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पेड न्यूज़ कारोबार में चैनलों ने भी दिखाया दम (2)

ंमुकेश कुमारहालाँकि बिहार में चुनाव के पहले से ही पेड न्यूज़ का कारोबार जमकर चल रहा था। इसमें दल या संभावित प्रत्याशी शामिल नहीं थे। ये मुख्य रूप से सरकार कर रही थी। नीतीश कुमार की विभिन्न नामों से की गई चुनाव यात्राओं के एवज में चैनलों को मोटी राशि बाँटी गई। यानी पहले से ही मीडिया को दाना डालकर पटा लिया गया था। लेकिन आचार संहिता लागू होने के बाद और पेड न्यूज़ के ख़िलाफ़ चुनाव आयोग और पत्रकारों की मुहिम की वजह से ऐसा लगता था कि शायद इस बार उनके लिए मुश्किल होगी। फरवरी में लाँच हुए मौर्य टीवी ने तो पेड न्यूज़ के ख़िलाफ़ बाकायदा मुहिम ही छेड़ दी थी, इसलिए भी ये उम्मीद की जा रही थी कि न्यूज़ चैनल ऐसा नहीं करेंगे।

ंमुकेश कुमार

ंमुकेश कुमारहालाँकि बिहार में चुनाव के पहले से ही पेड न्यूज़ का कारोबार जमकर चल रहा था। इसमें दल या संभावित प्रत्याशी शामिल नहीं थे। ये मुख्य रूप से सरकार कर रही थी। नीतीश कुमार की विभिन्न नामों से की गई चुनाव यात्राओं के एवज में चैनलों को मोटी राशि बाँटी गई। यानी पहले से ही मीडिया को दाना डालकर पटा लिया गया था। लेकिन आचार संहिता लागू होने के बाद और पेड न्यूज़ के ख़िलाफ़ चुनाव आयोग और पत्रकारों की मुहिम की वजह से ऐसा लगता था कि शायद इस बार उनके लिए मुश्किल होगी। फरवरी में लाँच हुए मौर्य टीवी ने तो पेड न्यूज़ के ख़िलाफ़ बाकायदा मुहिम ही छेड़ दी थी, इसलिए भी ये उम्मीद की जा रही थी कि न्यूज़ चैनल ऐसा नहीं करेंगे।

मगर ज़ाहिर है कि ये खुशफ़हमी थी। न्यूज़ चैनलों ने थोड़ा सा अंदाज़ बदल दिया बस, बाकी पेड न्यूज़ का कारोबार करने में किसी तरह की हिचक उन्होंने नहीं दिखाई। रिपोर्टरों, स्ट्रिंगरों को टारगेट दिए गए और कवरेज के पैकेज भी। जनसभाओं के लाइव करवरेज के नाम पर भी पैसे लिए गए और कुछ चैनलों ने टीवी बहसों में भागीदारी देने के एवज में भी पैसे वसूले। मीडिया  का सबसे ज्यादा इस्तेमाल सत्तापक्ष  ने किया। चैनलों के अँदरूनी  सूत्र ही बताते हैं कि जनता दल यूनाईटेड की ओर से मोटी रकमें चैनलों में बाँटी  गईं। मीडिया के चुनावी कवरेज पर अगर गौर किया जाए तो उसी से साफ़ हो जाता है कि वह निष्पक्ष और संतुलित नहीं था और कहीं न कहीं लेनदेन के आधार पर बनी आपसी समझ काम कर रही थी।

मीडिया या यों कहें कि न्यूज़ चैनलों का झुकाव बहुत साफ़ दिख रहा था। ज़्यादातर चैनलों ने चुनाव में उन मुद्दों से कन्नी काट ली जो सत्तारूढ़ गठबंधन को कठघरे में खड़ा कर सकते थे। चुनावी साल में विकास दर के 4.7 तक गिर जाने की चर्चा करने का साहस एक चैनल को छोड़कर किसी चैनल या अख़बार ने नहीं दिखाया जबकि इसके पहले वह हर समय राज्य में हुए विकास की पुष्टि के लिए विकास दर का हवाला देते थे। जिस चैनल ने नई विकास दर पर बहस करवाई उसने सत्तारूढ़ दलों का कोप भी झेला। इन दलों ने उस चैनल का बहिष्कार ही कर दिया। प्रदेश में भूख से हुई डेढ़ सौ से ज़्यादा मौतों का कोई चर्चा मीडिया में देखने को नहीं मिला। ऐसे और भी बहुत से मुद्दे हैं जिनका उल्लेख यहाँ किया जा सकता है जिनसे मीडिया का पक्षपातपूर्ण रवैया देखा जा सकता है। चैनलों को अघोषित निर्देश थे कि वे प्रदेश में हुए विकास को ही फोकस में रखें और उस पर ऐसे कार्यक्रम तैयार करवाएं जिनमें सरकार की सफलताएं दिखें। बहसों के मामले में भी ज़्यादातर चैनलों ने इसका ध्यान रखा।

