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हिंदी मैग्जीन ‘इंडिया न्यूज’ पर बंदी की तलवार

प्रबंधन ने संपादक सुधीर सक्सेना को दिया अल्टीमेटम :  साहित्य-राजनीति केंद्रित हिंदी मैग्जीन ‘इंडिया न्यूज’ पर बंदी की तलवार लटक रही है. सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार प्रबंधन ने पिछले दिनों ‘आज समाज’ अखबार के दिल्ली प्रदेश के तीन ब्यूरो को 28 फरवरी तक बंद करने के ऐलान के बाद ‘इंडिया न्यूज’ मैग्जीन के वरिष्ठों को भी कह दिया है कि या तो वे मैग्जीन संचालित करने लायक रेवेन्यू जनरेट कराएं या फिर 28 फरवरी तक अपनी व्यवस्था कर लें. सूत्रों के मुताबिक इंडिया न्यूज मैग्जीन में संपादकीय और तकनीकी विभागों को मिलाकर कुल 15 लोग कार्यरत हैं.

<p align="justify"><font color="#003366">प्रबंधन ने संपादक सुधीर सक्सेना को दिया अल्टीमेटम : </font> साहित्य-राजनीति केंद्रित हिंदी मैग्जीन 'इंडिया न्यूज' पर बंदी की तलवार लटक रही है. सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार प्रबंधन ने पिछले दिनों 'आज समाज' अखबार के दिल्ली प्रदेश के तीन ब्यूरो को 28 फरवरी तक बंद करने के ऐलान के बाद 'इंडिया न्यूज' मैग्जीन के वरिष्ठों को भी कह दिया है कि या तो वे मैग्जीन संचालित करने लायक रेवेन्यू जनरेट कराएं या फिर 28 फरवरी तक अपनी व्यवस्था कर लें. सूत्रों के मुताबिक इंडिया न्यूज मैग्जीन में संपादकीय और तकनीकी विभागों को मिलाकर कुल 15 लोग कार्यरत हैं. </p>

प्रबंधन ने संपादक सुधीर सक्सेना को दिया अल्टीमेटम :  साहित्य-राजनीति केंद्रित हिंदी मैग्जीन ‘इंडिया न्यूज’ पर बंदी की तलवार लटक रही है. सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार प्रबंधन ने पिछले दिनों ‘आज समाज’ अखबार के दिल्ली प्रदेश के तीन ब्यूरो को 28 फरवरी तक बंद करने के ऐलान के बाद ‘इंडिया न्यूज’ मैग्जीन के वरिष्ठों को भी कह दिया है कि या तो वे मैग्जीन संचालित करने लायक रेवेन्यू जनरेट कराएं या फिर 28 फरवरी तक अपनी व्यवस्था कर लें. सूत्रों के मुताबिक इंडिया न्यूज मैग्जीन में संपादकीय और तकनीकी विभागों को मिलाकर कुल 15 लोग कार्यरत हैं.

सुधीर सक्सेना इस मैग्जीन के एडिटर हैं. कंटेंट वाइज इस मैग्जीन ने अच्छा प्रदर्शन किया है और कई मुद्दों को उठाकर चर्चा में बने रहने में सफलता पाई. पर प्रबंधन द्वारा खर्च-मुनाफे के समीकरण के हिसाब से अपने मीडिया के कारोबार की समीक्षा करने के बाद उन-उन कामों को बंद करने की तैयारी कर ली गई है जिससे घाटा कम से कम हो और मीडिया का कारोबार मुनाफे में न आ सके तो कम से कम आत्मनिर्भर रहे. सूत्रों के मुताबिक तीन स्थितियां संभव हैं. एक तो यह कि प्रबंधन ने इंडिया न्यूज मैग्जीन को वाकई बंद करने का मन बना लिया हो. नंबर दो, मैग्जीन न बंद करके प्रबंधन वर्तमान टीम को हटाकर नई टीम ले आए. ौर नंबर तीन- मैग्जीन भी न बंद हो और टीम भी वही रहे, सिर्फ टीम लीडर बदला जाए. ऐसा टीम लीडर ले आने की तैयारी हो जो मैग्जीन को लाभ में लाने का गंभीर प्रयास करे. खबरों-रिपोर्टों के साथ-साथ रेवेन्यू में भी दिमाग गड़ाए.

