Connect with us

Hi, what are you looking for?

हलचल

शीशमहल की अड्डेबाजी और ग़ज़ल के वे दिन

: परवेज मेहदी का अंदाज और हरदिल अजीज रेशमा : शीशमहल के मालिकान तब बदले नहीं थे और दुर्ग स्टेशन के ठीक सामने स्थित इस होटल का हुलिया भी बदला नहीं था। इसका रख-रखाव कॉफी हाउस जैसा था और सामने की ओर शीशे पर कत्थई रंग के मोटे पर्दे पड़े रहते थे। भीड़-भाड़ कुछ ज्यादा नहीं होती थी। तब गजल सुनने की नयी-नयी लत लगी थी पर इन्हें सुनने की सुविधा हासिल नहीं थी। वह ग्रामोफोन व कैसेट के बीच का संक्रमण काल था। कैसेट प्लेयर महंगे थे और ग्रामोफोन भी निम्न मध्यम वर्गीय परिवारों में विलासिता की चीज थी।

<p style="text-align: justify;">: <strong>परवेज मेहदी का अंदाज और हरदिल अजीज रेशमा</strong> : शीशमहल के मालिकान तब बदले नहीं थे और दुर्ग स्टेशन के ठीक सामने स्थित इस होटल का हुलिया भी बदला नहीं था। इसका रख-रखाव कॉफी हाउस जैसा था और सामने की ओर शीशे पर कत्थई रंग के मोटे पर्दे पड़े रहते थे। भीड़-भाड़ कुछ ज्यादा नहीं होती थी। तब गजल सुनने की नयी-नयी लत लगी थी पर इन्हें सुनने की सुविधा हासिल नहीं थी। वह ग्रामोफोन व कैसेट के बीच का संक्रमण काल था। कैसेट प्लेयर महंगे थे और ग्रामोफोन भी निम्न मध्यम वर्गीय परिवारों में विलासिता की चीज थी।</p>

: परवेज मेहदी का अंदाज और हरदिल अजीज रेशमा : शीशमहल के मालिकान तब बदले नहीं थे और दुर्ग स्टेशन के ठीक सामने स्थित इस होटल का हुलिया भी बदला नहीं था। इसका रख-रखाव कॉफी हाउस जैसा था और सामने की ओर शीशे पर कत्थई रंग के मोटे पर्दे पड़े रहते थे। भीड़-भाड़ कुछ ज्यादा नहीं होती थी। तब गजल सुनने की नयी-नयी लत लगी थी पर इन्हें सुनने की सुविधा हासिल नहीं थी। वह ग्रामोफोन व कैसेट के बीच का संक्रमण काल था। कैसेट प्लेयर महंगे थे और ग्रामोफोन भी निम्न मध्यम वर्गीय परिवारों में विलासिता की चीज थी।

राग-रंग और सुर-ताल के साथ गजलों के अल्फाज की मायावी दुनिया मुझे अपनी ओर खींचती थी और उन दिनों गजलों को सुनने की कैसी तड़प थी, इसे बयान कर पाना लगभग नामुमकिन है। विविध भारती से दो बजकर दस मिनट पर गैर फिल्मी गीतों-गजलों का प्रोग्राम आता था जो इतना मुखतसर-सा होता था कि इसे सुनकर तड़प और भी ज्यादा बढ जाती थी। ऐसे दौर में शीशमहल ‘सहरा में साया-ए-दीवार’ की तरह था।

घर में जेब खर्च की गैर-जरूरी परंपरा नहीं थी, इसलिए बेचारी खाली ही रहती थी। जोड़-गांठकर जब कुछ पैसे इकट्‌ठे हो जाते थे अपन किसी हमखयाल दोस्त के साथ शीशमहल में अड्‌डा मारने पहुंच जाते। मेहदी हसन, गुलाम अली, जगजीत सिंह, चंदन दास, अनूप जलोटा या तलत अजीज आदि किसी न किसी की गजल वहां धीमे-धीमे बजती रहती थी। मद्धम रोशनी के साथ माहौल भी गजल सुनने के लिये बिल्कुल मुफीद होता था।

