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पटना यात्रा (4) : ‘जवान जहाजी’ के घंटे भर

[caption id="attachment_16864" align="alignleft"]यशवंत सिंहयशवंत सिंह[/caption]जहाज से पटना क्या, दिल्ली क्या, सब लगते हैं कागज के खिलौने. मटमैली धरती पर जड़े चांदी के अंगूठी-से दिखते हैं, बशर्ते, आपका वायुयान आसमान में उस वक्त अग्रसर हो रहा हो जब खूब दोपहरी हो और सूर्यदेव चौतरफा रोशनीबारी कर रहे हों. उस वक्त धरती से मन उचाट हो जाता है. प्यार भी आता है तब धरती वालों से. उपर से दिखते इत्ते छोटे से बिंदु जैसे शहर में समाए लाखों-करोड़ों घरों में रहने वाले लोग अपनी दीवार के अंदर की दुनिया को ही पूरी दुनिया मान लेते हैं और दीवार के अंदर सुख-चैन शांति के लिए दूसरों के दीवारों की सुख-शांति में सेंध मारने में जुटे रहते हैं. यही धंधा है देश-दुनिया का. काहे का किचकिच. कुछ भी नहीं है. सब निस्सार है. सब बेकार है. पर प्यार धरती के लोगों पर ये आता है कि कि यार, देखो, ये दुनिया वाले कितनी छोटी चीजों के लिए भागादौड़ी करने में जुटे हैं और ब्रह्मांड के हजारों सुखों से वंचित हैं. कितने भोले हैं बेचारे. ध्यान रखिए, इस कैटगरी में मैं भी हूं. अल्प समय के लिए आए तत्व ज्ञान बोध के आधार पर मुझे इस भीड़ से अलग नहीं कर सकते. सोचता रहा… ओबामा की जिंदगी तो तब भी सफल है, अंबानी की जिंदगी तो तब भी सफल है…. साले दिन भर जहाज पर रहते हैं, सारी सुख सुविधाओं के साथ.

यशवंत सिंह

यशवंत सिंहजहाज से पटना क्या, दिल्ली क्या, सब लगते हैं कागज के खिलौने. मटमैली धरती पर जड़े चांदी के अंगूठी-से दिखते हैं, बशर्ते, आपका वायुयान आसमान में उस वक्त अग्रसर हो रहा हो जब खूब दोपहरी हो और सूर्यदेव चौतरफा रोशनीबारी कर रहे हों. उस वक्त धरती से मन उचाट हो जाता है. प्यार भी आता है तब धरती वालों से. उपर से दिखते इत्ते छोटे से बिंदु जैसे शहर में समाए लाखों-करोड़ों घरों में रहने वाले लोग अपनी दीवार के अंदर की दुनिया को ही पूरी दुनिया मान लेते हैं और दीवार के अंदर सुख-चैन शांति के लिए दूसरों के दीवारों की सुख-शांति में सेंध मारने में जुटे रहते हैं. यही धंधा है देश-दुनिया का. काहे का किचकिच. कुछ भी नहीं है. सब निस्सार है. सब बेकार है. पर प्यार धरती के लोगों पर ये आता है कि कि यार, देखो, ये दुनिया वाले कितनी छोटी चीजों के लिए भागादौड़ी करने में जुटे हैं और ब्रह्मांड के हजारों सुखों से वंचित हैं. कितने भोले हैं बेचारे. ध्यान रखिए, इस कैटगरी में मैं भी हूं. अल्प समय के लिए आए तत्व ज्ञान बोध के आधार पर मुझे इस भीड़ से अलग नहीं कर सकते. सोचता रहा… ओबामा की जिंदगी तो तब भी सफल है, अंबानी की जिंदगी तो तब भी सफल है…. साले दिन भर जहाज पर रहते हैं, सारी सुख सुविधाओं के साथ.

