मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को सरकारी खर्चे से भोजन कराने का बहुत शौक है. यही कारण है कि मुख्यमंत्री आवास का सत्कार व्यय सालाना एक से दो करोड़ के आस-पास बैठता है. वैसे यहां हम सीएम की फिज़ूलखर्ची की चर्चा नहीं कर रहे हैं. चर्चा तो उनके लंगर के आयोजन की है. हुआ यूं कि 2 सितम्बर श्री कृष्ण जन्माष्टमी को शिवराज ने पत्रकारों को रात्रिभोज पर बुलवाया. सीएम का पीआर संभालने वाले अधिकारी सभी को फोन करते हैं, इस क्षेपक के साथ…”सपरिवार आइयेगा. बहुत सेलेक्टेड लोगों को बुलाया गया है. लोकल मीडिया तक को नहीं बुलाया गया. ज़रूर आइये.”
मैं बता दूं, इस क्षेपक की ज़रूरत क्यों पड़ी. दरअसल जब भी सीएम के यहां से सपरिवार आने का न्योता होता है, कुछ लोगों को छोड़कर कोई परिवार लेकर नहीं जाता, क्योंकि वहां लंगर जैसा माहौल रहता है. कल इत्मीनान कराया गया तो कुछ लोगों ने हौसला कर लिया. सुबह से ही पत्नियों को ताकीद कर दी गई कि शाम को सीएम साहब के घर भोजन पर चलना है. शाम को कई बड़े अखबारों के मालिकान और संपादकनुमा / वरिष्ठ पत्रकार अपनी-अपनी पत्नियों के साथ पहुंच गए. उम्मीद थी कि माननीय शिवराज जी सपरिवार उनकी अगवानी करेंगे लेकिन देख कर भौचक रह गए वहां हमेशा की तरह कार्यकर्ता सम्मलेन जैसा माहौल है.
हज़ारों की तादात में छोटे, बड़े, मंझोले, लम्बे, नाटे, काले, पीले, गोरे लोग पहले से कुर्सियों पर काबिज़ हैं. बैठने को जगह नहीं. गेट पर अगवानी कर रहे थे भाजपा भोपाल के पूर्व और वर्तमान अध्यक्ष. अखबार मालिक तो कई सारे संभावित लाभ-शुभ के चलते कुछ कह नहीं सकते थे, लिहाजा जहां जगह मिली, कुर्सियों पर सपरिवार धंस गए. जो बच गए वे सीएम हाउस में लगे पेड़ों पर पुश्त टिकाकर खड़े हो गए. वहां एक मंच भी बना था जिसमे रविन्द्र जैन जी रामानंद सागर की रामायण मार्का स्वर लहरियां बिखेर रहे थे. पास ही जो भोजन के पंडाल थे वहां ऐसा माहौल मचा था, जैसा किसी भी रेलवे स्टेशन पर शताब्दी / राजधानी एक्सप्रेस की सफाई के वक्त बचे हुए खाने पर स्टेशन के आस-पास रहने वाले अनाथ लोग टूटते हैं.
जो पहली बार बीबीयों के साथ सीएम के घर अपना रौब गांठने गए थे उनके अरमान ठंडे पड़ गए. जिनके साथ थोड़ा बहुत बोलना सीख चुके बच्चे थे, वे पापा को कोहनी मारते कहने लगे, “पापा चलो कहीं और खाना खायेंगे पर यहाँ नहीं खायेंगे.” खुद को तोप मानने वाली पत्रकारीय कौम भौचक थी कि क्या करें. अखबारों के मालिकों की मौजूदगी में गुस्सा भी कैसे झल्काएं. कहीं ये भी अखबार की “पॉलिसी ” के खिलाफ बात न हो जाए. क्योंकि आजकल तमाम पत्रकार खबर लिखने से पहले अखबार की “पॉलिसी” पर ज़रूर विचार करते हैं.
बहरहाल लोग कुढ़ते रह गए और मज़बूरी में भूखे पेट वहां से पलायन करना पडा. पत्नियों की तो चांदी हो गई क्योंकि ज्यादातर पतियों ने उन्हें मज़बूरी में होटल में ले जाकर डिनर दिया. इसमें वैसे देखा जाए तो सबसे बड़ा दोष जनसंपर्क आयुक्त का है, जो कार्यक्रम को ठीक तरह से मैनेज नहीं कर पाए. मुख्य मंत्री के घर पर लंगर ही होता है ये सभी जानते हैं, तो उन्हें ये क्षेपक वाला फोन पत्रकारों को नहीं करना था. यदि किया था तो उन्हें शिवराज से चिरोरी करना था कि “सर सिर्फ पत्रकारों को ही आज बुला लीजिये, बाकियों को कल या और किसी दिन बुला लेते हैं.” लेकिन नए जन संपर्क आयुक्त शिवराज सिंह चौहान की उस “यस सर वाली आईएएस ब्रिगेड” से आते हैं, जिनके लिए कोई तर्क देना अनुशासनहीनता की श्रेणी में आता है. लिहाजा वे मौन रहे. न केवल मौन रहे बल्कि खुद चुपचाप एक कुर्सी में बैठे रहे.