इसके अलावा  बहुत सारे साक्षात्कारों, रिपोर्टों  और विश्लेषणों को बाकायदा  चिन्हित किया जा सकता है, जिनमें पेड न्यूज़ के लक्षण  देखे जा सकते हैं। ख़ास तौर पर नेताओं की दिन भर की चुनाव-चर्या दिखाने के नाम पर उनका स्तुति गान करने वाले कार्यक्रम तो इसकी मिसाल ही हैं। ऐसे कवरेज पर नज़र गड़ाकर बैठे लोगों का मानना है कि इस बार चुनाव के दौरान होने वाले लेनदेन के बजाय प्रीपेड और पोस्टपेड का असर ज़्यादा दिखा है। ये तो सब जानते हैं कि चुनाव के पहले नीतीश सरकार ने मीडिया पर धन वर्षा की थी। दरअसल वह प्रीपेड था और इस भुगतान के एवज़ में सत्तारूढ़ गठबंधन को भरपूर अनुकूल कवरेज दिया गया। इसी तरह चुनाव के दौरान भेद खुलने के ख़तरे ने निपटने के लिए पोस्ट पेड व्यवस्था का सहारा लिया गया। यानी कवरेज अभी करो भुगतान चुनाव बाद में लो। इस तरह जिन दलों और प्रत्याशियों को मनमाफ़िक कवरेज चाहिए था उन्होंने उसका इंतज़ाम कर लिया और मीडिया संस्थानों ने भी अपनी झोलियाँ भर लीं। और तो और इस बार चुनाव पूर्व सर्वेक्षण तक सवालों को घेरे में आ गए और उन्हें पेड सर्वे की संज्ञा से नवाज़ा गया।

कुल मिलाकर बिहार विधानसभा चुनाव में  मीडिया ने पेड न्यूज़ का कारोबार  करने में कोई संकोच नहीं किया और चुनाव पूर्व निर्धारित  अपने व्यावसायिक लक्ष्यों की पूर्ति में वे काफी हद तक सफल भी रहे। हालाँकि इसका आकलन करने का कोई ज़रिया हमारे पास नहीं है कि चुनाव पर इसका कितना असर पड़ा होगा मगर बड़े पैमाने पर जनता को दिग्भ्रमित करने में वह कामयाब ज़रूर रहा है और इसका सबसे ज़्यादा लाभ सत्तारूढ़ दल को ही हुआ होगा। मीडिया की भूमिका को लेकर लालू यादव की प्रतिक्रिया हताशा से प्रेरित हो सकती है मगर इस हक़ीक़त से सब वाकिफ़ हैं कि बिहार में मीडिया पहले से ही नीतीश कुमार और उनकी सरकार के चरणों में लोट रहा है और इस चुनाव में भी उसकी भूमिका कोई अलग नहीं रही।

लेखक मुकेश कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं. कई अखबारों व न्यूज चैनलों में वरिष्ठ पदों पर काम कर चुके हैं. हाल-फिलहाल मौर्य टीवी को लांच कराकर नंबर वन बनाने का श्रेय इन्हीं को जाता है. पटना में मौर्य टीवी के अपने कार्यकाल के दौरान मुकेश कुमार ने पेड न्यूज के खिलाफ साहसिक पहल की. पत्रकारों को एक मंच पर ले आए और नेताओं को भी ये कहने को मजबूर किया कि वे पेड न्यूज के धंधे में शामिल न होंगे. मुकेश फिलहाल एक नए राष्ट्रीय न्यूज चैनल की लांचिंग में जुटे हुए हैं. इस व्यस्तता से वक्त निकालकर उन्होंने पेड न्यूज पर तीन पार्ट में लिखा है, जिसका पहला पार्ट पढ़ चुके हैं. ये दूसरा है. तीसरा पार्ट जल्द ही. मुकेश से संपर्क [email protected]के जरिए किया जा सकता है. बिहार चुनाव में पेड न्यूज के खेल के बारे में अगर आपके पास कोई अनुभव या संस्मरण हो तो हम तक [email protected] के जरिए पहुंचाएं. आप अपना नाम गोपनीय रखने का अनुरोध कर सकते हैं. चाहें तो अपनी बात नीचे कमेंट बाक्स के जरिए कह सकते हैं.

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0 Comments

  1. ARUN SATHI

    December 2, 2010 at 12:25 am

    मुकेश जी पेड न्यूज एक चक्रव्यूह है जिसमें फ़ंसी मीडिया के एकलव्य की हत्या हो गई है.