ओबामा दुनिया भर का थानेदार है, सो हर वक्त जहाज पर रहने का हकदार है.  अंबानी देश भर के घरों की दीवारों में सेंधमारी कर भारी मात्रा में पैसा उगाह कर बना सरताज है, सो जहाजों पर उसका भी राज है. सीधे अपने घर की छत से उड़ता है और अपनी घर की छत पर आकर बैठ जाता है. बीच में कोई एयरपोर्ट अथारिटी नहीं, कानून नहीं, सरकार नहीं. ओबामा अपने आफिस से उड़ता है और उड़ता ही चला जाता है. दुनिया के किसी भी देश के उपर से. जहां चाहे तेल-पेट्रोल-डीजल… जो भी भरा जाता हो,  भरवा लेता है और फिर फुर्र हो जाता है. आगे पीछे दसियों टाइप के खोजी-टोही जहाज सुरक्षा में सर्राटे लेते हुए फर्राटा भरते रहते हैं. पर धन्य हैं हम लोग जो एकाध बार जहाज पर चढ़ गए तो दार्शनिक हो गए. तत्व चिंतन करने लगे. मेरा मानना है कि इस कथित तेजी से विकसित हो रहे भारत और दुनिया में असली समाजवाद तभी आएगा जब हर आदमी जहाज से उड़ने लायक हैसियत रखने लगेगा. ट्रेन और कार-बस तो मध्ययुगीन उपकरण हैं. साइकिल तो आदिवासियों के जमाने की चीज है.

अगर हम आधुनिक हुए हैं, विकसित हुए हैं तो देश के हर नागरिक को 500 किमी से ज्यादा किसी भी यात्रा के लिए जहाज पर बैठना अनिवार्य कर देना चाहिए और इसे न मानने वालों को आर्थिक रूप से दंडित करना चाहिए. ये मजाक नहीं. सच कह रहा हूं मैं. ससुरे अंबानी, ओबामा, मनमोहन, सोनिया, आडवाणी… टाइप लोग हगें-मूतें भी जहाज पर, और गांव वाले साइकिल का पंचर बनवाएं!!! उपर तुर्रा ये कि बहुत विकास कर लिया है देश ने. विकास कर लिया है तो किसान और युवा लोग आत्महत्या क्यों कर रहे हैं बे? पर ये सुनेंगे नहीं, चाहे जितने भी जोर से गरिया लीजिए, डांट लीजिए. ये केवल मुस्कराते रहेंगे. ज्यादा उपद्रव आप करेंगे तो पुलिस से पकड़वा कर थाने में पिटवा देंगे. इसके बाद तो बस, आपकी बोलती बंद हो जाएगी और बमम बम बमम गाते हुए दुनिया के उखाड़-पछाड़ से दूर होकर आध्यात्मिक बनने को मजबूर हो जाएंगे आप. 

तो मैं कह रहा था कि इस बार जहाज से आने-जाने के दौरान थोड़ा कम उत्तेजित और थोड़ा कम एलर्ट था. वजह यह कि यह जहाज की बारहवीं यात्रा रही होगी. शुरुआती एक-दो-तीन-चार यात्राओं पर पहले ही लिख चुका हूं जिसका वाचन आप लोग कर चुके होंगे, नहीं किया होगा तो नीचे लिंक दे दूंगा, उसे भी पढ़ लीजिएगा कि एक देहाती जब जहाज पर बैठता है तो उसे कुछ कुछ और कैसा कैसा महसूस होने लगता है. अबकी मेरा व्यवहार परमानेंट जहाजी (जो अक्सर जहाज यात्राएं करता हो और मन में जहाज से नीचे पैर न रखने की हसरत पालता हो) जैसा रहा. दाएं-बाएं के लोगों की ओर बहुत कम ध्यान दिया. एयर होस्टेस के कपड़ों व जिस्म पर आंखें कम गईं. सुरक्षा नियमों के वाचन-प्रदर्शन, लैंडिंग की चेतावनियां, मोबाइल आफ आन करने की सलाहें कान से वैसे ही टकरातीं आती-जातीं रहीं जैसे रेलवे स्टेशन पर आने वाली ये आवाज- ”यात्री गण कृपया ध्यान दें… फलाने जगह से चलकर फलाने जगह तक जाने वाली फलाने नंबर की गाड़ी बिलंबित है और इसके इतने बजकर इतने मिनट पर प्लेटफार्म नंबर इतने पर आने की सूचना है…..”

