पत्रकारिता का क्षेत्र वर्तमान में बहुविध एवं व्यापक है। जीवन के समस्त पक्षों का संचय इसमें मिलता है। समाज के विकास और सरोकारों से पत्रकारिता का गहरा संबंध है। यही वजह है कि आज आम आदमी का रुझान भी पत्रकारिता क्षेत्र में हुआ है। वह न केवल सरोकारों के रूप में इससे जुड़ना चाहता है बल्कि अपने आसपास घट रहे परिवेश में भी उसकी गहरी रुचि है। पत्रकारिता कभी मिशन का पर्याय हुआ करती थी पर उसका रूप वर्तमान में किस प्रकार परिवर्तित हुआ है यह आज अहम् मुद्दा है। संजय गौड़ की पुस्तक ‘‘जर्नलिज्म स्कैण्डल्स’’ इन्हीं पक्षों को छूती हुई एक अभिनव अवधारणा को अपने में समेटे है।
पत्रकारिता के क्षेत्र में इस विषय पर यह प्रस्तुति अनूठी है। पत्रकारिता के अकादमिक पक्षों को देखा जाए तो इस विषय पर अल्प मात्रा में ही सामग्री मिलती है। जर्नलिज्म स्कैण्डल्स में खेल, व्यवसायिक, स्वतंत्र, एजुकेशन आदि पत्रकारिता में स्कैण्डल्स को सम्मिलित किया गया है। यूँ तो पत्रकारिता आज ग्लैमर के रूप में इंगित की जाती है किंतु इस पेशे में चमक-दमक के पीछे कैसा दागदार चेहरा है, यह इस पुस्तक के माध्यम से इंगित होता है। पत्रकारिता के माध्यम से जो शुचिता सामने आनी चाहिए थी, वह जर्नलिज्म स्कैण्डल्स की वजह से किस स्वरूप में उभरी है, वह पक्ष भयावह हैं।
आज पत्रकारिता को भले ही लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता रहा हो पर जर्नलिज्म स्कैण्डल्स की वजह से उसमें जो गिरावट आई है वह चिंतन का विषय है। प्रस्तुत पुस्तक के माध्यम से पत्रकारिता के क्षेत्र में एक अछूते पक्ष को गति मिल सकेगी वहीं जिज्ञासुओं व चिंतकों के लिए यह एक मील का पत्थर साबित होगी। पुस्तक के आखिरी अध्याय में येलो जर्नलिज्म पर भी बात की गई है। पुस्तक के प्रारंभ में सामाजिक प्रभाव पर चर्चा है। अगर पुस्तक अंग्रेजी के साथ हिंदी में भी होती तो यह वृहद पाठक वर्ग को अपने से बाँध सकती थी। पुस्तक का अधिक मूल्य भी इसे आम पाठक से दूर करेगा। किंतु समेकित रूप से यह पत्रकारिता में नव अवधारणा की सार्थक प्रतिनिधि साबित होगी।
पुस्तक : जर्नलिज्म स्कैण्डल्स
लेखक : संजय गौड़
प्रकाशक : वाईकिंग बुक्स्, चौड़ा रास्ता, जयपुर
मूल्य : 1195 रुपये
पृष्ठ : 320
समीक्षक : डॉ. सुधीर सोनी
शुभचिंतक
August 13, 2010 at 3:34 am
इतनी महंगी किताब
आम गरीब पत्रकार तो पढ नहीं सकता
पिफर छापी किसके लिए है
अमित गर्ग. जयपुर. राजस्थान.
August 13, 2010 at 3:26 pm
भाई संजय गौड़ जी, सादर नमस्कार।
सबसे पहले तो पत्रकारिता तथा उससे जुड़े भयावह मुद्दों पर किताब लिखने के लिए कोटि-कोटि शुभकामनाएं। लेकिन, किताब के दाम देखकर पत्रकारिता विषय को पढऩे की रुचि रखने वाले इसका अध्ययन करेंगे, ऐसी उम्मीद क्षीण ही दिखलाई देती है। बेहतर होता कि किताब के दाम देश के 70 करोड़ से भी अधिक उन आम आदमियों की तस्वीर को जेहन में रखकर तय किया जाता, जिन्हें दो जून की रोटी भी मयस्सर नहीं होती। खैर, एक बार पुन: शुभकामनाएं।
somsharma
August 15, 2010 at 7:37 am
kamai ke liye chapi jati hai.inka patarkarita se lena dena nahi hai
singh sahib
August 18, 2010 at 8:31 am
kitab ko paperback me chhapne kitayari ki ja rahi hai… iiska hindi edition sasta aa raha hai…
s k jain
Rahul
September 4, 2010 at 5:55 am
;D;D jis desh me mahgai sabse bada mudda hai… jaha khane ki chizo ke daam badhte hi ja rehe hai… petrol ke daam ghatne ka naam nahi le rehe hai.. waha itni 1195/- ki kitab kyun kharide ga… yaha to itne rupaye me to aak ghar ka mahine ka kharch bhi sahi se nahi chal pata hai… ya kitab to hamare desh ke ministers ke liya hai… jinki monthly salary ab 50,000 ho gai hai…