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दुख-दर्द

नीरू, हम सब तुम्हें प्यार करते हैं

नीरू की मौत (14) : इन तस्वीरों से जाहिर है कि जाने कितने सपने देखे थे उसने : मौत का बदला इस समाज से लिया जाना चाहिए : प्रेम करने वालों को खूंखार परिवार, परिजन, समाज, पिता, भाई, रिश्तेदार से बचाना होगा :

नीरू की मौत (14) : इन तस्वीरों से जाहिर है कि जाने कितने सपने देखे थे उसने : मौत का बदला इस समाज से लिया जाना चाहिए : प्रेम करने वालों को खूंखार परिवार, परिजन, समाज, पिता, भाई, रिश्तेदार से बचाना होगा :

नीरू नहीं रहीं पर अब उनकी यादें हैं. मेधावी पत्रकार की असमय मौत ने सभी को हिला दिया है. जिस तरीके से उसके परिजनों ने उसे मारा, वह स्तब्धकारी है. सिर्फ इसलिए, दूसरे जाति के लड़के से शादी करना चाहती थी, शादी से पहले दोनों के रिश्ते बन चुके थे, वह गर्भवती थी, मार डालना बर्बर, क्रूर, वीभत्स और जघन्यकारी है. हम पुरुषों की बहनें-बेटियां अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीना चाहती हैं तो हम लोगों को आपत्ति क्यों हो? क्या हम उनके ठेकेदार हैं? क्या हम उनके पालनहार-तारणहार हैं? अगर ऐसा हम मानते हैं-सोचते हैं तो हम लोगों से बड़ा असभ्य और चिरकुट कोई नहीं है. संभव है, वे लड़कियां, हमारी बहन-बेटियां गल्तियां करें, पर गल्तियां कौन नहीं करता, और, कौन साला बिना गल्ती किए जीवन के सबक सीख पाता है?

हम पुरुष हजारों हजार गल्तियां करें तो सौ खून माफ लेकिन हमारी बहन बेटियां एक गल्ती कर दें तो उन्हें नाक-मुंह दबाकर मार डालें? उसने तो कोई गल्ती भी न की. नीरू ने किसी एक से प्यार किया. उसी को अपना पति माना. उसी के साथ सपने देखती थी. उसी के साथ रहती थी. वह हमेशा उसी के साथ रहना चाहती थी. इसलिए वह उससे शादी करना चाहती थी. वह बिना शादी किए भी अगर उसके साथ हमेशा रहती तो भी किसी को उस पर उंगली उठाने का अधिकार नहीं था. अगर कोई लड़का-लड़की, जो वयस्क हों, एक साथ रहना-जीना चाहते हैं, बिना शादी किए, तो इसमें क्या गलत है? नीरू जिससे प्रेम करती थी, जिसके साथ रहती थी, उसी से शादी भी कर लेना चाहती थी. तो इसमें क्या गलत है?

उसने गल्ती की तो यह कि वह अपनी अतिशय संवेदनशीलता और अतिशय समझदारी के कारण परिजनों को मनाने चली गई. अगर वो न जाती और यहीं किसी आर्य समाज मंदिर में शादी कर लेती तो कोई हरामखोर उसका क्या कर लेता? वो और उसका मित्र, जिससे प्यार करती थी, दोनों नौकरी में थे. दोनों अपनी घर-गृहस्थी आसानी से चला सकते थे. कोई माई का लाल आकर उनका बाल बांका न कर पाता. पर अब निरुपमा नहीं रही तो तमाम भेड़िए टाइप लोग उसको लेकर कई तरह के सवाल करने लगे हैं. यही भेड़िए दरअसल हमारे समय के छुपे हुए हत्यारे हैं क्योंकि उनकी सोच और समझ पर सनातनी चिरकुट चश्मा लगा हुआ और जो ऐसी निरुपमाओं को मौका पाते ही मार डालने को तत्पर रहते हैं. ऐसे भेड़ियों को पहले हम लोगों को मानसिक और वैचारिक रूप से हराना होगा क्योंकि उन्हें पीटकर उनकी सोच नहीं बदल सकते. सोच बदलने के क्रम में उन्हें भले ही पीटा जा सकता है.

धिक्कार है इस समाज और देश पर जो इतने दिनों बाद भी चेतना के स्तर पर मध्ययुगीन बना हुआ है पर विकास का दावा इस कदर किया जाता है जैसे हम लोग वाकई अल्ट्रामाडर्न हो गए हों. सिर्फ सड़क, माल, सेंसेक्स चमकाने से देश का विकास नहीं होता. देश का विकास देश के लोगों के शैक्षिक व चेतना के स्तर को उन्नत करके, सोचने के तरीके को वैज्ञानिक बनाकर, स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ जन-जन तक पहुंचाकर और जल-जमीन-जॉब की समस्याओं को खत्म करके किया जाता है. पर हो रहा है बिलकुल उलट. इस देश के नेता और पोलिटिकल पार्टीज धार्मिक, कट्टरवादी, पोंगापंथी, जातिवादी सोच को बढ़ावा दे रही हैं. नीरू की मौत का बदला इस समाज से लिया जाना चाहिए. नीरू का मौत का बदला इस पोंगापंथी सिस्टम से लिया जाना चाहिए. कल अगर कोई और नीरू, हमारी बहन-बेटियां किसी से प्रेम करती हैं और अपनी मर्जी से रिश्ते बनाती हैं, उससे शादी करना चाहती हैं तो कोई खूंखार बाप-भाई बीच में न आए, इसकी व्यवस्था करनी चाहिए.

