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आयोजन

‘नौटियालजी हिंदी पत्रकारिता के भीष्म पितामह’

नंदकिशोर नौटियाल पर ‘समावर्तन’ विशेषांक : ‘समावर्तन’ के संपादक प्रो. प्रभात कुमार भट्टाचार्य का सम्मान : उज्जैन से प्रकाशित ‘समावर्तन’ के संपादक प्रो. प्रभात कुमार भट्टाचार्य का सम्मान शनिवार, २९ मई, २०१० को मुंबई में संपन्न हुआ। अवसर था वरिष्ठ पत्रकार नंदकिशोर नौटियाल के पत्रकारिता में योगदान पर प्रकाशित `समावर्तन’ के विशेषांक का लोकार्पण। खचाखच भरे मुंबई के हिंदुस्तानी प्रचार सभा के सभागृह में मंच पर वरिष्ठ पत्रकार विश्वनाथ सचदेव की अध्यक्षता में मुख्य वक्ता मुंबई विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के रीडर डॉ. करुणाशंकर उपाध्याय, हिंदुस्तानी प्रचार सभा की मानद् निदेशक डॉ. सुशीला गुप्ता व राजू पटेल विराजमान थे।

<p style="text-align: justify;"><strong>नंदकिशोर नौटियाल पर 'समावर्तन' विशेषांक : 'समावर्तन' के संपादक प्रो. प्रभात कुमार भट्टाचार्य का सम्मान : </strong>उज्जैन से प्रकाशित 'समावर्तन' के संपादक प्रो. प्रभात कुमार भट्टाचार्य का सम्मान शनिवार, २९ मई, २०१० को मुंबई में संपन्न हुआ। अवसर था वरिष्ठ पत्रकार नंदकिशोर नौटियाल के पत्रकारिता में योगदान पर प्रकाशित `समावर्तन' के विशेषांक का लोकार्पण। खचाखच भरे मुंबई के हिंदुस्तानी प्रचार सभा के सभागृह में मंच पर वरिष्ठ पत्रकार विश्वनाथ सचदेव की अध्यक्षता में मुख्य वक्ता मुंबई विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के रीडर डॉ. करुणाशंकर उपाध्याय, हिंदुस्तानी प्रचार सभा की मानद् निदेशक डॉ. सुशीला गुप्ता व राजू पटेल विराजमान थे।</p>

नंदकिशोर नौटियाल पर ‘समावर्तन’ विशेषांक : ‘समावर्तन’ के संपादक प्रो. प्रभात कुमार भट्टाचार्य का सम्मान : उज्जैन से प्रकाशित ‘समावर्तन’ के संपादक प्रो. प्रभात कुमार भट्टाचार्य का सम्मान शनिवार, २९ मई, २०१० को मुंबई में संपन्न हुआ। अवसर था वरिष्ठ पत्रकार नंदकिशोर नौटियाल के पत्रकारिता में योगदान पर प्रकाशित `समावर्तन’ के विशेषांक का लोकार्पण। खचाखच भरे मुंबई के हिंदुस्तानी प्रचार सभा के सभागृह में मंच पर वरिष्ठ पत्रकार विश्वनाथ सचदेव की अध्यक्षता में मुख्य वक्ता मुंबई विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के रीडर डॉ. करुणाशंकर उपाध्याय, हिंदुस्तानी प्रचार सभा की मानद् निदेशक डॉ. सुशीला गुप्ता व राजू पटेल विराजमान थे।

लोकार्पण समारोह साहित्यिक पत्रिका ‘क़ुतुबनुमा’ के तत्वावधान में किया गया था, जिसकी संपादक डॉ. राजम नटराजन पिल्लै ने कार्यक्रम का संचालन किया। इसी अवसर पर एक काव्य-गोष्ठी भी संपन्न हुई, जिसके संयोजक थे श्री देवमणि पांडेय। गीतकार-कवयित्री श्रीमती माया गोविंद की अध्यक्षता में श्री आसकरण अटल, खन्ना मुज़फ़्फ़रपुरी, सुश्री देवी नागरानी, कुमार शैलेंद्र तथा यज्ञ शर्मा ने अपनी रचनाओं का पाठ किया।

समारोह के अध्यक्ष श्री विश्वनाथ सचदेव ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि `समावर्तन’ और भट्टाचार्यजी ने बड़े साहस का काम किया है। हिंदी की लघु पत्रिकाएं निकालने के लिए काफी बड़ा ज़िगर चाहिये। `समावर्तन’ का प्रकाशन अपने समय की पहचान कराने का उपक्रम है। समाज को चेहरा दिखाने का काम लघु पत्रिकाएं ही कर सकती हैं और यह पत्रिका इस क्षेत्र में बढ़िया काम कर रही है। श्री सचदेव ने कहा हम नौटियालजी को हिंदी पत्रकारिता का भीष्म पितामह कहते हैं। उन्होंने कहा सवाल उम्र का नहीं है, सवाल काम करने के हौसले का है, जज़्बे का है। हिंदी `ब्लिट्ज़’ के माध्यम से नौटियालजी ने हिंदी को सरल भाषा दी और वर्तनी सुधारी। उन्होंने कहा कि भाषा की इसी सरलता ने पाठकों को हिंदी `ब्लिट्ज़’ से जोड़ा। यह नौटियालजी के संपादन का ही कमाल था कि हिंदी ब्लिट्ज़ का सर्कुलेशन अंगरेज़ी `ब्लिट्ज़’ से कहीं ज़्यादा हो गया था।

