मुंबई से खबर है कि बड़े जोर-शोर से शुरू हुआ हिंदी अखबार ”मेट्रो7 डेज” ने पिछले दो दिनों से दम तोड़ रखा है. तीन अक्तूबर से अखबार प्रिंट नहीं हो रहा है. खबर है कि अखबार प्रबंधन रिस्पांस नहीं मिलने से पूरे स्टाफ से बेहद नाराज चल रहा है. अखबार को बाजार में जगह नहीं मिलने व भारी घाटे के चलते प्रबंधन ने प्रकाशन बंद करने का निर्णय लिया है. हालांकि इस बारे में मेट्रो7डेज की ओर से कोई औपचारिक सूचना नहीं दी गई है.
समाचार पत्र की वेबसाईट www.metro7days.com पर भी 3 अक्तूबर के बाद से कोई नया अंक अपलोड नहीं किया गया है. ”मेट्रो7डेज” को छह महीने पहले बड़े-बड़े वादों-दावों के साथ शुरू किया गया था. इसकी कमान नीलकंठ पराड़कर को दी गई थी. पराड़कर मुंबई के सीनियर जर्नलिस्ट बताए जाते हैं. कहा जा रहा है कि उनके प्रयोग चल नहीं पाए. अखबार मुंबई में अभीतक अपनी कोई पहचान नहीं बना सका है. देखना है कि यह अखबार दुबारा छपना शुरू होता है या सदा के लिए सो गया.
vijay
October 5, 2011 at 4:29 pm
यह मुंबई की हिंदी पत्रकारिता के लिए दुःख की बात है. पर इस news paper का ऐसा हश्र होगा यह पहले से ही पता था. पहली बात तो यह की अख़बार की थीम ही सही नहीं थी. इसे भारत का पहला सिटी सेंट्रिक अख़बार बता कर प्रचारित किया गया. जबकि इस शहर में हिंदी का पाठक पुरे देश खास कर हिंदी बेल्ट की खबरे भी पढ़ना चाहता है. अखबार के लिए ऐसे रिपोर्टर रखे गए जो खबर लिखने के मामले में अनाड़ी तो है ही अच्छे न्यूज़ के लिए उनके पास न्यूज़ सोर्श भी नहीं है. इस लिए शुरुवात में ही ऐसी बेसलेस खबरे इस अख़बार में छपी की लोगो का विश्वास इस अख़बार से नहीं जुड़ पाया. हद तो तब हो गयी जब एक मिठाई वाल़े को खुश करने क लिए उसके मुंबई कांग्रेस प्रेसिडेंट बनाने की खबर छापी गयी. उस दिन पहली बार यह अख़बार खरीदने वाल़े मेरे एक पत्रकार मित्र ने कहा की आज के बाद मै यह अख़बार भूल के नहीं खरीदूंगा.
vijay yadav
October 6, 2011 at 1:49 pm
इस अखबार का बंद होना उसी तरह है जैसे शिशु अवस्था में एक जीवन का ख़त्म होना . उम्मीद है पराडकर जी फिर से शुरू करने का प्रयास करेंगे.
– विजय यादव
gajodhar bhaiya
October 7, 2011 at 1:25 pm
koi nahi jo rok sake