इन तीनों में से जो भी सूरत बने लेकिन इतना तो तय है कि मैग्जीन बंदी की चर्चा से इंडिया न्यूज मैग्जीन का स्टाफ भयाक्रांत है और कई लोग नए ठिकाने तलाशने में जुट गए हैं. ज्ञात हो कि कांग्रेसी नेता विनोद शर्मा द्वारा कुछ बरस पहले जोरशोर से हिंदी न्यूज चैनल ‘इंडिया न्यूज’, हिंदी अखबार ‘आज समाज’ और हिंदी मैग्जीन ‘इंडिया न्यूज’ की लांचिंग की गई. न्यूज चैनल और अखबार में कई लोग आए गए पर मैग्जीन में तुलनात्मक रूप से स्थिरता बनी रही. अब अचानक मीडिया कारोबार के पुनर्गठन की कवायद शुरू होने पर मैग्जीन के लोग भी प्रबंधन के निशाने पर आ गए हैं.

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0 Comments

  1. sumit prakash naryaan ram

    March 6, 2010 at 3:22 am

    it is bad news.i think hole responsiblte is sudhir saxena. he is editor india news mag. if editor is comitent then mangement are bound to continue the mag.in this satutation editor should take responsiblite and the quit the post. as per my information saxsena had many girl friends,that’s why he indulse outside activites. i advise vindoji and kartik ji that saxsens should punish immedetly.

  2. Vikas Verma

    February 16, 2010 at 3:47 pm

    Yashwant Ji,
    India News Channel bhi Jald hi band hone wala hai. India News ki website band ho chuki hai. Shayad aapke paas khabar nahi hai. Vinod Sharma Media ki dukan Haryana tak Sametne ka plane final kar chuke hain. Harish Gupta to ki Chutti issi mahine hone ja rahi hai. Khabar Confirm Kar lai.
    Regards,
    Vikas Verma

  3. संजय

    February 16, 2010 at 6:28 pm

    वैसे भी आजकल इस पत्रिका कल क्वालिटी वैसी नहीं रही जैसे शुरूआत में रहीं।
    संयोग से आज ही इसे स्टॉल पर देखा। 20 रुपये में इसे खरीदना व्यर्थ लगा। इससे अच्छा 10 रुपये में प्रथम प्रवक्ता है।
    संजय

  4. yogi

    February 17, 2010 at 4:36 am

    This is what we are expecting from india news. They are from different background like voice of india and now they finally realised that because of power & political support they are not able to create impact. Unfortunately the employee’s of india news will suffer

  5. lokender

    February 17, 2010 at 5:17 am

    This is due to the new CEO Mr. Rakesh Sharma. he will destroy each & evry department of Media House. He is in hurry to take over all in his control at any cost. His contribution is to push the Aaj Samaj in Chandigarh-Amabala a 14 crore loss recently. My sympothy are with the employees of Media House.