जब उत्तेजना न हो, एलर्टनेस न हो तो आप साधना के पहले क्लास को पास-पार कर चुके होते हैं. मुझे लगता है, मैं पास हो गया हूं. मतलब, मैं ‘शिशु जहाजी’ नहीं, ‘जवान जहाजी’ हो चुका हूं. दूसरे कैटगरी में प्रवेश करने पर जो होता है, वही उपर लिखा और आगे लिख रहा हूं. जवान जहाजी की जहाज में कई बार आंखें बंद होती हैं. मेरी भी हुईं. सामने वाले बुढ़ऊ तो खर्राटे भर रहे थे. मुझे लगा कि ये आदमी वाकई बहुत महान है जो जहाज में भी पूरी तरह निश्चिंत है. हो भी क्यों न, वह जवान जहाजी तो है नहीं जो चिंतन-मनन करे. वह सुपरसिद्धहस्त जहाजी है. ऐसे श्रेणी के जहाजियों को जहाज के आसमान में समतल होते ही नींद आने लगती है. उसके पास सब है तभी तो वो आराम से खर्राटे भी भर रहा है, अगल-बगल वालों के होने के बावजूद, लोकलाज के भय के बगैर. हम लोग तो खर्राटा भरने के लिए कई पैग लगाते हैं तब जाकर विचारविहीन नींद आ पाती है वरना ‘अर्द्धनिद्रित-अर्द्धजाग्रित सुलाई’ में दिमाग में ढेर सारे उल्टे-सीधे विचार टीम बनाकर क्रिकेट मैच खेलते रहते हैं और हम लोगों का शरीर तब किसी अंपायर की तरह फेल-पास देते हुए नींद के बावजूद अंइठता-डोलता रहता है.

तो फिर ये दिल्ली-पटना-लखनऊ-भोपाल….. शहरों वाले क्यों इतनी भागादौड़ी करते हैं जब उन्हें पता है कि उनकी आयु 60 साल के ही आसपास है अगर वे चालीस में मरने से बच गए तो. अगर आदमी कुत्ता होता तो शायद ग्यारह साल में ही बच्चा से बूढ़ा बनकर मर जाता. कुत्ता तो 11 साल में ही इतनी दुरदुराहट या प्यार पा जाता है कि उसे जिंदगी नरक या स्वर्ग लगने लगती है पर आदमी कुत्ता न होने के बावजूद और इतना दिमागदार होते हुए भी पीढ़ी दर पीढ़ी वही गलती करता जा रहा है. भागता जा रहा है. मारता जा रहा है. मरता जा रहा है. हांफता जा रहा है. दूसरों को काटता जा रहा है. हद है इन आदमियों की. पर साला धंधा तो यहां भी जारी है जहां बैठकर तत्व चिंतन कर रहा हूं. सुनिए, चीफ या हेड एयर होस्टेस अंग्रेजी-हिंदी में पारीपारा कौन सी लोरी सुना रही है (पक्का कह रहा हूं कि इस लोरी को सुनकर मेरे सामने वाले बुढ़वा की नींद और गहरी हो गई थी, ऐसा मुझे उसके खर्राटे के रफ्तार को देख-सुनकर लगा) – ”…. आपके सामने हम स्वादिष्ट खानपान लेकर आ रहे हैं… आप पेमेंट कर इसे खरीद खा सकते हैं…” कुछ इसी टाइप की बात स्वीट-सी दिखने वाली एयरहोस्टेस अपनी मीठी आवाज में बोल रही थी. अरे भाई, यहां भी बेचना-खरीदना!!!!!

कहीं तो बाजार को हटा दो. मुझे यह पता है कि टिकट बिना पैसे का नहीं मिलता और बिना टिकट कोई जहाज पर नहीं बैठता पर टिकट का पैसा मुझे नहीं देना पड़ा था इसलिए तत्व चिंतन ज्यादा आसानी से कर पा रहा था. पर कुछ खाने के लिए तो देना ही पड़ेगा. सामने रखे मेनू को निकाला और पचास रुपये वाले बित्ता भर से कम साइज के नींबू पानी के बोतल को आर्डर कर दिया. बच्चियों ने मुस्कराते हुए नींबू पानी दिया और पैसा लिया. मुझे लगा कि ये चीट करने में खुद के सफल हो जाने के कारण मुस्करा रही हैं, कुछ यूं सोचते हुए… ”बेटा देहाती, पचास रुपये में केवल इतना भर पानी-चीनी व कुछ बूंद नींबू का घोल पी रहे हो, मजा आया न… ठगे गए न… देख लो, हम बाजार हैं, मुस्कराते मार्केट… ऐसे मुस्करा के लूटते हैं कि लुटने वाले को दर्द भी नहीं होता…. वो भी सहज या फर्जी, मुस्कान फेंकने लगता है…” बात सही सोच रहा था मैं. जरूर छला गया हूं मैं… स्साला… पचास रुपये में केवल आधा गिलास नींबू-पानी-चीनी घोल?

