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ज्यामितीय संतुलन, छिली कोहनियां और जन समस्याएं

[caption id="attachment_16983" align="alignleft"]नौनिहाल शर्मानौनिहाल शर्मा[/caption]भाग 8 : अब मैं ‘मेरठ समाचार’ में क्राइम और खेल बीट कवर कर रहा था। बी.ए. की पढ़ाई भी साथ होने के कारण यह सब करने में समय और श्रम तो बहुत लगता, पर नौनिहाल हमेशा मेरा उत्साह बढ़ाते रहते। मैं जो भी खबर लाता, वे कई बार तो उसे पूरी री-राइट करते। इस तरह उन्होंने मुझे इंट्रो, बॉडी मैटर, हैडिंग, क्रॉसर, शोल्डर और हाईलाइट्स का भरपूर अभ्यास करा दिया। फोटो कैप्शन लिखना भी उनसे ही सीखा। उनका कहना था कि हर फोटो में मुकम्मल खबर रहती है। कैप्शन में वो खबर बयान कर दी जानी चाहिए। पेज का ले-आउट नौनिहाल ने कागज पर डमी बनाकर सिखाया। मूल रूप से विज्ञान का विद्यार्थी होने के कारण मुझे इस काम में बहुत मजा आता। नौनिहाल ने बताया कि सबसे सुंदर ले-आउट वो होता है, जिसमें पेज का हर हिस्सा ज्यामितीय रूप से संतुलित हो। उनके इस गुरु-मंत्र का मैं आज तक पालन कर रहा हूं।

नौनिहाल शर्मा

नौनिहाल शर्माभाग 8 : अब मैं ‘मेरठ समाचार’ में क्राइम और खेल बीट कवर कर रहा था। बी.ए. की पढ़ाई भी साथ होने के कारण यह सब करने में समय और श्रम तो बहुत लगता, पर नौनिहाल हमेशा मेरा उत्साह बढ़ाते रहते। मैं जो भी खबर लाता, वे कई बार तो उसे पूरी री-राइट करते। इस तरह उन्होंने मुझे इंट्रो, बॉडी मैटर, हैडिंग, क्रॉसर, शोल्डर और हाईलाइट्स का भरपूर अभ्यास करा दिया। फोटो कैप्शन लिखना भी उनसे ही सीखा। उनका कहना था कि हर फोटो में मुकम्मल खबर रहती है। कैप्शन में वो खबर बयान कर दी जानी चाहिए। पेज का ले-आउट नौनिहाल ने कागज पर डमी बनाकर सिखाया। मूल रूप से विज्ञान का विद्यार्थी होने के कारण मुझे इस काम में बहुत मजा आता। नौनिहाल ने बताया कि सबसे सुंदर ले-आउट वो होता है, जिसमें पेज का हर हिस्सा ज्यामितीय रूप से संतुलित हो। उनके इस गुरु-मंत्र का मैं आज तक पालन कर रहा हूं।

एक दिन हम दोनों मेरठ कॉलेज से बाउंड्री लाइन होते हुए लालकुर्ती जा रहे थे। सड़क इतनी टूटी-फूटी थी कि हमारी साइकिलें दो बार उछलकर गिरीं। कोहनियां छिल गयीं। मुझे लगा कि किसी डॉक्टर के पास जाकर पट्टी बंधवा लेनी चाहिए। मगर नौनिहाल ने सड़क किनारे साइकिल खड़ी की। मुझसे कहा, ‘पट्टी की बाद में सोचेंगे। मुझे एक आइडिया आया है। शहर में हर तरफ सड़कों पर बड़े-बड़े गड्ढे हैं। जगह-जगह सड़कें खुदी पड़ी हैं। ऐसी ही और भी बहुत सी समस्याएं हैं शहर में। इन जन-समस्याओं पर एक कॉलम शुरू करना चाहिए। ये कॉलम तू लिख।’

‘लेकिन गुरु, मैं तो अब गले तक काम में डूबा हूं। टाइम कहां से मिलेगा इसके लिए?’

