियों से कोई भी संतुष्ट नहीं है या संतुष्टों की संख्या बहुत कम है या फिर वे लोग ही संतुष्ट होंगे जिनके स्वार्थों की पूर्ति मीडिया से हो रही है, जिनके हाथों में मीडिया की लगाम है।

वापस बिहार पर लौटते हैं। सबसे पहले तो यो सोचा जाना चाहिए कि मीडिया में बिहार की अगर नकारात्मक छवि है तो क्यों है. क्या इसलिए कि वह वर्षों से विपन्न और बीमारू प्रदेश रहा है? हम जानते हैं कि सैकड़ों साल से यूपी और बिहार से हज़ारों की तादाद में मज़दूर देश के अँदर ही नहीं दूर देशों तक काम करने जाते रहे हैं। यानी बिहारियों की एक मज़दूर छवि ज़्यादा फैली। हमारा समाज श्रम तथा श्रमिकों को कोई बहुत सम्मान की नज़र से नहीं देखता। उनकी स्थिति दलितों जैसी होती है और उन्हे उसी नज़र से देखा जाने लगता है। उत्तर भारत के ये प्रदेश दलित प्रदेशों की तरह हैं। इन्हें इसी तरह से देखा जाता है।

ये भी विचारणीय है कि क्या ये छवि पिछले ढाई-तीन दशकों की देन है—इसी दौरान बिहार में भ्रष्टाचार, राजनीतिक उथल-पुथल और हिंसक वारदातों में ज़्यादा बढ़ोतरी हुई या यों कहें कि मीडिया में ये चीज़ें प्रमुखता से दिखाई देने लगीं। इसी काल में सत्ता सवर्णों के हाथों से खिसककर पिछड़ों के हाथों में गई और ज़ाहिर है कि मीडिया में बैठे सवर्णों को ये रास नहीं आया और उन्होंने घटनाओं को अतिरंजित करके पेश किया, जिससे बिहार की छवि ज़्यादा बिगड़ी। नीतीश कुमार भी पिछड़ी जाति के हैं मगर वे सवर्णों की पार्टी भाजपा के सहयोग से सत्ता पर काबिज़ हुए और ऊँची जातियों को लगा अब उनके दिन बहुरेंगे, इसलिए उनको मीडिया का समर्थन मिला। यहाँ क्या इस बात पर भी गौर नहीं किया जाना चाहिए कि पतन का ये सिलसिला केवल बिहार में ही नहीं दिखा, बल्कि ये राष्ट्रीय फिनामिना थी…..हर जगह यही हो रहा था।

सवाल ये भी उठता है कि क्या बिहार की कोई भी ऐसी छवि हो सकती है जिसे सब लोग सही मान लें और उस पर सवाल न खड़े करें….शायद नहीं। ऐसा संभव ही नहीं है…..क्योंकि नीतीश कुमार की नज़र में बिहार की असली छवि वह होगी जिसमें उसे 11 परसेंट के हिसाब से विकास करता दिखाया जाए और लालू यादव चाहेंगे कि मीडिया में बिहार की छवि में नीतीश कुमार और उनके शासन की विसंगतियाँ दिखें। लोग भी इन या दूसरे आधारों पर बँटे हैं। सबको रास आने वाली छवि बन ही नहीं सकती। यह भी पूछा जाना चाहिए कि कहीं बिहार के लोग छवि के बारे में भावुक होकर तो नहीं सोच रहे। वे ये अपेक्षा तो नहीं  कर रहे कि उनकी तस्वीर को सजा-सँवारकर दिखाया जाए, जबकि हक़ीक़त वैसी नहीं है, न बिहार में और न ही दूसरे प्रदेशों में। मीडिया में राजस्थान की इकहरी तस्वीर है जिसमें वह पर्यटन स्थल बना दिया गया है…..मध्यप्रेदश को अर्जुन सिंह ने अपनी छवि चमकाने के मकृसद से सांस्कृतिक छवि दी और अशोक वाजपेयी उनके औज़ार बने। मगर सत्ता पोषित ये छवि भी इकहरी ही है। इसमें भोपाल- इंदौर दिखते हैं बाकी मध्यप्रदेश गायब हैं. क्या बिहार भी इसी तरह की छवि की तलाश में हैं।