इस अवसर पर डॉ. करुणाशंकर उपाध्याय ने कहा कि मैं नौटियालजी को एक विज़नरी मानता हूं। वे मुंबई की पत्रकारिता की एक महत्वपूर्ण विभूति हैं। उन्होंने मूल्यों की श्रेष्ठता और आस्था को अपनी पत्रकारिता में निभाया है।
डॉ. सुशीला गुप्ता ने नौटियालजी के कृतित्व को अनुकरणीय बताते हुए कहा कि वे जिस किसी काम को करने का बीड़ा उठाते हैं, उसे हर हाल में पूरा करके ही दम लेते हैं। महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी के कार्याध्यक्ष के बतौर अपने कार्यकाल में उन्होंने मुंबई में ही नहीं पूरे देश में हिंदी के आंदोलन में नयी जान पैदा की है।

नौटियालजी देश में सर्व भारतीय भाषा सम्मेलन के जनक हैं। उन्होंने मुंबई सहित महाराष्ट्र के विभिन्न नगरों में पांच सर्व भारतीय भाषा सम्मेलन सफलतापूर्वक संपन्न कराये हैं। इस अवसर पर अपने सम्मान से अभिभूत प्रो. भट्टाचार्य ने कहा कि मैं शिक्षक परिवार से हूं। मेरे पिता शिक्षक थे और शिक्षक पद से सेवानिवृत्ति के बाद मैंने हिंदी की सेवा का महत्वपूर्ण कार्य `समावर्तन’ के माध्यम से प्रारंभ किया है। `समावर्तन’ का उद्देश्य स्तरीय साहित्य प्रकाशित करना, उदीयमान लेखकों को अवसर देना और इस प्रकार राष्ट्र की सांस्कृतिक-साहित्यिक चिंताओं का समाधान करना है। नौटियालजी पर विशेषांक मैं दो साल पूर्व ही प्रकाशित करना चाहता था, किंतु वह अवसर अब आ पाया है।

अपने मन के भाव व्यक्त करते हुए विशेषांक के मुख्य पात्र नंदकिशोर नौटियाल ने कहा कि मैंने आज़ादी के पहले, आज़ादी के बाद का जीवन जिया है और आज मैं कह सकता हूं कि यदि देश में साहित्य और संस्कृति खत्म हो जायेगी, तो हम स्वाधीन भी नहीं रह पायेंगे। आज यही हो रहा है। लेखकों और पत्रकारों को वर्तमान विसंगतियों के ख़िलाफ़ अपनी क़लम उठानी होगी तभी शासक और संपन्न लोगों की आंखें खुलेंगी। हमारी व्यवस्था तीन टांगोंवाली कुर्सी के समान है। विद्वान, धनवान और प्रतिष्ठान ये तीन टांगें हैं। अगर ये तीनों अपने-अपने दायित्व को सही तरीके से नहीं समझेंगे, तो कुर्सी लुढ़क जायेगी, समाज बिखर जायेगा।

कार्यक्रम की आयोजक डॉ. राजम नटराजन पिल्लै ने कहा कि बेशक प्रो. प्रभात कुमार भट्टाचार्य का जन्म और कर्मक्षेत्र उज्जैन है, लेकिन उन्होंने विशेषकर तीन क्षेत्रों-प्रौढ़ शिक्षा, लोक कला और रंगमंच के क्षेत्र में अभूतपूर्व काम किये हैं और आज के समय में ये तीनों बहुत ज़रूरी हैं। आज के युग में जब युवा हाथ में रिमोट लिये टेलीविजन पर प्रसारित किये जा रहे १००-१०० चैनलों में न जाने क्या-क्या देखते हैं ऐसे समय में लोक कला और लोक गायकी की ओर लौटना बेहद ज़रूरी है। प्रो. भट्टाचार्यजी इस दिशा में सक्रिय हैं।

नौटियालजी के विषय में बोलते हुए डॉ. राजम ने कहा कि नौटियालजी का व्यक्तित्व ऐसा रहा है, जिसमें सभी को आत्मसात करने की क्षमता है। `ब्लिट्ज़’ के संपादन के दौरान भले ही इसके संचालक श्री आर. के. करंजियाजी की कोई भी नीतियां रही हों, वह नौटियालजी के कार्य के आड़े नहीं आयीं। उस समय नौटियालजी के यहां हेमवतीनंदन बहुगुणा सहित न जाने किन-किन राजनीतिक दलों से जुड़े लोगों का जमावड़ा या विभिन्न सांस्कृतिक-सामाजिक गतिविधियों से जुड़े लोगों का उठना-बैठना होता था, पर इसका प्रभाव कभी उनकी पत्रकारिता पर नहीं पड़ा।

