बाजार में कैमरा सस्ता बिकने लगा, डेस्क पर सस्ता माल चलने लगा, तब मैंने भी दूसरा रास्ता खोजने का सोच लिया : लखनऊ-दिल्ली में बैठे लोग ग्रामीण पत्रकारों के बारे में सीमित सोच रखते हैं : एक्सक्लूसिव रिपोर्ट ईटीवी को दी मगर डेस्क वालों ने अपने नाम से चलवा ली : जी न्यूज की एचआर वाइस प्रेसीडेंट बोली थीं कि स्ट्रिन्गर बड़े-बड़े गुल खिलाते हैं, इनके पैसे बढाने की क्या जरूरत, यह सुन बड़ा गुस्सा आया था : तुम 500 में कचड़ा खरीदो, अपना माल महंगा बिकेगा, सो बिक रहा है : मेरी खबर के पाठक गांव के हरिया-रामकली हैं : रामसरन की बेटी की शादी के लिए 20000 रुपये जेएनआई के प्रयास से मिले : 50 से अधिक प्रधानों के खि़लाफ गबन का मुकदमा लिखाया :
यूपी के फर्रुखाबाद जिले के रहने वाले कंप्यूटर इंजीनियर से जर्नलिस्ट बने पंकज दीक्षित ने कुछ महीने पहले टीवी न्यूज चैनलों की स्ट्रिंगरी से हाथ जोड़ लिया और खुद का एक काम शुरू किया। तकनीक और कंटेंट के मिले-जुले प्रयोग से जो काम शुरू किया, वह JNI NEWS SERVICE के रूप में सबके सामने है। पंकज ने जी न्यूज़ से इस्तीफा देने के बाद किसी दूसरे चैनल से अपना नाम नहीं जोड़ा। पंकज अब भी आईबीएन7, टाइम्स नाऊ, इंडिया टीवी, एनडीटीवी और नाइन एक्स जैसे चैनलों को स्टोरी देते हैं लेकिन अपना नाम नहीं जोड़ते। वे कहते हैं- मेरा किया हुआ काम मुझे क्रांतिकारी पहचान दिला रहा है। मुझे असली पत्रकारिता करने का संतोष दे रहा है। मुझे गांव-गिरांव के लोगों के बीच स्थापित कर रहा है। फिर दूसरों के ब्रांड से क्यों नाम जोड़ूं? ज्ञात हो कि पंकज ने जेएनआई न्यूज एलर्ट मोबाइल सेवा शुरू की और उन पाठकों को टारगेट किया जिन तक अखबार और टीवी दोनों नहीं पहुंच पाते। पंकज ने जब टीवी की अपनी आखिरी नौकरी (जी न्यूज से) छोड़ी तो भड़ास4मीडिया पर उनका इस्तीफानामा छपा था। उस इस्तीफेनामे को पढ़कर पंकज को उनके जानने वाले कई पत्रकारों ने फोन किया।
बकौल पंकज- ”इस्तीफानामा पढ़कर मुझे मेरे कई साथियो ने बधाई दी मगर इस तरह का साहस करने के लिए कोई तैयार नहीं था। सबने एक ही गाना गया, भाई पंकज, बहुत गंदे लोग हैं, बिना पैसे के काम कराते हैं मगर इनमें से एक का भी ये फ़ोन नहीं आया कि मैं भी छोड़ रहा हूँ। शायद अपनी-अपनी मजबूरी हो। लोग जानना चाहते थे कि अब मैं क्या करूंगा। बहुत से साथी (बड़े रिपोर्टर जिन्हें खबरों के विजुवल्स की जरूरत रहती है) मुझे इस प्रदेश के टॉप 10 स्ट्रिन्गरों में से एक बताने में नहीं हिचके। मैं यह सब सुन कर सिर्फ मुस्कराता रहा कि लखनऊ और दिल्ली में बैठे हुए लोग सुदूर ग्रामीण अंचल से पत्रकारिता करने वाले रिपोर्टर के बारे में कितनी सीमित सोच रखते हैं। मुझे ये मालूम है कि दिल्ली की संसद