याद आया, यही तो माल के स्टाल पर भी होता है. किसी माल में सिनेमा देखने जाओ तो साले भूखे-प्यासे आदमी को इंटरवल के दौरान लूट ही लेते हैं. पापकार्न पचास रुपये…. समोसा बीस रुपये… कोल्ड ड्रिंक तीस रुपये… यह रेट देखकर कभी तो मन करता है कि वहीं, स्टलवे पर चिल्ला दूं… मारो सालों को… गिराकर… एक तरफ से… जहां जो दिखे उसे वहीं पीटो…. पर ऐसा नहीं कर सकते हम. कर देंगे तो नक्सली टाइप कहलाए जाएंगे. माल-स्टाल वाले तो हम लोगों को पकड़ कर पीटेंगे ही, पुलिस वाले थाने में पानी से गीला करके अलग से मारेंगे, कानून-व्यवस्था तोड़ने के नाम पर. घर-परिवार के बचवा लोग अलग से रोएंगे कि क्या पड़ी थी पागलपन दिखाने की, एक आपही थे जो ठगे जा रहे थे, और भी लोग तो थे जो पैसे दे रहे थे. इन दिल्ली वाले बचवा लोग को क्या पता कि मैं गांव में पैदा हुआ हूं और गांव से दिल्ली के माल में कार से सफर करते हुए सिनेमा देखने जाने की औकात पैदा करते-करते कितना दर्शन ज्ञान कर चुका हूं. खैर, हम मनुष्य फिर भटक चुके हैं. आइए, धरती के चूतियापे से मुक्त होकर फिर बैठ लेते हैं हवाई जहाज पर (सिर्फ जहाज कहने से यह विश्वास नहीं हो रहा कि आप मान लेंगे यह उड़ने वाला ही जहाज था… कहीं पानी वाला जहाज मान बैठे तो???), गर्व से यह मानते हुए कि धरती वाले लोग के अपन लोग के स्तर के नहीं हैं.

जहाज पर जब चढ़ा और जहाज से जब उतरा, दोनों ही वक्त, जाते-लौटते जोड़ें तो चारों ही वक्त, लोगों के मोबाइल फोन खूब बज रहे थे और हर जहाजी लाइन पर आए सज्जन से यह जरूर कह रहा था… एयरपोर्ट पर हूं…. अभी लैंड किया है… चेक-इन कर रहा हूं… बोर्डिंग शुरू हो गई है…. घंटे भर में फ्लाइट पहुंच जाएगी… कल की फ्लाइट से लौट जाना है…. बाद में बात करता हूं, फ्लाइट में हूं….

मेरे पास भी एकाध के फोन आए और मन में आया कि एक साथ सब दोहरा दूं ताकि वह जान जाए कि मैं जहाजी हूं, कुछ इस तरह- ”हलो हेलो फलाने.. सुनो मेरी बात और समझो… फ्लाइट बोर्डिंग चेकइन लैंडिंग एयरपोर्ट घंटा भर स्विचआफ बिजी प्लीज बाय बाय डोंट वरी ओके गुडबाय”

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इस बार यात्रा के दौरान आते-जाते, दोनों वक्त, नेता रास्ता काट गए थे. जाते समय जो नेताजी जहाज पर थे उनके जिंदाबाद प्रकरण को पहले ही लिख चुका हूं और लौटते जहाज के दिल्ली उतरने के बाद बाहर निकलते वक्त अचानक अरुण जेटली को सबसे आगे खड़ा पाया. उनके लिए इंडिगो की स्पेशल कार आयी थी जहाज से उठाकर हवाई अड्डे के गेट तक ले जाने ले जाने के लिए. हम आम यात्रियों के लिए आई थी वही आम बस.