इसके लिए किसी और को नहीं बल्कि लड़कियों को ही आगे आना पड़ेगा. मुखर होना पड़ेगा. लड़कियों से अनुरोध है कि वे अपने बाप-भाई पर भी भरोसा न करें. अपने जीवन के फैसलों के लिए परिजनों की अनुमति और उनकी मंजूरी के लिए न तरसें. अगर वे स्वेच्छा से मान जाते हों तो ठीक अन्यथा कोर्ट में या मंदिर में या गुरुद्वारे में या कहीं भी जहां शादियां होती हों, जाकर शादी कर लें और इसकी सूचना अपने परिजनों को भी भेज दें. वे आएं तो ठीक, न आएं तो और भी ज्यादा ठीक. लिव इन के इस दौर में जहां शादी की तो अब कोई चर्चा ही नहीं होती, नीरू की ईमानदारी ये थी कि वह शादी के लिए अपने घर पूछने चली गई. वरना, अगर दोनों बिना शादी किए अपनी सहमति से दस साल ऐसे ही रहते तो इस समाज के लोगों की हिम्मत न थी कि उनकी तरफ निगाह उठाकर देख लें. जाने कितने कपल हैं जो दिल्ली-मुंबई समेत कई शहरों में बिना शादी किए साथ-साथ रहते हैं. ऐसे लोगों की अधिकारों की रक्षा में देश का न्यायालय भी आगे आ चुका है और कई फैसले ऐसे हुए हैं जिसके जरिए लिव इन को मान्यता मिली है.

समय के साथ आए सकारात्मक बदलावों को जो समाज नहीं स्वीकारता, वह तालिबान हो जाता है. वहां बात-बात में मौत की सजा दे दी जाती है. सरेआम फांसी पर लटकाया जाता है. आजकल अपने देश में यह प्रवृत्ति कुछ ज्यादा ही दिख रही है. मैं नीरू को बेहद संवेदनशील, ईमानदार, नैतिक, परिवार व दोस्त के प्रति निष्ठावान लड़की मानता हूं और ऐसी लड़कियां हमारी थाती हुआ करती हैं. इन्हें बचकर रखना चाहिए. इन्हें बचाकर रखना चाहिए. सड़ चुके समाज और परिवार के ढांचे को इन लड़कियों की ग्रोथ भले न सुहाए पर ये लड़कियां इस देश व समाज को बेहतर बनाने की संभावना हैं. अव्वल तो ये पुरुषों के मुकाबले बहुत कम नादानियां, गल्तियां करती हैं और करती भी हैं तो गल्ती महसूस होने पर उसे सुधारने की कोशिश करती हैं. जिस संवेदनशीलता, कठोर मेहनत और धीरज के साथ ये लड़कियां दिन ब दिन जीवन के हर क्षेत्र में शीर्ष ऊंचाई पर पहुंच रही हैं, उससे पता चलता है कि आने वाला दिन इन्हीं का है. अगर पुरुष और परिवार की सोच नहीं बदली तो ये पुरुष और परिवार नष्ट होते जाएंगे, यह लिखकर रख लीजिए.

नीरू के मित्रों ने कुछ तस्वीरें भेजी हैं, जिसे हम यहां प्रकाशित कर रहे हैं ताकि इस धरती से जा चुकी उस लड़की के चेहरे को कुछ और देर तक हम अपनी आंखों में बसा सकें. आखिर में, दो बातें नीरू से, जो इस दुनिया में नहीं हैं… ”…नीरू, हम सब तुमसे प्यार करते हैं. तुम वाकई इन्नोसेंट, लायल, सेंसेटिव, प्रोग्रेसिव थी. पर तुम्हें तुम्हारे घरवाले ही नहीं समझ पाए. उनकी आंखों पर जो चश्मा चढ़ा है, उसे तुम समय से पहचान न पाई. तुम जिन्हें परिजन, गार्जियन समझती थी, वे बहेलिया निकले. तुम शरीफ, सुंदर, शानदार लड़की थी जिसे इस नालायक दुनिया में बहुत कम समय रहना था. माफ करना दोस्त, दरअसल अच्छे लोगों के लिए यह दुनिया है ही नहीं. यहां भिखारी, भेड़िए, भूखे, भूत, भुजंग टाइप के लोग रहते हैं, संपूर्णता के साथ सोचने-समझने-विचारने और गले लगाने-माफ करने वाले उदारमना मानुष न के बराबर हैं. तुम जिस भी दुनिया में गई हो, वहां बेहद खुश रहोगी, ये दावे से कह रहा हूं. तुम्हें मलाल होगा ढेर सारे सपने अधूरे रह जाने के. पर बड़े लोग, महान लोग अपने सपनों को दूसरों के सपने के साथ जोड़ लेते हैं. तुम वाकई महान थी, हो और रहोगी. कई नीरू हैं जो इन्हीं परिस्थितियों से जूझ रही हैं. उन्हें तुम्हारा संबल और साहस मिल जाए और वे अपने सपने पूरे कर लें तो समझो तुम्हारे भी सपने सच हो गए. तुम जल्दी से इस धरती पर फिर आओ, किसी न किसी रूप में, अच्छा होता कि बिटिया ही बनकर. हम इस समाज की तरफ से तुम्हारे सामने पश्चाताप करना चाहते हैं. तुमसे माफी मांगना चाहते हैं, तुमसे सॉरी बोलना चाहते हैं, सुन रही हो न प्यारी निरुपमा…. हम सब तुम्हें बहुत प्यार करते हैं.”

यशवंत

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0 Comments

  1. kumar bhawesh

    May 4, 2010 at 9:12 am

    बोलेंगे तो बोलोगे कि बोलता है
    यशवंत भाई आप नेता क्यों नहीं बन जाते. भाषणबाजी में आप लाजबाब है. आपने भी दिखा ही दी पुरुषवादी मानसिकता. गलती लरकी ही की क्यों. अरे निरुपमा गर्भवती हुई तो इसमें केवल निरुपमा कि गलती क्यों . इसमें उस छोकरे कि भी गलती है जो निरुपमा टाइप लर्कियो को अपनी हवस का शिकार बनाने को ढूढते रहते है. अरे बिना माँ बाप के दिल्ली में रह रही सो called स्वक्छंद विचारो वाली लर्कियो तुम खुद अपनी इज्ज़त बचाओ. ये बरे बरे भाषण देने वाले लोग प्रियाभंसू जैसे लोगो के ही पक्छ्धर है. इनकी नज़र में प्यार करने वालो को मर्यादाओ के उल्लंघन का अधिकार रहता है. क्या हुआ निरुपमा तो मरी और साथ में मर गयी उसकी मोहब्बत. धरती पे रह गयी हमारा और आपका इस घटनाक्रम पे प्रतिक्रियाओ का दौर, उसका बिनब्याही माँ होने कलंक. लर्कियो संभालो नहीं तो भाषणबाजी करने वाले ये भेरिए जब मौका पाएंगे प्यार के नाम पर तुम्हारे शरीर को रौन्देंगे और जरुरत परने पर …………………………………………..
    भवेश