लेकिन आज अचानक ये छवि का सवाल बिहारियों के जहन में क्यों उठ रहा है? छवि यानी पहचान, अस्मिता का सवाल। आज ये नारा लग रहा है कि गर्व से कहो बिहारी हो। बिहारी बनो और छाती ठोंककर कहो कि हम बिहारी हैं। तो ये भाव और भावना का विस्फोट क्यों और कैसे हो रहा है? कहीं ये चाह भी पहचान की राजनीति के गर्भ से तो नहीं जन्म रही। भूमंडलीकरण ने जिस मध्यमवर्ग को पैदा किया है और जिसने स्थानीयकरण की भावना को भी जगाया है, कहीं ये उसी की वजह से तो नहीं है। क्या इसीलिए सुनहरे अतीत की बातें आज ज़्यादा याद की जा रही हैं? अगर ऐसा है तो पहचान की ये राजनीति कहाँ ले जाएगी?

क्या छवि परिवर्तन की अपेक्षा करने से पहले छवि निर्माण की प्रक्रिया या उपक्रम है उसे समझ नहीं लेना चाहिए, ताकि पता चले सके की इस पूरी कवायद का हश्र क्या होने वाला है। मौजूदा अर्थव्यवस्था में नफा-नुकसान को देखते हुए छवि बनाई या बिगाड़ी जाती हैं। बात को और खोलकर रखें तो ये कि बाज़ार अपने उपभोक्ताओं को ध्यान में रखकर व्यक्तियों और समाजों की छवि गढ़ता है। बाज़ार का अपना एक टारगेट ग्रुप होता है और उसे उसकी रुचियों के हिसाब से अपनी सामग्री भी गढ़नी होती है। इसीलिए टीवी और अख़बार अपने उपभोक्ता वर्ग जो कि मध्य और उच्च मध्य वर्ग है की ज़रूरतो को पूरा करने के लिए पहले के मुकाबले मनोरंजक होते जा रहे हैं। तो बाज़ार अपनी तरह से छवि का निर्माण करता रहता है। वह सुविधा के हिसाब से खलनायक भी बनाता है और नायक भी।

ये नायक खलनायक व्यक्ति भी हो सकते हैं और प्रदेश भी। ये बाज़ार हम पत्रकारों की भी कंडीशनिंग करता रहता है। मैं सोच रहा था कि मौर्य टीवी पर बिहार भर से हिंसा और अपराधों की इतनी ज़्यादा ख़बरें क्यो आती हैं, जबकि हमारा एजेंडा ये नहीं है। क्या यहाँ ये सब बहुत ज़्यादा है या फिर कहीं ऐसा तो नहीं है कि पत्रकारों की कंडीशनिंग ऐसी कर दी गई है कि उन्हें सबसे ज़्यादा न्यूज़ वैल्यू उन्हीं में नज़र आती है। या कहीं ऐसा तो नहीं है कि वे तो बस उस डिमांड को पूरा कर रहे हैं जो उनसे की जाती रही है। इसका एक पहलू ये भी है कि धीरे-धीरे पाठकों और दर्शकों के टेस्ट को भी अपराध और हिंसाप्रिय बना दिया गया है। ये तो हम सब जानते ही हैं कि हिंसा, अशांति और सनसनी का भी अपना एक बाज़ार है…..मनोहर कहानियों और सत्यकथा ने इसे बहुत अच्छे ढंग से व्यक्त किया है। टेलीविज़न को हिंसक मनोरंजन की ये खुराक उत्तर भारत और ख़ास तौर पर यूपी-बिहार से मिलती है। इसलिए मीडिया इन प्रदेशों में हिंसा और अपराध ही ज़्यादा देखता है या फिर ऐसी चीज़ें जो लोगों को चौंकाती हैं मसलन, ग़रीबी, बाढ़ और सूखा आदि।