नौटियालजी विचारों की स्वतंत्रता तथा उदारता के प्रबल हिमायती रहे हैं और वैचारिक उदारता इनकी परंपरा रही है।
लोकार्पण तथा सम्मान समारोह के पश्र्चात श्री देवमणि पांडेय के संयोजन में काव्य-गोष्ठी संपन्न हुई। काव्य-गोष्ठी में कवि आसकरण अटल ने `हाइवे के हमदम’ शीर्षक से एक कविता सुनायी। खन्ना मुज़फ़्फ़रपुरी तथा सुश्री देवी नागरानी ने ग़ज़ल सुनायी। वरिष्ठ कवि यज्ञ शर्मा ने दाल की बढ़ती क़ीमतों को लक्ष्य करके `दाल’ शीर्षकवाली व्यंग्य रचना सुनाकर उपस्थित श्रोताओं से जमकर दाद पायी। कुमार शैलेंद्र ने भी कविता सुनाकर श्रोताओं की वाहवाही लूटी। काव्य-गोष्ठी की अध्यक्ष श्रीमती माया गोविंद ने भी कविता और गीत से श्रोताओं को ओतप्रोत किया। संयोजक देवमणि पांडेय ने ग़ज़ल – इस जहां में प्यार महके ज़िंदगी बाकी रहे, ये दुआ मांगो दिलों में रोशनी बाकी रहे, आदमी पूरा हुआ तो देवता हो जायेगा, ये ज़रूरी है कि उसमें कुछ कमी बाकी रहे सुनाकर जोरदार तालियां बटोरीं।

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अंत में प्रो. रत्ना झा के आभार प्रदर्शन के साथ इस कार्यक्रम का समापन हुआ।

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0 Comments

  1. Dr Matsyendra Prabhakar

    June 4, 2010 at 5:20 pm

    Shaedheya Nand Kishor Nautiyal jee ka samoocha ‘Jeevan Charit’ Sooraj ki ROSHANI ki tarah Tezmay aur CHANDRAMA ki chhaya ki tarah Nirmal hai. Ve Bhartiya Patrakarita ke Itihas men us zamane ke NAKSHATRA hain jab shayad aadarniya Rajendra Mathur jee aur unhi ki shreni ke aadarniya Prabhash Joshi jee ki ABHA se bahut sare log parichit bhi nahin hue the. ’80 ke dashak men Navbharat Times aur Jansatta tatha bad men kisi had tak Hindustan ke ‘rashtriya swroop’ prapt karne ke pahle tak Vajra Prahar ‘BLITZ’ saptahik hokar bhi Hindi ka eklauta rashtriya akhbar hua karta tha. Tab ‘BLITZ’ ke swami aur prakhar patrakar RK Karanjia jee patrakarita ke ‘Lauh stambh’ mane jate the lekin Bhartiyon ko patrakarita ke Tewar se Hindi ‘BLITZ’ ke sampadak Nand Kishor Nautiyal jee ne hi avgat karaya tha. Hindi patrakarita ke BHISHMA PITAMAH ke roop men unka samman uchit aur prashansneeya hai. Aisa karne wakon ki bhi prashansa ki jani chahie.

  2. संजय कुमार

    June 5, 2010 at 8:02 am

    सब बातें पूरी सही हैं। लेकिन नूतन सवेरा साप्‍ताहिक के समय नौटियाल जी ने कई पत्रकारों से लिखवाया और पैसे ही नहीं दिए, उस महानता का किसी ने इस कार्यक्रम में वर्णन नहीं किया।

  3. सिराज मिर्जा

    June 7, 2010 at 1:42 pm

    नूतन सवेरा’ साप्ताहिक के लिए पत्रकार बधुओ ने श्रमदान के साथ धनदान भी किया। साथ में यह भी याद रखना चाहिये कि हिंदी अकादमी के माध्यम से जितने भाषाई लेखक, साहित्यकार और विचारक सम्मानित किये गए उतने महाराष्ट्र में उनसे पहले किसी ने नहीं किया।
    नूतन सवेरा सहयोग के बल पर ही चलता है।
    स्तंभकार सिराज मिर्जा

  4. सिराज मिर्जा

    June 8, 2010 at 7:05 am

    `नूतन सवेरा’ साप्ताहिक के लिए पत्रकार बधुओ ने श्रमदान के साथ धनदान भी किया। साथ में यह भी याद रखना चाहिये कि हिंदी अकादमी के माध्यम से जितने भाषाई लेखक, साहित्यकार और विचारक सम्मानित किये गए उतने महाराष्ट्र में उनसे पहले किसी ने नहीं किया। नूतन सवेरा सहयोग के बल पर ही चलता है।
    स्तंभकार सिराज मिर्जा

  5. ruby sarkar

    June 8, 2010 at 9:36 am

    meri patrakar jivan ke pratham guru nautiyal sh hain. hamesha unka saya bana rahe, yahi ishwar se prarthana karti hun.

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