  2. sourabh kumar

    May 4, 2010 at 9:22 am

    yashwant ji agar nirupma se aap bhi pyar karte hai to kyo nahi aap mar kar dikhate. kya aap ke pariwarik jeevan me is tarah ka situation paida ho to aap iske liye taiyaar hai na. yahi pyar sabd kah ke to larkio ke deh ka soshan ho raha hai.
    hum nirupma ke hatyaro ke pakre jaane ki kamna karte hai
    sourabh, begusarai

  3. praveenmohta

    May 4, 2010 at 10:00 am

    यशवंत भाई… दिमाग सदमे में है और सनातन धरम और आचरण के ठेकेदारों पर खून भी खुल रहा है. जो धर्म की दुहाई देते हैं उनके बेडरूम और कंप्यूटर में पोर्न साहित्य बेहद आसानी से मिल जाएगा. वो जब डीटीसी की बस में चढ़ते हैं तो लड़कियों से जानबूझ कर चिपक कर खड़े होते हैं. सीपी और जीबी रोड पर शाम ढले घुमते हैं…. धर्म की रक्षा के लिए? जब मौका मिलता है तो खूब ज्ञान भी दे लेते हैं… लेकिन वो चिंता न करें….वक्त सबको हिसाब देगा… पहले हम निरुपमा को इन्साफ दिला दें.. फिर इनका नंबर…

  4. kk

    May 4, 2010 at 10:18 am

    bhai shaeb kyun itana mamle ko tool diya jaa rahaa hai .ager aap ki bahn esa karti to aap log kya karte .updeh dena aasan hai aur uska paalan karna kafi muskil hai .mar gayee yar mar diay kaya fark padta hai jasi karni wasi bharni .geeta k ek shlok me kahaa gaya hai jo hua achha hua, jo ho rha hai wo v achha hai ,aur jo hoga wo v achha he hoga . aap log us maata pita ko kosh rahe ho ager aap nirupma k pita hote to kya karte ki wah wah beta wah pet me paap lekar ghumo. bhaiya samaj ki apni kuch manyatayen hain uska dhyan to dejeye .ager sub kuch kar liya to shadi v kar k ghar jana tha kya burai ho jati . aub kaam police aur adalt kregi . aap log pareshhna mat ho .mrit aatma k shaanti k leye moun rahen .kuch nahi hone wala hai .

  5. rohit

    May 4, 2010 at 10:25 am

    aapake jajbe ka salaam yashwant ji kam se kam aap aise pahle shakhas the jo is ghatana ko khabar banane ka dam dikhaya.nahi to ndtv ko chod kisi ne bhi ise dikhana sahi nahi samjha akhitr kyon?ye sawal ka to namuna hai waise sawal ki snkhya iasase kai guna jyada hai?
    bahut bahut badiya yashwant jee

  6. यशवंत

    May 4, 2010 at 10:37 am

    कुमार भावेश जी, सौरभ कुमार जी और केके जी, मैं आप लोगों से बताना चाहता हूं कि इस घटना के बाद वाकई मैंने यह सोचा कि क्या अगर मेरी बेटी या बहन ऐसा करती तो उसे मैं मार डालता. यकीन मानिए, हर बार जवाब आया, नहीं मारता. कतई नहीं मारता. बल्कि उसे यह कहता कि तुम्हारी जिंदगी है, अपने जिंदगी के फैसले तुम खुद करो, मुझे अगर खराब भी लगेगा कोई फैसला तो ये मेरी निजी राय होगी पर मैं तुम्हारे फैसले के साथ खड़ा रहूंगा. तुमने जो कुछ निर्णय लिया, उस पर अमल करो. आगे बढ़ो. निरुपमा ने एकनिष्ठ प्रेम किया. वह प्रेमी बदलती नहीं रही. निरुपमा जिससे प्रेम करती थी, उसे पति मान उसके साथ रहती थी. उसी से शादी करने जा रही थी. मेरी बेटी ऐसा करेगी तो मैं उसे व उसके प्रेमी को अपनी तरफ से पार्टी दूंगा और कहूंगा कि तुम लोग दो-चार साल साथ रह लो, अगर तब भी प्यार कायम रहे तो शादी करना वरना बिन ब्याहे रहो तो ज्यादा ठीक. अगर शादी के बाद भी मेरी बेटी का उस लड़के से पटरी नहीं बैठती है तो उसे सलाह दूंगा कि उसे तलाक दो और अपनी जिंदगी अकेले जियो चाहे नया साथी तलाश लो. उसे किसी सूअर के साथ जिंदगी बर्बाद करने के लिए शादी का कथित कथित जन्म जन्म का बंधन लात खाकर भी निभाने के लिए बिलकुल नहीं कहूंगा.

    इसमें इतना बड़ा क्या है जो हाय हाय लोग कर रहे हैं. आप अगर लड़की को दोयम मानते हैं, सेकेंड ग्रेड नागरिक मानते हैं तो उसके साथ गुलामों सा व्यवहार करने के बारे में सोचेंगे. अगर आप लड़का लड़की, दोनों को बराबर मानते हैं, तो आपके मन में लड़की के बिन ब्याहे गर्भवती हो जाने पर कोई हाय हाय नहीं होगा. निरुपमा साहसी लड़की थी जो यह नहीं समझ पाई कि यह कठमुल्ला समाज बिन ब्याहे गर्भ को अपराध मानता है. ऐसे कठमुल्ला समाज पर तेल डालकर माचिस जलाकर फेंक देनी चाहिए. डूब मरों बहन बेटियों को पवित्र गाय मानने वालों. वे भी इंसान हैं, वे भी अपनी जिंदगी खुद जीने की हकदार हैं. उनका गार्जियन, रखवाला, मार्गदर्शक हम न ही बनें तो अच्छा है.