ध्यान रहे कि हम ऐसे समय में छवि की बात कर रहे हैं जबकि पेड न्यूज़ की चर्चा आम है। जब ये कहा जा रहा है कि अख़बार और टेलीविज़न या समूचा मीडिया बिक गया है। कहीं बाज़ार के हाथों में तो कहीं सरकार के हाथों में। मीडिया मैनेज किया जा रहा है। मीडिया मैनेज होने के लिए सहर्ष तैयार है। आजकल हर जगह हर स्तर पर इमेज बिल्डिंग का काम चल रहा है और ज़ाहिर है कि मीडिया ये काम मुफ्त में नहीं कर रहा है। जो जितना अधिक खर्च कर सकता है उसकी छवि उतनी उजली बनाई जा सकती है। फिल्म स्टार बाकायदा इमेज बदलने के लिए अभियान चलाते हैं और मीडिया इसमें उनका साझीदार होता है। इसी तरह उद्योगपति, व्यापारी नेता और यहाँ तक कि अपराधी भी मीडिया को पैसे के बल पर मैनेज करते हैं और अपनी छवि चमकाते हैं। इसलिए छवि निर्मीण का ये गोरखधंधा दिलचस्प और आकर्षक तो है मगर भ्रामक भी है। यह एक तरह का इलूज़न पैदा करता है, वर्चुँअल छवियों का निर्माण करता है, जिनका सत्य से कोई वास्ता नहीं होता।

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लेकिन क्या एक बेहतर छवि की कामना भी नहीं की जानी चाहिए ? क्या ये अपेक्षा भी नहीं की जानी चाहिए कि एकांगी न हो, संतुलित हो? ख़ास तौर पर ऐसे समय में जब छवियाँ किसी प्रदेश या देश के विकास के विकास के लिए ज़रूरी हों। मैं ब्रांडिंग शब्द का इस्तेमाल नहीं करना चाहता क्योंकि इससे एक घटिया बाज़ारूपन की दुर्गंध आती है। इसमें खरीदने और बेचने की नीयत काम करती है। बिहार बिकाऊ नहीं हो सकता, उसे होना भी नहीं चाहिए। उसे बेचने की हर हरकत का हर संभव विरोध होना चाहिए। इस तरह से छवि बनाने के लिए चाहिए होगे आम जन की गाढी कमाई के हज़ारों करोड़ रुपए जो इमेज बिल्डिंग के फार्मूले बताने वाली एजंसियों, मीडियासंस्थानों, भ्रष्ट नेताओं, अफसरों और दलालों के पेट में जाएंगे। ये स्थायी भी नहीं होगी क्योंकि जैसे ही धन मिलना बंद होगा वे गर्दन पर सवार हो जाएंगे। छवियों का ये खेल या ये छवि युद्ध नकली भी है और क्षणजीवी भी। बिहार की चमकीली और टिकाऊ छवि बनेगी बिहारियों की मेहनत और लगन से, ईमानदार प्रयासों से…..इसके लिए मीडिया की चिंता नहीं की जानी चाहिए….उसे उसके हाल पर छोड़ दिया जाना चाहिए….साख खोता मीडिया सचाई के सामने खड़ा भी नहीं रह पाएगा।

यह लेख पटना में मौर्य टीवी द्वारा ‘मीडिया में बिहार की छवि’ विषय पर आयोजित सेमिनार में बीज भाषण के तौर पर वरिष्ठ पत्रकार और मौर्य टीवी के निदेशक मुकेश कुमार द्वारा पढ़ा गया था.

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0 Comments

  1. Chandan ( Cine Editor ,Patna)

    March 31, 2010 at 1:36 am

    Namaste Sir
    Very challenge full matters in your article for journalism….. Ap media organization ke Director hoke is tarah ki soch rakhte hai ye to kabile tariff hai sir…. Sir mera apse Nivedan hai jis tarah se apne apna Wichar seminar in chand Panno se rakha es soch ap apne media worker ke duara un andhere bastio mai se reporting bhi karbaye jaha ki ajj bhi kisi ke Ghar MAI EK WAQT KA KHANA NASIB NAHI HOTA….. Jaha kisi dusre channel ke reporter chand rupio mai apna sooda kar un sahi tathio ko ujagar nahi hone deta……… Sir kosi ne jish tarah se north bihar ko apne agos mai sama liya… PM. nai ese rastriye appda tak ghosit kiya… aaj un gao ka koi namo nishan tak nahi ….. aj jo jinda bacha uski halat or kharab hai lekin e Media ke nazro mai sab sahi dikhta hai…. akhir kio Sir….. Kio ki ye chand rupya or Sharab ke Piyalo se Patrakar bik gaya hai……

    Sir I hope that u will do better for our society

    CHANDAN SINGH
    Freelance Journalist Patna(9334572522)
    [email protected]

