Connect with us

Hi, what are you looking for?

कहिन

पुराने चटोरे लगते हैं, आते रहिए

[caption id="attachment_16791" align="alignleft"]स्व. नौनिहाल शर्मास्व. नौनिहाल शर्मा[/caption]पार्ट 4 : मेरी दिनचर्या में नौनिहाल के साथ के लम्हे बेहद जरूरी और शिक्षाप्रद होते जा रहे थे। यहां तक कि अपने दोस्तों को भी अब मैं ज्यादा वक्त नहीं दे पाता था। ये 1983 की बात है। मैं उनसे रोज नयी चीजें सीखता। वे मुझे एकदम दोस्ताना अंदाज में सिखाते थे। मेरी हर जिज्ञासा और शंका का समाधान करते। उन्हें मैंने कभी झुंझलाते नहीं देखा। चेहरे पर हमेशा मुस्कान रहती। आंखों में चमक। हर नयी चीज खुद भी जानने को उतावले रहते और दूसरों को बताने को भी। लेकिन जब उन्हें गुस्सा आता था, तब वे किसी की नहीं सुनते थे। आपे से बाहर हो जाते थे। गुस्सा आता किसी वाजिब वजह से ही। फिर उनका रौद्र रूप रामलीला के परशुराम की याद दिला देता। जब उन्हें गुस्से आता, तो उनकी बात आंख बंद करके माननी ही पड़ती थी। नहीं तो वे रूठ जाते। कटे-कटे से रहते। फिर सामने वाले को अपनी गलती समझ में आती। वह गलती कबूल करता। और नौनिहाल का चेहरा फिर खिलखिला उठता। ‘कट्टी’ खत्म होने का यह जश्न खास चाय के साथ मनाया जाता।

स्व. नौनिहाल शर्मा

स्व. नौनिहाल शर्मापार्ट 4 : मेरी दिनचर्या में नौनिहाल के साथ के लम्हे बेहद जरूरी और शिक्षाप्रद होते जा रहे थे। यहां तक कि अपने दोस्तों को भी अब मैं ज्यादा वक्त नहीं दे पाता था। ये 1983 की बात है। मैं उनसे रोज नयी चीजें सीखता। वे मुझे एकदम दोस्ताना अंदाज में सिखाते थे। मेरी हर जिज्ञासा और शंका का समाधान करते। उन्हें मैंने कभी झुंझलाते नहीं देखा। चेहरे पर हमेशा मुस्कान रहती। आंखों में चमक। हर नयी चीज खुद भी जानने को उतावले रहते और दूसरों को बताने को भी। लेकिन जब उन्हें गुस्सा आता था, तब वे किसी की नहीं सुनते थे। आपे से बाहर हो जाते थे। गुस्सा आता किसी वाजिब वजह से ही। फिर उनका रौद्र रूप रामलीला के परशुराम की याद दिला देता। जब उन्हें गुस्से आता, तो उनकी बात आंख बंद करके माननी ही पड़ती थी। नहीं तो वे रूठ जाते। कटे-कटे से रहते। फिर सामने वाले को अपनी गलती समझ में आती। वह गलती कबूल करता। और नौनिहाल का चेहरा फिर खिलखिला उठता। ‘कट्टी’ खत्म होने का यह जश्न खास चाय के साथ मनाया जाता।

इस खास चाय के भी उनके अड्डे थे। कचहरी और मेरठ कॉलेज के पास चाय की दुकान। एन. ए. एस. कॉलेज के बाहर नाले के पास भगत जी की दुकान। बच्चा पार्क के कोने पर रोडवेज बस अड्डे के बाहर और आर. जी. कॉलेज के सामने चाय की दुकान। एक दिन वे कोतवाली के पास हमारे पुराने घर में बैठे थे। हमारे घर के सामने, सड़क किनारे शेरसिंह चाटवाला शाम को ठेला लगाता था। नौनिहाल ने पूछा, ‘अच्छी चाट बनाता है?’