  2. HIMANSHU

    December 2, 2010 at 6:07 am

    मुकेश जी आप जानते हैं उन चैनलों को जिन्होंने बिहार के नेताओं से पैसा बटोरा है…कृपया निर्भीक होकर उनके नाम साफ साफ लिखने में गुरेज न करें…कुछ चैनलों के हेड्स ने तो जमकर अपनी भी जेब भरी है…

  3. Aashish Jain,kareli,Narsinghpur MP

    December 2, 2010 at 7:03 am

    बिहार में हुई ये अनुबंधित पत्रकारिता बेहद अफसोसजनक है ! इस पेड पत्रकारिता से सबसे बड़ा नुकसान पत्रकारिता को ही हो रहा है ! कभी पत्रकार के नाम से डरने वाले राजनैतिक दल आज पत्रकारिता को अपनी जेब में रखने का दंभ भरने लगे हैं ! यही वजह है की इन पेड पत्रकारों और संस्थानों से मीडिया शर्मसार है ! सही लोगों को भी अब एक ही नज़र से देखा जाने लगा है ! जब वे असल पत्रकारिता वाले किसी राजनेता या पार्टी की सच्चाई को उजागर करते हैं तो फिर उसका शिकार भी उन्हें होना पढता है , आखिर उन दलों को इतना समर्थ कौन देता है……..निश्चित रूप से पेड ख़बरों का इसके पीछे बहुत बड़ा हाथ है ,जो इन नेताओं के हौंसलों को बुलंद करती है !

  4. anil

    December 2, 2010 at 2:38 pm

    Dear Mukeshji,

    Its very nice to read these articles so that faith of people would be intact,
    Because even today there are good media personalities like you in the industry.

  5. madan kumar tiwary

    December 3, 2010 at 4:11 am

    मुकेश जी मैंने लगातार मीडिया की भुमिका पर सवाल उठायें लेकिन वह नकारखाने में तूती की आवाज की तरह दब गई। अभी और बहुत कुछ हुआ है । देखना है वह सामने आता है या दफ़न हो जाता है। मीडिया का उपयोग लोगों को भ्रमित करने के लिये किया है। ताकी चुनाव नतीजों को हजम कर ले लोग़ । अभी असली खेल खुलना बाकी है। ई वी एम से छेडछाड का। मैं उसी पर काम कर रहा हूं। मीडिया ने तो बेशर्मी की हद कर दी संपादकिय तक में दैनिक जागरण ने एक और मौका देने की अपील कर दी। बिहार के पत्रकार वस्तूत: दलाल हैं। इनसे अब मुझे घिन्न आती है। मै एक छोटे से वीकली में लिखता हूं । बिहार रिपोर्टर में। चुनाव के बाद समीक्षा लिखने से ईंकार कर दिया मैने । जो देखा वह रिजल्ट में नही था। और जबरदस्ती स्तुतीगान नही कर सकता । मैं ई वी एम में हुई छेडछाड पर काम कर रहा हूं। कोशिश है नतीजे को सामने लाने की । मेरे ब्लाग पर बहुत कुछ है। लेकिन जो ब्लाग पर दिया है , उससे बहुत आगे खोज कर चुका हूं। दिक्कत है की विपरित परिस्थितियों में काम करना पड रहा है। blog : http://www.madantiwary.blogspot.com

  6. sudhir

    December 3, 2010 at 9:45 am

    mukesh ji aap bahut siddhaantwaadi patrakaar hain lekin paid news nahi rukega sabhi channel waale apne apne reporters aur stringers ko majboor karte hain ki wo dalaali karen logon se news ke badlepaise wasoolen isliye aapke chaahne se nahi rukne waala ye paid system ab ye sabhi reporters ki majboori ban gayi hai aur sabhi ke ragon me paise ki bhookh hai ko samaajsewa karne nahi aaya hai media me aap bhi paise le kar kaam karte hain aur har koi paise ke liye hi kaam karta hai is dunia me

  7. praveen

    December 3, 2010 at 10:43 am

    Dear Mukesh sir,
    Aapko sabse pahle naye channel ke liye badhayi. Nitish kumar to mukesh sir bihar or bihar ke patrakar ko aisa lag raha hai jaise bandhak bana liya hai. dukh tab hota hai jab naami patrakar bhi nitish bandana karte huye dekhe jate hai or ye kahte hai ki vihar ka vikash hua hai. mai ek jila madhepura ki baat karna chahta hun. madhepura se purnia ko jodnewali NH ka hall dekhiye. 2007 baadh ke baad ke baad se pul tuti hi, log nadi naw se par karte hain. Gaun-Dehat ki sadken jarjar halat me hai, ye haal to laloo raj me bhi nahi tha, lekin dhindora vikas ka pita jaa raha hai.
    Jo haal indino patrakarata ka hai aisa haal aapatkal main bhi nahi hoga. madia house ke malikon ke saamne tukda phek kar ghutne ke bal kadha kar liya hai. Mujhe to election result dhekhkar aascharya laga, ye janmat nahi EVM mat hai. Mukesh sir kya aab koi sattadhari party satta se hat bhi sakti hai kya? ya jab tak EVM se voting hoti rahegi 2/3 bahumat in dalo ko milte rahege.

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