से निकली खबर तब तक पूरी नहीं होती जब तक उसका दूसरा सिरा गांव के हरिया से जुड़ा हुआ न हो। और गांव का हरिया मेरे सम्पर्क में है। वो तुम तक नहीं पहुंचेगा मगर मैं चाहूंगा तो संसद के नुमाइंदों को हरिया के घर तक पहुंचना ही पड़ेगा। जिस JNI NEWS MOBILE ALERTS सर्विस की मैंने नींव डाली वह इतना कामयाब होगा, मुझे अंदाजा नहीं था। JNI NEWS SERVICE फर्रुखाबाद, कन्नौज, हरदोई, शाहजहांपुर, बहराइच, मैनपुरी समेत 11 जिलों में सक्रिय है। मैंने अपना मुख्यालय दिल्ली या लखनऊ नहीं, फर्रुखाबाद को बनाया है। मेरी खबर के पाठक गांव के हरिया और रामकली हैं जिन्हें अब JNI पढ़ना आ गया है। मेरे पास 75000 नागरिक पत्रकारों की वो फौज है जिन्हें मैं जानता हूं। दुनिया की कोई मीडिया ऐसी नहीं जो अपने पाठक और दर्शक को जानता हो मगर मेरे कंप्यूटर में दर्ज हर नंबर, नाम, पते और उसके पेशे के साथ है। मैंने देश में चल रही आम मोबाइल एलर्ट सेवाओं की तरह चलना पसंद नहीं किया। मैंने अपनी सेवा सिर्फ खास लोगों तक सीमित नहीं रखी। मेरी सेवा का उपयोगकर्ता खेत में हल जोत रहा रामलखन है, नरेगा का मजदूर दीपू है, इलाज के अभाव में दम तोड़ रहा खैरू है, गांव में कोटेदार और प्रधान के दबाब में भ्रष्टाचार के खिलाफ मुह बंद रखने वाले मैकू और हीरालाल हैं। एक सन्देश भेजने पर 2 घंटे में 1500 गाँव में से लगभग एक हज़ार गाँवों से जवाबी सन्देश आ जाता है कि अमुक-अमुक गाँव में बच्चे स्कूल में भूखे बैठे हैं और मिड-डे मील नहीं बना है। और यह खबर लखनऊ से दिल्ली तक उसी समय चलती है। कोई अधिकारी ये नहीं कह सकता कि मुझे नहीं मालूम क्योंकि उसके जेब में पड़े हुए मोबाइल में गाँव के हरिया का सन्देश JNI के माध्यम से आ चुका होता है। नतीजा- गत वर्ष जिन 85 प्रतिशत प्रधानों ने बच्चों का हिस्सा हड़पा था, अब तक उनमें से 8 दिन के अभियान में ही 50 प्रतिशत से ज्यादा खाना बनवाने लगे हैं। 50 से अधिक प्रधानों के खि़लाफ गबन का मुकदमा प्रशासन को अपनी खाल बचाने के लिए लिखना पड़ा है।”
इस मोबाइल सेवा के जरिए पत्रकारिता का सुख व संतोष मिलने के बारे में पंकज कहते हैं- मैं पिछले तीन सालों में केवल 3 जिलों के पुलिस कप्तानों और एक डीएम से मिला, वह भी खबर के सिलसिले में। मुझे नहीं मालूम हनक क्या होती है। मुझे तो हनक उस वक़्त नज़र आती है जब 3 साल से प्राइमरी विद्यालय में पढ़ रहा संजीत जाटव 15 जुलाई को पहली बार सरकारी स्कूल का मिड-डे मील खाता है, जब 8 साल से बने हुए बीपीएल कार्ड पर विधवा रामप्यारी को सरकार द्वारा भेजा मुफ्त गेंहू-चावल मिलता है। अब ज्यादा नहीं लिखूंगा, आँखें भर आई हैं मेरी। वो मंजर याद कर रहा हूं जब एक गाँव में ये पता चलने पर की JNI वाले पंकज आये