हद तो तब हो गई जब मुख्यमंत्री महज 15 मिनट के लिए आये और चले गए. बताया गया कि उन्हें दो दिन से बुखार है. सवाल ये उठता है की जब सीएम को बुखार था तो उन्होंने पत्रकारों को भोज पर बुलाया ही क्यों? किसने कनपटी में रिवाल्वर रख कर धमकाया था कि हमें डिनर पर बुलाओ? अखबार मालिकों को भी बुलाकार क्या सीएम अपने व्यवहार से अपने ओहदे का भान करना चाहते थे? खैर जो भी हो, इतना ज़रूर हुआ है कि इसे मुख्यमंत्री की यदि पीआर कवायद समझा जाए तो इसमें पीआर बढ़ा नहीं कमज़ोर हुआ है, क्योंकि जो भी पत्रकार उस दिन वहां गया, वो गाली देते हुए ही वहां से लौटा है. ये वही जन संपर्क आयुक्त हैं जो सीएम के पैतृक गाँव में दलितों के साथ भेदभाव वाली खबर को हैंडल नहीं कर पाए थे और इस खबर ने शिवराज की बहुत भद पिटवा दी थी.
लेखक प्रवीण कुमार भोपाल में लम्बे कद के छोटे-से पत्रकार हैं.
kumar m
September 5, 2010 at 1:45 pm
patrkaron ko apni oukat samajhni chahiye. khane or gift milne ki ummid per kutton ki tarah dum utha kar kahin bhi chale jate hai. yahi hasra hoga.
kumar m
bishwajit
September 5, 2010 at 2:18 pm
Koi Patrakar bataye ki aakhir kisi CM ke yahan bhoj par jaane ki zaroorat hi kya hai…Agar aap CM ke yahan khate hain to kya uske khilaf khabar likh ya dikha sakte hain ? Aur agar chapenge ya dikhayenge to kya NAMAKHARAM nahi kahlayenge !
Ghan Shyam
September 5, 2010 at 2:44 pm
Bahut sateek aur uchit baat kahee hai. Is tafah ka ghatiya PR karne waalon ko chulloo bhar paanee mein doob marna chaahiye.
shamshad gwalior
September 5, 2010 at 5:05 pm
प्रवीण जी लंगर लाइव दिखाने के लिए बधाई!
हमारी परेशानी ये है कि हम अपने काम से अधिक खाने-पीने? की जुगाड़ में रहने लगे हैं. और यही हमारी दुर्गति का सबसे बड़ा कारण है. प्रतिदिन खबरों से ज्यादा खाने खिलाने वाली प्रेस कांफ्रेंस वाले कार्डों के चक्कर में रहकर आखिर हम कैसे उम्मीद करें कि अख़बार मालिक, नेता, अधिकारी हमारी दुर्गति नहीं करेंगे.
sachin
September 5, 2010 at 5:44 pm
aap bhi bhabhi ji ke sath gaye the kya ? koi baat nahi sir is bahane pariwar ke sath hotel me hi dinner ho gaya .
S. Singh
September 5, 2010 at 6:22 pm
सीएम- छी… छी… छी…
पत्रकार- थू… थू… थू…
varun
September 6, 2010 at 5:50 am
wah praveen bhi kya live telecast kiya hai c.m house ka….
varun
September 6, 2010 at 5:51 am
praveen bhi yea to live sting opration jaisa hai…..
main aapki lakhan ka kayal ho gaya hoon
S.P.Rai Kushinagar
September 6, 2010 at 6:36 am
Pravin ji ko thanx,asli patrakar to yahi hai….! jo kathit bade log badi kursion pe baithe hai unhe shayad sharm to aati hi nahi ! shivraj singh ne acha hi kiya ye sub usi layak hi the….!