  2. Ashish Kumar (Editor) Delhi

    March 31, 2010 at 5:51 am

    Namaskar Sir,

    I am really very happy to reading this article. Because hume really aaj ehsas hua ki aaj bhi eise log hain jinki soch aisi hai aur jo sach ki samna karne ki hausla rakhta ho. khaskar aisi jagah jahn log Gundo ke dar se khul ke samne nahi aate ya phir prashasan ke dar se khulkar samne nahi aate. Aaj log ko khaskar Bihar vasiyo ko isi tarah ke log ki zarrorat hai. jo wahan ki sachhi ko khulkar tatha nirvik roop se samne la sake tabi Bhiar aur Bihar vashiyon ki Chhavi me sudhar aayegi. I Really saluate them who will think like that.

    Ashish Kumar ( Non-Linear Editor )

    Space Tv Noida-64

  3. Abhishek Das

    March 31, 2010 at 11:34 am

    Namaskar,
    Bihar Ki media me jo chavi prastut ki ja rahi hai wo nischit rup se purwagrah se grasit hai. darasal yeh chhavi BLUE JOURALISM ka achha udharan hai jahan vigyapanon ke khel ne bihar me vikash ka atiranjit swarup prastut kiya hai. zamini hakikat kuch aur hai. media me Nitish Babu ki jo chavvi prastut ki ja rahi hai usse logon me ek aakrosh bhi faila hai. aur ishka khamiyaja unhe aanewale election ke dauran nishit rup se bhugatna hoga. Shayad we NDA Sarkar ke Feel Good ka hashra bhul chuke hain. Chet jaiye Sushan Babu…..[b][/b]

  4. Rupesh

    April 1, 2010 at 12:00 am

    I am not a media guy but I often surf this site.

    I am totally ageed with your thoughts. Want to add more on that.
    If you remenber the seminar organized for the development of Bihar when Ex-Prez Mr. Kalam came to Patna. I was in delhi that time and I was eager to know about the outcomes and discussions of that seminar. Believe me national media didn’t had any coverage for that event. I had seen the same day a news from Bihar “Katihar se pappu ka apharan” in one of the leading news channel.

    This image of Bihar is neither made by the people of Bihar nor the media, Only our politicians are responsible for that. A illeterate lot of guys (Some are and some are deliberately posing to be ) can never deliver those kind of speech which will be listened nation wide. Only people of India can laugh on that. Even these days mostly bad news from Bihar are illegible to be headlines on the first page.

    Request to those media guys in the field, If you cant give us the good and logical news from them at least you should not ignore them or better they can go to some comedy serials.

    Regards,
    Rupesh

  5. shahid

    April 1, 2010 at 11:30 am

    Hum Bihari ko sab se pehle jaat paat chorna hoga, saf suthri chavi wale logon ko rajniti main lani hogi. Jo pardesh ke vikash ke bare main kuch kare.Vikash ka matlab sirf rashan aur aanaj ka diya jana nahin, pardesh main aisa mahol banaye jish se Bihar main investment ho. 100% educations ho. Crime mukt Bihar ho.Vote woshi ko dain jo basis infrastructure uplabdh karye , sadak, bijli,eductaions, health, ishpar dhayan dain, jab tak bihar main jaat paat ke rajniti hoti rahegai ,bihar ka vikash muskil hai, doosre pardeshon se sikhna chaheye.

  6. JAGANNATH SHARMA

    September 3, 2010 at 1:26 pm

    Bihar ko sudharne ke liye sarvpratham hum sabhi bihar wasiyon ko ek bat samajh lena chahiya ki, hame ek dusren ko coprate karna chahiye bihar ki chavi kharab karne ka shrey sabse jyada GHATIYA RAJNITI ko jata hai ,jise sudharne ki kafi jarurat hai aur media walon ko chahiya ki jo fact ho usi fact ko prastut karen khabar ko tod-marod kar prastut na karen ye jo YELLOW JOURNALISM ka jo funda hai use chhod de………
    Ant me ye kahna chahunga ki bahut dukh hota hai jab koi vyakti bihar ko ya bihar wasiyon ko hey drishti se dekhta hai ya fir uske baren me galat kahta hai

    aur ha thanks sir ki aapne bihar ke baren me itna kuchh soncha……………
    JAGANNATH SHARMA
    [email protected]
    student of bjmc
    mob.- 09528764292

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