हैं, लोगो ने चौपाल लगा ली थी। कोई लोटे में दूध ले आया था तो कोई पाल के पकाए हुए देसी आम बाल्टी में भर कर आगे रख गया था। रामसरन की बेटी की शादी के लिए 20000 रुपये JNI के प्रयास से मिले थे। ये जान कर रामसरन की बेटी टूटे दरवाजे से ख़ुद को छिपाते हुए उसे देखना चाहती थी जिसकी वजह से उसकी अगले दिन बारात आने वाली है। मेरी नज़र में पत्रकारिता के लिए अभी हिंदुस्तान का 80 प्रतिशत हिस्सा खाली पड़ा है। एक जिले में अभी भी आबादी के हिसाब से इतना हिस्सा मीडिया से अछूता है। ग्रामीण पत्रिका निकाल कर प्रधानों और कोटेदारों को लक्ष्य बना उनसे विज्ञापन लेने का टारगेट करने वाले बड़े मीडिया हाउस और पत्रकार भी मेरे निशाने पर हो सकते हैं।
मिड डे मील के अपने अभियान के बारे में पंकज ने विस्तार से बताया- ”मैंने पहला अभियान चलाया मिड डे मील अभियान। फर्रुखाबाद क्या, पूरे उत्तर प्रदेश में सरकारी स्कूलों में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर नौनिहालों को मिलने वाले मिड डे मील को प्रधान और सेक्रेटरी डकार रहे थे। मैंने फर्रुखाबाद के 542 ग्राम पंचायतों के गाँवों में 28000 से ज्यादा सब्सक्राइबर मोबाइल एलर्ट सेवा के बनाए फिर उन्हें अपने गाँव में चल रही धांधली की सूचना देने को कहा। 15 दिन के अभियान में रोज दोपहर में मिड-डे मील न बनाने वाले स्कूल और प्रधानों की खबर न केवल उनके इलाके में भेजी बल्कि उत्तर प्रदेश और केंद्र सरकार के उन जिम्मेदार अधिकारियों के मोबाइल पर भी रिलीज़ की जिन्हें करवाई करनी थी। खबर चलते ही बदनामी के डर से सही, अधिकारियों के फ़ोन की घंटिया बजने लगीं और स्कूलों में छापे पड़ने लगे। कई वर्षों से बंद पड़ी फाइलें खुल गयीं। प्रधानों को नोटिस भेजे जाने लगे। जेएनआई की निगरानी बढ़ने लगी। हमारे गाँव-देहात के रिपोर्टर गरीब बच्चों के लिए मसीहा बन गए। जिन प्रधानों पर राजनैतिक कारणों की वजह से डीएम कारवाही नहीं करते थे, बदनामी के डर से वो भी हरकत में आये। धमकियां मिलीं मगर मैंने हिम्मत नहीं हारी। पहले तो जिले के अधिकारी परेशान हुए मगर मैंने उन्हें समझाया कि ये क्रांति की शुरुआत है और फायदा आपको ही होगा। जेएनआई जहाँ होगा, वहां कोई नेता सिफारिश भी नहीं करेगा क्यूंकि हम उस नेता को भी नंगा करने को तैयार थे। और नतीजा सार्थक निकलने लगा। 15 दिन में 32 खबरों के चलते ही फर्रुखाबाद के प्रधानों पर कार्रवाई शुरू हुई। गाँव वालों ने अपने अधिकार मांगने शुरू किये तो प्रधान जी खुद स्कूल में बैठ कर बच्चों के लिए मिड डे मील बनवाने लगे और खबर देने लगे की आज खाना बनवा दिया है। इस दौरान मुझे प्रलोभन भी मिले मगर मुझे खबर चलने और गाँव वालों के टूटे-फूटे धन्यवाद के सन्देश अच्छे लगे। आज फर्रुखाबाद में 85 प्रतिशत से ज्यादा स्कूलों में नौनिहालों को मिड डे मील मिलने लगा है और मुझे 15 अगस्त को सरकार द्वारा सकारात्मक खबर चलाने के लिए सम्मानित किया गया।”
