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स्वतंत्र पत्रकार बन गए हैं दिलीप मंडल

वैसे तो पत्रकारिता में आजकल सबसे बेहतर काम स्वतंत्र पत्रकारिता करना है, भले ही वह आप अपना ब्लाग बनाकर करें, और जीने-खाने के लिए कोई और धंधा कर लें, लेकिन जिन लोगों ने पत्रकारिता को चौथे स्तंभ के साथ-साथ जीवन यापन का जरिया भी मान लिया है, उनके लिए कई बार बड़ा खराब होता है स्वतंत्र पत्रकारिता करना. दरअसल, उनके लिए स्वतंत्र पत्रकारिता का मतलब मजबूरी का दूसरा नाम होता है क्योंकि जाब न मिलने की दशा में आदमी स्वतंत्र पत्रकारिता करने लगता है.

<p style="text-align: justify;">वैसे तो पत्रकारिता में आजकल सबसे बेहतर काम स्वतंत्र पत्रकारिता करना है, भले ही वह आप अपना ब्लाग बनाकर करें, और जीने-खाने के लिए कोई और धंधा कर लें, लेकिन जिन लोगों ने पत्रकारिता को चौथे स्तंभ के साथ-साथ जीवन यापन का जरिया भी मान लिया है, उनके लिए कई बार बड़ा खराब होता है स्वतंत्र पत्रकारिता करना. दरअसल, उनके लिए स्वतंत्र पत्रकारिता का मतलब मजबूरी का दूसरा नाम होता है क्योंकि जाब न मिलने की दशा में आदमी स्वतंत्र पत्रकारिता करने लगता है.</p>

वैसे तो पत्रकारिता में आजकल सबसे बेहतर काम स्वतंत्र पत्रकारिता करना है, भले ही वह आप अपना ब्लाग बनाकर करें, और जीने-खाने के लिए कोई और धंधा कर लें, लेकिन जिन लोगों ने पत्रकारिता को चौथे स्तंभ के साथ-साथ जीवन यापन का जरिया भी मान लिया है, उनके लिए कई बार बड़ा खराब होता है स्वतंत्र पत्रकारिता करना. दरअसल, उनके लिए स्वतंत्र पत्रकारिता का मतलब मजबूरी का दूसरा नाम होता है क्योंकि जाब न मिलने की दशा में आदमी स्वतंत्र पत्रकारिता करने लगता है.

पर कुछ लोग स्वतंत्र पत्रकारिता को शौक के तौर पर चुनते हैं क्योंकि उन्हें अपने जीवन में काफी कुछ अलग करना होता है. दिलीप मंडल को ही लें. कई बड़े मीडिया संस्थानों में अच्छे-भले पदों पर अच्छी-खासी सेलरी में नौकरी करने के बाद आजकल ये भी स्वतंत्र पत्रकार हो गए हैं. पिछले साल के आखिर में टाइम्स समूह के इकानामिक टाइम्स हिंदी डाट काम के एडिटर पद से इस्तीफा देने वाले दिलीप मंडल ने कुछ महीनों तक इंडियन इंस्टीट्यूट आफ मास कम्युनिकेशन (आईआईएमसी) में मास्टरी की. अब स्वतंत्र पत्रकार के बतौर किताब लेखन के कार्य में जुटे हैं. जाति, जनगणना, विस्थापन, मीडिया इकानामिक्स आदि मसलों पर उनकी कई किताबें आनी हैं. उन्हीं को पूरा करने में लगे हैं वे. मुख्य धारा की मीडिया को पूरी तरह गुडबाय कहने के सवाल पर दिलीप मंडल भड़ास4मीडिया से कहते हैं- नहीं, ऐसा नहीं है. नौकरी करने का विकल्प खुला हुआ है. लिखने पढ़ने वाले कई जरूरी काम पेंडिंग पड़े हुए थे. उन्हें निपटा लूं, फिर सोचूंगा.

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0 Comments

  1. amardeep

    July 14, 2010 at 5:30 pm

    I think Dilip Sir doing right thing….because journalism is not just a medium to gain money…..it also a medium to uplift the voice of public and I am sure Dilip Sir is going in this manner…..

  2. Dr Matsyendra Prabhakar

    July 14, 2010 at 6:25 pm

    Yah ‘MARTA KYA NA KARTA’ ki kahawat ke anukool nahin hai Yashwant jee, Dileep Mandal GAHAN CHINTAK aur sahi mayne men ADHYETA hain. Ho sakta hai unhon ne SWATANTRA PATRAKARITA ka rasta kisi khas Majboori men chuna ho lekin aaj ve apne kshetra ke ek HASTAKSHAR ban chuke hain. Hum patrakaron ko Unki VISHESHAGYATA se sabak aur unke kaushal se seekh lenee chahiye. aam aadmi ki lalak ko AAWAJ dene men Dileep jee ka bada yogdan hai, Iss raste men koi badhyakari rukawat nahin hai jaisa ki hum naukari karne walon ke sath aksar hota hai,

  3. mohit parashar

    July 15, 2010 at 7:41 am

    yeh patrkarita jagat ki trasdi hi hai. jab koi patrkar kuch alag karne ki koshish karta hai to uski hi jamat ke log uski sabse jyada bajate hain.

  4. विनय कुमार झा

    July 15, 2010 at 8:08 am

    दिलीप मंडल जी के लिए पत्रकारिता का मतलब सिर्फ पैसा कमाना नहीं है. वे समाज और देश के हित के लिए कलम चलाने वाले पत्रकारों में से एक हैं . वे किसी भी मुद्दे पर बेबाकी से अपनी राय रखते हैं .

  5. निमिष कुमार

    July 15, 2010 at 1:10 pm

    दिलीप मंडल जी को नौकरियों की कमी नहीं हैं। वो कुछ समय चिंतन के लिए दे रहे हैं। वैसे ये उनकी पुरानी योजना थी। ईटी के पहले ही वो ये करना चाहते थे। आवाज चैनल की नौकरी इसीलिए छोड़ी थी। लेखन हमेशा से उनका पहला प्यार रहा है। अब हम लोगों को कुछ अच्छा पढ़ने को मिलेगा। दिलीपजी को बधाई।

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