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इतिश्री की ओर अग्रसर चंडीगढ़ प्रेस क्लब!

जगमोहन फुटेलादेश का आकार में सबसे बड़ा, किसी समय सबसे अमीर और ‘सिटी ब्यूटीफुल’ के नाम को सार्थक करता अति खूबसूरत चंडीगढ़ प्रेस क्लब कंगाल हो जाने की कगार पर है. क्यों? कहानी लम्बी है. पहले इस क्लब का इतिहास समझ लें. फिर ताकत. फिर असलियत. मनु शर्मा के दादा और विनोद शर्मा के पिताश्री पंडित केदार नाथ शर्मा के घर से आये प्लेट, गिलासों, चम्मचों के सहारे सफ़रजदा हुआ यह क्लब.

जगमोहन फुटेला

जगमोहन फुटेलादेश का आकार में सबसे बड़ा, किसी समय सबसे अमीर और ‘सिटी ब्यूटीफुल’ के नाम को सार्थक करता अति खूबसूरत चंडीगढ़ प्रेस क्लब कंगाल हो जाने की कगार पर है. क्यों? कहानी लम्बी है. पहले इस क्लब का इतिहास समझ लें. फिर ताकत. फिर असलियत. मनु शर्मा के दादा और विनोद शर्मा के पिताश्री पंडित केदार नाथ शर्मा के घर से आये प्लेट, गिलासों, चम्मचों के सहारे सफ़रजदा हुआ यह क्लब.

पंजाब और हरियाणा की राजधानी चंडीगढ़ में स्थित यह प्रेस क्लब न सिर्फ खुद चंडीगढ़ केंद्र शासित प्रदेश बल्कि गाहे बगाहे हिमाचल और जम्मू कश्मीर से भी आ टपकने वाले नेताओं को आमद के लिए ज़रूरी लगता रहा है. पंजाब, हरियाणा, जम्मू कश्मीर, हिमाचल और केंद्र के छुटभैय्ये नेताओं, मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों को छोड़िये, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तक एक अदद स्मृति चिन्ह के बदले मोटे चढ़ावे चढ़ा कर जा चुके हैं यहाँ. बिल्डिंग चंडीगढ़ केन्द्र शासित प्रदेश की है. कुल एक रूपये किराए पर मिली है. बिल्डिंग का डेंट, पेंट सरकारी खर्चे पर होता रहा है.

अब ये अलग बात है कि जिसमें क्लब खुद किरायेदार हैं उस बिल्डिंग का कुछ हिस्सा उसने किराए पे चढ़ा रखा है. सस्ती दारु का प्रबंध चूंकि इतने से नहीं होता सो गैर पत्रकार भी क्लब के मेंबर हैं. कार्पोरेट के नाम पर. किट्टी कोई भी कर सकता है. उसके लिए गैर-पत्रकार सदस्य होना भी ज़रूरी नहीं है. दारु, सस्ते, सुन्दर, स्वादिष्ट भोजन और उपहारों की खातिर तम्बोला जैसे आयोजनों का अक्सर और प्रायोजित भी होना आम बात है. पैसे आते हों तो वाहनों के विज्ञापन क्लब ने लान तक में लगवा लिए हैं.

लान की बात चली तो बताते चलें कि लान में ही एक शिलान्यास लगा है. प्रधानमंत्री की प्रतिष्ठा या अपनी झेंप की खातिर क्लब ने इस पर पहले तो रद्दी अखबार चिपका रखा था. अब चंडीगढ़ का नक्शा सजा रखा है. क्लब यहाँ मीडिया सेंटर बनाना चाहता था. प्रधानमंत्री से नींव का पत्थर रखवा कर. एक ऐसी नींव जो बुनियादी तौर पर ही गलत होती. न कोई नक्शा था. न मंज़ूरी. न धन. न चंडीगढ़ जैसे शहर के वास्तुशिल्प के हिसाब से कोई आकलन. आवेदन तो शायद था. पर उस पर किसी अफसर के दस्तखत नहीं थे. शिलान्यास स्थल पर पत्थर लगा दिया गया. प्रधानमंत्री आये भी. पर शिलान्यास उनने नहीं किया. अवशेष के रूप में खड़ा शिलान्यास का चबूतरा आज भी क्लब को मुंह चिढ़ा रहा है. भाई लोगों ने वक्त आने पर खुन्नस मंज़ूरी की राह में रोड़ा बने गवर्नर पे निकाल ली. मौका हाथ लगने पर उनके खिलाफ जम के भड़ास निकाली गयी. ये अलग बात है कि वे अपने पांच साल के कार्यकाल के बाद भी दो महीने और गवर्नरी कर के गए.