टीवी और अखबारों के मुकाबले मोबाइल मीडिया के माध्यम के बारे में पंकज की राय है- ”सही कहूं तो 160 अक्षरों ये सारा कमाल किया है। मोबाइल से जो हम लोग खबरें भेजते हैं, उसकी लिमिट है 160 अक्षर। 64 पेज के अखबार और 24 घंटे के न्यूज़ चैनल पर भारी पड़ रहा 160 अक्षरों की जेएनआई न्यूज़ मोबाइल एलर्ट सेवा। देश की आज़ादी के बाद पत्रकारिता जगत में उद्देश्य परक पत्रकारिता करने का उत्साह सफल हुआ है। मगर इमानदारी और हिम्मत के बिना कुछ भी संभव नहीं। पत्रकारिता में बेबाकी से काम करने के कारण मुझ पर एक मुकदमा हुआ और एलआईयू के खाते में मेरा नाम भड़काऊ पत्रकार के रूप में दर्ज हो चुका है। हालाँकि उनके पास ऐसा कोई उदहारण नहीं है जो ये साबित कर सके कि मैं एक भड़काऊ पत्रकार हूँ। हां, सच को बिना इंतज़ार के जनता में फैला देना शायद मुझे नुकसान करे”
पंकज खुद के बारे में बताते हैं- ”मुझे 9 भाषाओं को बोलना-समझना आता है। पिता जी के फौज में होने से बचपन में उनके साथ देश के कई हिस्सों में रहा। मैं पहले कंप्यूटर इंजीनियर था। बाद में पत्रकार बन गया। इमानदारी मेरा धर्म है। ख़ुद पर यकीन मेरा आत्मविश्वास है। जनहित में खबर करना मेरा पेशा है। विज्ञापन से घर चलाना मेरा व्यापार है। बहता जोगी रमता पानी हूँ। दो बेटियों का बाप हूं। मां-बाप का अकेला बेटा हूं। तमन्ना है देश में आने वाला बचपन जवानी तक पहुंचते-पहुंचते मुझे अपना रोल मॉडल बनाये, पर ये छोटा मुंह बड़ी बात है। मैं वैसे तो एक कंप्यूटर इंजीनियर हूं मगर नौकरी करने में ज्यादा विश्वास नहीं करता। इसलिए कि मैं अपने आप को पहचानता हूं। अब रास्ता मिल गया है। पूरे उत्तर प्रदेश से जेएनआई लाँच करने के लिए फोन आते हैं मगर एक भी पत्रकार ऐसा नहीं मिला जो कहे कि मुझे पत्रकारिता करनी है। सबको जिले में अधिकारियों पर हनक कायम करने के लिए ब्रांड चाहिए। खोज जारी है। 11 जिलो में जेएनआई कमाल कर रहा है अन्दर ही अन्दर। अब तक कुल दो लाख लोगों को जोड़ चुका हूँ। जल्द ही बुलंदशहर लांच होने वाला है। पूरे नेटवर्क में साठ फीसदी ग्रामीण उपभोक्ता है और 40 प्रतिशत शहरी। मैं केवल जनता को जागरूक करता हूं। सच बताता हूं। मेरा अगला प्रोजेक्ट है पीडीएस सिस्टम को सुधारना। पीडीएस बोले तो सरकारी सस्ते गल्ले की दुकान।”