‘हां’।

‘तो आज चाट का ही मजा लिया जाए।’

उन्होंने मुझे इतनी हिदायतें दीं कि मैंने हाथ जोड़कर कहा, ‘आप साथ चलो। जैसी चाट चाहिए, वहीं बता देना।’

उन्होंने शेरसिंह को निर्देश देने शुरू किये (मुझे ‘दुभाषिये’ का काम करना पड़ा)- टिक्की को और तलो… दबाकर नहीं… घुमा-घुमा कर… अब पलटकर तलो… एकदम करारी होनी चाहिए… दही, खट्टी-मीठी चटनी और मसाले इतने डालो… इस पर छोले डालो.. लाल मिर्च भी… दो पपड़ी रखो ऊपर… उन पर उबले आलू… फिर दही, खट्टी-मीठी चटनी और मसाले डालो… हां अब ठीक है… ऐसी चाट बनाकर खिलाओगे, तो धंधा दुगना हो जाएगा।     

शेरसिंह ने चाट का पत्ता नौनिहाल की ओर बढ़ाया, तो ठेले के पास खड़े बाकी लोग उचक-उचक कर देखने लगे। अचरज से। शेरसिंह ने मुस्कराकर कहा, ‘पुराने चटोरे लगते हैं। आते रहिए।’

इस घटना की मैं अक्सर चर्चा करता। एक दिन नौनिहाल ने कहा, ‘मेरठ के खानपान के ठिकानों पर सीरीज लिखो।’

बात मुझे जंच गयी।

नियमित क्राइम रिपोर्टिंग के अलावा मैंने मेरठ के खानपान के ठिकानों पर सीरीज शुरू कर दी। मेरठ के किसी अखबार में इस तरह का प्रयोग पहली बार किया गया। नौनिहाल के निर्देशानुसार मैंने अलग-अलग तरह के व्यंजनों वाले प्रमुख होटलों की सूची बनायी। होम वर्क किया। फिर निकला इंटरव्यू करने। कई बार नौनिहाल भी साथ जाते थे। कई व्यंजन हम चखते भी थे। लेकिन एक समस्या आ गयी। हम दोनों ही ठहरे शाकाहारी। मांसाहारी व्यंजनों के बारे में कैसे लिखा जाये? मुझे एक तरकीब सूझी।

Advertisement. Scroll to continue reading.

‘गुरू, क्यों ना मांसाहारी व्यंजनों को छोड़ ही दिया जाये?’

‘नहीं। सीरीज शुरू की है, तो सब पर लिखना पड़ेगा।’

‘तो, क्या किया जाये?’

‘निकलेगा उसका भी रास्ता।’

दो दिन बाद नौनिहाल मुझे दफ्तर से एक गैराज में ले गये। केसरगंज के पास। वहां जाकर साइकिल से उतरे। साइकिल स्टैंड पर लगायी। इतने में एक मैकेनिकनुमा लड़का शर्ट की आस्तीन से नाक पोंछते आया। उसने सलाम ठोंका। नौनिहाल ने उसका कंधा थपथपाया। कहा, ‘चल। आज तेरी दावत।’

उसने दस मिनट रुकने को कहा। अपना काम निपटाकर आया। नौनिहाल ने उसे मेरी साइकिल के कैरियर पर बैठने का इशारा किया। मुझे असमंजस में देखकर बोले, ‘नॉन वैज खाने के बारे में यही बतायेगा। हम तो दाल-रोटी खाने वाले हैं।’

उसका नाम था असलम। हम आबू लेन के एक होटल में पहुंचे। जमकर खाना खाया। पूरा मेनू नोट किया। असलम ने स्टोरी के लिए नॉन वैज खाने का इनपुट दिया। दफ्तर आकर मैंने स्टोरी लिखी। नौनिहाल ने उसे एडिट किया। एडिट क्या किया, रीराइट किया। हैडिंग लगाया। मेरी बाईलाइन देकर अंदर कंपोज होने को भेज दिया।

मैंने प्रतिवाद किया, ‘गुरू, पूरी स्टोरी आपकी देखरेख में हुई। आप साथ रहे। स्टोरी रीराइट की। अपना नाम दो।’

वे बोले, ‘ये तेरा कॉलम है। तेरा ही नाम जायेगा। मेरा तो छपता ही रहता है।’

Advertisement. Scroll to continue reading.