साला, यहां भी भेदभाव है. कभी तो नेता अपनी जनता के साथ बैठता-उठता. हवाई अड्डे पर क्या खतरा था जेटली साहब को? जहाज वालों ने तो कई बार खोल-खाल के चेक कर लिया था हम लोगों को. कट्टा-तमंचा किसी के पास होने की कोई आशंका दूर-दूर तक नहीं थी. जेटली जी सत्ता में भी नहीं थे जो केंद्रीय मंत्री का रुतबा उन्हें जनता से जोड़ने से रोक रहा था.  कायदे से जेटली साहब को जहाज से उतरने के बाद एयरपोर्ट तक कार में नहीं, बल्कि सभी जहाजियों वाली बस के साथ ही जाना चाहिए था. पर ये लोग इतने ही जमीनी होते तो भाजपा की ये दुर्गति क्यों होती!!! अरुण जेटली अपने को सेलिब्रिटी समझ रहे थे. ये उनके चेहरे से जाहिर हो रहा था.  

खैर, जेटली साहब जैसे बड़े लोगों की बड़ी बातें. हम तो ठहरे सुपर देहाती उर्फ भड़ासी, सो पल भर आसमान पर रहने के बाद फिर जमीन के सुख-दुख के मसाइल में लोटने के लिए आ गए हैं, कुछ उसी शेर की तरह…

तुम आसमां की बुलंदियों से जल्द लौट आना

हमें जमीं के मसाइल पे बात करनी है….

शुक्रिया

यशवंत


इससे पहले की कुछ जहाज यात्राओं के संस्मरण भी पढ़ने के लिए उपलब्ध हैं, किसी भी शीर्षक पर क्लिक करें…

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0 Comments

  1. Ragini

    February 4, 2010 at 10:07 am

    yashwant ji Kripya chutiyape ke lekh mat likha kariye. Agar bandar ko sisha pakarwa do to wo apneaap ko heero samajta hai wo he aap bhi hai.

  2. rasmi

    February 4, 2010 at 1:37 pm

    ragini ji apni aur doosre ki feelings kahne aur samajne aur vartman samajik rajnaitik aur vastavikta se taul kar nishkarsh dene me dimag lagta hai,agar is ki chamta nahi hai to padhne ka chutiyapa na kiya kijeye.

  3. रीतेश

    February 4, 2010 at 1:54 pm

    यशवंत जी,
    बढ़िया यात्रा संस्मरण है. एकाध झटकों के अलावा रोचक है. मज़ा आया, मज़ेदार लगा. चुप-चाप न गए और न लौटे, इसके लिए बधाई.

    दिल्ली में बिजनेस के पत्रकार ऐसी यात्रा करते ही रहते हैं और जंकेट बोलकर. छुपाने का क्या है. इस साफगोई के लिए अतिरिक्त बधाई.

  4. Amit Singh VIrat

    February 4, 2010 at 3:26 pm

    likhte to badiya ho dost samajhh bhi achchhi hai aapki lekhni mein do batein hain ek to aap apni bhadas bhi nikal rahe ho doosre kai logon ko gyan bhi de rahe ho?
    chalo achcha hai aapki dukandari bhi chal rahai hai gyan ke saath manoranjan bhi ho raha hai.
    bahut umda lage raho

  5. madhav chandra chandel

    February 4, 2010 at 4:27 pm

    yashwant je …sirf itna kahunga….jai ho!

  6. विवेक वाजपेयी

    February 4, 2010 at 4:49 pm

    भाई जी को नमस्कार आपकी जवान जहाजी की घंटे भर की यात्रा का रोचक वर्णन पढ़ा पूरा तो नहीं लेकिन जितना भी पढ़ा उससे आपकी भड़ास के साक्षात दर्शन हुए भाई बहुत खूब वैसे देखा जाए तो आपकी भड़ास बिल्कुल वाजिब है भाई जी…
    विवेक वाजपेयी एसवन न्यूज ….

  7. Naresh Arora Jalandhar

    February 10, 2010 at 6:37 pm

    kya baat hai…:) chha gaye guru……ab main jawan ho gaya hu..gul se gulesitan ho gaya hu…:) lage raho…..:)