पत्रकारिता की अब तक की अपनी यात्रा को पंकज कुछ यूं याद करते हैं- ”15 साल पहले मैंने लिखना शुरू किया। सक्रिय पत्रकारिता में 5 साल पहले आया। 2004 में फर्रुखाबाद में लोकल चैनल शुरू किया। नाम था- गुड टीवी। 9 महीने में एक सांसद और एक विधायक ने कमिश्नर से शिकायत कर बंद करवा दिया। उनके कई चेहरे मैंने बेनकाब कर दिए थे। 2005 में ईटीवी ज्वाइन किया। 5 महीने बुलंदशहर रहने के बाद जुगाड़ लगा कर अपने जनपद फर्रुखाबाद आ गया। ताबड़तोड़ खबरों से फिर अपनी जड़े खोद ली। उस साल बनारस के मंदिरों में हुए बम विस्फोट के दौरान बनारस के लगभग सभी बड़े अधिकारी जिले से गायब थे और वो कहाँ थे, ये एक्सक्लूसिव रिपोर्ट मैंने अपने कैमरे में कैद कर ईटीवी को दी थी। मगर वो खबर डेस्क वालों ने अपने नाम से चलवा ली और मेरा मन भर गया। दरअसल सारे अधिकारी उस धमाके वाले दिन मुलायम सिंह के भतीजे धर्मेन्द्र यादव जो उस वक़्त मैनपुरी से सांसद थे, की शादी में फर्रुखाबाद आये थे और मुलायम सिंह के पैर छूते हुए विजुवल में कैद हुए थे। 2006 में मैंने अपने मित्र बुलंदशहर के जी न्यूज़ के संवाददाता अमित शर्मा की सलाह पर जी न्यूज़ के तत्कालीन वरिष्ठ अभय किशोर से सम्पर्क किया। जी न्यूज़ में फर्रुखाबाद और आसपास के इलाके से खबरें करना शुरू की। मेरे जी न्यूज़ ज्वाइन करने के एक महीने बाद मैंने खूंखार डाकू जो 18 पुलिस वालों को मौत की नींद सुला चुका था, पर आधा घंटे की क्राइम स्टोरी की और पुलिस और डाकू की मिलीभगत का राज खोला। उस वक़्त के डीजीपी यशपाल को शायद वो स्टोरी चुभ गयी और 15 साल से पुलिस के खून के प्यासे कलुआ डाकू को 15 दिन में ही मार गिराया गया। 2006 से जुलाई 2008 तक जी न्यूज़ के लिए दर्जनों एक्सक्लूसिव खबरें, दो दर्जन से ज्यादा प्रोग्राम और दस बार लाइव करने का मौका मिला। मगर जुलाई 2008 के बाद स्ट्रिन्गर्स की स्टोरी को तवज्जो मिलना बंद होने लगी, बाज़ार में कैमरा सस्ता होने लगा नए नौसखिए फोटो खींच कर भेज देने को खबर मानने लगे और हम जैसे गंभीर लोगों की कद्र कम होने लगी, डेस्क पर सस्ता बिकने लगा। डेस्क पर बैठे लोग दो स्टार वाले को जिले का एसएसपी कहने लगे तब मैंने भी दूसरा रास्ता खोजने का सोच लिया। मुझे याद है जी न्यूज़ में एक मीटिंग के दौरान जी न्यूज़ की एचआर वाइस प्रेसीडेंट दिव्या बोली थीं कि स्ट्रिन्गर जिले में बड़े-बड़े गुल खिलाते हैं, इनके पैसे बढाने की क्या जरूरत है। बड़ा गुस्सा आया था ये जानकार कि क्या गन्दी धारणा पाल रखी है स्टूडियो वालों ने। खुद से कहा- ना पंकज, अब ना। कुछ और सोचो। जब आपका पालनहार ही ये सोचेगा तो बाहर की दुनिया क्या सोचेगी। खैर, जब जी यूपी लांच हुआ तो 1000 रुपये की जगह 500 रुपये देने को बोला गया। साथ में धमकी भी की बाज़ार में सैकड़ों स्ट्रिन्गर सड़क नाप रहे हैं। उस वक़्त तो कुछ नहीं बोला। बाद में मन बना लिया की बस, अब और नहीं। तुम 500 में कचड़ा खरीदो, अपना माल तो महंगा बिकेगा, सो बिक रहा है।”