    बाकी, ये जो कुमार भावेश लिख रहा है, वह तो बिलकुल ही सड़ा लिख रहा है. अपनी बहन व बेटी को खूंटे से बांध कर रखने की सोच से मुक्त होना चाहिए. सुधर जा भावेश भाई. आखिर क्यों लड़की के लिए ही योनि शुचता की दुहाई दी जाती है. लड़के चाहे जो करें, उनके लिए यह सड़ा समाज कोई मापदंड नहीं बनाता पर लड़कियों के लिए जिधर देखो लोग नैतिकता की दुहाई देकर सीना कूटते छाती पीटते नजर आते हैं. हिप्पोक्रेट है यह समाज. पाखंडी हैं लोग. नैतिकता के दो मापदंड इसीलिए रखे गए हैं. कहा भी गया है- चौकी पर कुछ, चौका में कुछ. मतलब, हमारे समाज की नैतिकता करने और कहने की अलग अलग होती है.

    यशवंत
    एडिटर, भड़ास4मीडिया

  7. pappu

    May 4, 2010 at 10:59 am

    wah! yashwant bhai maza aa gaya. mastram kapoor fail ho gaye

  8. Anuranjan Jha

    May 4, 2010 at 11:12 am

    दोगली मानसिकता और दोगले चरित्र के लोगों के बीच जीते हैं हम। यह जंग ऐसे लोगों के ही खिलाफ हैं। बदलाव रातों रात नहीं आते लेकिन कोशिश चलती रहनी चाहिए। इतिहास गवाह है कि अंदर – अंदर हो रही क्रांति को कोई हल्का तात्कालिक कारण बड़ा रूप देता है और यह तो बड़ी घटना है। यशवंत जी इनका इलाज इनके ही तरीके से होगा। अंतरजातीय विवाह करने वालों को संरक्षण देने के लिए मैं तैयार हूं

  9. Ishwar chandra

    May 4, 2010 at 11:13 am

    Yashwant ji kichad se kichad ko saf nahi kiya ja skta. Niru ki htya ghor nindninye hai. Niru ke gharwale ne ek gandgi ko saf krne ke liye usse v bada gandgi ka sahara liya jo ki asabhy, amanviye aur asmajik hai. Yashwant ji yhi kam aap bhi kr rhe hai. Aap v gandgi ko saf krne ke liye gandgi ka sahara le rhe hai. Aap youth ko Free-sex ke liye uksa rhe hai. Bhavnao me bahna achhi bat nhi hai. Chodiye sanskaro aur aadarsho ki bat, samay ke sath vichardharaye badalti rhti hai. Lekin kya ap is fact se muh mod skte hai ki ‘MANUSHY EK SAMAJIK PRANI HAI’ yani insano aur janwaro me bas ek hi fark hota hai smajikta ka. Purane shashtro ko chodiye Samaj Shashtr me jhank kr dekhiye. Samaj hr vyvshta ka buniyad hai. Desh, rajy aur kanun samaj se hi bane hai aur samaj ke liye hi bane hai. Yashwant ji aap asmajikt faila rhe hai, kya bina shadi ke santan paida krna samajik hai? Ap jis tarah ise badhaba de rhe hai agar sabhi ayesa hi krne lage to kya hum sbhy khlayenge. Hme dukhi man se hi sahi lekin yh swikar krna hi hoga ki NIRU AUR PRIYEBHANSHU kahi na kahi galat to the hi. Niru ki maut se mai v aaht hu, mai v chahta hu ki hatyare ko na sirf kanun balki samaj v saja de. Is bahshi pariwar ko samaj bahishkar kr de.

  10. Brajesh Jha

    May 4, 2010 at 11:13 am

    ek dam sahi kahna hain aapka. ek insaan ko khooten yani khambhe se bandh do jaise wo chaupaya janwarho. fir wo us saqks ko dhota rahe jindgi bhar aur sath mein apne chahton ko pura karne ke liye sab jagah niharta rahe aur ye soche ki kash ye mil jata/jati aur atript ho kar mansik aur saririk roop se pidit ho kar ek kide ki tarah rengta rahe. kahan ki naitikta hain ye. aaj jamana yah kah raha hain ki aap apne marzi pasand aur chahton ke anurup aapna partner chuniye, use apne paimane par parakh lijiye fir sadi kijiye ya use apna jiwan sathi banaiye ismein koi bura nahi hain.

  11. Zafar Irshad

    May 4, 2010 at 11:15 am

    Bahut achaa likha yashwant bhai….

  12. Abhay Singh

    May 4, 2010 at 11:27 am

    जब तक हम अपने अंदर के राक्षस को नहीं मारेंगे तब तक ये विभत्स घटनाएं होती रहेंगी। मूछ का सवाल न जाने कितनी निरुपमा को खाएगा . हमें सबसे पहले अपने अंदर के राक्षस को मारना होगा। तभी जाकर इस तरह की समस्या का हल निकल पाएगा।

  13. Dilip Singh

    May 4, 2010 at 11:28 am

    yashvant ji ham sab aap ke aur aap ke vicharo ke saath hai..!