प्रेस क्लब कंगाली की ओर अग्रसर इसलिए है कि उसे अपनों की ही नज़र लग गयी है. क्लब की चुनावी प्रक्रिया में एक संशोधन मैनेजमेंट ने किया था. इसकी सम्बंधित सरकारी महकमे से मंज़ूरी नहीं ली गयी. चुनाव गलत तरीके से हुए मान कुछ लोग इसके खिलाफ कोर्ट चले गए. मैनेजमेंट ने आम इजलास के एक विवादास्पद फैसले की आड़ में इन तीन सदस्यों को क्लब से बाहर कर दिया. ये कह के ये लोग क्लब के खिलाफ कोर्ट गए. अब पंजाब और हरियाणा की सरकारों से सूचना के अधिकार के अंतर्गत जानकारी मांगी गयी है कि क्लब को कितनी रकमें दीं गईं. और क्या हर अगली दान दक्षिणा से पहले पिछली के उसी मद में खर्च का ब्यौरा माँगा गया?

इसके बाद सरकारों से जवाव देते नहीं बन रहा है. क्लब को किसी भी तरह की आर्थिक मदद पे रोक लग गयी है. क्लब की हालत ये है कि सबलेटिंग के किराए, स्वीमिंग पूल जैसी सुविधाओं के ‘गेस्टों’ द्वारा इस्तेमाल और खाने पीने की चीज़ों के दाम बढाने के बावजूद क्लब के पास अपने कर्मचारियों को वेतन देने तक के पैसे नहीं हैं. उस पर तुर्रा ये कि निकाले गए सदस्य आरटीआई से जानकारी मिलते ही सीबीआई जांच के लिए हाई कोर्ट जाने को हैं. खुद किरायेदार होने के बावजूद क्लब परिसर में किरायेदार रख लेने के आधार पर जो लीज़ ही कैंसिल हो सकती है, उसका डर अलग से.

डर ये भी है कि कोई जांच अगर हुई तो चिट्ठे कई खुलेंगे. लायब्रेरी के नाम पर जितने रूपये आये हैं उतने पन्ने वहां मौजूद किताबों में नहीं हैं. आरोप ये भी है कि क्लब में बहुत सारी कंस्ट्रक्शन नक्शा पास कराये बिना हुई है. वो भी बिना टेंडर के. दूसरों पे पत्थर बरसाने वाले पत्रकारों का ये क्लब खुद शीशे का सा हो के रह गया है. चोट खाने वाले पलटवार करने लगे हैं. क्लब की आमदनी ठप्प हो गयी है, उसके कामकाज पे अदालतों की नज़र है, सीबीआई जांच से लेकर लीज़ कैंसिल होने तक के आसार पैदा होने लगे हैं. कभी देश का सबसे अमीर और बाज़ार भाव से कोई पचास करोड़ रूपये की सरकारी ज़मीन पे काबिज़ चंडीगढ़ का प्रेस क्लब जैसे अपनी इतिश्री की ओर अग्रसर है.

लेखक जगमोहन फुटेला वरिष्ठ पत्रकार हैं और इन दिनों वेब मीडिया की दुनिया में सक्रिय हैं.

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0 Comments

  1. vijay ahuja

    July 21, 2010 at 11:12 am

    भ्रस्टाचार में डूबा उधम सिंह नगर प्रेस क्लब भी अपनी अंतिम सांसे गिन रहा है /कुछ दिन बाद उसके काले चिट्ठे भी भड़ास पर आने वाले है

  2. ashok

    July 21, 2010 at 12:07 pm

    जनाब, जालंधर में पंजाब प्रेस क्लब का भी यही हाल है। यहां भी जमकर भ्रष्टाचार हो रहा है।

  3. ramesh singh

    July 22, 2010 at 10:27 am

    AUR DELHI PRESS CLUB?.. YAHAN KAI HAL TO AUR BHI MASHALLAH HAIN..OFFICE BEARERS NAI TO TABAHI MACHA HI RAKHI HAI…UNION WALE BHI TURRAMKHAN BANE HAIN…KAL BHI 7 BAJE BAR KHULTE HI HADTAL KAR DEE…YE CLUB BHI ZALDI HI BAND HOGA AGAR KARMACHARI UNION WALE ISI TARAH HARAMIPAN KARTE RAHAI TO…YAD RAKHIYE KI PCI KAI WATORS KI SALARY JOURNALISTS SAI BHI ZYADA HAI…UNHE AIK TIME KA KHANA BHI MUFT MILTA HAI ( KHATE SAB KE SAB DONO TIME HAIN)..TABAHI MACHA RAKHI HAI…DEKH LENA 2 CRORE SAI ZYADA KA TURNOVER WALA YE CLUB ZALDI BAND HOGA..YAHAN KE 120 WORKER ISAI KHA JAYENGAI…

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