  6. कमल शर्मा

    February 17, 2010 at 8:22 am

    मीडिया जगत में कई ऐसे नए समूह उभर आए हैं जो एक दिन कोई एडिशन लांच करते हैं और दूसरे दिन बंद। एक दिन लोगों को जोर शोर से रखते हैं और दूसरे दिन उन्‍हें विदा कर देते हैं। जनहित से ज्‍यादा अपने हितों के लिए अखबार, टीवी और मैगजीन लाते हैं लेकिन जब कुछ खास नहीं होता तो बंद। कई लोग ऐसे भी आए कि मीडिया में आते ही प्रधानमंत्री, मुख्‍यमंत्री, नेता और संतरी सबके साथ अपना उठना बैठना चालू हो जाएगा। फिर हर जगह अपना राज। लेकिन वास्‍तविकता कुछ और होती है। कुछ ऐसे पत्रकार भी है जो धनपशुओं को यह समझाते हैं कि आप मीडिया में उतरिए फिर आपको राष्‍ट्रीय नेता बना देंगे, आपके धंधे चमक जाएंगे, अपराधों पर से पुलिस पर्दा नहीं उठा पाएगी, विदेश यात्राएं करते रहेंगे, आप मुख्‍यमंत्री की कह रहे हैं लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय तक आप बेरोक टोक आते जाते रहेंगे। इस गोरखधंधे की वजह से भी कई दिक्‍कते हुई हैं। ऐसा ही सब विनोद शर्मा जी के साथ है। कई बिजनैस कई झंझट लेकिन यह मानते हैं कि सारे दुखों को दूर करने के लिए मीडिया रामबाण दवा है सो सब लांच कर दिए। अब खर्च भारी लग रहे हैं तो बंद ही होगा सब। वैसे भी मीडिया में कंसोलिडेशन का दौर आ रहा है, जो वाकई मेहनत कर रहे हैं और अपने से ज्‍यादा जन से जुड़े होंगे वे ही चलेंगे। बाकी जो अपने धंधों के लिए आए हैं उनका बंद होना तय है। यदि बंद न भी हुए तो मरियल हालत में चलते रहेंगे।

  7. prabhat

    February 17, 2010 at 10:31 am

    adurdarshita bhai se 110 pecent sahmatee. lekin dukh yah ki in ke karan sabse jyada nuksaan shramjeevee imandar patrakaron ka hua hai/

  8. sandip thakur

    February 17, 2010 at 11:41 am

    hindi ke kise bhi newspaper ya magazine ka band hona dukhad(sad) hai.band hone ke paritikirya bazar mein bahut kharab hoti hai.hindi project per paisa lagane wale dus baar sochane per majboor ho jate hain ki paisa lagau ya na lagau.band ke nobat isleye aati hai ki top post per managment apne loyal ko bitha detha hai aur phir woh apne loyal ko bhar leta hai.is chakkar mein professional aur kaabil log rah jate hain.natija, kuch deno ke baad paper ya magazine band ho jata hai.
    sandip thakur
    metro editor

  9. L. Pandey

    February 18, 2010 at 3:41 am

    इंडिया न्यूज ने शुरूआत में कम मूल्य में अच्छी सामग्री दी थी। लेकिन अब इस पत्रिका के दाम इतने ज्यादा बढ़ गए हैं कि शायद ही कोई इसे खरीदने की हिम्मत जुटा पाए। इससे अच्छा तो दस रुपए खर्च करके शुक्रवार पत्रिका पढ़ना लाभदायक है। हालांकि सुधीर सक्सेना जी ने अच्छा काम किया। लेकिन जब मालिक ही अनाड़ी हो, तो क्या कहें। विनोद शर्मा न मीडिया के व्यक्ति हैं और न उन्हें मीडिया का कारोबार ही समझ में आता है।

  10. raj nandvanshi

    February 18, 2010 at 8:28 am

    India news magazine ko iss halat main to aaj ki date main kharedhna bilkul nahi bha raha hai. Kyonki bite kuch samay se to iska design (roop-rang) bilkul nirash ho gaya hai. Iske design ka kaam dekhne wale log sayad kudh hi naye-naye prayogon main lage hua hain. Jisse magazine main sithirta nahi dikh rahi hai. Jo ki kisi bhi patrika ke liye jaroori hai. Jis india news ko pehle uski visisht roop-rang aur khabroon ke liye kharida jata tha aaj us par 20 rupay kharch karna theek nahi lagta. Mere khayal se sayad magazine ke designing ke log ab koi naya prayog naa kare to hi theek rahega.