अपन को कोई जल्दी नहीं होती थी। पहले दो-चार प्याले पानी के ही पिये जाते, भले ही प्यास न हो। बैरा जब दो -चार चक्कर काट लेता था और लगता था कि अब डांट ही देगा तब कहीं जाकर कॉफी का आर्डर दिया जाता था। इसके बाद शुरू होती थी सबसे धीमे कॉफी पीने की अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा। यदि गिनीज बुक वाले इस मामले में कोई शोध वगैरह करते तो हमारा नाम आसानी से उनकी किताब में दर्ज हो सकता था।

एक बार जब कुछ ज्यादा पैसे इकट्‌ठे हो गये थे और खैरागढ़ के एक मित्र के साथ हमने काफी से पहले मसाला दोसे का आर्डर दिया था, तब अपना इतना हक तो बनता ही था कि जो गजल चल रही है  उसे चुपचान सुनने के बजाय अपनी फरमाईश का एल.पी. लगवाया जाये। लिहाजा अपन काउंटर पर पहुचे और अधिकार के साथ बहुत सारे एल.पी. को वैसी ही हसरत से देखने लगे जैसे महिलायें आमतौर पर साड़ियों को देखती हैं। इनमें से एक था, ‘परवेज मेहदी, लाइव इन यू.एस.ए.।’ इससे पहले अपन ने परवेज मेहदी का नाम सुना भी नहीं था।

जब गजल चली तो मसाला दोसे का पैसा एक ही कौर में वसूल हो गया। ”सात सुरों का बहता दरिया तेरे नाम/हर सुर में है रंग धनुक का तेरे नाम” और ‘गुल तेरा रंग चुरा लाये हैं गुलजारों में/जल रहा हूं भरी बरसात की बौछारों में” जैसी एक से बढ़कर एक उम्दा गजलें। एक मसाला दोसा और एक ‘कट’ कॉफी में कितना समय लगता है? पर परवेज मेहदी के अंदाज ने अपन को बेहया कर दिया और अपन पूरी ढिठाई से एल.पी. के खत्म होते तक बैठे रहे।

बहुत बाद में पता चला कि परवेज मेहदी की गिनती मेहदी हसन साहब के काबिल शिष्यों होती है। उनकी शैली में पारंपरिक ग़जल गायन के अनुशासन व लोकगीतों की सहज-सरल उन्मुक्तता को एक ही साथ महसूस किया जा सकता है। और कैसा महसूस होगा जब ऐसी क्षमताओं वाले गायक के साथ हरदिल अजीज रेशमा की भी आवाज जुड़ जाये? सुनकर देखिये।

आप सभी का

दिनेश चौधरी

Advertisement. Scroll to continue reading.

Click to comment

0 Comments

  1. amitabh shukla

    October 20, 2010 at 2:07 am

    kya khoob mehfil ! masha allah ! wah ! wah !!!!!

  2. sanjay tiwati

    June 3, 2012 at 9:10 pm

    bahut khoob….

Leave a Reply

Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

अपने मोबाइल पर भड़ास की खबरें पाएं. इसके लिए Telegram एप्प इंस्टाल कर यहां क्लिक करें : https://t.me/BhadasMedia

Advertisement

You May Also Like

Uncategorized

भड़ास4मीडिया डॉट कॉम तक अगर मीडिया जगत की कोई हलचल, सूचना, जानकारी पहुंचाना चाहते हैं तो आपका स्वागत है. इस पोर्टल के लिए भेजी...

Uncategorized

भड़ास4मीडिया का मकसद किसी भी मीडियाकर्मी या मीडिया संस्थान को नुकसान पहुंचाना कतई नहीं है। हम मीडिया के अंदर की गतिविधियों और हलचल-हालचाल को...

टीवी

विनोद कापड़ी-साक्षी जोशी की निजी तस्वीरें व निजी मेल इनकी मेल आईडी हैक करके पब्लिक डोमेन में डालने व प्रकाशित करने के प्रकरण में...

हलचल

[caption id="attachment_15260" align="alignleft"]बी4एम की मोबाइल सेवा की शुरुआत करते पत्रकार जरनैल सिंह.[/caption]मीडिया की खबरों का पर्याय बन चुका भड़ास4मीडिया (बी4एम) अब नए चरण में...

Advertisement