  14. Poonnam Dawar

    May 4, 2010 at 11:29 am

    i am with u in yr bold steps of words which can shaken anyone…..yashvantji

  15. ऋषभ

    May 4, 2010 at 11:29 am

    प्रिय यशवंत
    तुम्हारे पोर्टल के बारे में काफी कुछ सुना था, कभी देखता नहीं था. निरुपमा के साथ हुए हादसे के बाद ही देखा. वह भी इसलिए की उस लड़की को रोजाना अपने ऑफिस की एक सीट पर चुपचाप काम में मसरूफ देखता था. तुमने इस मामले को वाकई खबर बना दिया. एक अच्छा काम किया. इसके लिए शुक्रिया!
    लेकिन यशवंत, इस मसले पर सभी के विचार हो सकते हैं, कुछ तुमसे सहमत… और कुछ असहमति भरे भी. लेकिन जो तुमसे असहमत होंगे, उन्हें असहमति ज़ाहिर करने का हक़ भी तो होगा. उसे तुम बर्दाश्त क्यों नहीं कर सकते. क्या तुम्हारे जारी किये फरमान को चुपचाप पढ़ना और हाँ में हाँ मिलाना ज़रूरी है. तुमने जिन शब्दों से कुमार भावेश को नवाज़ा है, उन्हें दोबारा पढ़कर तुम्हें खुद पर शर्म नहीं आयी. जिन गालियों का तुमने इस्तेमाल किया है, उन्हें किसी पोर्टल के सम्पादक के मुंह से निकलना चाहिए और वो भी सार्वजनिक माध्यम पर. किसी को सांड और सूअर कहने का हक़ तुम्हें किसने दिया. एक ओर तुम निरुपमा या किसी के भी अधिकारों की बात कर रहे हो और दूसरी ओर भावेश से बोलने का अधिकार ही छीन रहे हो. किसी पोर्टल के सम्पादक के मुंह से ऐसी अमर्यादित और अभद्र भाषा मैंने तो अब तक नहीं सुनी. सच कहूं तो ये तो पटरियों पर बिकने वाले किसी चवन्नी छाप उपन्यास की भाषा है. तुम्हें यह शोभा नहीं देता यशवंत. विचार रखो लेकिन मर्यादा के भीतर. भावेश ने सही कहा या गलत कहा, इस पर मैं नहीं जाता, लेकिन तुम अपने जवाब में सारी मर्यादा लांघ गए. अगर भड़ास को अच्छा पोर्टल कहते हो, तो इसे साबित भी करो और ऐसी स्तरहीन भाषा में किसी की आलोचना करोगे तो भड़ास को भी चवन्नी छाप ही मान लिया जाएगा.

  16. Dheeraj Prasad

    May 4, 2010 at 11:31 am

    धीरज प्रसाद, CNEB न्यूज़ नॉएडा से
    वाह यशवंत भाई वाह, क्या उत्तर दिया है गवार के पुत्रों को, यह लोग समझते है की हमारे ही पास विचारो को उचित तौलने ही ताकत है, पर यह भूल जाते है की, वह जो विचार प्रकट कर रहे है वह किसी हद तक ठीक है भी या नहीं, बस बोल दो चाहे जो हो, अरे यार तुम्हारे इन विचारो से यह साफ अंदाजा लगाया जा सकता है की आप सब किस प्रकार के समाज के अंग है|

    धन्यवाद् – आपका मित्र
    धीरज प्रसाद
    CNEB न्यूज़, नॉएडा

  17. Pratiman

    May 4, 2010 at 11:40 am

    Yashwantji, aap mere bahut priy hai aur aapka bhadas ka mein fan hoon. Kabhi aapko nahi likha par neeru ke case main apna sir bhi neeche ho gaya hai. Par yashwantji pehli baar aapne kharab bhasha ka prayaog kiya hai. Agar bhawesh galat likhte hai to iska matlab yeh nahin ki aap bhi usi level par utar aaye.
    Yashwantji aapke website ko bahut log padhte hai isiliye bhasha par sanyam rakhiye.

  18. यशवंत

    May 4, 2010 at 11:45 am

    भाई, मेरी भाषा से जिन्हें दुख पहुंचा है, उनसे माफी चाहता हूं लेकिन विषय ऐसा है कि मैं सड़क छाप मवाली बनने से खुद को रोक नहीं पा रहा हूं. फिर भी, आप लोगों के गरियाने का असर ये हुआ कि मैंने अपने कमेंट को खुद एडिट कर कुछ शब्दों को हटा दिया है. वैसे, भड़ास में थोड़ी बहुत गालियां चल जाती हैं, ऐसा हम लोग मानते हैं पर अब लग रहा है कि लोग भड़ास को बहुत सीरियसली लेते हैं इसलिए यहां भी अब भड़ास निकालने की बजाय अच्छी अच्छी गुडी गुडी भाषा में ही बात करनी होगी.
    आभार
    यशवंत

  19. ऋषभ

    May 4, 2010 at 11:53 am

    धन्यवाद यशवंत!
    हमारी बात को गंभीरता से लेने के लिए. दरअसल किसी गंभीर विषय पर आप जब गलत भाषा का इस्तेमाल करते हैं तो विषय की गंभीरता ख़त्म हो जाती. संवेदनशील विषय हो तो भाषा में भी संवेदना झलकनी चाहिए आवेश भर नहीं.

  20. dukhharan

    May 4, 2010 at 12:02 pm

    Yahi problem hai purabiyon ke saath… 2 peg lene ke baad insaan aur saand mein fark bhool jaate hain…. lagta hai aaj din mein hi chadha liya

  21. kishore

    May 4, 2010 at 12:07 pm

    Nirupama ke boyfriend ka ek tv channel me interview dekha to badi takleef hui. Uska chehra blur kiya hua tha. Janab Priyabhanshu, premi apna chehra nahi chhupate… chehra kewal rapist chhupate hain. Nirupama ko sare aam nagna kar apna chehra chhupa rahe hain.