‘तू समझ नहीं रहा। ये बहुत महत्वपूर्ण कॉलम होगा। मेरठ में ऐसा काम शायद पहले कभी नहीं हुआ होगा। थोड़ी और मेहनत कर ले। मजा आयेगा इस काम में। बहुत संतोष मिलेगा।’

‘मैं मैटर कहां से लाऊंगा?’

‘शहर में घूमना होगा। लोगों से उनकी समस्याओं के बारे में पूछना होगा। ऐसी समस्याओं की सूची बनाकर क्रमबद्ध ढंग से काम करना होगा। फिर खुद संबंधित विभाग के अधिकारी के पास जाकर उसका पक्ष भी लाना होगा। इसका काफी अच्छा प्रतिसाद मिलेगा। तुझे भी और अखबार को भी।’

नौनिहाल का ये आइडिया भी मुझे बहुत आकर्षक लगा। तभी मेरी छिली कोहनी में दर्द और जलन की लहर उठी। नौनिहाल ने पास के म्युनिसिपेलिटी के नल से पहले मेरा घाव धोया। फिर अपना। उसके बाद हम साइकिलों के साथ पैदल ही बेगम पुल के नाले तक आये। नाले के पुल के पास साइकिलें खड़ी करके हम भी खड़े हो गये। मैं सोच ही रहा था कि गुरु अब क्या करने वाले हैं, कि उन्होंने अपनी जेब से कुछ कागज निकाले (वे हमेशा जेब में काफी कागज रखते थे। जहां भी कुछ ध्यान में आता, वहीं जेब से कागज निकालकर उस पर लिख लेते।)।

तो उन्होंने लिखना शुरू कर दिया। वो 1 दिसंबर, 1983 की बेहद सर्द दोपहर थी। सूरज की किरणों से आने वाली ऊष्मा को तेज और ठंडी हवा ने बेदम कर रखा था। नाले पर खड़े होने के कारण हम एक तरह से खुले में थे। मुझे चाय पीने की इच्छा हुई। पर गुरु उस जगह से हिलने को तैयार नहीं। उन्होंने कागज पर मेरठ की कुल 10 समस्याएं महज दो-तीन मिनट में लिख डालीं। इन समस्याओं पर मुझे उसी दिन से काम शुरू करना था-

आवास, जल, प्रदूषण, सफाई, बिजली, डाक, बैंक, राशन, टेलीफोन और ट्रैफिक।

नौनिहाल ने इन पर काम करने की पद्धति बता ही दी थी। अब क्रम भी निश्चित कर दिया। और पहली किस्त तैयार करने के लिए मुझे वक्त दिया तीन दिन का! तब तक हमारी छिली कोहनियों का दर्द कम हो चला था। हम बेगम पुल पेट्रोल पंप के पास कैफे पहुंचे। यहां नौनिहाल जरा अजब चाय बनवाते थे। भुवेंद्र त्यागीचाय में थोड़ा सा कॉफी पाउडर। इससे प्याले का टेस्ट चाय और कॉफी के बीच का होता था। इस चाय को नौनिहाल ‘अय्याशी की चाय’ कहते थे।

तो वो अजब चाय गले से नीचे उतरते ही हमारा कांपना कम हुआ। गुरू का आदेश हुआ- जाओ, इस कॉलम के लिए सामग्री तैया करने में जुट जाओ। मैंने साइकिल आवास विकास परिषद के दफ्तर की ओर मोड़ दी। कॉलम की पहली किस्त आवास पर जो थी!      

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लेखक भुवेन्द्र त्यागी को नौनिहाल का शिष्य होने का गर्व है। वे नवभारत टाइम्स, मुम्बई में चीफ सब एडिटर पद पर कार्यरत हैं। उनसे संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है।

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0 Comments

  1. vijay singh kaushik

    February 20, 2010 at 1:04 pm

    sir agli kist ka intzar rahega….vijay singh kaushik (navbharat_

  2. vijay singh kaushik

    February 20, 2010 at 1:03 pm

    sir agli kist ka intzar rahega……….vijay sigh kaushik (navbharat)

  3. sachindra dubey

    February 20, 2010 at 3:37 pm

    Apka lekh bahut achcha laga. Apki kahani guru-shishya ki kahani nahi balki patrakarita ki puri shiksha hai. Aap bhagyashali hain jo Naunihal jaise guru aapko mile.

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