ईटीवी में काम करने वाले मीडियाकर्मी हर कदम पर हैरान-परेशान रहते हैं। दूसरों के दुख-दर्द को दुनिया के सामने लाने-बताने-दिखाने वाले ये पत्रकार अपने प्रबंधन के पीड़ित बन जाते हैं। चतुर प्रबंधन इन्हें इस कदर जालिम नियम-कानूनों में कैद रखता है कि ये अपना हक तक मांगने की जुर्रत नहीं कर पाते। कुछ लोगों ने भड़ास4मीडिया को जब इस बारे में जानकारी दी तो एक टीम ने पूरे मामले की छानबीन की। इसके बाद जो कहानी सामने आई वो इस बड़े मीडिया हाउस पर बड़े काले धब्बे की तरह है। कुछ दस्तावेज भड़ास4मीडिया टीम के हाथ लगे हैं। इनमें से एक को प्रकाशित किया जा रहा है। यह दस्तावेज शोषण की पूरी कहानी बयान करता है। इससे पता चलता है कि ईटीवी मैनेजमेंट दास प्रथा के जमाने के नियम-कानूनों में अपने कर्मचारियों को जकड़े रहता है।
एक पूर्व ईटीवियन ने बताया कि ईटीवी में नौकरी करने का मतलब 3 साल तक उनके यहां ही काम करने का कांट्रैक्ट साइन करना है। नौकरी के लिए परेशान लोग मजबूरी में इस कांट्रैक्ट को साइन करते हैं। अगर किसी ने इसे तोड़ा, मतलब बेहतर मौका मिलने पर इस नौकरी को बीच में ही छोड़ा, फिर न तो ओरिजनल सर्टिफिकेट मिलेंगे जो कांट्रैक्ट के समय जमा करा लिए जाते हैं और न पीएफ मिलेगा। पीएफ पाने के लिए कांट्रैक्ट तोड़ने के ‘अपराध’ में 75 हजार रुपये का जुर्माना भरना पड़ता है। इस चक्कर में लोग अपने खून-पसीने की पीएफ की कमाई तक छोड़ देते हैं। ईटीवी प्रबंधन 75 हजार रुपये जुर्माना भरने के लिए कानूनी नोटिस मीडियाकर्मी के मूल पते पर रजिस्टर्ड डाक से भेजता है।
भड़ास4मीडिया ने पिछले दिनों खुलासा किया था कि ईटीवी ने अपनी नीति में बदलाव करते हुए संस्थान छोड़ने वाले सैकड़ों कर्मचारियों के जब्त सर्टिफिकेट लौटा दिए। पर ये सैकड़ों ईटीवियन अब भी पीएफ की रकम पाने के लिए परेशान हैं। इन लोगों से पीएफ समेत सभी बकाये को पाने के लिए पहले ‘जुर्माना’ भरने के लिए कहा जाता है। नोटिस में धमकी भी दी जाती है कि अगर 75 हजार रुपये नहीं दिए तो इसे कानून के जोर से वसूला जाएगा। ऐसे में ज्यादातर पत्रकार अपने सभी पैसे ईटीवी के पास ही छोड़ देते है। लीजिए, पेश है दस्तावेज। इससे जाहिर होता है कि तीन साल तक लगातार काम न करने वाले पत्रकारों से ईटीवी कितनी ढिठाई से 75 हजार रुपये मांगता है–
Date: 25.07.2008, Regd. Post with Acknowledgement Due/e-mail
To
Mr. …………..r, S/o. ……………….,
…………………………, …………………………..,
Dist: …………………., Pin:…………………..,
ACCEPTANCE OF RESIGNATION
This refers to your e-mail messages dated 21.07.2008 requesting us to accept your resignation., as desired by you, we are accepting your resignation without prejudice to our right to recover the compensation amount of Rs.75,000/- due to us and payable by you and your surety under the Articles of Agreement executed by both of you. Accordingly, you are relieved from your duty in our organization w.e.f 21.07.2008.
We, therefore call upon you and your surety to pay an amount of Rs.75,000/- jointly or severally towards compensation by way of Demand Draft drawn in favour of “NEWSTODAY PRIVATE LIMITED – TELEVISION DIVISION”, payable at Hyderabad, within 7 days of receipt of this letter, failing which we will be constrained to recover the said amount through process of the law.