  22. Chainsingh Shekhawat

    May 4, 2010 at 12:51 pm

    सभ्यता के तमाम चकाचौंध भरे दावों के बावजूद हम आज भी पिशाची प्रवृत्तियों को त्याग नहीं पाए हैं. ऐसी घटनाएं हमें हमारी असली औकात दिखा जाती हैं

  23. Sarfaraz Saifi

    May 4, 2010 at 12:53 pm

    बहुत खूब मेरे भाई

  24. soniya singh

    May 4, 2010 at 1:27 pm

    yashvat ji apki lekni main khas dum h ye to hum man gye…….bhagwan kare wo jis duniya main rhe khus rhe… aur usko marne wale janha bhi rhe ghut ghut ke mre bhagwan unko is duniya main kabhi janm na de……….tabhi smaj ka udar hoga

  25. kumar bhawesh

    May 4, 2010 at 3:17 pm

    बोलेंगे तो बोलोगे की बोलता है
    यशवंत भाई,
    पता नहीं आपने क्या लिखा था में तो नहीं पढ़ पाया लेकिन पता चला की आपने गुस्से में आ कर भद्दी बातें लिखी थी. माफ़ करेंगे जो बात आप लिख रहें है में भी तो वही कहने का प्रयास कर रहा हु. शायद में आपको समझा नहीं पा रहा हु. प्रियाभंसू का क्या गया. उसकी तस्वीर जहा टीवी में mosach हो के आ रही है वही निरुपमा सरेआम हो रही है.ये प्रियाभंसू तो साला देखने में ही चिरकुट लगता है. आप ही लिखते है की इन बातो के विरोध को लर्कियो को आगे आना होगा मैंने भी कहा लर्कियो को आगे आना होगा बहशी दरिंदो से बचने के लिए. क्योकि समाज में सनातन और रुढ़िवादी कह के गलियाने वालो की कमी नहीं है यही दरिन्दे लर्कियो के देह को अपने बाप की जागीर समझते है ये भूल जाते है की उनके बहन और बेटी के साथ भी कल को ऐसा हो सकता. केवल स्वक्चंद्ता के नाम पर प्रियाभंसू जैसे लोगो को बढावा नहीं दिया जा सकता. क्योंकी ये अपनी प्रेमिका के देह के शोसन के लिए ही प्यार की पींगे बढ़ाते है. फालतू बातें है जातिवादिता और उसके आधार पर अपने बच्चो पर पाबन्दी. लेकिन ये भी हिंदुस्तान अभी बर्दास्त नहीं करेगा की अपनी बेटी को किसी के साथ कुछ वर्सो के लिए सोने की छूट दे दे और जब उसका मन उस लरके से भर जाये तो बाप के पास वापस आ जाये, ऐसे में तो किसी को भी अपने बाप का नाम शायद पता नहीं रहेगा. क्या यशवंत जी आप भले इसकी इज़ाज़त दे दें पर मै एक भाई और बाप की हैशियत से शायद ही ऐसा कर पाऊ. अन्यथा नहीं लेंगे मुझे ऐसा लगता है की आपकी कोई बहन और बेटी नहीं है. आपकी बातो और विचार से तो ऐसा ही लगता है. माफ़ करेंगे मै कुमार भवेश हु.
    भवेश

  26. durgesh

    May 4, 2010 at 4:13 pm

    hindi journalism ki vidambnaa hai…adhrami..dogale…moorkh…and naatkiya bhare pade hai..koi bataye inko ki journalism ko inki jarurat nahee hai…nirupama kisi aandu-paandu jagah se padhi likhi nahee thee..naukari bhi achhi jagah kartee thee..wahan tak pahunchne mein uski soch bahut mayne rakhtee thee…kumar suresh..mahesh..bhavesh..kalpesh jaise log jaisa sochte hain…waisa hi likhte hain…..are moorkhadheesho…koi pyar kisi se bhi kar sakta hai…is ladkee ne bhi kiya…yashwant jee ki chatukarita mat kahna ise..chu..yo…jab apne parivaar ke aage har koi majboor hota hai…to gala kaise ghont sakta hai..

  27. Jamshed Siddiqui

    May 4, 2010 at 5:00 pm

    Haal hi mein pradarshit ek film ka ek dialouge tha, jo hamare samaj ki vishipt manyatao ka hal hain…”Zindgi jeene ke do tareeqe hote hain, ek jo ho raha hai hone do , doosra zimmedaari utao use badalne ki”

    Neeru ka pregnant hone ki wajah se use VICTIM of HONOUR KILLING kehna yahan bahut se logo ko hazam nahi ho raha. Lekin unhe ye sochna chahiye ki agar ye apradh tha bhi toh , Maut iski saza nahi ho sakti…

    Hamaari is bakwaas ki bahasbaazi se kuch nahi hoga, waqt hai.. Apna nazariye ka. Agar bin byahi maa ke liye mera , aapka , hum sab ka nazariya itna nakaratmak nahi hota toh shayad uski maa use kabhi nahi maarte..

    Ab samjhna hoga ki , Qaatil koi nahi ..Hum Aap hi hain..

    Neeru ke liye to bus mujhe yahi panktiya yaad aa rahi hain.

    Main duba tho kinare pe khadi thi dunia,
    Hasne walo me mera mukadar b shamil tha,
    Ro raha tho jo Janaze se lipat kar mere,
    kaise keh dhoo k wahi mera katil tha!

  28. sujeet

    May 4, 2010 at 10:54 pm

    यशवंत भाई
    ये भवेश क्या चिज है, जो प्रियभांशु को साला और चिरकुट लगता है, तथा वहशी दरिंदा कहने वाला कौन होता है. मैं इस भावेश को बताना चाहूँगा कि निरुपमा पेट से थी तो इसमें प्रियभांशु और निरुपमा दोनों कि मर्जी रही होगी. दोनों बालिग थे अपना भला ठीक से समझते थे. वैसे भी ये लोग शादी करने वाले थे… इसलिए मिस्टर भवेश संभल जाओं वरना ……….