  11. prakash asthana

    February 18, 2010 at 11:31 am

    यह सच है कि विनोद शर्मा जी ने दो सौ करोड़ रुपए का निवेश करके मीडिया जगत में प्रवेश किया और एक अपनी तरफ से एक अच्छा अखबार आज समाज तथा इंडिया न्यूज चैनल चलाने की कोशिश की, लेकिन जहां तक मैं समझता हंू, उन्होंने एक काम गलत किया कि अपने संस्थान में बड़े ओहदों पर ऐसे सिफारिशी लोगों को बैठा दिया जिन्हें प्रिंट मीडिया का ज्ञान नहीं था। वे आज भी इस अखबार में मौजूद हैं। कई तो ऐसे हैं जिन्हें अखबार के कॉलम की लंबाई-चौड़ाई तक का नहीं पता होगा। इसके अलावा ऐसे लोगों ने उन लोगों को रिपोर्टिंग में भर लिया जो सीधे इंस्टीट्यूट से चले आ रहे थे, और किसी विभाग की प्रेस विज्ञप्ति उनके लिए उस दिन की बड़ी खबर हुआ करती थी। अखबार के पतन का एक कारण यह भी रहा, इस सच्चाई से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता। दूसरी बात यह कि जिस व्यक्ति को जब सौंपा गया काम नहीं आता है तो वह पूरा दिमाग राजनीति में लगा देता है, जिस कारण वह न केवल अपनी पॉवर का दुरुपयोग करता है बल्कि अपने से अधिक काबिल व्यक्ति को नीचा दिखाने की ही जुगत में लगा रहता है। कहते हैं कि सिर्फ एक मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है, लेकिन इस देश का दुर्भाग्य यह है कि वही एक मछली बहुत बड़ी सिफारिश से आती है, जो जड़ जमाकर बैठ जाती है। फिर भले ही आप कितने ही लोगों को हटाएं या लगाएं, स्थिति वही की वही रहती है। मैं समझता हंू कि विनोद जी और कार्तिकेय जी को यह बात आज नहीं तो कल जरूर समझ आएगी।

  12. पंकज झा.

    February 18, 2010 at 2:03 pm

    आरज़ू ले के कोई घर से निकलते क्यू हो.
    पाँव जलते हैं तो आग पे चलते क्यू हो?

  13. Subhashish

    February 20, 2010 at 12:50 pm

    Its bad to hear the clooser loom of India News. After all it was first mag which challenged India Today and Out look in respect of price and content as well. But the recent price hike was the reflection of bad management in past days. If the price be maintained in a acceptable manner (I mean that should be more than Rs.5/-) earlier, the magazine may run longer. Hope management will continue the magazine with poper deliberation. It is no doubt the controbution of Mr. Sudhir Saxena to India News is incredible.
    Hope all will be well.
    Subhashish Roy

  14. SHIVANI

    June 20, 2010 at 12:48 pm

    MY THOUGHTS
    (1)
    क्या आप दिल से मुस्कराते है,
    या लोगो के लिए
    बस हँसते से जाते है
    सोचिए खुद से ………..
    आप आखिर क्या चाहते है .

    (2)

    गलती हुई कहाँ से भला,
    जब सोचा तब पता चला,

    हम अकेले जो मुस्कराते थे

    खुद अपने सपने सजाते थे,

    भूल हुई ,जो ये नहीं जाना,
    कि लोग ,हमसे क्या चाहते थे……
    बात थी ,,,, जरूरी बड़ी,
    अफ़सोस … हमारी नज़र न पड़ी,
    जान जाते …
    तो न मिलती शायद ….
    सजा हमको इतनी कड़ी
    लोग नज़र लगाते हैं ….
    क्यों हम बातों में आ जाते हैं …
    विश्वास अगर पक्का हो…
    तो लोग देखते ही रह जाते है…..

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