The accounts department has been advised to settle your account accordingly.
A. GOPALA RAO
DIRECTOR
पढ़ा आपने। ये है ईटीवी के अंदर का हाल। जॉब में बेहतर पद और पैकेज पर कहीं भी आने-जाने की आजादी हर किसी को है। केवल पंद्रह दिन या एक महीने पहले संस्थान को जाब छोड़ने के बारे में सूचित करने की औपचारिकता निभाई जाती है। पर ईटीवी ने तो अपने यहां ऐसे नियम-कानून बना रखे हैं कि अगर उस मकड़जाल में कोई फंसा तो उससे निकलने का रास्ता उसे नहीं सूझता। मार्केट में सबसे कम कीमत पर पत्रकार कहीं काम करते हैं तो वो ईटीवी है। कम पैसे में तीन साल तक लगातार काम कराने की मंशा पालना शोषण की मानसिकता का प्रतीक है।
इस देश में कई ऐसे मीडिया संस्थान हैं जो बेहतर पद, पैकेज व सुविधाओं के चलते अपने यहां के मीडियाकर्मियों को तीन साल नहीं बल्कि एक दशक से ज्यादा रोक पाने में कामयाब होते हैं। इसमें एनडीटीवी का नाम लिया जा सकता है। उम्मीद करते हैं कि ईटीवी प्रबंधन अपने काले नियम-कानूनों को जल्द बदलेगा ताकि वहां काम करने वाले या कर चुके लोग भविष्य में उसे एक बेहतर संस्थान की बदौलत याद करें, न कि एक शोषक और जालिम सामंत की तरह पेश करें, जो अभी स्थिति है।
इस रिपोर्ट पर आप अपनी राय, प्रतिवाद, टिप्पणी सीधे लेखक तक [email protected] पर मेल करके पहुंचा सकते हैं।
antra tiwari
March 9, 2010 at 11:46 pm
hum bhi ummeed karte hai ki etv apne naam ke jaisa hi kaam karega,aur niyamo ko badlega.
rajesh
October 19, 2010 at 10:07 pm
mahodaya
patrakar hone ke bhoukal ki kimat to chukani hi padegi.etv hi nahi ayse bahut se sanstha hai jo apne yahan kam karne walo ko eet gara dhone walo se bhi kam bhugtaan karte hai. Rs,300,400,500/month me kam karne wale bhut se patrkar aap ko sadko par mil jayenge.aur in patrakaro ko sanstha koe bhi ilzam laga kar bahar ka rasta dikha dete hai.smasya ye hai ki in nireeh patrakaro ke samrthan me koe bhi nahi bolene wala hai.koe bhi sansthan apne yaha kam karne walo ka pura beyora nahi deta.shram mantralay bhi is taraf nahi dekhata.ki kitne log kis sanstha me kam karte hai.aur unko kya bhugtan milta hai.jabki mnrega me kam karne wale majdoor bhi 100 rupaye dihadi pate hai.
पंकज झा
October 21, 2010 at 2:22 am
इसका एक दूसरा पक्ष भी है. इस टिप्पणीकार को भी आज से नौ साल पहले प्रसारण पत्रकारिता की पढ़ाई के दौरान इन्ही शर्तों पर काम करने का प्रस्ताव था. कैम्पस में लिखित टेस्ट के बाद साक्षात्कार का आधा समय लगभग इसी में खतम हो गया की वे आपको ट्रेंड करेंगे, आप पर खर्च करेंगे और फ़िर आप बाहर चले जायेंगे तो आखिर क्या फायदा होगा आपको लेने से….खैर.
आज पीछे मुड़कर देखता हूँ तो ऐसा महसूस होता है की दुनिया कहीं तीन साल में भागी नहीं जाती है. वास्तव में ईटीवी स्कूल है. अपने के साथ गए तमाम वरिष्ठ और कनिष्ठ मित्र वहाँ तीन साल गुजार आज अच्छी-अच्छी जगह पर हैं. तो अगर नए लोग शर्तों के अनुसार तीन साल रह भी लें वहाँ तो अच्छा ही होगा शायद…वैसे यह भी कोई अंतिम सत्य नहीं है.