  8. एक और गांधी

    February 14, 2010 at 11:09 am

    बहुत बढ़िया

  9. रंजीत कुमार

    February 16, 2010 at 11:07 am

    मज़ा आया हवाई यात्रा पढ़कर। ख्याल आया दस हज़ार की पत्रकारिता कर हम भी कभी किसी उड़न खटोले का मज़ा ले। और जीवन के अमुल्य पल को जीए। पर लगता नहीं कि निकट भविष्य में हो पाएगा। आपके संस्मरण को पढ़ कर लगा । हम भी तो न्यूज़ रूम में भाग -भाग कर कभी टेप इंजस्ट करवाते हैं। तो कभी वीओ । कभी -कभी स्टोरी भी लिखने का मौका मिल जाता है। इसी इंतज़ार में बैठे हैं कब भाग्य खुलेगा.। और हमारे पांव धरती पर नहीं होगें। सपने दिखाने के लिए शुक्रिया यशवंत जी

  10. Arvind Kumar

    February 20, 2010 at 11:52 am

    Yashwant ji sabase pahle ek agrah hai agar aap aisa kar sake to ..ki english mein likhi hui baaton ko pls hindi main hi chapa karen taki logon ko padhane main aasani ho tatha aapaki website ki ekrupata bhi bahi rahe…..
    ham jante hain ki bahut saare anurodho ko aap naheen mante hain fir bhi mera kahna tha to khair…..
    yeshwant ji apaki lagi hui tashweer aur apaka lekh aapko samajhene main main sahayak hai….apaki mansthiti ko main bakhubi padh sakta hun…
    ab aaiye apake like hue lekh ke bbare main baat karta hun…..

    maine halanki hawai yatra abhi tak naheen ki hai likin main samajh sakta hun ki chintiyon ki rengte hue dekh kar jo ehsaas hota hai wahee ehsaas apko bhi huaa hoga..jaise aap train main baithe huee 100 ki speed se ja rahe hain aur koyee aadami railway crossing per khada train ke chale jane ka intajaar karta hai.
    lagbhag ye bhawanaye sab saman hi hain….apane safalta ho aasman main rahna tatha bhautik sukh suvidhawon ko hasil karna mana hai ….apane OBAMA aur AMBANI ka naam liya jo ki safal hain lekin kyun ki we SAALE aasmaan main rahte hain……kya OSAMA BIN LADEN ke baare main aapane soancha hai …..kya wo safal hai ya asafal……chandi ki katori ke saath paida hue lug aur tin ke katore ko katha main lekar paida hue logon main aap kise safal mante hain…..kisi ki jindagi kaise safal hai isake bare main aapaki bichar dhara tatha use bayan karne ka tareeka ye batata hai ki kyun apake achhe portal main APANE APANE YUDH jaise lekh chapte hain…..
    har aadami ko asamaan main udane ki baat sabhi karte hain ..kya kabhi kisi kam umra kadaki ke pyar main ho jaane ke usake man ki udanon ke baare main soancha hai …..kya jahaj main udane sukhi hone ka thappa hai …shayad naheen apane sukhi hone main aur safal hone ka jo mapdand tai kiya hai ….stariye hai….aap bhi unhi bheed ka hissa hain….bhid se alag bahut kam log hote hain…..lekin wo sukhi aur safal hai….. aap abhi tak ye tai naheen kar payen hain ki ambani ke bahan apko pyari hai ye beti…….kaisa rishta rakhte hain aap apane bahan aur betiyon kebeech isake badhiya prastutikara huaa hai..hamare yahan bolane ki aajadi hai …aur aap bhi ajaad hai…..mujhe bhi dekhiye apaki portal ko padh ker main aapaki kitani tarif kar raha hun…..is chayukarita ke liye chama chahta hun….
    Bada achha laga ki jamini nahen hone ke kaaran bhajapa ki durgati hui is india ki jo durgati ho rahee hai ..kya baki log bhi jameeni naheen hai…..kewal 5 saal tak raj karane main ye bata diya ki gas kaise shabji ki tarah se bikte hain…kaise samman se wishwa men sar uthaya jata hai…..lekin durgati is india ki honi thi to ab congress ke chalte ho rahi hai jise 60 salon main ye samajh naheen aaya ki manhgayee kya hoti hai…..kaise kam ki jasakti hai…inaka naar tha ..hai…ki wo isdia se gareebimita denge….agar gareeb honge tabhi to mitayenge ….to pahle congress gareeb paida karti hai ….fir jab wo mar jaata hai to congress kahti hai ..ki dekho maine gareebi miyatee…aam aadami ko sirf daal roti ke jugad main puri jindagi bita dena chahti hai……..per haan wo log apane aapako celebrati naheen samajhte ..sabon ke saath ghul mil kar baat karte hain……thanks……

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