… वो दिन कभी लौटेंगे नहीं। ऐसा गुरू किसी को अब मिलेगा नहीं। आज तो सीनियर अपने जूनियर की स्टोरी पर अपना नाम डाल देते हैं। पुरस्कार तक ले लेते हैं। काश! ऐसे लोग कभी नौनिहाल से मिले होते!

असलम ही नहीं, नौनिहाल ने उस कॉलम के लिए स्टोरी कराते हुए और भी कई गरीब लोगों को अपने साथ खाना खिलवाया।

सच! कितनों की दुआएं रही होंगी उनके साथ!

भुवेंद्र त्यागीपर ये दुआएं काम क्यों नहीं आयीं? वे असमय मौत के मुंह में क्यों चले गये? उनका परिवार आज भी मुश्किल में क्यों है?

ये सवाल मेरे मन में जब-तब उमड़ते-घुमड़ते रहते हैं… और मुझे इनका कोई जवाब नहीं मिलता…     

लेखक भुवेन्द्र त्यागी को नौनिहाल का शिष्य होने का गर्व है। वे नवभारत टाइम्स, मुम्बई में चीफ सब एडिटर पद पर कार्यरत हैं। उनसे संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है।

Click to comment

0 Comments

  1. Akhilesh Singh

    January 24, 2010 at 10:42 am

    GURU SHISYA PAMPRA KO SLAM
    TYAGI JI AAP NE NAUNIHAL JI KE BARE AISA LIKHA , LAGATA HAI KI AAP UNKE SHISYA KAM DOST JYADA THE, PHIR BHI JO AAP UNKE BARE ME LIKH RAHE HAI , USSE SE TO YHI LAGTA HAI,KI AAP BILKUL SHAISYA THE AUR VO GURU,
    BAISE AAJ KAL CNEB PR CHOR GURU KA PRTHFAS HO RHA HAI.ESSE ANDAJA LAGAYA JA SAKTA HAI KI AAJ KE DUR ME GURU SHISYA PARAMORA SAMAJ SE KHATM HO RHI , AAP JAISE SHISYA HI ESE AAGE BADANE KE LIYE AADARS HAI.

  2. awanish yadav, kanpur

    March 20, 2010 at 3:25 am

    BHUVENDRA JI,
    UPAR WALAY KI MAYA NIRALI HAI USKO KOI SAMAJH NAHI PAYA HAI.LEKIN ITNA JAROOR HAI KI ACCHAY LOGON KO HUM KABHI BHOOL NAHIN PATAY HAIN.AUR YEH ACCHAY LOG AMAR HO JATAY HAIN.

  3. Rakesh bhartiya austraila

    July 13, 2010 at 10:01 am

    shandhar !!

Leave a Reply

Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You May Also Like

Uncategorized

भड़ास4मीडिया डॉट कॉम तक अगर मीडिया जगत की कोई हलचल, सूचना, जानकारी पहुंचाना चाहते हैं तो आपका स्वागत है. इस पोर्टल के लिए भेजी...

टीवी

विनोद कापड़ी-साक्षी जोशी की निजी तस्वीरें व निजी मेल इनकी मेल आईडी हैक करके पब्लिक डोमेन में डालने व प्रकाशित करने के प्रकरण में...

Uncategorized

भड़ास4मीडिया का मकसद किसी भी मीडियाकर्मी या मीडिया संस्थान को नुकसान पहुंचाना कतई नहीं है। हम मीडिया के अंदर की गतिविधियों और हलचल-हालचाल को...

हलचल

: घोटाले में भागीदार रहे परवेज अहमद, जयंतो भट्टाचार्या और रितु वर्मा भी प्रेस क्लब से सस्पेंड : प्रेस क्लब आफ इंडिया के महासचिव...

Advertisement