  29. acid

    May 4, 2010 at 9:05 pm

    its 1:54 of morning…yashwant ko na to main jee bolung na bhai bolunga coz somewhere somtimes i think he is doing a great job…dosto iss media industry main kisi key picchwadey main itna guda to hai ki sacchai ekk baar to bol sakey..baad main bhaley hi deal kar ley..atleast tumney har cheez atleast ek bar to batayi duniya ko…nd u have ur own family its ok yaar…i hope tm mujhey pehchaan gaye hogey…cp is a nice place..i think u will publish this…

  30. anjule

    May 5, 2010 at 5:35 am

    पिछली गर्मियों की बात है जब छुट्टियों में मामा के गावं गया था.एक लड़की को इसी वजह से घर में जला के मार दिया गया था और उस दिन उसकी १३ वीं थी .एक अनपढ़ गवार गावं वाले का कमेंट्स जो मामा की दुकान पे बोला रहा था- साले सब भात खाने जा रहे हैं साला एसे लोगों को तो जिन्दा जला देना चाहिए था..अपनी बेटी को ही फुक दिया पोलिसे को पैसा खिला दी और आज लोग बड़े चाव स… श्राद्ध करने जा रहे हैं.अरे ऐसे लोगों को तो गावं से बाहर निकल देना चाहिए था.कुछ उंच नीच हो भी गया था तो किसी तरह ताप ढक के उसकी शादी कर देनी चाहिए थी.(कहने का मतलब ये है की ,भले ही वों इस बात को मानता हो की प्रेम करके लड़की ने गुनाह किया था,मगर वों गवार अनपढ़ आदमीं भी इस पछ में नहीं था ऐसी बेटियों को लोग मार दें,जैसा की इन पढ़े माँ बाप ने किया)

  31. Ratnesh Jha

    May 5, 2010 at 6:21 am

    Yashwant aur unke chamchon ko mera namaskar,

    Aapke vicharoon aur bhasha ko dekh ke mujhe koi aacharaya nahi hua. Hindi patrakar aur patrakarita, randion se bhi badtar hain hamare hindustan main. Randian to kam se kam samaj main kuch bhala kartee hain, par aap hindi patrakaron ka jamat kisi kaam ka nahi hai.

    Nirupma ke saath jo hua woh dukhad hai, par yashwant jo tum randi naach kar rahe ho aapne blog se woh dayniye hai aur ise band karo. Tum is system ka jhant nahi ukhar sakte, nirupma ko justice dilane ke baat mat hee karo. Media chilla saktee hai aur kuch nahi kar saktee. For example Ruchira case in Chandigarh and Aroshi in Noida case ke media kuch nahi kar paya. jada mat phenk yashwant aur apne jhoote emotions ka istemal sambhaal ke kar…

  32. kundan

    May 5, 2010 at 6:24 am

    sayad aaplogon ne niru ke orkut main last scrap nahi dekha.kahi aisa toh nahi.niru ke maut ke jitne jimmedaar uske gharwale hain utna hi uska pyar toh.nahi.aur yeh kaisa pyar hai ki sathi ki maut pe ek ansu bhi nahi baha ashiq ka.aur use sachai janne ke bajaye koderma aane se daar rahi hai priyansu.agar ise hi pyar kahte hai toh nirupma galat thi.aur uski maut ek dukhad hadsa hai.par dosi koi bhi ho saza tho niru ke pariwaar wale ko hi jhelna hai.

  33. kk

    May 5, 2010 at 6:44 am

    wah re yaswnt bhai aap se asi ummid nahi thi yahaan par delhi me baith kar bhasand pila rahe hain .aap gazipur k bangawan me yahi baat bolte to sochiye aap ka kya harsr hota .to bhaiya ,kata to bauta mile gahta mila na koy to hum to suar he sahi par aap kya hain aap tay kar legye .abhi aaj aap lambi choudi haanka le rahe hain lakin jis din sir par ayega to main aap se puchunga . bagwan kare ki aap ki beti v kuch esa kare jaisa ki nirupama ne kiya tha.us din aap ko badhayee dunga .aur sath me baat karenge thik hai yaswant ji

  34. sajid

    May 5, 2010 at 5:31 pm

    wha bahi wah..kya baat hai..bian shadi ke maa ban jaoo.wah good idea yashwant bhai good idea..aap ne to kamal ki baat ki hai…ab yaar yeh shadi waghera khtam kar deni chayen..kyon ki yashwant bhai ka kehana hai bina shadi kiya ladki ka maa banana koi buri baat nahi..hai koi maai ka laal jo kahen ki us ki behen ya beti agar bian shadi kiye maa ban jayenn to us ko koi problm nahi balki woh duniya mai dhool bja bja kar khusiyan banyega aur mithayea batega..ha agar jaati ke adahr par muder kiya gya hai to galat hia

  35. kumar Dharmendra

    May 5, 2010 at 6:50 pm

    ;’koar th]
    fu:iek ds cgkus gh lgh]exj ;s ekSdk lcdksa feyk rks t:j gS fd viuh HkM+kl oks fudky ysA efgyk vf/kdkjksa dh ckr djusokys lekt vkSj cscl csfV;ksa dh fprkvksa ij uSfrdrk dk vVVkgl djusokys rFkkdfFkr /kekZa/kksa dh fu;rh dks tkuus dk volj feyk gSA ;’koar th vkius tks fy[kk oks izklafxd gS lPps ek;uksa esa /keZ vkSj /kkfeZdrk ogha gS tks gj balku dks mldh ethZ dh ftanxh thus dk volj iznku djsaA ysfdu vknj.kh; HkkbZ Hkkos’k th tks Hkh gksa vkidh fVIi.kh ls tku iM+rk gS fd vkius vHkh rd viuh ethZ ls ftanxh dks ft;k ugha gS! vius fu.kZ; [kqn ugha cfYd T;knkrj lekt }kjk r; ekun.Mksa vkSj rFkkdfFkr fjfrfjoktksa ds lgkjs fy;k gks! esjk fdlh ij vk{ksi djus dk bjknk drbZ ughaA fdarq ge ftl lnh esa th jgs gksa]mldk [;ky dj fVIi.kh djsa rks csgrj gksA ;’koar th]vkils esjk vuqjks/k gS fd fu:iek ds cgkus gh lgh ysfdu ftl vfHk;ku dks vkius NsM+k gS mls vklkuh ls can gksus er nsukA D;ksafd ;g ,d fu:iek ;k foH;ka’kq dk elyk ugha gSA uk gh dsoy dksMjek dh ?kVuk gSA gtkjksa fu:iek ,slh gksrh gS ftls bl lekt esa eqgCcr dh ,slh ltk fey jgh fd yk’k Hkh xk;c gks tkrs gSaA eSa fcgkj ls gwa blfy;s xkao dLcksa dh ckr djrk gwa]tgka vkt Hkh Fkkus esa ntZ gksusokys gj lkr&vkB eqdneksa esa ,d dsl vkSjrksa dh izrkM+uk dk gksrk gSA ;’koar th];s iksVZy i=dkfjrk ls tqM+k gSA tkfgj gS ns’kHkj ds i=dkjca/kq bls fgV djrsa gSa]vkSj bUgha ca/kqvksa ds mij ;s ftEek gSa fd fu:iek ds :i esa ]viuh ftanxh [kqn laokjus dk liuk ns[kusokyh]lekt ls tkfr dk }a} feVkus okyh]vkSj lcls vge dh vk/kh vkcknh dk vlyh gd vnk djusokyh gekjh csfV;ksa dh osnuk ij viuh dye [kksy nsaA laiknd gksa ;k eqQfLly i=dkj] de ls de bl okD;s ds ckn rks ge ;s iz;kl iwjh bZekunkjh ls djuk ‘kq: dj nsaA ‘kk;n rHkh ge fu:iek dks lgh tfLVl fnyk ik;saxsaA

