महाराष्ट्र के गृह राज्य मंत्री नितिन राउत ने राज्य के पुलिस महानिदेशक एसएस विर्क को प्रेषित अपने तीन पृष्ठों के एक पत्र में राज्य के सभी आईपीएस और राज्य पुलिस सेवा के अफसरों की संपत्ति का ब्योरा मांगा है। विर्क से कहा गया है कि उस ब्योरे में अफसरों की चल और अचल, दोनों तरह की संपत्तियों की तफसील से जानकारी दी जाए। राउत को राज्य के पुलिस अफसरों के पास बहुत सारी जमीन होने की शिकायत मिली थी। महाराष्ट्र में नियम है कि कोई भी पुलिस अधिकारी महानिदेशक से लिखित अनुमति मिले बगैर जमीन-जायदाद नहीं खरीद सकता। इस मामले में मीडिया को भी साथ ले लिया जाए तो जनता के लिए यह जंग बहुत फायदे की हो सकती है। गृह राज्य मंत्री ने विर्क से पूछा है कि उन अधिकारियों के नाम बताएं, जिन्होंने जमीन खरीदने से पहले उनसे एनओसी ली हो। भ्रष्टाचार के छोटे मामलों पर भी जवाब मांग कर नितिन राउत ने अफसरों के बच निकलने की गली बंद कर दी है। मसलन, उन्होंने पूछा है कि उन अफसरों के भी नाम बताएं, जो सरकारी कार को घर के लोगों के इस्तेमाल लिए मंगवा लेते हैं।
जमीन के बारे में पूछताछ कर महाराष्ट्र सरकार ने बहुत ही अहम मसले को उठाया है। ऐसा कर उसने कोई नई बात नहीं कही है। यह सब कुछ ऑल इंडिया सर्विस रुल्स में भी लिखा है और हर अफसर को यह सारी जानकारी देनी पड़ती है। होता यह है कि अफसर अपने ऊपर वाले अफसरों की कृपा के चलते ग़लत सूचना दे देते हैं, जो सरकारी खानापूरी का हिस्सा बन जाता है। फाइल का पेज भर जाता है और घूस का राज पहले जैसा ही चलता रहता है। अगर कहीं कोई ईमानदार पुलिस महानिदेशक आ जाता है तो बेईमानों का राज कुछ दिन के लिए कमजोर पड़ जाता है। उत्तर प्रदेश में 80 के दशक में एक ऐसे ही अफसर, जेएन चतुर्वेदी को पुलिस महानिदेशक बना दिया गया था। जिन अफसरों ने ग़लत सूचना दी, उन सब को उन्होंने उल्टा टांग दिया था। इसलिए जरूरत इस बात की है कि महाराष्ट्र के पुलिस महानिदेशक से मिली जानकारी पर कार्रवाई हो।
सरकारी अफसरों की चोरी और घूसखोरी से मुकाबला करने का सबसे सही यही तरीका है कि उनका सामाजिक बहिष्कार किया जाए। अगर घूस के पैसे के बल पर समाज में इज्जत मिलती रहेगी तो घूस के राज को कभी नहीं खत्म किया जा सकता। चोर और बेईमान अफसर को सही रास्ते पर लाने के लिए मीडिया भी अपनी भूमिका निभा सकता है। अगर सरकारी अफसरों की संपत्ति की जानकारी को मीडिया के हवाले कर दिया जाए और उसे मीडिया के किसी भी जरिये से आम जनता की जानकारी में ला दिया जाए तो भ्रष्टाचार के दानव को काबू करना ज्यादा आसान हो सकता है। मसलन, अगर कोई अफसर सरकारी तौर पर ऐलान करता है कि उसके पास तो बस 300 यार्ड मीटर का एक प्लाट है तो उसे अंतिम सत्य मान कर फाइल कर दिया जाता है और खानापूरी हो जाती है, लेकिन अगर मीडिया के जरिए किसी वेबसाइट पर, चाहे वह पुलिस की वेबसाइट ही क्यों न हो, जानकारी पब्लिक डोमेन में आ जायेगी तो कहीं से कोई न कोई प्रकट होगा और बता देगा कि फलां अफसर ने गलत जानकारी दी है। उसके कई प्लाट और फार्म हाउस बेनामी हैं। जाहिर है, सीबीआई जांच की दहशत में जीने वाला सरकारी अफसर गलत जानकारी देने के पहले 100 बार सोचेगा। इस तरह हम देखते हैं कि अगर घूसखोरी के खिलाफ जंग शुरू की जाए तो उसमें राजनीतिक इच्छा-शक्ति और मीडिया की भूमिका अहम हो सकती है। अगर दोनों ही पक्ष अपनी जिम्मेदारी निभाने का फैसला कर लें तो अभी इतने ईमानदार अफसर हैं, जो बेईमान और चोर अफसरों को उनकी औकात में लाने में जनता की मदद कर सकते हैं।
लेखक शेष नारायण सिंह पिछले कई वर्षों से हिंदी पत्रकारिता में सक्रिय हैं। इतिहास के छात्र रहे शेष रेडियो, टीवी और प्रिंट सभी माध्यमों में काम कर चुके हैं। करीब तीन साल तक दैनिक जागरण समूह के मीडिया स्कूल में अध्यापन करने के बाद इन दिनों उर्दू दैनिक सहाफत के साथ एसोसिएट एडिटर के रूप में जुड़े हुए हैं। वे दिल्ली से प्रकाशित होने वाले हिंदी डेली अवाम-ए-हिंद के एडिटोरियल एडवाइजर भी हैं। शेष से संपर्क करने के लिए [email protected] का सहारा ले सकते हैं।
swati Patel,
April 19, 2010 at 8:05 am
jab media khud bhi coruptated hai to us se kaise ummed kare ki vo coruption ke khilaf kuch sahi karegi……….
Tushar Bhiwapurkar
July 21, 2010 at 11:53 am
media ka khel aaj ke janta ko samjata hai … tum media walo ki ijjat to hamare talwo pe hai …