JASBIR CHAWLA
September 6, 2010 at 7:24 am
Kya koi Patrakaar Teesree Kasam khayega ki wah CM ke aise Gidha-Bhoj me naheen jayega?
prashant kumaar
September 6, 2010 at 7:36 am
Bahut hi sahi chitran kiya hai apne. Bhai isme galti to patrkaron ki hai. Jahan dekho munh marne chale jaate hain. Chahe PC ho ya Bhoj. Giddhon ki tarha khaane par toot parte hain. Inhone apne swabhiman khud giraya hai khaane, gifts lene aur wasuli ke naam par. Bhai Praween Ji apne gazab ki tulna ki hai.Logon ko ab bhi nind se jaag jana chahiye. Khaskar apne kuch Bihari bhukaad patrakaron ko. Thanks a lot.
pravin
September 6, 2010 at 8:18 am
@ सचिन जी….
भाई… मैंने आज तक किसी भी प्रेस कांफ्रेंस या नेता प्रायोजित लंच / डिनर में खाना नहीं खाया.[ दोस्तों साथ बेशक बैठता हूँ] …जहाँ तक सवाल मेरी बीबी का है.. तो बता दूँ कि उसने आज तक मेरे किसी भी पत्रकारीय संपर्क से हेलो तक नहीं कहा…..जाना तो दूर की बात है…. मैं और मेरी बीबी इस ख्याल के हैं…[b]”मिले ख़ुश्क रोटी जो आज़ाद रहकर, वो ज़िल्लत के हलवे से सौ बार बेहतर..”[/b] चूँकि मेरा काम ख़बरें तलाशना है, लिहाजा ऐसे आयोजनों में जाता ज़रूर हूँ. खाने की महुहार पर बहुत विनम्रता के साथ मना कर देता हूँ…लेकिन जाउंगा नहीं तो ऐसे दृश्य कहाँ से देखने मिलेंगे…..
प्रवीण कुमार
motilal
September 6, 2010 at 9:13 am
सम्पादक जी ,
इस मसले पर आपका लेख अधूरी जानकारी पर है ,शिवराज के सलाहकार गिरिजाशंकर
की सलाह पर भोपाल के भूखे पत्रकारों के लिए लंगर का आयोजन किया था लेकिन
भूखे पत्रकार बड़ी संख्या मे पहुच गए और सब गुड गोबर हो गया |खाना कम पड़
जाने पर नेशनल चॅनल और राष्ट्रिय अंगरेजी आखबारों के पत्रकार खाने के लिए
अड़ गए ;एकदम भिखारियों जेसा बर्ताव करने लगे ;तब जनसम्पर्क विभाग के
आधिकरियो ने इन मे से कुछ को पलाश होटल मे खाने की पर्ची दी और कुछ को
पलाश होटल ले जा कर नगद पैसा देकर खाना खिलाया ,भोपाल के पत्रकारों के
इस शर्मनाक कांड की गवाह इन पत्रकारों की पत्नियाँ भी हैं ,जिन के सामने
अपनी ताकत दिखने के लिए भोपाली पत्रकार एकदम भिखमंगे हो गए |मैं उस दिन
सी एम हॉउस मे मोजूद था ,हमारे इंदौर में पत्रकार इतने बेगेरत नहीं है |
मोतीलाल
इंदौर
Ismail Khan
September 6, 2010 at 12:35 pm
Ye koi pehla mauka nahi hai.Har sarkari-gair sarkari aayojan mein aise hi nazare dekhane ko milte hain.Ab Ganesh Shankar Vidyarthi jaise patrakar kahan,jo pet par takiya bandh kar kaam kiya karte the.
om prakash gaur
September 7, 2010 at 1:36 am
शिवराज जी के लंगर की बात ठीक है पर क्या इससे पहले हुए कांग्रेसी – भा.ज.पा. मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों और नेताओं के भोज इससे बेहतर थे ? जी नहीं. पर तब शायद भड़ास डाट काम. नहीं था इसलिए कह – सुनकर ही संतोष कर लेते थे. छापने – लिखने से तो परहेज वैसा ही था जैसा आज है.
ओम प्रकाश गौड़ , मो. – 09926453700
RAHUL CHOUKSEY
September 7, 2010 at 11:33 am
arre CM ko bhi sabak sikhao…..usko batao ki humari kya shakti hai…
yahaa comments padh kar mere zehan mein ek kahawat kaundh gayi….
“KHISHYAANI BILLI KHAMBHA NOCHE”….
mein patrakarita ka kshatra hu aur mujhe badaa buraa lagaa yeh sab jo salook hua humaare varishtho k saath….khair unhe parwaah nahi to hume kyaa….uparwaale se dua karta hu ki koi senior mile to inke jaisa na mile…….
BISHWAJIT sir aapka comment bahut hi vaastavik hai.
rajestikamgar
September 7, 2010 at 12:36 pm
patrkar to kutte hote hai