  36. kumar Dharmendra

    May 5, 2010 at 7:05 pm

    Yeshwant jee
    Nirupama ke bhane hi shi,mgar ye mauka sbko mila to jrur hai ki apni bhadas wo nikal le.mhila adhikaron ki bat krnewale smaj aur bebs betiyon ki chitaon par naitikta ka attahs karnewale tathakathit dhrmandhon ki niyati ko janne ka awsar mila hai.yashwant jee aapne jo likha wo prasangik hai,schche maynon me dharm aur dharmikta wohi hai jo hr insan ko uski marji ki jindgi jine ka mauka de.lekin aadarniya bhai bhawesh ji jo bhi ho apki tippani se jan padta hai ki aapne abhi tak apni marji se jindgi jo jiya nhin.apne nirnay khud nahin balki jyadatar samaj duara tay mandando aur tathasthit ritiriwajon ke sahare liya ho ! mera kisi par aakshep karne ka irada ktai nhi hai.kintu hum jis sadi me ji rahe hon,uska to humen khyal karke hi tippani karni chahiye.hum do charitron me kyon jite hai ?yashwant ji mera aapse anurodh hai ke nirupama ke bhane hi shi aapne jis abhiyan ko aapne chheda hai use aasani se band hone mat dena. kyonki yah ek nirupama ya vibhyanshu ka msla nhi hai. na hi kewal kodrama ki ghatna hai. hajaro nirupma aisi hoti hai jise is samaj me muhabbat ki aisi saja mil rahi ki lash bhi unki gayab jo jate hai.main bihar se hun isliye gaon kasbo ki baat karta hun. jahan aaj bhi thane me drj hone wale har 7-8 mukdamo me ek mahila pratadna ya hatya se juda hota hai.yashwant ji ye portal patrkaro se juda hai.jahir hai deshbhar ke sampadak aur patrakar ise hit karte hai aur inhi bandhuo ke upar ye jimma hai ki nirupma ke rup me ,apni jindgi khud sanwarne ka faisla lenewali, samaj se jati ka duand mitane ki sonch rakhnewali aur adhi aabadi ka asli hak ada karnewali nirupma jaisi betiyon ki vedna par apni kalam puri tarah khol den.sampadak hon ya mufassil patrakar,kam se kam is wakye ke bad to hum ye prayas puri imandari se karna shuru kar den. shayad tabhi hum nirupma ke sapne ko pura kar use justice dila payenge.

  37. sagar parida

    May 7, 2010 at 6:15 am

    niru i love you too

  38. मदन कुमार तिवारी

    November 12, 2010 at 6:49 am

    यशवंत भाई यह समस्या साधारण नही है। और दोष सिर्फ़ निरुपमा के परिवार का नही है बल्कि अगर सही नजरिये से देखा जाय तो हम सब दोषी हैं, पुरा मध्यम वर्ग पाखंड में जिता है । क्या सही है यह नही देखता , समाज क्या कहेगा इसकी ज्यादा चिंता करता है और उसकी यह सोच निरुपमा जैसे कांड को जन्म देती है। अगर निरुपमा के साथ प्रेम करने वाला उसकी अपनी ्जाति का होता तो शायद निरुपमा जिंदा रहती । हालांकि बदलाव आ रहा है लेकिन अभी समाज को बदलने में समय लगेगा । आप अगर विश्लेषण करेंगें तो यही निष्कर्ष निकलेगा की देश की अ्धिकांश बुराई का मुल मध्यम वर्ग है। दहेज , जति , भ्रष्ट्राचार सब का कारण है पाखंडी मध्यम वर्ग । incest जैसे रिश्ते ईसी वर्ग्ग में सबसे ज्यादा है। लेकिन बदलाव लाने वाले भी मध्यम वर्ग के हीं है। मैं तो यही कहुंगा निरुपमा थोडी हिम्मत तो दिखाती ।

  39. मदन कुमार तिवारी

    November 17, 2010 at 3:45 am

    भाई यशवंत , आज आपका कमेंट जो उपर प्रकाशित हैं , बढकर आपकी सोच और मानसिकता के बारे में बहुत कुछ जानने का मौका मिला। वाकई मेरी नजर में आपकी ईज्ज्त बढ गई । यह सोच आदमी को मानव बनाती है। हालांकि मेरे आप जैसे लोग बहुत कम है , लेकिन हैं और एक खमोश जंग जारी है । मानव और अमानव के बीच । काश पाखंड से उपर उठ्कर लोग सोचते तो निरुपमा जैसी न सिर्फ़ हजारों जाने बचती बल्कि बहुत सारी सामिजिक बुराईयां और कुरीतियों से भी छुटकारा मिलता। पुन: मानवतावादी सोच के लिये धन्यवाद .

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